कोयला प्रदूषण के खिलाफ ‘करो या मरो’ का आंदोलन कर रहे हैं ग्रामीण

सुंदरगढ़, ओडिशा

कुल्दा खदानों के पास के ग्रामीण, एक दशक से भी ज्यादा समय से कोयला प्रदूषण के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। विरोध-पत्रों और अदालती केसों से कोई राहत नहीं मिलने के कारण, उन्होंने जनवरी में नए सिरे से विरोध प्रदर्शन का रास्ता अपनाया

एक दशक से ज्यादा समय से, ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले के हेमगिरी प्रशासनिक ब्लॉक में कुल्दा की खुली खदान के पास के गाँव कोयला प्रदूषण से जूझ रहे हैं। अपनी निर्मम स्थिति को उजागर करने की हताशापूर्ण कोशिश में, क्षेत्र के लोग अब जनवरी 2021 से परियोजना के खिलाफ ‘करो या मरो’ आंदोलन में लगे हैं।

फरवरी में, खदानों से 10 किमी दूर स्थित प्रभावित गांवों में से एक, रतनपुर के मानवाधिकार संरक्षक राजेंद्र नायक ने केंद्र एवं राज्य सरकार और खदान का प्रबंधन करने वाली, Coal India की सहायक कंपनी, महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड (MCL) के खिलाफ ओडिशा उच्च न्यायालय में एक आवेदन दायर किया।

उन्होंने प्रस्तुत किया कि रतनपुर और छत्तीसगढ़ तक 30 किलोमीटर लम्बे 25 गाँवों से गुजरने वाली कोयले की ढुलाई ने 2002 और 2018 की खदान के लिए पर्यावरण मंजूरी का उल्लंघन किया, जिसमें यह निर्धारित किया गया था, कि सड़क के रास्ते होने वाली कोयले की ढुलाई, प्रभावी ढंग से नियंत्रित कवर की गई गाड़ियों से की जाएगी।

उच्च न्यायालय ने 17 मार्च को अपने आदेश में, सुंदरगढ़ जिले के कलेक्टर को स्थानीय ग्रामीणों और ओडिशा सरकार और केंद्र के प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए विस्तृत जांच करने का निर्देश दिया। कलेक्टर, निखिल पवन कल्याण ने 23 मार्च को एक बैठक की। उन्होंने 24 मार्च को एक आदेश पारित किया, जिसमें सार्वजनिक छुट्टियों को छोड़कर सुबह 6 बजे से दोपहर 1 बजे तक वाहनों के आवागमन पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

उनके आदेश में वाहनों को ढकने, धूल को दबाने के लिए गांवों में पानी का छिड़काव बढ़ाने और धूल को स्कूल में जाने से रोकने के लिए, दीवारों को ऊंचा करने के निर्देश थे। जिला प्रशासन को क्षेत्र में धूल के कारण फसलों को हुए नुकसान और तालाबों पर प्रभाव का आंकलन करने के लिए कहा गया था।

कोयले की धूल के प्रदूषण

2007-08 के बाद से, सुंदरगढ़ जिले के हेमगिरी ब्लॉक में तापरिया, रतनपुर और आसपास के दूसरे गांवों के निवासियों को, उनके गांवों से गुजरने वाले कोयले के 3,000 डंपर ट्रकों से लगातार धूल प्रदूषण का सामना करना पड़ा है।

19 जनवरी को, उन्होंने आंदोलन शुरू किया, जो अभी भी जारी है, हालांकि अधिकारियों ने इसे दबाने की कई तरह से कोशिश की। स्थानीय निवासियों के अनुसार, मार्च में कलेक्टर के आदेश के बावजूद, ट्रकों के चलने पर लगे प्रतिबंध का उल्लंघन किया जा रहा है। इससे पहले प्रशासनिक उदासीनता के कारण, कोयला प्रदूषण को नियंत्रित करने के न्यायालय के निर्देश विफल रहे हैं।

प्रदूषण से प्रभावित ग्रामीणों ने, 2018 में एक साल के लिए 1 करोड़ टन से 1.4 करोड़ टन प्रति वर्ष करते हुए पहले की पर्यावरण-सम्बन्धी मंजूरी का पालन न करने का हवाला देते हुए, खदान की क्षमता के बढ़ोत्तरी का विरोध किया था।

इस मंजूरी के साथ कई शर्तें जुड़ी हुई थीं, जिनमें नियमित चिकित्सा शिविर, मशीनीकृत सफाई और छिड़काव से सड़क के साथ-साथ गाड़ियों से होने वाले उत्सर्जन से नियंत्रित करना और परियोजना स्थल से हवा बहने की दिशा में एक मोटी हरित पट्टी बनाना शामिल था।

निवासियों के विरोध के बावजूद, जनवरी 2021 में, भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय की एक विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति ने कुल्दा खदान की क्षमता को 1.4 करोड़ टन से बढ़ाकर 1.96 करोड़ टन प्रति वर्ष करने की सिफारिश की।

जनवरी, 2021 की एक समाचार रिपोर्ट में, स्थानीय लोगों द्वारा टापरिया गांव में ‘आर्थिक नाकेबंदी’ का उल्लेख किया गया है, जिन्होंने बंकिबहल-तपरिया रोड पर कोयले से लदे ट्रकों की आवाजाही को बाधित किया था। उसमें कहा गया था कि शुरू में प्रदर्शनकारी क्षतिग्रस्त सड़क की मरम्मत की मांग कर रहे थे, लेकिन अब वे अपने गांव से कोयले की ढुलाई रोकने पर अड़े हैं। 

लंबे समय से लंबित मांग

सड़क की मरम्मत या केवल परिवहन या यहाँ तक ​कि आर्थिक नाकेबंदी से भी ज्यादा, यह कोयला प्रदूषण का एक गंभीर मुद्दा है, जिसे कुल्दा और बसुंधरा खदानों के पास इन गांवों में रहने वाले अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति समुदाय, एक दशक से ज्यादा समय से झेल रहे हैं। .

कोयले को छत्तीसगढ़ में विभिन्न स्थानों पर ले जाया जाता है और ओडिशा-छत्तीसगढ़ सीमा पर, बंकिबहल और टापरिया के बीच 25 किलोमीटर की सड़क, आम परिवहन के लिए अनुपयुक्त, गड्ढों और पत्थरों का एक झंझट बन कर गई है।

प्रदर्शनकारियों में से एक, नरेश मेहर का कहना था कि कुल्दा की खुली खदान से, हर दिन ट्रक 19 गांवों से गुजरते हैं, और कोयले की बारीक धूल से गांवों को पाट देते हैं, जिससे हजारों लोग प्रभावित होते हैं। सड़क, जो विवाद का मुख्य कारण है, समुदायों के लिए एकमात्र चीज नहीं है। गहन कोयला प्रदूषण उनके जीवन के हर एक मिनट को बाधित करता है।

प्रदूषण के खिलाफ एक दशक लम्बे संघर्ष और कानूनी रास्ते तलाशने की कवायद के बाद, प्रभावित गांवों ने ‘करो या मरो’ आंदोलन शुरू किया।

लगभग 80 अरब टन के भंडार के साथ, ओडिशा में देश का दूसरा सबसे बड़ा कोयला भंडार (24%) है। 2 अप्रैल को, MCL की वार्षिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक, पी. के. सिन्हा ने कहा कि वित्तीय वर्ष 2020-21 में MCL का कोयला उत्पादन और रवानगी, क्रमशः 14.801 करोड़ टन और 14.6 करोड़ टन था।

स्वास्थ्य पर प्रभाव

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 2019 की एक स्थल-निरीक्षण और निगरानी रिपोर्ट से पता चलता है कि धूल-कण (PM) 10 और 2.5 की मात्रा में स्वीकृत सीमा से अधिक है। इसने ज्यादा छिड़काव और नियंत्रण उपायों का सुझाव दिया। कंपनी दूसरी कई कमियों के साथ साथ, खनन कार्यों से होने वाले धूल के उत्सर्जन की निगरानी नहीं कर रही थी।

क्षेत्र के 25 गांवों के प्रभावित समुदायों के गठबंधन, जनशक्ति विकास संगठन से मेहर कहते हैं कि इसके अलावा, वह हरित पट्टी भी कहीं नहीं मिली, जिसका वादा किया गया था और कोयला प्रदूषण के प्रभाव को लेकर कोई उचित स्वास्थ्य मूल्यांकन नहीं है।

कोयले से लदे ट्रक कई गांवों से गुजरते हैं, जिससे ग्रामीणों के स्वास्थ्य पर असर पड़ता है (छायाकार – नरेश मेहर)

उन्होंने आरोप लगाया कि गत वर्षों में स्वास्थ्य की स्थिति खराब हुई है। वह रतनपुर गांव के अन्य लोगों की तरह तपेदिक से पीड़ित थे और उनके दो चाचाओं की कैंसर से मौत हो गई। उनके छोटे भाई की तपेदिक और फिर कैंसर हो जाने से मृत्यु हो गई।

मेहर ने कहा कि उनके पिता की रतनपुर में सात एकड़ जमीन है, जिसे करीब 10 किमी दूर खदानों के लिए अधिग्रहित कर लिया गया था। वह कहते हैं – “खदान में हमारी जमीन चली गई, लेकिन हमारे लिए कोई रोजगार नहीं है। अकेले रतनपुर गांव में करीब 19 एकड़ खेती की जमीन थी, जिसे खनन के लिए अधिग्रहित किया गया था।”

ह्यूमन राइट लॉ नेटवर्क (HRLN) की वकील, सरिता बरपांडा, जो मेहर और स्थानीय क्षेत्र के दूसरे लोगों को उनके कानूनी मामलों में मदद कर रही हैं, का कहना था कि इस क्षेत्र में घना जंगल था, जिसमें पैंथर पाए जाते थे, लेकिन कुछ वर्षों से कोई दिखाई नहीं दे रहा है।

आजीविका पर प्रभाव

प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि उनकी आजीविका को भी प्रभावित कर रहा है। कोयले से निकलने वाली धूल का धान की खेती और केंदू के पत्तों (या बीड़ी में तंबाकू बांधने के लिए इस्तेमाल होने वाले तेंदू पत्ते) पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

मेहर ने कहा कि अक्सर उनका रंग फीका पड़ जाता है और उनके अच्छे दाम नहीं मिलते। रतनपुर से एक किलोमीटर दूर, स्पंज आयरन फैक्ट्री से सड़क मरम्मत के नाम पर, कचरा फेंके जाने की एक और समस्या है.

क्षेत्र की अनुसूचित जातियों और जनजातियों के पास ज्यादा जमीन नहीं है और वे पास के जंगलों में खेती करते हैं। मेहर ने कहा कि वन अधिकार अधिनियम, 2006 के अंतर्गत वन भूमि के मालिकाना हक के उनके दावे असफल रहे हैं।

जारी विरोध

मेहर का कहना है – “हमने COVID-19 के कारण विरोध के स्तर को कम किया है, लेकिन आंदोलन जारी है। जब जनवरी में हमने टापरिया गांव में अपना विरोध शुरू किया, तो हमारे खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज किए गए और मुझ सहित 16 लोगों को जेल में डाल दिया गया। फिर पुलिस ने निषेधाज्ञा लागू की, इसलिए हम विरोध करने के लिए दूसरे गांव, कंडाधोहा चले गए।”

उन्होंने आरोप लगाया कि वहां पर स्थानीय ट्रांसपोर्टरों और क्षेत्र में सक्रिय एक कोयला माफिया के सदस्यों ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हत्या के प्रयास और डकैती के मामले दर्ज किए, जिसके बाद पुलिस ने 12 पुरुषों और 12 महिलाओं को गिरफ्तार किया।

उसके बाद विरोध का स्थान रतनपुर हो गया, जहां उन्होंने खराब सड़कों और प्रदूषण के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की। 23 मार्च को जिला कलेक्टर कई पुलिस कर्मियों के साथ वहां पहुंचे। बरपांडा कहती हैं – “हमने तहसीलदार से बात की, लेकिन उन्होंने MCL का समर्थन करते हुए कहा कि अगर वे ट्रक नहीं चलाएंगे, तो कंपनी को नुकसान होगा। उन्हें ग्रामीणों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं थी।”

ग्रामीणों का आरोप है कि स्पंज आयरन फैक्ट्री का कचरा सड़क मरम्मत के बहाने सड़क पर फेंका जा रहा है (छायाकार – सरिता बरपांडा व नरेश मेहर)

2016 में, ओडिशा उच्च न्यायालय के एक आदेश में कहा गया था कि सड़क की मरम्मत की जानी चाहिए और तब तक कोई भी वाहन उस पर नहीं चलना चाहिए। इसने बांकबिहाल से टापरिया तक सड़क की समीक्षा की थी और कहा था, कि दो टन मल्टी एक्सल वाहनों को मरम्मत होने तक रोका जाए। 

इससे पहले 2015 में, ओडिशा सरकार और MCL के बीच बंकिबहल से भेड़ाबहल (सुंदरगढ़ जिले में, जहां एक अल्ट्रा-मेगा पावर प्लांट प्रस्तावित है) तक चार लेन के कोयला-गलियारे के निर्माण के लिए एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए गए थे, क्योंकि सड़क मल्टी-एक्सल भारी वाहनों के लिए उपयुक्त नहीं है।

क्योंकि ऐसा नहीं किया गया, इसलिए 26 पंचायतों के प्रमुखों ने 2016 में ओडिशा उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की। अदालत ने एक समिति के गठन का आदेश दिया, जिसने सुंदरगढ़ से बंकीबहल/टापरिया तक की सड़क का निरीक्षण किया और मार्च 2017 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

रिपोर्ट में बंकीबहल से टापरिया तक ट्रकों की आवाजाही को तब तक रोकने का आदेश दिया गया, जब तक कि सड़क चौड़ी और मरम्मत नहीं कर दी जाती। अदालत ने फैसला सुनाया कि एक कोयला गलियारा, युद्ध स्तर पर आदेश के दो महीने में बनाया जाना चाहिए और 2018 के अंत तक पूरा किया जाना चाहिए।

इस आदेश में कलेक्टर को वाहनों की आवाजाही को प्रतिबंधित करने के लिए भी कहा था और कहा था कि एक शर्त यह होनी चाहिए कि मल्टी-एक्सल वाहन केवल रात 11 बजे से सुबह 6 बजे तक चलेंगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ है और ट्रक की आवाजाही को प्रतिबंधित करने के आदेशों की जानबूझकर अवहेलना की गई है।

MCL के एक प्रवक्ता का कहना था कि इस सड़क का कोई विकल्प नहीं है और जिंदल पावर द्वारा इसकी मरम्मत की जा रही है। उन्होंने दावा किया कि ट्रकों की आवाजाही के समय का पालन किया जा रहा है और MCL तालाबों की सफाई कर रही है और कोयले की धूल को नियंत्रित करने के लिए पानी का छिड़काव कर रही है। उन्होंने कहा कि कोयला-गलियारे के लिए कुछ प्रस्ताव था, लेकिन उनके पास उसका कोई विवरण नहीं है।

प्रवक्ता कहते हैं कि लोगों की समस्या का समाधान कुछ महीनों में हो जाना चाहिए। जोर देकर MCL द्वारा लोगों के लिए स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए जाने के दावे के साथ वह कहते हैं कि MCL भी प्रदूषण से निपट रहा था, और कि कोयले की धूल के कारण कुछ प्रदूषण तो होगा, लेकिन कंपनी मामले को सुधारने के लिए हर संभव प्रयास कर रही थी। 

मीना मेनन मुंबई में स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

यह लेख पहली बार ‘Mongabay India’ में प्रकाशित हुआ था।