‘को-विन’ (CO-WIN) पर पंजीकरण जरूरी होने के कारण सर्वव्यापी टीकाकरण में बाधा आई है

कालाहांडी और मलकानगिरी, ओडिशा

अनियमित मोबाइल कनेक्टिविटी, डिजिटल निरक्षरता और पोर्टल तक पहुंचने के लिए उपकरणों के अभाव के कारण, ओडिशा के दूरदराज के गांवों में समावेशी टीकाकरण को असंभव बना दिया है।

24 मई को, केंद्र सरकार ने 18-44 आयु वर्ग के लोगों के लिए सरकारी अस्पतालों में वॉक-इन टीकाकरण की अनुमति दी, लेकिन राज्यों ने अभी तक इस संबंध में निर्णय नहीं लिया है। हाशिए पर रह रहे समूहों के बीच काम करने वाले कार्यकर्ता, विशेष रूप से ओडिशा के दूरदराज के इलाकों में, यह महसूस करते हैं कि इससे सर्वव्यापी टीकाकरण प्राप्त करने में मदद नहीं मिलेगी।

केंद्र सरकार द्वारा 18-44 आयु वर्ग के लोगों के लिए को-विन पोर्टल में टीकाकरण के लिए पंजीकरण करना अनिवार्य करने की घोषणा के बाद से, कमजोर वर्ग अपने को वंचित महसूस करते हैं, क्योंकि वे डिजिटल पंजीकरण को एक बाधा पाते हैं। यह ओडिशा के दूरदराज के गांवों में ज्यादा दिखाई देता है, जहां इंटरनेट संपर्क खराब है।

18 वर्ष से ऊपर के प्रत्येक व्यक्ति को टीकाकरण प्राप्त करने का अधिकार है; लेकिन Co-WIN पर अनिवार्य पंजीकरण कई लोगों के लिए इसे मुश्किल बना देता है। ग्रामीण लोगों के इस अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए, ओडिशा सरकार को अपनी टीकाकरण योजना में बदलाव लाने होंगे।

डिजिटल विभाजन

सुनाकर जानी (26) कालाहांडी जिले के पहाड़ी इलाके थुआमुल रामपुर प्रशासनिक ब्लॉक के गुनुपुर पंचायत के एक दूरदराज के गांव में रहते हैं, जहां इंटरनेट कनेक्टिविटी छिटपुट है। इसके अलावा, उसके पास एक स्मार्ट फोन नहीं है और यदि होता भी, तो वह डिजिटल रूप से अनपढ़ है। इसलिए, उसने अभी तक को-विन ऐप में टीकाकरण के लिए पंजीकरण नहीं कराया है।

कालाहांडी जिला मुख्यालय भवानीपटना से 72 किमी दूर अपने गाँव से फोन पर जानी ने VillageSquare.in को बताया – “मेरे पास एक साधारण फोन है, जिसका इस्तेमाल मैं केवल कॉल करने के लिए करता हूं। मेरे पास स्मार्ट फोन खरीदने के लिए काफी पैसे नहीं हैं।”

जानी के गाँव कथाघरा में 110 घर हैं और उनमें सिर्फ 10 युवाओं के पास ही स्मार्ट फोन हैं। ये युवक काम के लिए दूसरे राज्यों में चले गए थे और अपनी कमाई से उन्होंने स्मार्ट फोन खरीदे।

जानी का कहना था – “उन्हें स्मार्ट फोन इस्तेमाल करने की बहुत कम जानकारी है। वे किसी पेड़ या पहाड़ी पर चढ़ते हैं और केवल वीडियो देखते हैं। वे नहीं जानते कि सरकार के को-विन ऐप में पंजीकरण कैसे किया जाता है।” उन्होंने यह भी कहा कि अगर राज्य सरकार वॉक-इन टीकाकरण की अनुमति दे, तो इससे उनकी समस्या का समाधान हो जाएगा।

दूर-दराज के गांवों के निवासियों के लिए, कनेक्टिविटी समस्याओं के कारण ऐप पर टीके के लिए पंजीकरण करना बेहद मुश्किल हो गया है (छायाकार – दिलीप दास)

कालाहांडी जिले में 21 मई तक, 2,29,969 लोगों का टीकाकरण किया जा चुका है। टीकाकरण डैशबोर्ड के अनुसार, उनमें से 47,826 व्यक्तियों ने दोनों डोज़ प्राप्त कर ली थी। 18-44 आयु वर्ग में केवल 13,867 को ही टीका लगा था। थुआमुल रामपुर ब्लॉक में, 5,479 व्यक्तियों को टीका लगा है, हालांकि आंकड़ों से यह पता नहीं चलता, कि उनमें से कितने 45 से कम उम्र के हैं।

थुआमुल रामपुर ब्लॉक में एक गैर-लाभकारी संगठन के साथ काम करने वाले एक वालंटियर, गुरुबारू परभोई (32) कहते हैं – “45 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों को, बिना पूर्व समय लिए टीका लगवाने की अनुमति थी, लेकिन 18-44 आयु वर्ग के लिए को-विन पर पंजीकरण जरूरी है। यह दूर-दराज के गांवों के गरीब समुदायों के लोगों को टीका लगवाने से रोकता है।”

परभोई ने VillageSquare.in को बताया – “जिन ग्रामीणों को पहली डोज़ लग गई है, वे दूसरी डोज़ के लिए पंजीकरण करने में असमर्थ थे। कुछ को तो यह भी नहीं पता होता कि जिस तारीख तक उन्हें दूसरी डोज़ लगनी चाहिए थी, वह बीत चुकी है।”

परभोई ने अपना और अपने परिवार के चार सदस्यों का को-विन पर पंजीकरण करा लिया है। हालांकि वह एक स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करता है, लेकिन उसके अनुसार उसके लिए पंजीकरण करना आसान नहीं था और इसलिए उसने भवानीपटना के अपने वरिष्ठ की मदद ली। “जब मेरे लिए पंजीकरण मुश्किल हो गया, तो आप इस दूरदराज के गांव के अनपढ़ लोगों से कैसे उम्मीद कर सकते हैं? उनमें से ज्यादातर ने अपने जीवन में स्मार्ट फोन देखा या छुआ तक नहीं है।”

कनेक्टिविटी का अभाव 

ओडिशा आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 के अनुसार, ओडिशा में कुल टेली-घनत्व 76.46 है, जबकि राष्ट्रीय औसत 87.37 है। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति 100 लोगों पर इंटरनेट सदस्यता 34.51 है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 85.98 है। इसके अलावा, राज्य में टेली-घनत्व और इंटरनेट सदस्यता, दोनों के लिए शहरी और ग्रामीण में बड़ा अंतर है।

परभोई ने कहा कि थुआमूल रामपुर ब्लॉक में दो मोबाइल टावर हैं। लेकिन केलुआ और किनमाली जैसे छोटे पहाड़ी गांव हैं, जहां ग्रामीणों के पास स्मार्ट फोन नहीं है और वे शायद ही कभी तलहटी में आते हैं। PDS राशन या मासिक पेंशन के लिए नीचे आने वाले पुरुषों को संकरी नदियों और जंगलों को पार करना पड़ता है। इन दूरदराज के इलाकों में ग्रामीणों के लिए टीकों के लिए पंजीकरण करना और भी कठिन होगा।

केलुआ और किनमाली ऐसे कई दुर्गम गांवों के दो उदाहरण मात्र हैं, जहां मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं है। भारत सरकार के दूरसंचार विभाग द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि ओडिशा के कुल 51,311 गांवों में से 11,000 गांवों में मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं है।

भाषा की बाधा

सुरेश मांझी (24) स्वाभिमान अंचल के गांवों में से एक पीपलपदार में रहते हैं, जिसे पहले मलकानगिरी जिले के चित्रकोंडा प्रशासनिक ब्लॉक के कटे-हुए क्षेत्र के रूप में जाना जाता था। कटे हुए गांवों को जोड़ने के लिए गुरुप्रिया सेतु (पुल) के निर्माण के बाद, कुछ गांवों में मोबाइल टावर लगाए गए।

हालांकि कुछ युवाओं के पास स्मार्ट फोन हैं, लेकिन टीकाकरण के लिए पंजीकरण कराना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि उनमें से ज्यादातर अंग्रेजी नहीं पढ़ते या निरक्षर हैं। सुरेश मांझी उनमें से एक हैं, जिन्हें पंजीकरण कराने में कठिनाई हुई। माझी, जो ग्रामीण क्षेत्रों में संक्रमण में हालिया उछाल से डरे हुए हैं, कहते हैं – “यह अंग्रेजी में है, इसलिए मैं अभी तक पंजीकरण नहीं करा पाया हूं।”

जिन कुछ युवाओं ने टीका लगवाया है, उन्होंने किसी की मदद से को-विन में पंजीकरण कराया, क्योंकि यह केवल अंग्रेजी में उपलब्ध है (छायाकार – दिलीप दास)

ओडिशा में हालांकि साक्षरता दर 72.9% है, मलकानगिरी की साक्षरता दर 2011 की जनगणना के अनुसार सबसे कम है। भारत में संविधान की आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध 22 आधिकारिक भाषाएं हैं। लेकिन इस समय को-विन केवल अंग्रेजी में उपलब्ध है।

महिलाओं के लिए सीमित पहुंच

ग्रामीण महिलाओं के लिए को-विन के माध्यम से टीके के लिए पंजीकरण कराना और ज्यादा मुश्किल है। मंजू माझी (18) कहती हैं – “जब 45 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए टीकाकरण अभियान शुरू हुआ, तो मेरे पिता ने टीका लगवाया। वह बाहर जाते हैं, इसलिए हमें लगा कि मेरी मां से ज्यादा उन्हें टीके की जरूरत है।”

जब मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) ने उन्हें समझाया, तभी मां और बेटी ने खुद को टीका लगवाने का फैसला किया। मंजू मांझी ने VillageSquare.in को बताया – “अब, हमारे पास ऐप से रजिस्टर करने के लिए स्मार्ट फोन नहीं है, इसलिए हमें टीका नहीं लग सकता।”

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के अनुसार, ओडिशा में केवल 32.2% ग्रामीण महिलाएं ही मोबाइल फोन रखती और उपयोग करती हैं। इससे उनकी स्वतंत्रता और अवसर सीमित हो जाते हैं। यह दर्शाता है कि पंजीकरण के लिए उन्हें परिवार या पड़ोस के पुरुष सदस्यों पर निर्भर रहना पड़ता है।

ऑक्सफैम इंडिया में लैंगिक न्याय की कार्यक्रम अधिकारी, रुक्मिणी पांडा का कहना था – “ऐसे कई व्यवस्थागत कारण हैं, जो महिलाओं के टीकाकरण सहित स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचने में बाधा हैं। पितृसत्तात्मक व्यवस्था में, परिवारों में महिलाओं की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को प्राथमिकता नहीं दी जाती है।”

पांडा ने VillageSquare.in को बताया – “साथ ही, जानकारी की कमी के कारण, ग्रामीण महिलाओं को टीकाकरण के फायदों के बारे में जागरूकता नहीं है।” इसलिए सरकार को विशेष रूप से महिलाओं और विकलांग लोगों को ध्यान में रखते हुए, जागरूकता पैदा करने की जरूरत है।

टीकाकरण का अधिकार

संगठनों के एक नेटवर्क, जन स्वास्थ्य अभियान के राष्ट्रीय सह-संयोजक, गौरांग महापात्रा ने VillageSquare.in को बताया – “ऐप से पंजीकरण जरूरी कर दिए जाने से, गरीब और हाशिए पर जीने वाले लोग अभियान से बाहर हो गए हैं। इस लिए व्यवस्था को ऑफ़लाइन करने की जरूरत है।”

महापात्रा कहते हैं – “केंद्र सरकार के वॉक-इन टीकाकरण के फैसले का स्वागत है, लेकिन दूरदराज के गांवों में लोगों तक पहुंचने के लिए, सरकार को आंगनबाड़ियों में टीकाकरण केंद्र खोलने चाहिएं; और कमजोर वर्ग के लिए उन्हें घर-घर टीकाकरण शुरू करना चाहिए।”

केवल वॉक-इन विकल्प के कारण, दूरदराज के गांवों के वृद्ध पुरुष और महिलाएं टीका लगवा सके (छायाकार – दिलीप दास)

दूरदराज के गांवों में, आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के पास ग्रामीणों की एक विस्तृत सूची होती है और वे टीकाकरण की सुविधा प्रदान कर सकते हैं। एक नेटवर्क, सिटिजन’स कलेक्टिव फॉर पब्लिक हेल्थ, जो ओडिशा में स्वास्थ्य-समानता बढ़ाने पर काम करता है, ने राज्य सरकार से ज्यादा संक्रमण दर वाले जिलों में टीकाकरण को प्राथमिकता देने का आग्रह किया है।

कालाहांडी जिले में हाशिए के समुदायों में काम करने वाले एक कार्यकर्ता, दिलीप दास का कहना था – “दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए, सरकार को उन्हें टीकाकरण केंद्रों में लाने के लिए वाहन उपलब्ध कराने चाहिए।” सरकार को अपनी टीकाकरण योजना में बदलाव करना होगा, ताकि यह समावेशी हो, और सुनाकर जानी जैसे युवा छूट न जाएं।

राखी घोष भुवनेश्वर स्थित एक पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं। ईमेल: rakhighosh@rediffmail.com