आदिवासियों के अधिकारों की दिशा में, आगे बढ़ा छत्तीसगढ़

धमतरी और राजनंदगांव, छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ ने वन समुदायों के अधिकारों को मान्यता प्रदान करने और लागू करने के लिए उत्साहजनक कदम उठाए हैं, लेकिन इन मूल निवासियों के लिए, आजीविका के अवसरों को बढ़ावा देने के लिए ग्राम स्तर पर अधिक प्रयासों की जरूरत है।

छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के जुनवानी गाँव के एक गोंड आदिवासी, दलसई कुंजम खुश हैं, कि वह अब निकाल दिए जाने के डर के बिना, अपनी कृषि भूमि पर फसलें उगा सकते हैं, क्योंकि अब ‘अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासी’ (वन अधिकारों को मान्यता) अधिनियम, 2006 के अंतर्गत 1.5 एकड़ जमीन का व्यक्तिगत वन अधिकार उनके नाम पर है| उनका कहना है कि उनकी खेती पैदावार में वृद्धि हुई है, क्योंकि अब FRA-2006 कन्वर्जेन्स के अंतर्गत उन्हें सब्सिडी वाले बीज और खाद प्राप्त कर सकते हैं।

कुंजम एक वन-ग्राम में रहते हैं, जिसमें उन्हें 1960 के दशक के शुरु में, एक बांध परियोजना से लाकर बसाया गया था और इससे पहले गाँव के निवासियों को खेती के लिए वन भूमि पर 15 साल के पट्टे जारी किए गए थे। FRA-2006 लागू होने के बाद, वन ग्राम को एक राजस्व गांव में बदल दिया गया है, जिससे वहां विभिन्न सरकारी योजनाओं के अंतर्गत लाभ मिला है और पूरी तरह से विद्युतीकृत है। मई 2018 तक FRA-2016 के अंतर्गत, 398,181 व्यक्तिगत स्वामित्व की मान्यता के साथ, छत्तीसगढ़ FRA (वन अधिकार अधिनियम)-2006 लागू करने वाले राज्यों में अग्रणी है।

FRA-2016 लागू होने से, राज्य में बहुत से किसानों को व्यक्तिगत लाभ मिला है, क्योंकि भूमि के स्वामित्व के आश्वासन ने किसानों को गुणवत्तापूर्ण खेती-सामग्री में निवेश करने के लिए प्रेरित किया है| हालांकि टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS), मुंबई द्वारा छत्तीसगढ़ के 11 गांवों में किए गए एक सर्वेक्षण से यह भी पता चलता है, कि कन्वर्जेन्स से मिलने वाली मदद अनियमित रही है, और इसे आजीविका-संवर्द्धन के लिए अधिक सुचारू बनाने के लिए, पंचायत स्तर पर अधिक प्रयासों की जरूरत है।

अधिकारों के निपटारे के मामले में ओडिशा अग्रणी है और उसने अधिकारों की मान्यता के बाद कन्वर्जेन्स योजनाओं के एकीकरण में अग्रणी स्थान हासिल किया है। स्वामित्व प्राप्त लोगों को लाभ प्रदान करना सुनिश्चित करने के लिए, ओडिशा अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति विकास विभाग द्वारा 2016 में दिशानिर्देश जारी किए गए, जिससे वह इन दिशानिर्देशों को जारी करने वाला पहला राज्य बन गया।

आजीविका कंवर्जेन्स

छत्तीसगढ़ में वन समुदायों ने अपनी आजीविका पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को महसूस करना शुरू कर दिया है और आजीविका सुरक्षा के लिए, मिट्टी और जल संरक्षण, सूक्ष्म सिंचाई ढांचों और बेहतर किस्म के बीजों जैसी गतिविधियों की मांग कर रहे हैं, जिनसे खेती की सहने की क्षमता में सुधार हो। इस हालत में, FRA-2006 के अंतर्गत, नए चिन्हित किए गए किसानों के बीच जलवायु सहने योग्य आजीविका कन्वर्जेन्स योजनाओं को बढ़ावा देना बहुत महत्वपूर्ण है और कन्वर्जेन्स की प्रक्रिया को कारगर बनाने के लिए, निचले विभागों को दिशा-निर्देश जारी करके शुरू किया जा सकता है।

जहां कृषि और आवास का स्वामित्व व्यक्तिगत है, FRA-2006 के अंतर्गत सामुदायिक वन अधिकार, आजीविका और पारम्परिक कार्यों के लिए आदिवासियों को सामुदायिक वन के उपयोग, प्रबंधन और सुरक्षा के अधिकारों को सुनिश्चित करता है।

खनिज सम्पन्नता के मामले में छत्तीसगढ़ का देश में तीसरा स्थान है और खनन और बिजली उद्योगों के लिए एक आकर्षण का केंद्र है| इससे वनों और वनवासियों पर भारी दबाव पड़ता है, जो अपनी आजीविका के लिए और गैर-इमारती लकड़ी वन उत्पादों (NTFP), जलाऊ लकड़ी, चराई, औषधीय पौधों, आदि इकठ्ठा करने के लिए जंगल पर निर्भर हैं। ऐसी परिस्थितियों में, राज्य के लिए यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण हो जाता है, कि उसकी वन निवासी आबादी को बड़ी विकास परियोजनाओं और संरक्षित क्षेत्रों के कारण संभावित शोषण से बचाया जाए।

FRA-2016 के अंतर्गत सामुदायिक वन अधिकार, सामुदायिक वन एवं उसके संसाधन-प्रबंधन पर वनवासियों के पारम्परिक अधिकारों को मान्यता देकर, वनवासियों द्वारा वन संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

संख्याओं को प्रोत्साहन

जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा प्रकाशित FRA-2006 की 31 मई, 2018 तक की ‘स्थिति रिपोर्ट’ के अनुसार, छत्तीसगढ़ भी सामुदायिक स्वामित्व के निपटारे के मामले में अग्रणी राज्यों में से एक है। हालाँकि, रिपोर्ट में अधिनियम के अंतर्गत विकास-सम्बन्धी अधिकारों (स्कूल, डे केयर सेंटर, सड़क, आदि जैसी बुनियादी ढांचागत सुविधाओं के लिए वन को हटाया जाता है) और अधिनियम के अंतर्गत सामुदायिक वन अधिकारों के विवरणों का ब्यौरा नहीं है । छत्तीसगढ़ के आदिवासी कल्याण विभाग के अधिकारी मानते हैं कि राज्य में सामुदायिक वन अधिकारों को लागू करने पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है।

वर्ष 2016 में, ‘कम्युनिटी फॉरेस्ट राइट्स लर्निंग एन्ड एडवोकेसी ग्रुप’ द्वारा तैयार की गई ‘प्रॉमिस एन्ड परफॉरमेंस रिपोर्ट’ में कहा गया है – “छत्तीसगढ़ में सामुदायिक वन अधिकार स्वामित्व को लेकर एक चुनौती यह है, कि उन्हें जे.एफ.एम. (जॉइंट फॉरेस्ट मैनेजमेंट) समिति के नाम से जारी किया गया है, न कि ग्राम सभा के नाम पर। साथ ही, अधिकार-पत्र या तो चराई चराई के लिए, या गैर-लकड़ी उत्पाद (NTFP) संग्रह या जलाऊ लकड़ी संग्रह के लिए जारी किया जाता है, इस शर्त के साथ कि वन विभाग की कार्ययोजना  का पालन किया जाए, जो इस कानून की भावना का सीधा उल्लंघन है।”

छत्तीसगढ़ के बहुत से गांवों, जिनके सामुदायिक वन अधिकारों को चुनिंदा रूप से मान्यता दी गई है, ने वन अधिकार नियम, 2008 के उप-नियम 4 (ई) के अंतर्गत स्थानीय संगठनों के सहयोग से, प्रबंधन समितियों (CFRMC) के गठन करके सामुदायिक वन संसाधन-प्रबंधन पर अपना अधिकार जताना शुरू कर दिया है। इन संगठनों को छत्तीसगढ़ में काम कर रही, ‘ऑक्सफैम इंडिया’ द्वारा सहयोग दिया जा रहा है।

पादकी का उदाहरण

ऐसा ही एक गाँव, छत्तीसगढ़ के राजनंदगाँव जिले का पादकी है, जहाँ 2013 में चराई और NTFP इकठ्ठा करने के सामुदायिक अधिकारों को 216 हेक्टेयर में मान्यता दी गई थी। सामुदायिक अधिकार स्वामित्व के अंतर्गत मान्यता प्राप्त क्षेत्र को, बिना ग्रामसभा से परामर्श किए, पारम्परिक तौर पर सीमा-वार की बजाय उपखंडों (हिस्सों) के तौर मान्यता दी गई थी। पादकी के साथ बाईस अन्य गांवों को उसी प्रक्रिया के अंतर्गत  सामुदायिक अधिकार के स्वामित्व-पत्र जारी किए गए, जिसने गांवों के बीच सीमा संघर्ष पैदा कर दिया| हालाँकि एक स्थानीय सहयोग-समूह की मदद से, सीमा संघर्ष को हल कर लिया गया।

पादकी गाँव की ग्राम सभा ने, एक सामुदायिक वन संसाधन प्रबंधन समिति का गठन किया है और इस क्षेत्र की अवैध लकड़ी तस्करी से बचाने और संरक्षण के लिए, नियमित गश्त कर रही है। वर्ष 2016 में, पादकी गाँव के वनवासियों ने अपने सामुदायिक रूप से प्रबंधित वन से 100,000 रुपए के महुआ के फूल इकठ्ठा किए। ग्रामीणों के संरक्षण प्रयासों के बाद, समिति ने स्थानीय किस्मों के पेड़ लगाने का काम भी किया है, कॉमन फॉरेस्ट रिज़र्व (CFR) क्षेत्र की जैव विविधता का रजिस्टर बनाया है और अपने सामुदायिक वन में स्लॉथ भालू (शहद खाने वाला काला भालू) और तेंदुए की उपस्थिति की जानकारी दी है।

हालांकि पादकी जैसे दूसरे गांवों के लिए एक बड़ी चुनौती यह है, कि उनके सामुदायिक वन अधिकार स्वामित्व-पत्र, ग्राम सभा के नाम पर न होकर, संयुक्त वन प्रबंधन (JFM) समिति के नाम पर हैं। इससे वन विभाग और वन-समुदाय के बीच संघर्ष पैदा हो गया है।

महत्वपूर्ण उपलब्धता

सामुदायिक वन संसाधन प्रबंधन के ऐसे उदाहरण, छत्तीसगढ़ के कई वन क्षेत्रों में देखे जा सकते हैं, जहाँ स्थानीय गैर सरकारी संगठन समुदायों की मदद कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ सरकार को सामुदायिक वन संसाधन प्रबंधन समितियों को, जहां भी वे नियमों के अनुसार बनाई गई हैं, मान्यता देनी चाहिए| साथ ही, वनों के बेहतर प्रबंधन और संरक्षण के उद्देश्य से, जहां कोई संस्था मौजूद नहीं है, उन क्षेत्रों में सामुदायिक वन संसाधन प्रबंधन समिति के गठन की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाना चाहिए।

मूल निवासी समुदाय लंबे समय से वनों की कटाई के खिलाफ विरोध की अगली पंक्ति में रहे हैं और वनों के गैर-वन क्षेत्र में बदलाव को रोकने के लिए उनका प्रतिरोध, भूमि-आधारित कार्बन उत्सर्जन को रोकता है और कार्बन को कम करता है। राज्य सरकारों द्वारा वंचित आदिवासी और वनवासियों की आबादी की हालात के अनुकूल ढलने की क्षमता को बढ़ाने के तरीकों में से एक, FRA-2006 के अंतर्गत वनवासियों के व्यक्तिगत और सामुदायिक अधिकारों को मान्यता प्रदान करना है| इससे सामाजिक-सांस्कृतिक एकता के साथ-साथ गुजारा, आजीविका, भोजन और पानी सम्बन्धी सुरक्षा में सहायक, जीवन-यापन के महत्वपूर्ण संसाधनों तक पहुंच में मदद मिलती है।

यह लेख पहली बार Mongabay India में प्रकाशित हुआ था।

आशा वर्मा रायपुर, छत्तीसगढ़ स्थित पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।