ग्राम संगठन महिला सशक्तिकरण का मार्ग प्रशस्त करता है

गोड्डा, झारखंड

बेहतर आजीविका के लिए एक साथ आई महिलाओं का सामाजिक सशक्तिकरण हुआ है और वे सामुदायिक मुद्दों को सुलझाने और जेंडर-आधारित न्याय सुनिश्चित करने के लिए, अपनी सामूहिक शक्ति का उपयोग करती हैं

झारखंड के रंगतार गाँव में, ब्रह्मचारी ग्राम संगठन (VO) की बैठक के लिए 60 से अधिक उत्साही महिलाएँ एकत्रित हुईं। वर्ष 2014 में बने ग्राम संगठन में अब 14 स्वयं सहायता समूह शामिल हैं।

कई स्व-सहायता समूह (एसएचजी) ग्रामीण स्तर पर मिलकर एक ग्राम संगठन (वी.ओ.) बनाते हैं, जो इसमें शामिल सभी समूहों की गतिविधियों की देखरेख और निगरानी के लिए एक मंच का काम करता है। महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा देने के लिए शुरू किए स्व-सहायता समूह और वी.ओ. के माध्यम से बहुत सी महिलाओं के जीवन में सामाजिक और राजनीतिक सशक्तिकरण भी हुआ है।

बदलाव की प्रक्रिया

स्व-सहायता समूह और वी.ओ. में शामिल होने के बाद महिलाएं खुद में जो सबसे महत्वपूर्ण बदलाव देखती हैं, वह है आत्मसम्मान। इन गांवों की महिलाएं अपने घरों में भी नहीं बोलती थीं। लेकिन अब वे अपने अधिकारों और विचारों के बारे में मुखर हैं, यहां तक कि अजनबियों के सामने भी। वे ग्राम सभा की बैठकों में अपने विचार रखती हैं, बाजारों में मोलभाव करती हैं, बैंकों में लेनदेन करती हैं और पुलिस थानों में शिकायत तक भी दर्ज कराती हैं।

प्रोफेशनल असिस्टेंस फॉर डेवलपमेंट एक्शन (PRADAN-प्रदान), जैसे गैर-सरकारी संगठनों ने स्व-सहायता समूहों के गठन में सहायता की और महिलाओं को विभिन्न मुद्दों पर प्रशिक्षित किया। जहाँ स्व-सहायता समूहों का गठन महिलाओं के लिए आजीविका को बढ़ावा देने के लिए किया गया था, वहीं प्रशिक्षणों का उद्देश्य दूसरे प्रासंगिक मुद्दों साथ-साथ जेंडर-आधारित समानता और स्वास्थ्य के बारे जानकारी देना था।

जैसे-जैसे महिलाओं का अधिक प्रशिक्षण होता गया, उन्हें समझ में आया कि वे पुरुषों के बराबर हैं। बढ़ती जानकारी के साथ, उनका विश्वास भी बढ़ता गया। बहुत सी बातों के प्रभाव से गुजरते हुए, यह बदलाव कुछ गांवों में तो कुछ ही महीनों में आया, जबकि कइयों में ऐसा होने में कुछ साल लगे।

नई पहचान

डाहरलांगी गाँव की सोनमणि देवी उन महिलाओं में से एक हैं, जिनमें एक जबरदस्त बदलाव आया। बहुत ही कमजोर और वंचित पृष्ठभूमि से आने के बावजूद, उन्होंने अपने स्व-सहायता समूह और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के कार्यों में स्वैच्छिक जिम्मेदारियों निभाई।

अपने समूह और ग्राम संगठन की अध्यक्ष की भूमिका में कार्य करते हुए, वह अपने गाँव की बेहतरी के लिए काम करती हैं। उन्हें अपने गाँव में मनरेगा के कार्यों के लिए मंजूरी मिल गई हैं और हाल ही में उन्हें आम का बाग लगाने के लिए ब्लॉक स्तर पर 20 एकड़ जमीन आवंटित हुई है।

उनके आगे बढ़कर भागीदारी करने के गुण के कारण, उन्हें नई कृषि तकनीकों को सीखने के लिए इज़राइल की प्रदर्शन यात्रा के लिए चुना गया था। सोनमणि देवी ने बताया – “मैंने इजराइल तो दूर, कभी अपने ब्लॉक के बाहर तक जाने का सपना नहीं देखा था।” उनके घर में रखे अनेक पुरस्कार, उनकी सफलता की कहानी कहते हैं।

घाटकुरावा ग्राम-संगठन की नारी न्याय समिति की अध्यक्ष के रूप में, गीता देवी सुनिश्चित करती हैं कि जेंडर-आधारित न्याय बरकरार रहे (छायाकार – रश्मि कोमल)

सोनमणि देवी की तरह, बहुत सी महिलाओं को अब अपनी एक नई पहचान का अहसास हुआ है। बीना देवी को उनके ग्राम संगठन के साथ जुड़ाव के कारण मिलने वाला सम्मान सबसे अधिक प्रिय है। उन्होंने कहा कि उन्हें गर्व होता है कि वह अब अपने पति के नाम से नहीं, बल्कि खुद अपने नाम से पहचानी जाती हैं।

बहुत सी शिक्षित महिलाएं, जो महसूस करती थीं कि गांव में उनकी शिक्षा व्यर्थ जा रही है, ग्राम संगठन के साथ अपने जुड़ाव को एक आशा की किरण और अपने कौशल का उपयोग करने के एक अवसर के रूप में देखती हैं। जिन प्रशिक्षणों में भाग लेती हैं, उनसे न सिर्फ जानकारी मिली है, बल्कि उनमें स्वयं के महत्व की भावना भी पैदा हुई है।

जेंडर-आधारित न्याय

पारसपाणी ग्राम संगठन और आसपास की दूसरी वी.ओ. की अधिकांश सदस्य, जो पांच साल पहले, बिना किसी को साथ लिए या अपने सास-ससुर और पति की अनुमति के बिना अपने घर से बाहर नहीं निकलती थी, उन्हीं महिलाओं ने पिछले साल शराब और घरेलू हिंसा के खिलाफ जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया। महिलाओं का कहना है, कि उनमें ये साहस उनके ग्राम संगठन के साथ जुड़ने से आया, जिससे उन्हें यह ताकत और एकता प्राप्त हुई।

घाटकुरावा ग्राम संगठन और इसकी एक इकाई, ‘नारी न्याय समिति’ की अध्यक्ष, गीता देवी के अनुसार – “हमारे इलाके में घरेलू हिंसा आम बात है, क्योंकि पति लोग शराब पीते हैं। हालांकि शराब पीने के हालात में बहुत बदलाव नहीं आया है, लेकिन हिंसा हुई है।”

गीता देवी, जिनकी आयु पचास के दशक में है, ने अपने घर में घरेलू हिंसा और दुर्व्यवहार का कई बार सामना किया है। जिस पीड़ा और आघात को उन्होंने अपने जीवन में सहा है, उससे उनमें महिलाओं के न्याय के लिए लड़ने का साहस और दया का भाव बढ़ा है।

जब एक बीमार विधवा, रंजना देवी के ससुराल के परिवार ने उसे त्याग दिया, तो घाटकुरावा वी.ओ. की नारी समिति ने उसके घर में रहने के अधिकार के लिए संघर्ष किया। समिति ने परिवार के सदस्यों को तलब किया और उन्हें कानूनी कार्रवाई की चेतावनी देकर, उसके लिए घर में एक कमरा देने के लिए दबाव डाला।

अलग-अलग ग्राम संगठनों में अलग-अलग नामों से जानी जाने वाली, नारी न्याय समिति, महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा, ज़मीन, घर और शादी से सम्बंधित जेंडर-असमानता, जैसे सभी प्रकार के अन्याय के मुद्दों पर काम करती है। क्योंकि समिति सौहार्दपूर्वक समाधान की कोशिश करती है, इसलिए इसे विवाद निपटाने के लिए एक विकल्प के रूप में देखा जाता है।

दृष्टिकोण में बदलाव 

पारसपाणी गाँव की मिट्टी की झोपड़ियों के बीच एक पक्का घर, जिसके सामने ‘पानवती सदन’ लिखा हुआ है, शान से खड़ा है। किसी गाँव में, एक महिला का नाम लिखा हुआ घर, एक दुर्लभ बात है। पानवती देवी, जिनका नाम घर पर लिखा है, बताती हैं – “वह समय चला गया, जब केवल पुरुष ही घर के मुखिया हुआ करते थे। मैं अपना घर अपनी शर्तों पर चलाती हूं और मेरे पति मेरा साथ देते हैं।”

पानवती देवी अपने घर के सामने, जिस पर उनका नाम लिखा है, समानता का एक उभरता हुआ प्रतीक है (छायाकार – रश्मि कोमल)

ग्राम संगठन ने सामाजिक दृष्टिकोण बदलने में भी मदद की है। इनकी बदौलत पैदा हुए आजीविका के अवसरों के कारण, बहुत सी महिलाओं ने अब बाहर काम करना शुरू कर दिया है। महिलाओं को निर्णय लेने की प्रक्रिया में जगह मिली है, स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा तक पहुंच बनी है, और आर्थिक रूप से स्वतंत्र हुई हैं।

परिवार और पड़ोसियों को अब महिला की स्व-सहायता समूह और ग्राम संगठन के साथ जुड़ने से दिक्कत नहीं है। जब रंगतार गांव की मंजू देवी एक समूह की बैठक के लिए आईं, तो उनकी सास, जो पहले समूह में उसके शामिल होने से इनकार करती थी, उनके साथ आई।

अब परिवार के सदस्य महिलाओं को ग्राम सभा की बैठकों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। संगठन के सदस्य, पंचायत में वार्ड सदस्य भी हो गए हैं, और इसलिए ग्राम स्तर की योजना बनाने के लिए होने वाली बैठकों में उनके सुझावों को अच्छी तरह से लिया जाता है।

सामुदायिक मुद्दों को हल करना

झारखंड में सामुदायिक मुद्दों को हल करने में ग्राम संगठन सबसे आगे हैं। वे अब पंचायतों पर निर्भर नहीं हैं। जब कुसमा गांव के पास आग लगने की घटना हुई, तो संगठन की सदस्यों ने नकदी और वस्तुओं के रूप में स्वैच्छिक योगदान इकठ्ठा किया और संकटग्रस्त परिवारों की मदद करने के साथ-साथ एकजुटता की मिसाल कायम की।

जब फारेस्ट-गार्ड की अनुपस्थिति में बाहरी लोग जंगलों में घुस कर पेड़ काटने लगे, तो ग्रामवासियों ने एकजुट होकर उनका विरोध किया और अवैध कटाई को रोक दिया। ग्राम संगठन के सदस्य हमेशा एकजुट होते हैं और समुदाय में मुद्दों को हल करने का प्रयास करते हैं।

विधवा पेंशन योजना के अंतर्गत मिलने वाली राशि लाभार्थियों को पूरी नहीं मिलती थी, क्योंकि कुछ लोग उनके जाली हस्ताक्षर करके उनके खातों से पैसे निकाल रहे थे। जब बैंक अधिकारियों ने अनुरोध और शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया, तो ग्राम संगठन सदस्यों ने बैंक के सामने प्रदर्शन करने का निर्णय लिया।

ग्राम संगठन  के सदस्यों की सामूहिक कार्यों  ने कई गांवों में जाति, वर्ग, लिंग और राजनीति के आधार पर भेदभाव को मिटा दिया है। इन्हीं कारणों से, ग्रामवासी अब संगठन के सदस्यों से उम्मीद रखते हैं, उनकी राय लेते हैं और उनकी सलाह का पालन करते हैं।

रश्मि कोमल पुणे के विकास अण्वेष फाउंडेशन में शोधकर्ता हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।