पाइप द्वारा पानी की उपलब्धता के कारण, महिलाओं के लिए एकांत में स्नान करना संभव हुआ

केउंझर, ओडिशा

ओडिशा में, जहां ग्रामीण परिवारों की एक बड़ी संख्या के लिए चारदीवारी वाले स्नानघरों का अभाव है, बाथरूम निर्माण और पाइप के द्वारा पानी की सप्लाई ने महिलाओं को खुले में स्नान से बचने में मदद की है

प्रिया मुंडा ओडिशा के केउंझर जिले के लोहंडा मुंडसारी गांव की 22 वर्षीय लड़की है। उसके गाँव के लिए सड़क से सीधा संपर्क नहीं है। गांव तक पहुँचने के लिए, एक रेलवे-ट्रैक पार करना पड़ता है और 1.5 किमी पैदल चलना पड़ता है।

उसके गाँव के रास्ते में एक तालाब है। मुंडा की दिनचर्या में, पानी लाना और अपनी माँ को एक स्वयं सहायता समूह की आजीविका गतिविधियों में मदद करना शामिल है, जिसकी वह एक सदस्य है।

अपनी साफ-सफाई की जरूरतों के लिए, वह तालाब जाती है, आमतौर पर अपनी छोटी चचेरी बहन के साथ। वह आंशिक रूप से कपड़े पहने हुए, जल्दी से तालाब में स्नान करती है। उसे कुएँ के पास स्नान करना अजीब लगता है, जहां उसके गाँव की दूसरी महिलाएँ स्नान करती हैं। अपने मासिक-धर्म के प्रयोग किए हुए पैड को वह तालाब के पास एक गड्ढा खोदकर दबा देती है।

विकल्पों का अभाव

मुंडा स्वीकार करती हैं कि तालाब में स्नान करने के बाद वह साफ महसूस नहीं करती, लेकिन उसके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है। लोहंडा मुंदसारी के परिवार भारत के 55% और ओडिशा के 95.31% उन ग्रामीण परिवारों में से हैं, जिनमें 2011 की जनगणना के अनुसार, स्नान करने की जगह बंद स्थान नहीं है।

जब महिलाएं खुले में स्नान करती हैं, तो सुविधा और आराम के साथ-साथ, स्नान का उद्देश्य, जोकि शरीर की स्वच्छता है, भी ख़त्म हो जाता है। इस बर्ताव का कारण, जल आपूर्ति और स्वच्छता सम्बन्धी बुनियादी ढांचे की उपलब्धता और डिजाइन को माना जा सकता है, जो ग्रामीण भारत में बेहद अपर्याप्त हैं। क्योंकि महिलाएं स्वच्छता के महत्व को समझती हैं, इसलिए वे अब इस बदलाव का स्वागत करती हैं।

महिलाओं की भागीदारी

स्नान सम्बन्धी तरीकों के प्रश्न पर मुंडा के गाँव की महिलाएँ हँस दी, जो उनके स्वच्छ-स्नान व्यवहारों के प्रति जागरूकता में कमी का प्रतीक है। स्नान के बंद स्थान के द्वारा मिलने वाली निजता और स्वच्छता के महत्व को समझने के बाद, लोहंडा मुंडसारी गाँव स्वच्छता की सुविधाओं और पाइप के माध्यम से जल आपूर्ति के लिए तैयार है।

एक गैर-सरकारी संगठन, ग्राम विकास, जो स्वच्छता-सुविधाओं को लोहंडा मुंडसारी तक ला रहा है, समावेश, लागत में हिस्सेदारी और महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करता है। महिलाओं की भागीदारी से यह सुनिश्चित होता है कि वे अपनी जरूरतों और चिंताओं को अधिक को अधिक खुलकर कह सकें।

बाथरूम का स्लेटी रंग का पानी बहकर किचन गार्डन में जाता है, जबकि शौच-जल सोखने वाले गड्ढों (soak pits) में जाता है (फोटो – ग्राम विकास के सौजन्य से)

इस हस्तक्षेप में यह सुनिश्चित किया जाता है, कि गाँव का प्रत्येक परिवार अपने लिए एक शौचालय और स्नानघर बनाए, जिसमें रसोईघर के साथ-साथ, 24 घंटे पाइप द्वारा जल आपूर्ति हो।

एक समिति, जिसमें पुरुष और महिला सदस्य होते हैं, पैसा इकठ्ठा करने और इस्तेमाल करने, स्वच्छता संरचनाओं के निर्माण और रखरखाव की निगरानी करती है। महिलाओं की भागीदारी यह सुनिश्चित करती है कि वे निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा हैं, जिसके परिणामस्वरूप हस्तक्षेप प्रभावी होता है।

समुदाय का योगदान

स्नानघर और शौचालय के लिए पानी की आपूर्ति एक ओवरहेड पानी की टंकी से होती है। पानी को बिजली के पंप द्वारा ऊपर पहुँचाया जाता है या गुरुत्वाकर्षण की मदद से पानी सप्लाई किया जाता है। शौचालय से पानी सोखने वाले गड्ढों में जाता है और बाथरूम का स्लेटी रंग का पानी, जगह की उपलब्धता के अनुसार, निकासी व्यवस्था में या किचन गार्डन में बह जाता है।

पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय की एक योजना, ‘राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (NRDWP)’ के अंतर्गत पाइप से जल आपूर्ति के लिए लगभग 90% योगदान प्राप्त होता है। ग्रामवासी शौचालय और स्नानघर की लागत का कम से कम 50% और जल आपूर्ति व्यवस्था की लागत का 10% तक योगदान देते हैं।

ग्राम विकास स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत 12,000 रुपये दिलवाने में परिवारों की मदद के अलावा, उनके निर्माण के लिए तकनीकी सहायता भी प्रदान करता है। बाकी व्यवस्था लोग स्थानीय सामग्रियों के इस्तेमाल से, शारीरिक श्रम और नकद योगदान के द्वारा करते हैं। लोगों का योगदान संपत्ति के लिए उनमें स्वामित्व की भावना पैदा करता है, जिससे उसका उपयोग और रखरखाव सुनिश्चित होता है।

स्नान के लिए स्थान के लाभ

कानमाना गाँव के हर घर में 2006 से पाइप के द्वारा पानी की आपूर्ति हो रही है। महिलाओं का एक समूह अपने घर में काजू का प्रोसेसिंग कर रहा था। उन्होंने बताया कि पानी की आपूर्ति और स्वच्छता के लिए सुविधाओं के कारण उन्हें दूसरी गतिविधियों के लिए समय मिला है और इस तरह उन्होंने घर पर काजू प्रोसेसिंग की इकाई शुरू की है।

स्वच्छ भारत अभियान और आर्थिक सहायता ने लोहंडा मुंडसारी जैसे गांवों में शौचालय और स्नानघरों के निर्माण में मदद की है (फोटो – ग्राम विकास के सौजन्य से)

इस हस्तक्षेप से पहले वे तालाब में स्नान करते थे और उसका पानी लाते थे। उन्होंने कहा कि उस समय त्वचा रोग, सर्दी और खांसी की घटनाएं ज्यादा होती थी।

मासिक धर्म के समय, महिलाओं के लिए खुद को अच्छी तरह से साफ करना आरामदायक हो गया है। उन्होंने अब सेनेटरी पैड का उपयोग करना शुरू कर दिया है, क्योंकि यह स्नान के बंद स्थानों में बदलना अधिक सुविधाजनक है। स्वच्छता की सुविधाओं और पानी की आपूर्ति के कारण उनके स्वास्थ्य में सुधार हुआ है।

स्नान के स्थान और पानी की उपलब्धता

पहले के अध्ययनों में पाया गया कि पानी की उपलब्धता, स्नान के स्थानों के उपयोग में एक आवश्यक भूमिका निभाती है। इस अध्ययन के दौरान ग्रामीणों के साथ बातचीत ने उसी की पुष्टि की और दिखाया कि जल की उपलब्धता एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जिसका समाधान होना चाहिए।

यदि पानी की आपूर्ति का भरोसा दिया जाए, तो लोग स्नानघर बनाने के लिए तैयार हैं। पानी के बिना, एक स्नानघर कंक्रीट का एक ढांचा मात्र रह जाएगा, जो बाद में सामान डालने या किसी दूसरे उद्देश्य के लिए उपयोग किया जाएगा।

यदि कोई तालाबों में, हैंडपंप या कुओं के पास स्नान करती है, तो स्नान की असली कीमत ही ख़त्म हो जाती है। यह तब भी अपनी कीमत खो देता है, जब लोग स्नानघर का इस्तेमाल केवल तब करते हैं जब पानी की आपूर्ति हो। पानी की आपूर्ति के साथ जुड़ा, एक बंद स्नान का स्थान सामाजिक लाभों में से एक हो सकता है।

फिर भी, एक महिला के लिए चारदीवारी-युक्त और स्वच्छ स्नान के स्थान की जरूरत और उसके स्वास्थ्य, आजीविका और सम्मान के लिए इसके फायदों को समझना जरूरी है।

वैष्णवी पवार पुणे में विकास अण्वेश फाउंडेशन में एक शोधकर्ता हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।