ग्रामीण ओडिशा में ऑनलाइन शिक्षा कितनी कारगर

कंधमाल, ओडिशा

डिजिटल शिक्षा के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचे के अभाव में, ग्रामीण बच्चों का मजबूरन अपनी पढ़ाई से संपर्क टूट गया और उन्हें काम करना पड़ा है। उनके लिए शिक्षा ग्रहण करने की एकमात्र उम्मीद कक्षा से जुड़ी है

कंधमाल जिले के जिदिकिया गांव के 13 वर्षीय सदानंद भुरगी के लिए, स्कूल जाने से ज्यादा खुशी की बात और कुछ नहीं हो सकती थी। लेकिन COVID-19 और उसके कारण हुए लॉकडाउन ने उसकी आशाओं को निराशा में बदल दिया। मार्च के मध्य से स्कूलों के बंद कर दिए जाने से, कक्षा में जाकर सीखने की उसकी प्रक्रिया को रोक दिया है।

बलांगीर जिले के बेनीबांधा प्रोजेक्ट अपर प्राइमरी स्कूल के कक्षा पांच के छात्र अबिनाश कुम्भार का मामला भी सदानंद भुरगी जैसा ही है। अबिनाश कुम्भार अपनी नई कक्षा में प्रवेश के लिए तैयार था और अपने नए शिक्षक से मिलने के लिए उत्साहित थे। लेकिन ऐसा हो नहीं सका, क्योंकि स्कूल बंद थे।

केवल भुरगी और कुम्भार ही नहीं, बल्कि ओडिशा के सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले लाखों ग्रामीण बच्चों के पास कक्षाओं तक पहुँच के लिए संसाधनों का अभाव है।

शिक्षा के अधिकार मंच (RTI), ओडिशा के संयोजक अनिल प्रधान ने VillageSquare.in को बताया – “COVID-19 महामारी ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के बीच की ढांचागत असमानताओं को गहरा कर दिया है। इसका बच्चों की शिक्षा पर भी, विशेषकर वंचित वर्ग के बच्चों की शिक्षा पर गहरा असर पड़ा है।”

अनिल प्रधान कहते हैं – “हालांकि शहरी क्षेत्रों के निजी स्कूलों ने ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से पढ़ाना शुरू कर दिया है, लेकिन डिजिटल विभाजन साफ तौर पर गहरा है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति निराशाजनक है। यदि ये बच्चे अधिक समय तक घर पर रहेंगे, तो बाल मजदूरी, बाल विवाह और हिंसा जारी रहेगी।”

हालांकि ओडिशा सरकार ने लॉकडाउन अवधि में कमजोर छात्रों के लिए कक्षाएं शुरू की हैं, लेकिन ऑनलाइन कक्षाएं उनके लिए अव्यवहारिक हैं, क्योंकि उनके पास न लैपटॉप है और न ही स्मार्टफोन। इसलिए, कक्षा-आधारित शिक्षा उनकी एकमात्र उम्मीद बनी हुई है।

डिजिटल बुनियादी ढाँचा

आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 से पता चलता है कि ओडिशा के 20% (11,000) से अधिक गांवों में, मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं है। इंटरनेट ग्राहकों का राष्ट्रीय औसत 100 में से जहाँ 38.02 है, वहीं राज्य में यह सिर्फ 28.22 है। सर्वेक्षण रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि इंटरनेट ग्राहकों का यह आंकड़ा शहरी क्षेत्रों के 83.3 के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र 16 है।

रिपोर्ट के अनुसार, ओडिशा के 67,128 सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में से, केवल 27.68% ने ही ऑनलाइन शिक्षा शुरू की है, और जो बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं में भाग ले रहे हैं, उनमें से केवल 31.95% के पास स्मार्टफोन हैं। मौजूदा डिजिटल-भेदभाव को देखते हुए, केवल ऑनलाइन शिक्षा पर निर्भर होने से वंचित वर्ग के छात्र शिक्षण व्यवस्था से ही बाहर हो जाएंगे, जिसका परिणाम शिक्षा में असमानता में वृद्धि के रूप में होगा।

हाशिए पर रहने वाले ग्रामीण समुदाय में अधिकारों और पात्रता के लिए जागरूकता पर काम करने वाली एक गैर-सरकारी संस्था, आत्मशक्ति ट्रस्ट की कार्यकारी ट्रस्टी, रूचि कश्यप ने VillageSquare.in को बताया – “ऑनलाइन पढ़ाई की प्रक्रिया में, वंचित वर्ग के छात्रों में अंतर और असमानता का दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है। और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है, कि यह मौलिक शिक्षा अधिकार कानून का भी उल्लंघन कर रहा है।”

शिक्षण सम्बन्धी परिणाम

सीखने के परिणामों की परिभाषा ही यह है कि सीखने का सार क्या है और इसे कैसे प्राप्त किया गया है, इसकी पुष्टि होनी चाहिए। हाल ही में, ओडिशा, शिक्षा सहित कई मुद्दों पर काम करने वाले दो राज्य स्तरीय समूहों, ‘ओडिशा श्रमजीबी मंच’ और ‘महिला श्रमजीबी मंच, ओडिशा’ ने ओडिशा के 17 जिलों में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले कक्षा तीसरी, पांचवीं और आठवीं के 2,851 बच्चों का अध्ययन किया, ताकि उनके सीखने के परिणाम का मूल्यांकन किया जा सके।

कंधमाल जिले के एक गाँव में, एक पेड़ के नीचे स्वयं पढ़ाई करती एक बच्ची (छायाकार नाबा किशोर पुजारी)

अध्ययन से पता चलता है कि अंग्रेजी भाषा में परीक्षा देने वाले आठवीं कक्षा के 845 स्कूली छात्रों में से, 48% का स्तर अपेक्षित स्तर से कम था। गणित में यह आंकड़ा 45% था। ओडिया में 79% के साथ, बच्चों का सीखने का स्तर बेहतर है। यह एक बड़ी समस्या है, क्योंकि बहुत से बच्चों की मातृभाषा ओडिया होने के बावजूद, उनकी शिक्षा कक्षा के अनुरूप नहीं हुई है।

एक्शनएड इंडिया के राष्ट्रीय प्रबंधक और ओडिशा स्टेट कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (ओएससीपीसीआर) के साथ शिक्षा के अधिकार (आरटीई) पर सलाहकार, घासीराम पांडा ने VillageSquare.in को बताया – “COVID-19 ने हमें फिर से महसूस कराया है, कि हम शिक्षा के अधिकार के अंतर्गत अपने स्कूलों के लिए सोचे गए मानदंडों और मानकों को पूरा करने से बहुत पीछे हैं। यह शिक्षण का न्यूनतम स्तर हासिल करने में प्रमुख अड़चन रहा है।

राज्य के कक्षा तीसरी और पांचवीं का सीखने का स्तर भी उतना ही चिंताजनक है। कक्षा पांचवीं के 1,088 छात्रों में से, 59% अंग्रेजी में, 53% गणित में और 31% ओडिया भाषा में सीखने के आवश्यक स्तर को पूरा करने में विफल रहे। इसी प्रकार, कक्षा तीसरी के जो 918 छात्र परीक्षण के लिए उपस्थित हुए, उनमें से 43.42% गणित में और 26.54% ओडिया में कक्षा के अनुरूप सीखने के स्तर हासिल करने के लिए छात्रों को क्षतिपूर्ति (रेमेडियल) कक्षाओं की आवश्यकता है।

क्षतिपूर्ति (रेमेडियल) ई-पाठ

2017 में, ओडिशा सरकार ने प्राथमिक और माध्यमिक कक्षाओं में बच्चों के सीखने के स्तर में सुधार के लिए उज्जवल और उत्कर्ष नाम से शिक्षण सुधार कार्यक्रम (लर्निंग एनहांसमेंट प्रोग्राम – एलईपी) शुरू किए। कार्यक्रम के अंतर्गत कक्षा एक से आठवीं तक के लगभग 40 लाख छात्रों तक पहुंचने का लक्ष्य था। लेकिन, यह ज्यादातर असफल रहा है।

सरकार ने शिक्षकों को क्षतिपूर्ति कक्षाओं में छात्रों तक पहुँचने में मदद करने के लिए, उज्जवल और उत्थान नाम के मोबाइल ऐप भी तैयार किए हैं। क्योंकि इनका उपयोग केवल स्मार्टफोन पर ही किया जा सकता है, इसलिए मौजूदा डिजिटल-आधारित विभाजन के कारण, कार्यक्रम को ग्रामीण क्षेत्रों में लागू करने में चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।

कक्षा आठवीं की छात्रा, दीप्तिमयी ने VillageSquare.in को बताया – “हमारे पास एक स्मार्टफोन है, लेकिन फोन नेटवर्क और इंटरनेट कनेक्शन ज्यादातर समय कमजोर रहते हैं। इसके अलावा, मेरे माता-पिता डेटा पैक के  लिए 300-400 रुपये महीना नहीं दे सकते।”

अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक महासंघ (AIPTF) के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल सिंह ने ग्रामीण बच्चों की ख़राब स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा – “हमारे देश के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले लगभग 80% बच्चे ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं और उनमें से अधिकतर के घरों में ऑनलाइन कक्षाओं में हिस्सा लेने के लिए कोई भी इलेक्ट्रॉनिक साधन नहीं हैं।”

सिंह कहते हैं – “सीमित घंटों से ज्यादा डिजिटल कक्षाओं में भाग लेने से बच्चों में, खासकर प्रथम चरण के शिक्षार्थियों के लिए मनोवैज्ञानिक तनाव पैदा होगा। इसलिए, सरकार को उनके लिए क्षतिपूर्ति कक्षाएं शुरू करने के बारे में सोचना चाहिए, जो पांच या छह छात्रों के छोटे समूह के रूप में भी हो सकती हैं।”

पाठ – पहुँच के बाहर

कंधमाल जिले के सुदूर गांव, डाकराबाड़ी के एक अभिभावक, एलियो प्रधान ने बताया – “हमारे पास न तो टेलीविजन है, न ही कोई स्मार्टफोन, जिसके द्वारा मेरे बच्चे को ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने में मदद मिलती। स्कूल ही एकमात्र विकल्प है जहाँ हमारे बच्चे पढ़ सकते हैं। लेकिन हमारी जरूरतों के लिए सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंगती।”

कंधमाल जिले की बड़ाबांगा पंचायत के सिकाकेटा गांव के मलाया प्रधान ने भी यही कहा। उन्होंने VillageSquare.in को बताया – “भौतिक कक्षाएं ही हमारी एकमात्र आशा हैं। राज्य सरकार शिक्षकों को बच्चों को छोटे समूहों में लाकर पढ़ाने का निर्देश क्यों नहीं दे रही है।

रचना प्रधान, कंधमाल के दरिंगबाड़ी प्रशासनिक ब्लॉक के डाकराबाड़ी प्राथमिक विद्यालय में आठवीं कक्षा की छात्रा है। उसने नहीं सोचा था कि उसका स्कूल इतने लंबे समय तक बंद रहेगा। वह कहती है – “स्कूल सिर्फ पढ़ने की जगह नहीं है। बल्कि यह एक ऐसी जगह भी है, जहाँ मैं अपने सहपाठियों के साथ मज़े कर सकती हूँ।”

रचना प्रधान ने VillageSquare.in को बताया – “अब जब हमारे स्कूलों को बंद हुए पहले ही चार महीने से अधिक हो गए हैं, मैं कभी-कभी ऊब जाती हूं। हमारे माता-पिता भी COVID19 के कारण हमें हमारे घरों के बाहर जाने की अनुमति नहीं दे रहे हैं।”

उसने कहा – “अपनी पढ़ाई के साथ जुड़े रहने के लिए, मैं अपने कक्षा सातवीं के पाठों का, खासतौर से गणित और अंग्रेजीपाठों का फिर से अध्ययन कर रही हूं। लेकिन मेरी रुचि धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। मैं आभारी हूं कि मेरे माता-पिता ने मुझे अपनी पढ़ाई करने के अलावा कभी कुछ करने के लिए मजबूर नहीं किया। लेकिन मेरे कई दोस्तों को पहले ही काम में धकेला जा रहा है, जैसा पहले नहीं था। मैं चाहती हूं कि हमारी पढ़ाई चलती रहे।”

कक्षा-आधारित पढ़ाई

ओडिशा श्रमजीवी मंच के संयोजक, अंजन प्रधान ने बताया – “जहां निजी स्कूल डिजिटल कक्षाओं की नए विकल्प के साथ व्यवस्था कर रहे हैं, डिजिटल-आधारित स्पष्ट विभाजन के कारण सरकारी स्कूल के छात्रों की शिक्षा अधर में लटक गई है। डिजिटल-सम्बन्धी बुनियादी ढांचे और ग्रामीण-शहरी अंतर ऐसे मुद्दे हैं, जिनके लिए सरकार द्वारा कदम उठाने की आवश्यकता है, क्योंकि कक्षा-आधारित पढ़ाई ही लाखों बच्चों की एकमात्र आशा है।”

अनिल प्रधान ने अनुसार – “सरकार को शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले स्वयं-सेवी संगठनों के साथ मिलकर रचनात्मक गतिविधियों में बच्चों को शामिल करने की योजना बनानी चाहिए, ताकि बच्चे शिक्षा के संपर्क में रहें। यदि सरकार ऐसा कार्यक्रम शुरू करती है, तो बच्चों के स्कूल छोड़ने की संभावना कम होगी।”

अब यह एकदम स्पष्ट है कि महामारी कुछ समय तक रहने वाली है। इसलिए, राज्य सरकार को सरकारी स्कूली बच्चों के लिए क्षतिपूर्ति (रेमेडियल) कक्षाएं शुरू करने के लिए कदम उठाना चाहिए। यदि हम उनके मस्तिष्क का पोषण और संवर्द्धन करेंगे, तो शैक्षिक अवसरों की असमानता को रोकने के लिए इसका प्रभाव जीवन पर्यन्त होगा।

नाबा किशोर पुजारी भुवनेश्वर स्थित एक शोधकर्ता, विकास-कार्यों के पेशेवर और स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।