बौद्धिक रूप से अक्षम लोगों के लिए, उपचार साबित होती है खेती

विल्लुपुरम, तमिलनाडु

आवासीय खेत में विभिन्न गतिविधियों से, बौद्धिक विकलांग लोगों को आजीविका के अलावा, कई सामाजिक और जीवन कौशल सीखने में मदद मिलती है

एक एकल माँ, हसीजा नचिआर ने, अपने बेटे फ़ाज़िल (27) से मिलने के लिए, बौद्धिक विकलांग वयस्कों के लिए चलाए जा रहे एक आवासीय खेती आधारित कार्यक्रम वाले सृष्टि  गांव तक चार घंटे की यात्रा की थी। लॉकडाउन के बावजूद वह उसे घर नहीं ले जा सकी।

वह बताती हैं – “जब कभी वह हिंसक हो जाता है, तो उस पर नियंत्रण करने के लिए, एक पुरुष की जरूरत पड़ेगी। इसलिए मैं उसे दिसंबर में ही घर ले जा पाऊंगी, जब मेरा भाई हमसे मिलने आएगा। जब वह पहुंची, तो फ़ाज़िल उसी जगह रहने वाले अपने दोस्तों के साथ सृष्टि में इधर उधर मटरगस्ती कर रहा था।

यह 2013 का साल था, जब मनोवैज्ञानिक जी. कार्तिकेयन ने सृष्टि गाँव को बौद्धिक रूप से अक्षम वयस्कों के लिए एक समावेशी कृषि-आधारित समुदाय के रूप में शुरू किया था। एक अनाथालय में पले-बढ़े व्यक्ति के रूप में, उन्होंने अपने जैसे कई लोगों को देखा था, जिन्होंने पढ़ाई करके नौकरी प्राप्त की और बाहर निकल कर एक स्वतंत्र जीवन व्यतीत किया।

वह याद करते हैं – “लेकिन मेरे कुछ दोस्त पीछे रह गए। कोई भी उन्हें नौकरी देने के लिए तैयार नहीं था, क्योंकि उनके पास बौद्धिक क्षमता की कमी थी।” वह उन्हें विशिष्ट व्यक्तित्व और आकाँक्षाओं वाले व्यक्तियों के रूप में जानते थे। उन्होंने यह भी महसूस किया, कि वे अपना पूरा जीवन किसी के दान पर नहीं जीना चाहेंगे।

इसी विचार के साथ उन्होंने सृष्टि गाँव शुरू किया, जहाँ उन्होंने बौद्धिक रूप से विकलांग वयस्कों को बुनियादी शिक्षा और जीवन कौशल प्रशिक्षण देने का निर्णय लिया। अपने प्रयासों के अंतर्गत, उन्होंने खेती को चिकित्सा और आजीविका के साधन के रूप में शुरू किया।

बागवानी प्रयोग

बौद्धिक रूप से विकलांगों को, यथासंभव स्वतंत्र बनाने के लिए, कार्तिकेयन ने उन व्यवसायों पर शोध करना शुरू किया, जो उनके अनुकूल थे और उनके सामाजिक कौशल में वृद्धि कर सकते थे। उन्होंने अपने कुछ दोस्तों को सृष्टि में एक किचन गार्डन आजमाने के लिए कहा। कार्तिकेयन ने  – “जब कटाई का दिन आया, तो उनमें बड़े गर्व का भाव था। आखिरकार, यह उनकी अपनी उपज थी।”

सृष्टि के निवासियों के साथ दिख रहे, कार्तिकेयन को ज्ञात हुआ कि कृषि-कार्य बौद्धिक रूप से विकलांग में परिवर्तन लाता है (छायाकार – बालासुब्रमण्यम)

यह इस छोटे से प्रयोग के बाद हुआ, कि उन्होंने बौद्धिक रूप से अक्षम लोगों के लिए, एक आत्म-निर्भर आवासीय खेत स्थापित करने का फैसला लिया। एक गैर-सरकारी संगठन, कंथारी से मिले कुछ शुरुआती आर्थिक सहयोग से, उन्होंने विल्लुपुरम जिले के थझुथली गांव में 8.93 एकड़ जमीन खरीदी।

भूमि तैयार करना

जमीन बेहद ख़राब थी और कार्तिकेयन याद करते हैं कि कैसे उस पर कुछ भी उगाने के उनके प्रयास विफल रहे। पानी के लिए एक कुआं खोदने की उनकी कोशिश भी नाकाम रही। भविष्य दुष्कर नजर आ रहा था। एक तरफ उनके पास एक बंजर जमीन थी और दूसरी तरफ उनके दोस्त थे, जो बाहरी दुनिया में स्थान नहीं बना पा रहे थे।

कार्तिकेयन कहते हैं – “जब सब्जियां उगाने का हमारा पहला प्रयास विफल हुआ, तो मैंने स्थानीय ग्रामवासियों से पूछा, तो पता चला कि बाजरा इस इलाके की मूल फसल है।” उन्होंने और निवासियों ने एक स्थानीय ग्रामवासी से मदद ली और जल्दी ही वे बाजरा अच्छी तरह उगा पाए।

देसी किस्म के पेड़ों ने मिट्टी को फिर से जीवंत बनाने में मदद की। उन्होंने बताया – “पेड़ों के साथ पक्षी आए, और हमारे खेत की जैव-विविधता में वृद्धि हुई। सूखी पत्तियों ने सड़कर हमारे खेत की मिट्टी को उपजाऊ बनाया। इन पेड़ों ने हवा को रोकने का भी काम किया और यह सुनिश्चित किया कि मिट्टी की नमी बरकरार रहे। जल्दी ही हमारे कुओं में पानी था।”

फलता-फूलता खेत

सात वर्षों के समय के अंदर सूखी बंजर ज़मीन में, सब्जियों की क्यारियों, फलों के बाग़, कुओं, तालाबों और एक डेरी फार्म के साथ, जीवन खिल उठा। उनके साथ ही यहाँ के निवासी खिल उठे। एक निवासी, काली, जो एक कोने में खड़ा रहकर घूरता रहता था, फिल्मी गीत गा रहा है। एक दूसरा, आने वालों को अपने उगाए हुए पपीते पेश कर रहा है|

बौद्धिक-विकलांग व्यक्ति खेत और डेयरी कार्यों में निपुण हो गए हैं (छायाकार – बालासुब्रमण्यम एन.)

आवासीय खेत में 18 से 40 साल के 30 से अधिक लोग हैं और उनमें से ज्यादातर ग्रामीण और आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों से आते हैं। कुछ अनाथ हैं। कार्तिकेयन बताते हैं कि खेती दो तरह काम करती है – एक, उनके लिए अपने स्वयं खाना उगाने और बेचने के अवसर के रूप में, और दूसरा, उनके मस्तिष्क के लिए एक प्राकृतिक चिकित्सा के रूप में।

जहाँ सब्जी और फल के बाग सृष्टि के निवासियों को भोजन प्रदान करके उनका भरण-पोषण करते हैं, वहीं उनका डेयरी फार्म एक आय-सृजन के अवसर में बदल गया है। सृष्टि के निवासियों के उपयोग के बाद, वे रोज लगभग 20 लीटर दूध बेचते हैं। कई और डेयरी उत्पाद, जैसे घी, मक्खन इत्यादि बनाने की योजना बनाई जा रही है।

विभिन्न सबक 

निवासियों को पांच परिवारों में विभाजित किया गया है और प्रत्येक परिवार पर एक विशेष शिक्षक है। परिवार बारी बारी से, डेरी कार्य, परिसर की सफाई, खाद तैयार करने, सब्जी उद्यान या फलों के जंगल की देखभाल जैसे विभिन्न कार्य करते हैं। कार्तिकेयन ने कहते हैं – “स्कूलों या कॉलेज के विपरीत, यह अप्रत्यक्ष जीवन कौशल सम्बन्धी प्रशिक्षण प्रदान करता है।”

उन्होंने बताया – “सामुदायिक फार्म में रहते हुए हमारे निवासी, न केवल खेती से जुड़े कौशल सीखते हैं, बल्कि सामाजिक कौशल, टीम-वर्क, नेतृत्व के गुण, समय प्रबंधन और यहाँ तक कि अपनी उपज को बेचना सीखकर, पैसे के बारे में समझ भी विकसित करते हैं।”

एबिन नवीस, जिन्होंने 2018 में अपनी सोशल वर्क की स्नातकोत्तर पढ़ाई के दौरान, सृष्टि में इंटर्नशिप की, अब फार्म में एक स्वतंत्र शोधकर्ता के रूप में काम करते हैं। नवीस कहते हैं – “मैं विकलांग लोगों पर सामुदाय में रहने के प्रभाव को समझने की कोशिश कर रहा हूं और यह भी कि इस तरह के मॉडल को कहीं और कैसे दोहराया जा सकता है।”

उन्होंने बताया – “भारत में 1 करोड़ 34 लाख विकलांगों में से, केवल 34 लाख लोगों को नौकरी मिली है। इसलिए इस बात का दस्तावेजीकरण उपयोगी होगा, कि कैसे समुदाय-आधारित कृषि-प्रशिक्षण से, विभिन्न स्तर की बौद्धिक विकलांगता वाले लोगों को, उनकी क्षमता तक पहुंचने में मदद मिल सकती है।”

बदलाव

फार्म ट्रेनर शेखर सरन (34) एक लक्ष्य-उन्मुख किसान नहीं हैं। उनका कहना है – “लोग हमारी प्राथमिकता हैं और इसलिए हम छात्रों को यह चुनने देते हैं कि उन्हें खेत में क्या करना पसंद है। उनका एक व्यवस्थित कार्यक्रम है, जो सुबह 5 बजे योग, भाषा, गणित कक्षाओं, आदि के साथ शुरू होता है।

खेती और पशुपालन बौद्धिक विकलांग के लिए आजीविका और उपचार के रूप में सहायक हैं (छायाकार – बालासुब्रमण्यम एन.)

सरन के अनुसार, उन्हें आउटडोर कृषि कक्षाएं सबसे ज्यादा पसंद हैं। उन्होंने बताया – “कोई भी वास्तव में देख सकता है कि हमारे लड़कों के उपचार और परिवर्तन में कितना उपयोगी है। उदाहरण के लिए, अरुण, जो शायद ही कभी बात करता है, गायों के साथ बेहद सहज है।”

कार्तिकेयन ने कहा कि फ़ाज़िल अब बहुत शांत हो गए हैं और डेयरी फार्म में बहुत मदद करता है। उन्होंने बताया – “वह जानता है कि खेत की सफाई कैसे करनी है और गायों को चारा कैसे खिलाना है। उसने सब्जी की क्यारियों में भी हाथ आजमाया, लेकिन उसे अभी खरपतवार और पौधे के बीच के अंतर को समझना बाकी है।”

सरन कहते हैं – “काली, जिसका मिजाज पहले बहुत ऊपर-नीचे हो जाता था, अब बेहतरीन नेतृत्व कौशल का प्रदर्शन कर रहा है। यदि आप उसे जमीन का एक टुकड़ा देते हैं, तो वह खेत में काम करने के अपने ही तरीके निकाल लेगा। एक और निवासी, विनम्र स्वाभाव वाला सेंथिल, उसका आदर्श साथी है, और ‘T’ के लिए उसके निर्देशों का पालन करता है।”

सरन ने बताया कि वे सब्जियों की क्यारियों में एक दूसरे की ताकत और कमजोरी के हिसाब से काम करते हैं। काली ने सृष्टि के अंदर ही एक छोटी नर्सरी लगाकर, पौध का अपना खुद का बैच उगाने में कामयाबी हासिल की। उन्होंने कहा – “उसे उम्मीद है कि एक दिन वह बाहर जाएगा और अपनी खुद की नर्सरी शुरू करेगा और मुझे विश्वास है कि वह ऐसा करेगा।”

कैथरीन गिलोन चेन्नई स्थित एक पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।