पैंगोलिन की रक्षा के लिए ग्रामीण उसकी पूजा करते हैं

रत्नागिरी, महाराष्ट्र

एक ऐसे क्षेत्र में, जहाँ पैंगोलिन का बेतहाशा अवैध शिकार होता है, ग्रामीण इस जीव को अपने गाँव के देवता के समरूप श्रद्धा प्रदान करते हुए, उनकी रक्षा की प्रतिज्ञा करते हैं।

विश्व पैंगोलिन दिवस, 20 फरवरी को, मुंबई से लगभग 100 किलोमीटर दूर स्थित दुगावे गाँव के निवासियों ने, ग्राम-देवी वाघजाई के नजदीक रखी पैंगोलिन की प्रतिमा की पूजा की। उन्होंने पैंगोलिन के अस्तित्व एवं सुरक्षा और लोगों की सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना की, ताकि वे लुप्तप्राय स्तनपायी इस जीव को न मारें।

पुजारी राजाराम कदम का कहना था – “हम महामारी प्रतिबंधों के कारण पिछले साल की तरह खावलोत्सव नहीं मना सके। पिछले साल हमने पैंगोलिन प्रतिमा को एक पालकी में रखा और गाँव में चारों ओर एक शोभायात्रा निकाली। हम हर घर में गए, ताकि हर कोई प्रार्थना कर सके।”

कदम ने VillageSquare.in को बताया – “जब हम पैंगोलिन की प्रतिमा गांव के जंगल से मंदिर में लाए, तो गाँव के 750 में से आधे लोगों ने जुलूस में भाग लिया। कार्यक्रम में युवाओं ने इस स्तनधारी की प्रशंसा में गीत लिखे और गाए।”

इस साल, पुजारी राजाराम कदम सहित 25 से ज्यादा ग्रामवासियों ने पैंगोलिन की प्रतिमा पर फूल चढ़ाए। कभी इस क्षेत्र के आसपास के गाँव इस लुप्तप्राय जन्तु के अवैध शिकार के लिए जाने जाते थे। लेकिन अब उन्होंने पैंगोलिन की रक्षा करने की शपथ ली है, और संरक्षण का एक पक्ष पैंगोलिन को अपनी वेदी (पूजा-स्थल) में रखना है।

पैंगोलिन का शिकार

कई दशकों तक लोग, महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में, इसके मांस और कीमती छाल (शल्क) के लिए पैंगोलिन का शिकार करते थे, जो तस्करों को बेचे जाते थे। इस क्षेत्र में रत्नागिरी जिले के चिपलुन प्रशासनिक ब्लॉक के 162 गाँव शामिल हैं, जिनकी आबादी लगभग 1.5 लाख है।

जलवायु-तंत्र में इसके महत्व को समझते हुए, ग्रामवासियों ने पैंगोलिन उत्सव के हिस्से के रूप में इस जीव की प्रतिमा की झांकी निकाली (छायाकार – भाऊ काटदरे)

पैंगोलिन को भारत के वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के अंतर्गत एक लुप्तप्राय स्तनधारी के रूप में सूचीबद्ध किया गया है और इसे IUCN रेड लिस्ट में लुप्तप्राय के रूप में भी वर्गीकृत किया गया है। भारत में भारतीय पैंगोलिन (Manis crassicaudata) और चीनी पैंगोलिन (Manis pentadactyla) पाए जाते हैं। क्योंकि पैंगोलिन की छाल (शल्क) की चीन और वियतनाम में भारी माँग है, इसलिए यह एशिया के सबसे अधिक तस्करी किए जाने वाले स्तनधारियों में से है।

वर्ष 2016 में, वन्यजीव संरक्षण अधिकारियों ने पूरे क्षेत्र में छापों में शिकार किए गए 44 किलोग्राम पैंगोलिन जब्त किए। यह जब्ती क्षेत्र में पैंगोलिन संरक्षण की दिशा में एक उत्प्रेरक साबित हुई। एक स्थानीय संरक्षण संगठन, ‘सह्याद्री निसर्ग मित्र’ (सह्याद्री प्रकृति के दोस्त) ने पैंगोलिन की रक्षा के लिए एक अभियान शुरू किया।

सह्याद्री निसर्ग मित्र (SNM) के संस्थापक, भाऊ काटदरे कहते हैं – “जहाँ पैंगोलिन हो सकते थे, उन इलाकों की पहचान के लिए हम शुरू में रात में गश्त करते थे। हमने 500 से ज्यादा रातों तक गश्त की होंगी। लेकिन पैंगोलिन को नग्न आंखों से नहीं देखा जा सकता है।”

इसलिए SNM टीम ने इन 162 गांवों और आसपास के जंगलों में 40 कैमरा-ट्रैप लगाए। भाऊ काटदरे ने VillageSquare.in को बताया – “अब तक हमारे पास 1,500 दिनों की फुटेज हैं। कैमरा ट्रैप से हमने 125 से ज्यादा पैंगोलिन देखे, जिससे क्षेत्र में उनके अस्तित्व की पुष्टि हुई।”

जागरूकता में वृद्धि

SNM टीम ने चिपलुन प्रशासनिक ब्लॉक के 162 गांवों का दौरा किया, जहां पैंगोलिन का शिकार आम था। उन्होंने दुगावे गाँव की विभिन्न बस्तियों में रहने वाले लोगों के लिए, 20 से ज्यादा बैठकें कीं, जहां टीम पहले से ही काम कर रही थी।

काटदरे  ने VillageSquare.in को बताया – “हमने उन्हें पैंगोलिन के महत्व के बारे में बताया, और इस  बारे में कि वे कीटों और परजीवियों को खा कर और मिट्टी की रक्षा करके कैसे उनकी खेती और पर्यावरण में मददगार हैं। एक लुप्तप्राय जीव के रूप में उनकी स्थिति को उजागर करने और कोंकण क्षेत्र में पैंगोलिन को बचाने का संदेश फ़ैलाने के लिए हमने खावलोत्सव शुरू किया।”

लॉकडाउन से पहले, पैंगोलिन उत्सव में पैंगोलिन की प्रतिमा के साथ जलूस निकालना और ग्रामवासियों द्वारा पारम्परिक नृत्य शामिल होता था (छायाकार – भाऊ काटदरे)

ग्रामवासियों में से एक, महिंद्रा कदम ने VillageSquare.in को बताया – “हम अपने गांव के पास जंगल में पैंगोलिन देखते हैं। शिकारी उन्हें मार देते थे। जब तक सह्याद्री निसर्ग मित्र के कार्यकर्ताओं ने हमें नहीं बताया, तब तक हमें इन जानवरों के महत्व के बारे में पता नहीं था।”

कई ग्रामवासियों ने यह भी कहा कि उन्होंने शिकारियों द्वारा पैंगोलिन के शिकार के बारे में सुना था, लेकिन यह नहीं जानते थे कि यह उनके गांवों में हो रहा था। महिंद्रा कदम कहते हैं – “क्योंकि हम अब इस लुप्तप्राय स्तनधारी के महत्व के बारे में जानते हैं, इसलिए हमने उनकी रक्षा करने की शपथ ली।”

दुगावे के उप ग्राम प्रधान, चंद्रकांत तांडकर ने VillageSquare.in को बताया – “जागरूकता कार्यक्रमों के बाद, हर कोई पैंगोलिन के महत्व को समझता है। अब हम उन लोगों से पूछताछ करते हैं, जो जंगल में संदिग्ध रूप से घूमते हैं। अब ग्रामीण जानते हैं कि उन्हें पैंगोलिन का शिकार नहीं करना चाहिए और अगर वे गाँव के जंगल में किसी भी शिकारी को देखें, तो उन्हें रिपोर्ट करना चाहिए।”

निरंतर समस्या

हालांकि कोंकण क्षेत्र के ग्रामीण पैंगोलिन रक्षक बन गए हैं, और इसके शिकार के जुर्म में पांच साल तक की कड़ी सजा के बावजूद, पैंगोलिन का अवैध शिकार और व्यापार अभी भी फल-फूल रहा है। अधिकारी अवैध वन्यजीव जाल को तोड़ने की कोशिश करते रहे हैं।

पिछले महीने भारतीय वन अधिकारियों ने, नांदेड़ क्षेत्र में एक छापे में तीन जीवित पैंगोलिन जब्त किए थे। वर्ष 2020 में प्रकाशित एक वन्यजीव व्यापार निगरानी नेटवर्क, TRAFFIC के तथ्य-पत्र के अनुसार, 2009 से 2017 के बीच अवैध व्यापार के लगभग 6,000 पैंगोलिन जब्त किए गए थे।

हालांकि रिपोर्ट में जब्त किए गए पैंगोलिनों की दी गई कुल अनुमानित 5,772 की संख्या के वास्तविक संख्या से कम होने की सम्भावना है। वाइल्डलाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो (WCCB) के अधिकारियों ने प्रति वर्ष मारे गए पैंगोलिन की संख्या या दर्ज़ किए गए मामलों की संख्या पर सवालों के जवाब नहीं दिए।

व्यवहार सम्बन्धी अध्ययन

वन्यजीव संरक्षण ट्रस्ट (WCT) ने कैमरा ट्रैप और तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान करके SNM की मदद की। WCT, मुंबई के अध्यक्ष, अनीश अंधेरिया कहते हैं – “जागरूकता पैदा करके, कई संगठन पैंगोलिन के संरक्षण की दिशा में काम करते हैं। लेकिन हम उनके व्यवहार का अध्ययन कर रहे हैं।”

ग्रामीणों द्वारा पैंगोलिनों की रक्षा की प्रतिज्ञा के बावजूद, वन अधिकारी पाते हैं कि इस क्षेत्र में अवैध शिकार जारी है (छायाकार – भाऊ काटदरे)

अंधेरिया के अनुसार, पैंगोलिन का बेतहाशा अवैध शिकार होता है, लेकिन यह जानवर अपने व्यावहारिक गुणों के कारण जीवित रहता है। पैंगोलिन, जिनका वजन आमतौर पर 8-12 किलोग्राम होता है, निशाचर होते हैं, जो ज्यादातर जंगल में अपने बिल में रहते हैं और केवल भोजन के लिए बाहर आते हैं। बिल के बाहर उनका समय मौसम और भोजन की उपलब्धता पर निर्भर करता है, जो कि चींटियाँ हैं, दीमक नहीं, जैसा कि आम तौर पर माना जाता है।

अंधेरिया ने VillageSquare.in को बताया – “मध्य प्रदेश के वन विभाग के साथ हमने, सितंबर 2019 में, सतपुडा और पेंच टाइगर रिजर्व में तीन पैंगोलिन को रेडियो टैग लगाए। और हम उनकी रक्षा के लिए रणनीति बनाने करने के लिए, उनके व्यवहार के पैटर्न का अध्ययन करते रहे हैं।”

वर्षा तोरगलकर पुणे-स्थित एक पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं। ईमेल: varshat375@gmail.com