लॉकडाउन के दौरान बच्चे नवाचार-आधारित वीडियो के माध्यम से सीख रहे हैं

सुकमा, छत्तीसगढ़

मोबाइल फोन पर विशेष रूप से तैयार वीडियो सामग्री प्राप्त करते हुए, शिक्षकों, स्वयंसेवकों और माता-पिता के समन्वित प्रयास से दूरदराज के गांवों में प्राथमिक कक्षाओं के बच्चों को उनके पाठ से जुड़े रहने में मदद मिलती है

शुक्रवार सुबह करीब 11 बजे, छत्तीसगढ़ के माओवाद प्रभावित सुकमा जिले के बधाईपारा प्राथमिक विद्यालय अध्यापिका, थामेश्वरी चौहान, भट्टीपारा टोले में आनंदपूर्ण खेल के लिए बच्चों को मैदान में इकट्ठा करने में व्यस्त थी।

आधे घंटे बाद, चौहान बीच में खड़ी थी और उनके चारों ओर खड़े हुए आठ बच्चे, बेसब्री से निर्देशों का इंतजार कर रहे थे। उन्होंने जो खेल शुरू किया वह मानसिक चपलता का परीक्षण था, जिसमें उनके द्वारा ‘क’ से बने किसी शब्द, जैसे कि कबूतर या कमल, कहने पर बच्चों को बैठना था। उन शब्दों के कहने पर, जो ‘क’ से शुरू नहीं होने, बच्चों को खड़ा होना था। एक मिनट के समय में, एक को छोड़कर सभी बच्चे गलती करके बाहर हो गए।

शिक्षण की इस नई दुनिया में, शिक्षक, माता-पिता और सामुदायिक स्तर के स्वयंसेवक छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्तर के स्कूली बच्चों के साथ काम कर रहे हैं। इस क्षेत्र में मोबाइल कनेक्टिविटी की स्थिति ख़राब होने के बावजूद, वे यह सुनिश्चित करते हैं कि बच्चे अपनी पढ़ाई जारी रखें।

ऐसे समय में जब स्कूल COVID-19 के कारण बंद हैं, यूनिसेफ द्वारा तैयार, ‘सीख’ नामक कार्यक्रम, सप्ताह में तीन बार आयोजित किया जाता है, जिससे छात्रों द्वारा अपनी भाषा और गणित सहित पढ़ाई और खेल को जारी रखने में मदद मिलती है।

‘सीख’ कार्यक्रम

सुकमा जिले के सीख जिला-समन्वयक, सनत कुमार बघेल ने VillageSquare.in को बताया – “महामारी और लॉकडाउन के दौरान, बच्चों द्वारा उनकी पढ़ाई जारी रखना सुनिश्चित करने की व्यापक योजना के बाद अप्रैल में सीख कार्यक्रम शुरू हुआ।”

मार्च में स्कूल बंद होने के बाद, क्लस्टर समन्वयकों ने बैठकें कीं, समूहों का गठन किया और गांवों में सीख के बारे में प्रचार-प्रसार किया। समूहों में उन लोगों को शामिल किया गया, जिनके पास स्मार्ट फोन और इंटरनेट कनेक्शन थे। सीख कार्यक्रम सभी सरकारी स्कूलों के लिए अनिवार्य कर दिया गया है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि छात्र अपनी पढ़ाई जारी रख सकें।

शिक्षकों ने भी सीख के बारे में प्रचार किया। क्योंकि शिक्षक स्थानीय इलाकों को अच्छी तरह से जानते हैं, उन्हें कार्यक्रम के लिए स्वयंसेवकों को भर्ती करने की जिम्मेदारी दी गई। उन्होंने स्वयंसेवकों के रूप में उन स्थानीय लोगों को चुना, जो बच्चों को पढ़ाने और उनका मार्गदर्शन करने में रुचि रखते थे, जो समय दे सकते थे और उनके पास एक स्मार्ट फोन था।

कार्यक्रम की विषय-वस्तु

चौहान ने VillageSquare.in को बताया – “हम में से जो सीख कार्यक्रम में शामिल हैं, उन्हें अपने फोन पर विभिन्न प्रकार की गतिविधियों के बारे में पहले से ही छोटे वीडियो मिल जाते हैं। उसके बाद हम मास्क पहनकर विभिन्न गाँवों में जाते हैं और लगभग 10 बच्चों को इकट्ठा करते हैं और उन्हें पढ़ाते हैं। सामाजिक दूरी के नियम का सख्ती से पालन किया जाता है।”

शिक्षक गांवों में जाते हैं, एक ऐसे स्थान पर बच्चों को इकट्ठा करते हैं जहां सामाजिक दूरी रखी जा सके और उन्हें सीखने में मदद करते हैं (फोटो- संतोष कुमार मांडवी के सौजन्य से)

यूनिसेफ, छत्तीसगढ़ की शिखा राणा के अनुसार वीडियो की विषयवस्तु, स्वयंसेवकों और माता-पिता की योग्यता को ध्यान में रख कर तैयार की गई है। वे कहती हैं – “क्योंकि शिक्षा का स्तर अधिकांश स्थानों पर बहुत अधिक नहीं है, इसलिए उन्हें वीडियो की विषयवस्तु से निराशा नहीं होनी चाहिए।”

वीडियो में, कहानियों और दिलचस्प कथाओं के माध्यम से पाठ दिए जाते हैं। एक में, आम पर आधारित एक कथा बच्चों को शून्य और गिनती के सिद्धांत को समझने में मदद करती है। इसे सुनाने वाला व्यक्ति, माता-पिता को अपने बच्चों के साथ कहानियों का आनंद लेने के लिए प्रोत्साहित करता है।

एक कहानी किचन गार्डन से सब्जियाँ तोड़ते, एक युवा लड़के मालू की है। जब उसकी दादी उसे आलू लाने के लिए कहती है, तो उसका कुत्ता उसे मिट्टी में आलू खोजने में मदद करता है। कथा सुनाने वाला बच्चों को मिट्टी के नीचे उगने वाली अन्य सब्जियों की सूची बनाने और उनके चित्र बनाने के लिए कहता है।

कक्षा पांच की एक छात्रा गीता नाग ने VillageSquare.in को बताया – “’मुझे सीख कार्यक्रम की सभी गतिविधियां पसंद हैं। थामेश्वरी (चौहान) मै’म हमें अपने फोन पर वीडियो दिखाती हैं। यदि वे नहीं आती हैं, तो मेरी ये गतिविधियाँ रह जाती हैं। मेरे माता-पिता भी पढ़ाई में मेरी मदद करते हैं।”

चुनौतियों का निपटारा

चौहान जैसे शिक्षकों का कहना है, कि हालांकि बच्चे इस कार्यक्रम का भरपूर आनंद लेते हैं, लेकिन दूर दराज के  गांवों में खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी और स्मार्ट फोन का अभाव कई स्थानों पर एक बाधा साबित होता है। टोंगपाल गांव के एक शिक्षक, संतोष कुमार मांडवी ने बताया कि उनकी देखरेख में जो 90 बच्चे हैं, वे उनमें से लगभग 50 तक ही पहुँच पाते हैं।

मांडवी ने VillageSquare.in को बताया – “यह सुनिश्चित करने के लिए कि सभी बच्चे मुझे ठीक से सुन सकें, मैंने एक ब्लूटूथ स्पीकर खरीदा है। कभी-कभी एक समय में 40 बच्चे भी आते हैं। लेकिन सौभाग्य से, वहाँ एक बड़ा खेल का मैदान है और उसमें छह पेड़ हैं, जिनके नीचे वे जरूरी सामाजिक दूरी बनाकर बैठते हैं और सीखते हैं।”

जैमेर गाँव में, जहाँ मांडवी पढ़ाने जाते हैं, वहां उन्हें नेटवर्क की समस्या का सामना करना पड़ता है। नेटवर्क के अलावा, पर्याप्त संख्या में स्मार्ट फोन न होना भी एक समस्या है। मांडवी ने बताया कि 90 बच्चों में से केवल चार को ही स्मार्ट फोन उपलब्ध हो पाता है। तीसरी कक्षा में पढ़ने वाली इंदु की माँ, पार्वती बघेल के पास स्मार्ट फोन नहीं है और वह अपने पड़ोसी की मदद पर निर्भर है।

चौहान बताती हैं – “जिन माता-पिता के पास स्मार्ट फ़ोन हैं, वे व्यक्तिगत रूप से अपने बच्चे से चर्चा करते हैं। जिनके पास फोन नहीं है, वे हमारे भरोसे हैं। गाँव में खेल के मैदान या चौक जैसे सामूहिक स्थानों का उपयोग खेल गतिविधियों और कक्षाओं के लिए किया जाता है। एक वीडियो मिलने के बाद, मैं अपने घर के करीबी दो गांवों में आमतौर पर देर सुबह या दोपहर में जाती हूं।”

लॉकडाउन में प्राथमिक कक्षाओं के बच्चे वीडियो सामग्री और गतिविधियों के माध्यम से सीखने का आनंद लेते हैं (फोटो- संतोष कुमार मांडवी के सौजन्य से)

संतोषी ध्रुव शाम के समय दौरा करना पसंद करती हैं। उनके अनुसार, अधिकांश माता-पिता काम की व्यस्तताओं के कारण, अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए समय नहीं दे सकते। लेकिन रंगीला कश्यप जैसे कुछ माता-पिता कहते हैं कि जब भी उनके पास खाली समय होता था, वे वीडियो देखते थे।

स्वयंसेवकों का सहयोग

यूनिसेफ छत्तीसगढ़ के शिक्षा विशेषज्ञ शेषगिरी कृष्णगिरी मधुसूदन राव के अनुसार, शायद: साल के अंत तक स्कूल फिर से खुल सकें। लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि हालात बने रहने के बावजूद सीख जारी रहेगा।

राव ने VillageSquare.in को बताया – “कार्यक्रम के माध्यम से हम जिस बात की पैरवी कर रहे हैं, वह यह है कि चाहे स्कूल खुले हों या न खुले हों, माता-पिता को घर में सीखने के लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराना चाहिए। हम सीख-मित्र या सामुदायिक स्वयंसेवकों के विचार को भी सशक्त बनाना चाहते हैं। इसलिए, मूल रूप से यह संस्कृति में एक बदलाव का संकेत है।”

स्वयंसेवकों की भूमिका महत्वपूर्ण है। राव के अनुसार स्वयंसेवक यह सुनिश्चित करते हैं, कि माता-पिता वीडियो डाउनलोड करें और उसकी सामग्री को समझें। अभी, लगभग 4,000 सीख स्वयंसेवक राज्य के उन नौ जिलों में काम कर रहे हैं, जहाँ सीख कार्यक्रम संचालित किया जा रह है। बीजापुर जिले में, लगभग 500 स्वयंसेवकों का लक्ष्य रखा गया है।

सुकमा के छिंदगढ़ ब्लॉक के पुजारीपारा गाँव के स्वयंसेवक दिलीप ठाकुर और मारेंगा गाँव के रुकधर नाग ने कहा कि वे इस कठिन दौर में, बच्चों की पढ़ाई में मदद करने के लिए, जिस भी तरह हो सके, योगदान करने में उन्हें खुशी होगी।

सीख का विस्तार

सुकमा जिले में, सीख कार्यक्रम इस समय केवल छिंदगढ़ ब्लॉक में चल रहा है, जिसमें 27 क्लस्टर बनाए गए हैं। छिंदगढ़ के ज्यादातर स्कूलों में, छात्रों की संख्या 30 से 35 है। थामेश्वरी चौहान के स्कूल में 30 बच्चे हैं।

शिक्षा विभाग के ब्लॉक समन्वयक, वसीम खान ने फोन पर बताया कि इस परियोजना में हर कोई सहायता कर रहा है, जो एक अच्छा संकेत है। उन्होंने बताया – “यदि हम इस तरह की गतिविधियों का संचालन नहीं करते हैं, तो लम्बे समय तक स्कूल बंद होने के कारण, बच्चे अपना सीखा हुआ भूल जाएंगे।”

राजीव गांधी शिक्षा मिशन के जिला मिशन समन्वयक, श्याम चौहान ने कहा कि अगस्त के अंत तक, छिंदगढ़ के अलावा दो अन्य प्रशासनिक ब्लॉक, सुकमा और कोंटा में भी सीख शुरू करने की योजना है।

शिक्षक और स्वयंसेवक, जिन्हें उनके फोन पर गतिविधियां और संबंधित निर्देश प्राप्त होते हैं, वे बच्चों को खेल के माध्यम से भाषा, गणित आदि की मूल बातें सीखने में मदद करते हैं (फोटो – यूनिसेफ, छत्तीसगढ़ के सौजन्य से)

उन्होंने बताया कि जिले में 1,026 स्कूल हैं, लेकिन कनेक्टिविटी की समस्या के कारण केवल 343 स्कूलों में ऑनलाइन कक्षाएं आयोजित की जा सकती हैं। दूसरे क्षेत्रों में, सीख जैसी पहल तभी सफल हो सकती है, जब शिक्षक व्यक्तिगत रूप से गांवों का दौरा करें।

श्याम चौहान ने VillageSquare.in को बताया – ”हमें अधिकाधिक इस बात की जरूरत महसूस हो रही है, कि सुकमा और कोंटा ब्लॉक और साथ ही उन जगहों पर भी, जहां नेटवर्क की समस्या है, सीख को शुरू किया जाना चाहिए। इस समय सुकमा में प्राथमिक स्कूलों के 285 छात्र सीख परियोजना के अंतर्गत आते हैं।

वसीम खान के अनुसार, छिंदगढ़ ब्लॉक के कक्षा एक से पांच तक के 5,881 बच्चे सीख से लाभान्वित होते हैं।

सुकमा के आगे 

सीख कार्यक्रम शुरू में धमतरी, सुकमा, रायगढ़ और जशपुर जिलों में शुरू हुआ। इसकी सकारात्मक प्रतिक्रिया से उत्साहित होकर इसे बस्तर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा, सूरजपुर और बीजापुर तक बढ़ा दिया गया है। राव ने बताया कि कांकेर और कोंडागांव को छोड़कर, लगभग सभी नक्सल प्रभावित जिले सीख के अंतर्गत लाए जा चुके हैं। यहां तक ​​कि गुजरात सरकार भी गुजराती में वीडियो का अनुवाद करने के बाद, सीख को अपनाने की योजना बना रही है।

बघेल ने VillageSquare.in को बताया – “हम अंदरूनी इलाकों में मोबाइल नेटवर्क की समस्याओं का सामना कर रहे हैं, क्योंकि 60% स्कूल उस जोन में आते हैं, जहाँ नेटवर्क नहीं है। जहां भी नेटवर्क है, वहां वो माता-पिता, जिनके पास फोन हैं, बच्चों की मदद करते हैं। दुर्गम क्षेत्रों में, समुदाय के सदस्य, शिक्षक और स्वयंसेवक गतिविधियों का संचालन करते हैं।”

छत्तीसगढ़ में यूनिसेफ के प्रमुख जॉब ज़कारिया के अनुसार, ऑनलाइन कक्षाएं मुख्य रूप से मेट्रो शहरों के उच्चवर्गीय और निजी स्कूलों के लिए उपयुक्त हैं। वे कहते हैं – “यह एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दा है क्योंकि स्कूलों के बंद हो जाने के कारण, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, शिक्षा बाधित हुई है। इसका परिणाम यह होगा कि स्कूल खुलने पर ड्रॉप आउट हो जाएगा, यानि बहुत से बच्चे स्कूल छोड़ देंगे।”

सुकमा जिला प्रशासन भी सक्रीय रूप से सीख को आगे बढ़ाने में मदद कर रहा है। स्कूल शिक्षा विभाग की ओर से क्लस्टर समन्वयक, राजेश सिंह राठौर, छिंदगढ़ प्रशासनिक ब्लॉक की कुकनार पंचायत के 12 गांवों की देखरेख करते हैं।

राठौर ने VillageSquare.in को बताया – “यह एक अद्भुत परियोजना है। मैं बच्चों को शिक्षकों को सुनने के लिए प्रोत्साहित करता हूं, और मैं माता-पिता और स्वयंसेवकों से वीडियो देखने का अनुरोध करता हूं। बच्चों को हर समय महसूस होना चाहिए कि स्कूल चल रहे हैं।”

दीपान्विता गीता नियोगी दिल्ली-स्थित एक पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।