ग्रामीण सांस्कृतिक और धार्मिक प्रतीकों के रूप में पवित्र ग्रोव पेड़ों का संरक्षण करते हैं

दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़

आदिवासी जीवन का एक अभिन्न अंग, पवित्र ग्रोव कम हो रहे हैं। ग्रामीण अपनी संस्कृति के संरक्षण को सुनिश्चित करने और कुपोषण से निपटने के लिए ग्रोव पेड़ों का पुनरुद्धार कर रहे हैं

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के जवांगा गाँव के निवासी, बोमरा राम कोबासी, पवित्र ग्रोवों के बारे में बात करते हुए गंभीर बने रहते हैं, जिनका आदिवासी समाज में गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। भारत भर में, मुख्य रूप से आदिवासी गांवों में पाए जाने वाले ग्रोव समृद्ध वनस्पति का आधार तैयार हैं।

पवित्र ग्रोव सुरक्षित वनों के वह भाग होते हैं, जिन्हें अलग-अलग स्थानीय नामों से जाना जाता है। वे सदियों से स्थानीय समुदायों द्वारा सक्रिय वन प्रबंधन के कारण बच गए हैं। पेड़ों या उनकी शाखाओं को न काटने जैसे प्रतिबंधों के कारण, ऐसे बहुत से ग्रोव-पेड़ों के संरक्षण में मदद मिली है, हालांकि उनकी संख्या पूरे देश में घट रही है।

देवगुड़ी के नाम से जाने जाने वाले छत्तीसगढ़ के पवित्र ग्रोव के बारे में जानकारी बहुत पुरानी है, जब से गाँव पहली बार आबाद हुए और समुदाय आकर बसे। कोबासी बताते हैं – “देवगुड़ी या ग्रोव्स हमारे पूर्वजों द्वारा स्थापित किए गए थे। हम वहां साल में केवल तीन बार जाते हैं, लेकिन मंगलवार को गाँव के देवी मंदिर, मातागुड़ी में पूजा करते हैं।”

उन्होंने बताया कि ज्यादातर गांवों में देवगुड़ी के साथ-साथ मातगुड़ी भी हैं और इन स्थानों पर बहुत से पेड़ होते हैं। छत्तीसगढ़ में महुआ (Madhuca longifolia) का पेड़ पवित्र माना जाता है, जबकि झारखण्ड में साल (Shorea robusta) पवित्र प्रजाति है। पवित्र ग्रोवों में इस तरह के कई महत्वपूर्ण पेड़ों की प्रजातियां जाती हैं।

क्योंकि पवित्र ग्रोव पेड़ छत्तीसगढ़ की आदिवासी पहचान से जुड़े हुए हैं, इसलिए बस्तर संभाग के सात जिलों में से एक, दंतेवाड़ा में, इन पेड़ों की सुरक्षा के उद्देश्य से एक संरक्षण परियोजना शुरू की गई है, जो इस साल अगस्त से चल रही है। जीर्णोद्धार के काम के लिए स्थानीय समुदायों को शामिल किया गया है। ये पवित्र स्थान सांस्कृतिक के साथ-साथ पोषण के स्थानों का काम करेंगे।

संस्कृति का संरक्षण

बस्तर की सुंदरता को बढ़ावा देने का प्रयास करने वाले सोशल मीडिया हैंडल, अनएक्सप्लोर्ड बस्तर के जीत सिंह आर्य बताते हैं कि दंतेवाड़ा जिला प्रशासन की यह पहल पिछले तीन महीनों से चल रही है, जिसका उद्देश्य स्थानीय संस्कृति का संरक्षण करना है।

पवित्र ग्रोवों में साधारण मंदिर होते हैं और प्रत्येक गाँव उनसे एक विशेष सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व जोड़ता है (फोटो – अनएक्सप्लोर्ड बस्तर के सौजन्य से)

आर्य कहते हैं – “आदिवासी लोगों में प्रकृति के प्रति गहरी आस्था और श्रद्धा होती है, यहां तक ​​कि कई स्थानों पर चट्टानों की पूजा भी की जाती है। एक गाँव में कई देवी-देवता हो सकते हैं – एक विशेष देवता का संरक्षण के लिए, दूसरे का अच्छी बारिश और भरपूर फसल के लिए आह्वान (स्मरण) किया जा सकता है।”

दंतेवाड़ा जिले के कलेक्टर, दीपक सोनी ने VillageSquare.in को बताया – “इनमें से कुछ ग्रोव 500 से 1,000 साल पुराने हैं। आदिवासी संस्कृति के संरक्षण के उद्देश्य से, पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने के लिए, हमने प्रत्येक पंचायत में एक ग्रोव चुना है।”

मंगनार गाँव के सरपंच, सुंदरलाल भोगानी ने बताया – “हमने उस जगह पर एक पत्थर रख दिया है और कभी-कभी अच्छी बारिश के लिए प्रार्थना करते हैं। गाँव में मारिया आदिवासी रहते हैं। महिलाएं उन देवगुड़ी में नहीं जाती, जो घने जंगलों वाले इलाकों में हैं।”

टॉयलंका गांव में, जिसमें चार पवित्र ग्रोव और दो मातागुड़ी मंदिर हैं, अप्रैल में पुरुष इन पवित्र स्थलों पर रहते हैं और चावल तैयार करते हैं। कभी-कभी मुर्गों की बलि भी दी जाती है। यह मंदिर ओबीसी समुदाय के लिए है और ग्रोव मारिया, मुरिया और गोंड जैसे आदिवासी समुदायों के लिए हैं।

टॉयलंका के भीमा राम कार्तम ने कहा – “यदि हम साल में तीन बार देवगुड़ी में पूजा नहीं करते हैं, तो हमें धान की कमी या पशुओं को नुकसान या यहां तक ​​कि बीमारियों को झेलना पड़ेगा। हम अपने पूर्वजों द्वारा निर्धारित, सभी रीति-रिवाजों का पालन करते हैं।”

बालुद गाँव के निवासी, जय नारायण बस्तरिया ने बताया कि कुछ परिवारों या समुदायों के अपने देवगुड़ी होते हैं। पारसपल गाँव में, दिवाली के बाद एक पवित्र त्यौहार मनाया जाता है, जिसे दीवर कहा जाता है। इसमें, ग्रामीण खेत से लाए नए धान की पूजा करते हैं और फिर उसे घर ले जाते हैं।

संरक्षण के अलावा, इन पेड़ों से जुड़ी परम्पराओं और प्रथाओं का दस्तावेजीकरण किया जा रहा है। आर्य की टीम परिवार के पेड़ों और महत्वपूर्ण रस्मों के बारे में गांव के पुजारी से बात करती है और उन्हें दर्ज़ करती है। आर्य के साथ काम करने वाले, योगेश कुमार नाग ने बताया – “हमने अब तक उनमें से 120 का दस्तावेजीकरण किया है।”

पोषण के लिए पवित्र 

आर्य ने VillageSquare.in को बताया – “क्योंकि आदिवासी पवित्र ग्रोव वृक्षों में विश्वास करते हैं, इसलिए कुपोषण से निपटने के लिए उनके संरक्षण को जोड़ना एक अच्छा विचार है।” सभी स्थानों पर, लोगों को पेड़ न काटने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।

पुनरुद्धार के उपायों के रूप में, ग्रोवों के चारों ओर बाड़ लगाई जा रही है (फोटो – अनएक्सप्लोर्ड बस्तर के सौजन्य से)

सोनी के अनुसार, इस पहल को कुपोषण के खिलाफ मुख्यमंत्री के अभियान से जोड़ा गया है। कलेक्टर ने कहा कि ग्रामीणों को पेड़ों की रक्षा करनी चाहिए और कि जिला प्रशासन चाहता था कि स्थानीय निवासी कुपोषण को समाप्त करने का संकल्प लें।

कोबासी कहते हैं – “इन स्थानों पर पोषण उद्यान विकसित करने के लिए, फलों के पेड़ लगाए जा रहे हैं, हालांकि वहां पहले से ही महत्वपूर्ण पेड़-प्रजातियां हैं।”

सोनी ने कहा – “परियोजना के माध्यम से, हम सामाजिक बदलाव की उम्मीद करते हैं, जिसमें बच्चों की शिक्षा, कुपोषित समुदायों में पोषण सुनिश्चित करना, गांवों को साफ रखना और महिलाओं में एनीमिया को रोकना शामिल है। उनके प्रदर्शन के आधार पर, हम पीले, हरे और सफेद पंचायतें बनाएँगे, जिसमें हरा रंग सर्वश्रेष्ठ है।”

मनरेगा के अंतर्गत जीर्णोद्धार का बहुत सा काम चल रहा है। पूरी परियोजना के लिए अनुमानित बजट 10 करोड़ रुपये है। यह 26 जनवरी, 2021 तक पूरी होने की उम्मीद है और लगभग 20% पंचायतों ने पहले ही काम पूरा कर लिया है।

दंतेवाड़ा में जिला पंचायत अध्यक्ष, तूलिका कर्मा ने VillageSquare.in को बताया – “बस्तर के आदिवासी जन्म से लेकर मृत्यु तक, पवित्र ग्रोवों से जुड़ाव रखते हैं। हम चाहते हैं कि आगंतुक यह देखें कि हम अपने धार्मिक स्थानों को कितनी अच्छी तरह बनाए रखते हैं। कुछ पंचायतों में, मातागुड़ी मंदिरों तक का जीर्णोद्धार किया जाएगा।”

पवित्र ग्रोव का पुनरुद्धार

जिले की 143 पंचायतों में से प्रत्येक में, एक गाँव को इस परियोजना के लिए चुना गया है। टॉयलंका की चार ग्रोव और दो मंदिरों में से, फ़िलहाल एक मंदिर का जीर्णोद्धार किया जा रहा है। आर्य ने कहा – “सुरक्षा उपाय के अंतर्गत, ग्रोवों के चारों ओर बाड़ लगाई जा रही है।”

मंगनार के भोगानी ने बताया – “हमारे गाँव के इकलौते ग्रोव का जीर्णोद्धार किया जा रहा है।” उनके गाँव में, बाड़ लगाने का काम चल रहा है और आगंतुकों के लिए एक उठे हुए मंच पर बैठने की व्यवस्था भी की जा रही है। पर्यावरण-पर्यटन (ईको-टूरिज्म) को बढ़ावा देने के लिए, बाड़ के साथ-साथ ग्रोवों को जीपीएस से जोड़ा जा रहा है।

सांस्कृतिक महत्व और महत्वपूर्ण पेड़ों के साथ, पवित्र ग्रोव पेड़ों को लेकर पर्यावरण-पर्यटन (ईको-टूरिज्म) पहल के रूप में योजना बनाई जा रही है (फोटो – अनएक्सप्लोर्ड बस्तर के सौजन्य से)

सोनी कहते हैं – “पारम्परिक ढांचों को नहीं छेड़ा जा रहा है। हम मौजूदा क्षेत्र को ही सांस्कृतिक केंद्र और पर्यटन स्थल के रूप में बहाल करने और बनाने की कोशिश कर रहे हैं। ये क्षेत्र समुदायों को बेहतर जीवन जीने की प्रतिज्ञा लेने के लिए भी प्रेरित कर सकते हैं।”

पारसपल के अनिल कर्मा का कहना था कि उनकी आस्था के संरक्षण के लिए यह एक अच्छी परियोजना है। वह कहते हैं – “कांटेदार तार की बाड़ लगने के बाद, हम इन स्थानों की बेहतर तरीके से रक्षा कर पाएंगे। हम इन स्थानों के पास शेड और शौचालय का निर्माण कर रहे हैं। बहुत से ग्रामवासी पुनरुद्धार के इस काम के लिए अपना श्रम दे रहे हैं।”

 प्रभागीय वन अधिकारी, संदीप बलागा ने VillageSquare.in को बताया – “आदिवासी वृक्षों को अपनी संस्कृति का हिस्सा मानते हैं और उन्हें वर्षों से संरक्षित किया है। यही कारण है कि वन विभाग उन्हें अपने ग्रोव-वृक्षों को हरे-भरे स्थानों के रूप में विकसित करने में मदद कर रहा है और विभिन्न महत्वपूर्ण स्थानीय वृक्ष प्रजातियों को लगाने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।”

दीपान्विता गीता नियोगी दिल्ली स्थित पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।