सिन्नार के किसानों ने टिकाऊ आमदनी के लिए अपनाई बहु-फसल तकनीक

नासिक, महाराष्ट्र

खेत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग फसल उगा कर, नासिक जिले के किसानों ने मिट्टी की सेहत और उत्पादकता में सुधार किया है, बीमारियों और बीज से बिक्री तक के समय को कम किया है, और आय में वृद्धि की है

सोनारी गाँव के संजय वलिबा शिंदे के खेत में, आगंतुकों का “जय पंच गुंठा” के घोष के साथ स्वागत होता है, जहां खेत के एक भाग में रस्सी के सहारे चढ़ते टमाटर के पौधों की पंक्तियाँ, दक्कन के पठार की खास काली मिट्टी पर बिछी मूंगफली की फसल, और खिले हुए गेंदे के फूलों के रंग में ढले खेत के किनारे हैं, जो कीट-पतंगों को रोकते हैं।

सफेद कमीज और सिर पर तिरछी गाँधी टोपी, जो महाराष्ट्र में अधिकांश किसान पहनते हैं, पहने नासिक की सिन्नार तालुक के सोनारी गांव के 45 वर्षीय किसान, अपने आप, अवशेष-मुक्त खेती के गुणों, खेत में ही पौधों से तैयार कीटनाशक और बहु-फसल के फायदों पर एक क्रैश-कोर्स दे डालते हैं।

शिंदे, जो खेती से जीवन यापन को एक कमरतोड़ मेहनत और अभिशाप के रूप में देखते थे, अब पांच गुंठा (5R) के सिद्धांत से खेती करते हैं। इससे लाभान्वित होने के कारण, वह लोगों का ‘जय पंच-गुंठा’ कहकर अभिवादन करते हैं। इसके लाभ को देखते हुए, शिंदे जैसे बहुत से किसान बहु-फसली खेती की पांच-गुंठा तकनीक अपना रहे हैं।

खेती की ‘पांच-गुंठा’ तकनीक

पांच-गुंठा (5R) खेती में, किसान जमीन के पांच हिस्से करके, उनमें तीन या अधिक प्रकार की सब्जियां लगाते हैं| प्रत्येक हिस्से में एक गुंठा जमीन होता है। एक गुंठा आमतौर पर ‘R’ अक्षर से दर्शाया जाता है (एक गुंठा= 1,089 वर्ग फुट; 40 गुंठा= एक एकड़)। पहली फसल काटने के पंद्रह दिन बाद, किसान दूसरे हिस्से की फसल की कटाई करता है। यह सिलसिला 15 दिन के अंतराल पर दूसरे हिस्सों में एक के बाद एक जारी रहता है।

इस तकनीक के द्वारा, किसान अपनी फसल प्रतिदिन स्थानीय बाजार में ले जा सकता है और जमीन के आकार के अनुसार 1,000 से 1,500 रुपये या उससे भी अधिक कमा सकता है। यह उस पारम्परिक तरीके से हटकर है, जिसमें बुवाई से लेकर कटाई और बिक्री तक छह से नौ महीने का इंतजार करना पड़ता है।

शिंदे ने VillageSquare.in को बताया – “जिस पारम्परिक पद्धति से हम खेती करते थे, उसमें हाथ में पैसा आने के लिए हमें लम्बा इंतजार करना पड़ता था। कई संब्जियों की खेती ने हमारे जीवन को जबरदस्त रूप से बदल दिया है और अब हम पर बारहों महीने क़र्ज़ नहीं रहता।”

आजीविका में वृद्धि

आजीविका बढ़ाने वाले प्रयोग की शुरुआत, 2010 में स्थानीय किसानों की एक बैठक के साथ हुई। युवा मित्र, एक गैर-सरकारी संस्था, जो नासिक जिले में दो दशकों से काम कर रही है, और जिसने जल संसाधन विकास और प्रबंधन, आजीविका वृद्धि, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मुद्दों पर काम किया है, ने इस बैठक के आयोजन में सहायता की।

युवा मित्र के सुनील पोटे के अनुसार – “बैठक उनकी आकांक्षा को समझने, और यदि संभव हो तो इसे बढ़ाने में मदद करने का हमारा प्रयास था। हमने महसूस किया कि वे बस कंडक्टर, एक पुलिस कांस्टेबल या सरकारी कार्यालय में एक चपरासी की तनख्वाह के बराबर 7,000 से 8,000 रूपये महीना आमदनी चाहते थे, जो उन्हें खेती से नहीं मिल पाती।”

अपनी बंदगोभी की फसल के बीच वडगाँव गाँव के अन्ना नारायण कोटकर, जो अपनी समृद्धि के लिए पाँच गुंठा खेती की तकनीक को श्रेय देते हैं (छायाकार – हिरेन कुमार बोस)

पोटे ने VillageSquare.in को बताया – “अगर वे एक बहु-फसली तरीके से सिर्फ सब्जियां उगाकर प्रतिदिन 1,000 रुपये कमा सकें तो? इस विचार ने पांच-गुंठा तकनीक से खेती को बल प्रदान किया। शुरुआत में, हमें कुछ विफलताएं झेलनी पड़ी, किन्तु इन वर्षों में हमने इसमें महारत हासिल कर ली।”

तकनीक का प्रसार

युवा मित्र ने अपने स्वयंसेवकों की मदद से, वर्ष 2011 से शुरू करके छह साल तक, पांच-गुंठा (5R) खेती को बढ़ावा दिया। पिछले दो साल से, किसान अपने खुद के दम पर यह तकनीक अपना रहे हैं और इसका प्रचार कर रहे हैं। हालांकि यहां के किसान युगों से सब्जियां उगा रहे हैं, लेकिन पांच-गुंठा खेती जैसे हस्तक्षेप ने उनकी आजीविका में वृद्धि की है।

वाडगाँव गाँव से शुरू हुआ यह प्रयोग जल्दी ही, सोनारी, सोणाम्बे, सोनावाड़ी, भटवाड़ी, आशापुर, और दुबेरे जैसे पड़ोसी गाँवों में पहुँच गया। कुछ वर्षों में ही 15 गांवों के उन 329 परिवारों ने इसे अपनाया है, जहां से होकर देव नदी की नहर गुजरती है।

यहाँ के किसान परिवार मराठा, माली, वंजारी, हरिजन, महादेव कोली, कडाड़ी और ठक्कर समुदायों से हैं। इन 15 गांवों में से प्रत्येक में, एक वाटर-यूजर्स कमेटी नहर की देखभाल और रखरखाव का प्रबंधन करती है।

खेती के सिद्धांत

पांच-गुंठा तकनीक की खेती, पौधों के सहयोगपूर्ण रोपण के सिद्धांतों पर आधारित है, जिससे जगह का अधिकतम उपयोग होता है और अनुकूल माहौल बनता है, जिससे फसल की पैदावार में वृद्धि होती है। उदाहरण के लिए, एक किसान बैंगन, मेथी, ब्रोकोली और कद्दू को जमीन के एक हिस्से में उगा सकता है, जबकि दूसरे हिस्से में गोभी, सोआ (डिल), चेरी टमाटर और लौकी उगाई जा सकती हैं।

इस तकनीक से रोगों और कीट हमलों पर नियंत्रण होता है। क्योंकि सब्जियां अलग-अलग किस्मों से सम्बन्ध रखती हैं, इसलिए वे मिट्टी से अलग-अलग तरह की खुराक लेती हैं और उसकी उर्वरकता को बनाए रखने में मदद करती हैं। इससे खाद और कीटनाशक पर खर्च कम होता है।

फसलों की मात्रा कम होने के कारण, उन पर बाजार में उतार-चढ़ाव का प्रभाव भी कम पड़ता है। बुवाई और कटाई का काम परिवार के द्वारा ही कर लिए जाने, और किसान द्वारा फसल सीधे मंडी में बेच लेने से, बिचौलियों की भूमिका भी समाप्त हो जाती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि इससे नकदी रोज मिल जाती है।

खेती से समृद्धि

वाडगांव के अन्ना नारायण कोटकर ने 12 वीं कक्षा में स्कूल छोड़ दिया था। वह अपने पुराने-जर्जर पैतृक घर से सटकर 30 लाख रुपये का एक बंगला बना रहे हैं। वह अपनी 6 एकड़ जमीन में लहसुन, बंदगोभी, गेहूं, प्याज और विदेशी किस्मों सहित, कई प्रकार की सब्जियां उगाते हैं। उन्होंने VillageSquare.in को बताया – “बहु-फसली सब्जियों की खेती से हमारे जीवन में समृद्धि आई है।”

खेतों में या अपने बंगलों में हर्बल चाय पीते हुए अनेक किसानों से मिलने पर, इस लेखक ने अपने इस अध्ययन के दौरान, आत्मविश्वास से लबालब, बेहतर भविष्य की उम्मीद से भरे और खेती में सम्मान महसूस करने वाले परिवार देखे।

हालांकि आज के इन किसानों को चाहे स्कूल छोड़ना पड़ा हो या धन की कमी के कारण अपनी पढ़ाई बंद करनी पड़ी हो, लेकिन उनके आर्थिक हालात सुधरने के कारण उनके बेटे-बेटियां विज्ञान, इंजीनियरिंग, फार्मा, बागवानी जैसे विषयों में पढ़ाई कर रहे हैं।

किसान उत्पादक कंपनियां

किसानों के परिवार से संबंधित और आर्ट्स में स्नातक, वड़गांव गाँव के करभरी सांगले, सबसे पहले पांच गुंठा खेती की तकनीक अपनाने वालों में से एक हैं। उन्होंने महाराष्ट्र की पहली किसान उत्पादक कंपनी (FPC), ‘देवनदी वैली एग्रीकल्चर प्रोड्यूसर्स कंपनी’ की स्थापना की, जिसमें 20 गांवों के 850 किसान शेयरधारक हैं।

वड़गांव गाँव के करभरी सांगले, अपने खेत में बहु-फसल खेती पद्धति से पारंपरिक के साथ-साथ विदेशी सब्जियां भी उगाते हैं, (छायाकार – हिरेन कुमार बोस)

देवनदी उत्पादक कंपनी सब्जियों, फलों और कृषि सम्बन्धी सामग्री की खरीद-फरोख्त करती है। अन्य सब्जी उगाने वाली उत्पादक कंपनियों में 450 सदस्यों वाली म्हालूँगी नदी और 735 सदस्यों वाली ग्रीन विजन कम्पनियाँ शामिल हैं। असल में, कुल 15 उत्पादक कंपनियों के साथ, गिनती के हिसाब से सिन्नार महाराष्ट्र में सबसे आगे है।

विदेशी सब्जियां

पांच गुंठा खेती के समर्थक, सांगले ने VillageSquare.in को बताया – “मुझे अपनी एक एकड़ जमीन पर इस तकनीक को अपनाए आठ साल हो गए हैं और मैंने ऐसा करने के लिए सैकड़ों किसानों को एकजुट किया है।” वह विदेशी सब्जियों के साथ-साथ, प्याज, मूंगफली, गेहूं और मोती बाजरा जैसी पारम्परिक फसलें भी उगाते हैं।

सांगले के अनुसार – “चाइनीज बंदगोभी, ब्रोकोली, थाई तुलसी, तोरी, अजवायन, आदि विदेशी सब्जियों से मुझे, टमाटर की कीमत के मुकाबले चार गुना अधिक कीमत मिलती हैं। असल में, मैंने अपने बेटे को नौकरी की तलाश बंद करके मेरी मदद करने के लिए कहा है, और मैं उसे 50,000 रुपये महीना वेतन दूंगा।”

पचास के दशक की आयु वाले सांगले, जिनकी एक संपन्न किसान के रूप में पहचान है, एक दो-मंजिला घर में रहते हैं और अपने छह-एकड़ खेत को अकेले ही संभालते हैं, जबकि उनका सिविल-सर्विस की तैयारी कर रहा बेटा और स्कूल जाने वाली बेटी कभी-कभी उनका हाथ बंटा देते हैं। मुंबई, पुणे, हैदराबाद और विजवाड़ा जैसे शहरों में उनके ग्राहक हैं।

पौधों की नर्सरी

देसी सब्जियां हों या विदेशी, पांच गुंठा तकनीक से खेती करने वाले किसानों के लिए, उच्च गुणवत्ता वाली पौध उपलब्ध कराने में नर्सरी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।एक बागवानी में स्नातक, 28 वर्षीय विनय हगवने, जिन्होंने 2017 में 1.25 एकड़ में एक नर्सरी शुरू की थी, आज 20 गांवों के किसानों को सप्लाई करते हैं।

हगवने ने VillageSquare.in को बताया – “किस्म के आधार पर उसके रोपण से पहले, किसी पौध को विकसित होने और सख्त होने में 15 से 35 दिनों का समय लगता है। पिछले छह महीनों में, मैंने देसी और विदेशी सब्जियों के लगभग 70 लाख पौधे बेचे हैं।”

हिरेन कुमार बोस महाराष्ट्र के ठाणे में स्थित एक पत्रकार हैं। वह सप्ताहांत में किसान के रूप में काम करते हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।