ग्रामीण भारत तीसरी लहर के लिए कैसे तैयारी करे

झारखंड का अनुभव साबित करता है कि स्थानीय प्रशासन, सामुदायिक समूह और नागरिक समाज संगठनों के तालमेलपूर्ण प्रयास, गाँवों को COVID-19 की तीसरी लहर से निपटने में मदद कर सकते हैं।

जबकि हमारे देश में आई COVID-19 की दूसरी लहर, आर्थिक और सामाजिक संकटों के अलावा, मृत्यु के सिलसिले के निशान छोड़ गई, स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने तीसरी लहर की चेतावनी दी है। सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार, विजय राघवन ने चेताया है – “यह अपरिहार्य है..हमें तैयार रहना चाहिए।” कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अपने स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे, विशेष रूप से COVID-19 बाल चिकित्सा वार्डों को तैयार करना शुरू कर दिया है।

झारखंड के स्वास्थ्य सचिव को डर है कि तीसरी लहर में झारखंड के लगभग 7 लाख बच्चे और किशोर संक्रमित हो सकते हैं और उनमें से लगभग 42,000 में सामान्य लक्षण दिखाई दे सकते हैं और 9,000 को गहन देखभाल (ICU) की जरूरत हो सकती है। अपनी चिंता व्यक्त करते हुए, कि राज्य में केवल 125 बाल विशेषज्ञ हैं, उनका अनुमान है कि लगभग 50,000 ऑक्सीजन-युक्त बिस्तरों की जरूरत होगी।

दूसरी लहर के समय झारखंड के अनुभव से पता चलता है कि कुछ उपाय करने से तीसरी लहर का सामना करने में मदद मिलेगी। स्थानीय प्रशासन को मजबूत करना, उनके साथ नागरिक समाज संगठन का सहयोग और सामुदायिक समूहों के साथ उनके तालमेलपूर्ण कार्य, हालात बनने पर उस पर काबू पाने का एक संभावित तरीका है।

अपर्याप्त सुविधाएं

झारखंड की कुल भूमि का लगभग 97% हिस्सा ग्रामीण है, जिसमें से आधा आदिवासी क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत है। इसकी कुल 2.79 करोड़ आबादी का लगभग 75% हिस्सा, 361 के जनसंख्या घनत्व वाले ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है। यह 27 विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों (PVTGs) का घर है।

मानदंडों के अनुसार, झारखंड को 6,768 स्वास्थ्य उपकेंद्रों (HSCs), 1,079 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHCs) और 269 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHCs) की जरूरत है। लेकिन स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी – 2019 के अनुसार, केवल 3,848 उपकेंद्र (43% कम), 298 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (72% कम) और 271 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (36% कम) उपलब्ध हैं।

ये केंद्र पानी की नियमित उपलब्धता और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं के बिना काम करते हैं। यह सूचना है कि 56.2% HSCs और 65.5% PHCs में नियमित रूप से बहता पानी नहीं है; 65.7% HSCs और 55% PHCs में बिजली नहीं है। 20.2% PHCs में लेबर रूम नहीं हैं और 58.2% में ऑपरेशन थिएटर नहीं हैं। ऐसे समय में, जब भारत एक डिजिटल विकास के रास्ते पर चल रहा है और आत्मनिर्भर होने का लक्ष्य है, ग्रामीण झारखंड में केवल 37.97% PHCs में टेलीफोन और 47.3% में कंप्यूटर हैं।

मरीजों और बाल रोग विशेषज्ञों की आसान पहुंच के लिए, केंद्रीय गांवों में बच्चों के वार्ड स्थापित करने से डॉक्टरों की कमी को दूर करने में मदद मिलेगी (छायाकार – राकेश साहू, TRIF)

जहां राष्ट्रीय स्तर पर, चार गाँवों पर एक HSC, 26 गाँवों पर एक PHC और 120 गाँवों पर एक CHC उपलब्ध हैं, वहीं  झारखंड में यह संख्या, औसतन आठ गांवों के लिए एक HSC, 109 गांवों के लिए एक PHC और 189 गांवों के लिए एक CHC मात्र है। आंकड़े दर्शाते हैं कि इतनी ही कमी कर्मियों की संख्या में भी है। बहुत सी ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाओं में, चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मचारियों के स्वीकृत पद खाली हैं। प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञों, चिकित्सकों, सर्जनों और बाल रोग विशेषज्ञों के कुल 700 स्वीकृत पदों में से लगभग 90% खाली हैं।

HSCs में चौबीसों घंटे सेवा सुनिश्चित करने के लिए, सहायक नर्सिंग दाइयों (एएनएम) के लिए आवासीय सुविधा जरूरी है। लेकिन आंकड़ों से पता चलता है कि केवल 32.5% HSCs में एएनएम क्वार्टर हैं और 25.4% इसका उपयोग करते हैं। इससे पता चलता है कि झारखंड की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। और प्रत्याशित तीसरी लहर को रोकने के लिए, छह महीने के अंदर हालात बदलना संभव है।

कमियों पर काबू पाना

कमियों के बावजूद, झारखंड ने नियमित टीकाकरण और मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य देखभाल के अलावा, COVID-19 प्रतिक्रिया में अच्छा प्रदर्शन किया। इसने मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य कार्यप्रणाली से जुड़े व्यवहार में बदलाव के माध्यम से, ग्रामीण स्तर पर पहुँच सेवा पर ध्यान केंद्रित करके ऐसा किया।

जब वर्ष 2000 में झारखंड को बिहार से अलग कर एक नया राज्य बनाया गया था, तो पूर्ण टीकाकरण कवरेज 8% थी, जो अब 61% है। झारखंड का मातृ मृत्यु अनुपात 77 है, जो राष्ट्रीय औसत 113 से कहीं बेहतर है; ग्रामीण शिशु मृत्यु दर भी 31 है, जो राष्ट्रीय औसत 32 से बेहतर है।

स्वयं सहायता समूहों (SHGs), ग्राम संगठनों (VOs), क्लस्टर स्तर के संघों (CLFs) और जाने माने नागरिक समाज संगठनों (CSOs) के सहयोग से 39,396 आशा कार्यकर्ताओं ने परिवर्तन कर दिखाया है। राज्य और जिला स्तर पर अनुकूल नीति के सहयोग ने इन सामुदायिक कार्यों को बढ़ावा दिया।

तीसरी लहर से निपटने की तैयारी

झारखंड इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हेल्थ एंड न्यूट्रिशन (JIDHAN) के अनुभवों, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM)-झारखण्ड की एक COVID-19 प्रतिक्रिया पहल, झारखंड आजीविका संवर्द्धन समिति (JLPS) और ‘प्रदान’, PHIA फाउंडेशन, ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन (TRIF), और अजीम प्रेमजी परोपकारी पहल जैसे नागरिक समाज संगठनों ने इन संभावनाओं को दर्शाया है। स्थानीय पंचायतों और पारम्परिक नेताओं के नेतृत्व में, SHGs-VOs-CLFs और सामुदायिक युवा स्वयंसेवकों की भागीदारी के साथ, समुदाय-केंद्रित कार्रवाई महामारी से लड़ने के लिए एक सामाजिक सहयोग व्यवस्था तैयार कर सकती है।

‘एकजुट’ द्वारा नवाचार की गई सहभागितापूर्ण सीखने की क्रियाओं को, COVID-19 के संदर्भ में संशोधित किया जा सकता है। JIDHAN के अंतर्गत, स्थानीय स्वयंसेवकों का एक समूह प्रत्येक गांव में जागरूकता पैदा करता है, ग्रामीणों को कोविड-19 उपयुक्त व्यवहार पर प्रशिक्षित करता है और महिलाओं को मानसिक सहायता प्रदान करता है। यह उन क्षेत्रों में बहुत प्रभावी साबित हुआ है, जहां मोबाइल सेवाओं की उपलब्धता अधिक नहीं है।

विशेष नवजात देखभाल इकाइयों को, गंभीर मामलों के लिए लैस करने की जरूरत है (छायाकार – सिद्धांत गुप्ता, TRIF)

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का ‘सघन जन स्वास्थ्य सर्वेक्षण (IPHS)’, स्थानीय पंचायत, पारम्परिक नेताओं और SHGs के सहयोग से आशा कार्यकर्ताओं, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और ANMs की ग्राम स्तर की संयुक्त टीम के माध्यम से दूरदराज के इलाकों तक पहुंचने में प्रभावी रहा है।

सर्वेक्षण में इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारी (ILI) और गंभीर तीव्र श्वसन संक्रमण (SARI) के 30,113 मामलों; 202,711 सह-रुग्ण (साथ की बीमारी) मामलों और टीकाकरण से चूक गए 8,258 बच्चों की पहचान की गई, और उन्हें नियमित सेवाओं से जोड़ा गया। IPHS प्रक्रिया को मजबूत किया जा सकता है और टेली-मेडिसिन सेवा ‘ई-संजीवनी’ के साथ जोड़ा जा सकता है, ताकि लोग घर से डॉक्टरों की सेवाएं प्राप्त कर सकें और संक्रमण के मामलों को ऊपरी सुविधाओं को रेफर करने के लिए एक मजबूत रेफरल व्यवस्था हो।

सीमित संख्या में विशेषज्ञों, विशेष रूप से बाल रोग विशेषज्ञों, लेकिन बड़ी संख्या में ANMs को ध्यान में रखकर प्रतिक्रिया-रणनीतियाँ तैयार की जानी चाहिए। मेंटर और तत्काल उत्तरदायी के रूप में एक डॉक्टर के साथ कुछ ANMs को मिलाकर सहायता व्यवस्था का एक व्यापक मॉडल बनाया जा सकता है। देश भर से समर्पित लोगों को आकर्षित करने के लिए, भर्ती के कुछ नवीन मॉडलों का इस्तेमाल करके, खाली पदों को तत्काल भरने का हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए।

जहां बाल रोग विशेषज्ञ, डॉक्टर उपलब्ध न हों, वहां ANMs और F-IMNCI (नवजात और बालावस्था बीमारी का सुविधा-आधारित एकीकृत प्रबंधन) में प्रशिक्षित कर्मियों की पहचान की जानी चाहिए और प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेजों के सहयोग से उनकी बेहतर क्षमता निर्माण की योजना बनाई जानी चाहिए। और अधिक स्वास्थ्य कर्मियों को F-IMNCI में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।

यदि संक्रमण के मामलों की संख्या बढ़ती है, तो दूसरे राज्यों के कम संक्रमण वाले क्षेत्रों और जिलों से या यहां तक ​​कि विदेशों से भी, प्रशिक्षित डॉक्टरों की अस्थायी तैनाती की सम्भावना तलाशी जा सकती है। वे व्यवस्था को अतिरिक्त सहायता के रूप में कुछ महीनों के लिए सेवा प्रदान कर सकते हैं।

दूसरी लहर में कई CSOs, और कॉर्पोरेट संस्थाओं ने, सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं के अलावा, स्वास्थ्य सुविधाओं से लैस करने के लिए, बड़ी संख्या में ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर, BiPAP मशीनें आदि का दान दिया। प्रभावी इस्तेमाल सुनिश्चित करने के लिए, उपकरणों का पता लगाने और उनके प्रयोग की योजना बनाने की जरूरत है।

बुनियादी ढांचे और मानव संसाधन, विशेष रूप से विशेषज्ञों की कमी को ध्यान में रखते हुए, बिखरी हुई बाल चिकित्सा इकाइयों की बजाय, केंद्रीकृत सुविधाओं की योजना बनाई जा सकती है, क्योंकि बच्चों और नवजात शिशुओं को चिकित्सा सहायता की जरूरत हो सकती है। संक्रमण फैलने के जोखिम को कम करने के लिए, किसी भी भोगौलिक क्षेत्र में आसान पहुँच में परिवहन सुविधा के साथ कई बाल चिकित्सा वार्डों की योजना बनाई जा सकती है। तब डॉक्टर कम जोखिम के साथ, एक सुविधा से दूसरी सुविधा में जा सकते हैं।

सुविधाओं को तेजी से तैयार करने के लिए, ‘बॉक्स हॉस्पिटल’ जैसे अभिनव समाधान तलाशे जाने चाहियें। 

यदि बच्चों को स्वास्थ्य सुविधा में भर्ती किया जाता है, तो माता-पिता या परिचारकों को स्वास्थ्य सुविधा या उसके आसपास लंबे समय तक रहना होगा। ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादातर लोग आजीविका के लिए कृषि, दैनिक मजदूरी या महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) पर निर्भर हैं। माता-पिता के लिए अपने बच्चे को सुविधाओं में लाने के लिए एक सहयोगी वातावरण बनाने के लिए, CSOs की मदद से आस-पास की सुविधाओं में भोजन और रहने की व्यवस्था की जा सकती है।

CHCs को दिए जाने के लिए तैयार ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर, सभी ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाओं को उपलब्ध कराए जाने चाहिए (छायाकार – राकेश साहू, TRIF)

दूसरी लहर के दौरान, पलामू जिला प्रशासन ने सम्बंधित जानकारी प्रदान करने के लिए, जिला अस्पताल में एक हेल्प डेस्क की स्थापना की थी। इसी तरह के हेल्प डेस्क ब्लॉक स्तर पर स्थापित किए जा सकते हैं। पहली लहर के समय झारखंड के कई जिलों ने, प्रवासी श्रमिकों को सूचना और परिवहन सुविधा प्रदान करने के लिए, ब्लॉक स्तरीय हेल्पलाइन नंबर शुरू किए थे। माता-पिता को जानकारी प्रदान करने के लिए, इसी तरह की व्यवस्था की जा सकती है।

टीकाकरण की कवरेज बढ़ाने के लिए, हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए। लक्षित समूहों में टीके को लेकर हिचकिचाहट को कम करने के लिए, स्थानीय सांस्कृतिक पहलुओं को शामिल करते हुए, एक मजबूत संचार योजना विकसित और शुरू की जानी चाहिए।

पहली और दूसरी लहर में, गर्भवती महिलाओं के पंजीकरण की संख्या, प्रसव-पूर्व जांच और संस्थागत प्रसव में कमी सहित, नियमित मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवा में व्यवधान देखा गया। नियमित टीकाकरण सेवाएं और पोषण सेवाएं भी प्रभावित हुईं। एनीमिया और अल्पपोषण के अधिक प्रसार से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है और इसलिए मातृ एवं शिशु मृत्यु दर और दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभावों का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए नियमित आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं को बहाल करने के लिए सभी प्रयास किए जाने चाहिए।

स्थानीय प्रशासन को सहयोग 

केंद्र से दिशानिर्देशों के अभाव में, विशेष रूप से दूसरी लहर के दौरान, जिला प्रशासन, ब्लॉक प्रशासन, पंचायतों और नगरपालिकाओं के स्थानीय स्तर के सरकारी तंत्र ने सुशासन की मिसाल कायम की है।

CSOs, NGOs, नागरिक समूहों, प्रवासियों, उद्योग और स्टार्ट-अप्स ने सोशल मीडिया और दूसरे संभावित मंचों के माध्यम से, दान देकर, स्वेच्छा सहयोग प्रदान करके और ऑक्सीजन एवं दवाओं की व्यवस्था करके, आशा की एक किरण दिखाई है। हालाँकि ये प्रयास ज्यादातर शहरी क्षेत्रों तक सीमित थे, फिर भी ग्रामीण भारत में उनकी गैर-मौजूदगी में, ट्रिपल ए यानि आशा-आंगनवाड़ी-ANMs के साथ तालमेल से, पंचायतों, युवाओं और SHGs-VOs-CLFs ने, एक उत्प्रेरक की भूमिका निभाई।

कई दशकों से गाँवों में सक्रिय और ग्रामीण भारत को बदलने का अनोखा अनुभव-प्राप्त NGOs और CSOs का सहयोग और तालमेल, COVID-19 की तीसरी लहर की सामुदायिक तैयारी में मदद के लिए नए उभरे इस समूह के पोषण, तैयारी और मदद के लिए जरूरी है। यह जिला प्रशासन और पंचायती राज संस्थानों के नेतृत्व में समग्र मानवीय संकट प्रतिक्रिया के लिए, एक व्यवस्थित कार्यपद्धति के साथ साकार हो सकता है।

श्यामल सांतरा TRIF में ‘COVID-19 प्रतिक्रिया गतिविधियों’ और ‘एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट प्रोग्राम’ का नेतृत्व करते हैं। विचार व्यक्तिगत हैं। ईमेल: shyamal@trif.in