अवसरों का लाभ उठाते हुए आदिवासी महिलाएं बनी सूक्ष्म उद्यमी
सही सहयोग की बदौलत, खूंटी की महिलाएं चुनौतियों से निपटते हुए, उद्यमी के रूप में उभरी हैं। महामारी के समय प्रत्येक महिला का सूक्ष्म कारोबार उसके परिवार का आर्थिक आधार रहा है
सही सहयोग की बदौलत, खूंटी की महिलाएं चुनौतियों से निपटते हुए, उद्यमी के रूप में उभरी हैं। महामारी के समय प्रत्येक महिला का सूक्ष्म कारोबार उसके परिवार का आर्थिक आधार रहा है
हमारे ज्यादातर गाँव पिछड़े हुए हैं और अवसरों से वंचित हैं। एक के बाद एक भारतीय सरकारों द्वारा आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और ग्रामीण इलाकों में आजीविका के बेहतर अवसर लाने के लिए की गई कई पहलों के बावजूद ऐसा है।
हाल ही में, विमुद्रीकरण और COVID-19 महामारी ने ग्रामीण बेरोजगारी में भारी वृद्धि की है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, ग्रामीण भारत में नौकरियों के हालात नवंबर, 2020 से विशेष रूप से अस्थिर रहे हैं, जिसमें जून 2021 में बेरोजगारी बढ़कर 8.75% हो गई, जबकि फरवरी, 2021 में यह 6.85% और जनवरी, 2021 में 5.8% थी।
विभिन्न चुनौतियों के बावजूद, सही प्रशिक्षण और सहयोग से, झारखंड के खूंटी जिले के अंदरूनी इलाकों में बहुत सी आदिवासी महिलाएं अपनी बाधाओं को पार कर रही हैं और सफल ग्रामीण उद्यमियों के रूप में उभर रही हैं।
‘लाख’ उद्यम
खूंटी जिले के कोयनारा गांव की 27 वर्षीय सुशाना गुरिया ने लाख बेचकर एक उद्यम स्थापित किया है। पहले उनके मुंडा किसान परिवार ने, अपनी 5 एकड़ जमीन पर लाख के लिए कुछ कुसुम (Ceylon oak/Schleichera trijuga) के पेड़ लगाए थे।
उनकी कृषि भूमि काफी हद तक अनुत्पादक होने के कारण, साल में तीन महीने ही खेती हो पाती थी, जब वे धान, काले चने और दाल चना उगाते थे। अन्यथा, उसका 7-सदस्यीय परिवार, जिसमें उसके दो बच्चे और पति शामिल हैं, उनकी खेत मजदूरी की कमाई पर निर्भर था। परिवार को 25,000 रुपये सालाना आमदनी पर जीवित रहना पड़ता था।
2017 में, गुरिया ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ नेचुरल रेजिन एंड गम्स (IINRG), रांची में अपने पड़ोस की 21 दूसरी महिलाओं के साथ लाख प्रोसेसिंग में एक सप्ताह का प्रशिक्षण लिया। तोरपा रूरल डेवलपमेंट सोसाइटी फॉर वीमेन (TRDSW) और एडेलगिव फाउंडेशन ने प्रशिक्षण की व्यवस्था की। इस जानकारी ने गुरिया के लिए एक पूरी नई दुनिया के दरवाजे खोल दिए। उन्हें लाख उत्पादन की तकनीकी समझ में आई।
लाख एक कठोर हो गई राल है, जो कुसुम या बेर (Indian jujube/Zizyphus mauritania) जैसे मेजबान पौधों के कोशिका-रस पर पलने वाले लाख के कीड़े द्वारा छोड़ा जाता है। कुसुमी लाख की बाजार में सबसे ज्यादा कीमत है, जिसके बाद बेर के पेड़ की बिहान लाख का स्थान है।
प्रशिक्षण ने सुशाना गुरिया को वैज्ञानिक तरीके से लाख की खेती करने, सही मेजबान पौधों का चयन करने, छंटाई के लिए सही तरीकों का उपयोग करने, छंटाई का सही समय चुनने, टीका लगाने, कटाई और स्क्रैपिंग का सही तरीका अपनाने के लिए तैयार किया। इससे यह सुनिश्चित हो गया कि वह लाख की सबसे अच्छी फसल ले सकती है, और बाजार में ऊंचे से ऊंचे दाम पा सकती है।
2018 में, गुरिया ने पारिवारिक भूमि पर तीन कुसुम और सात बेर के पेड़ और लगाए। पहले ही वर्ष में उसे आखिरी उपज से अच्छी आय हुई। गुरिया ने VillageSquare.in को बताया – “ग्रामीण बैंक से मिले 15,000 रुपये के एक छोटे से ऋण ने हमें नियमित आय के लिए कुसुम और बेर के ज्यादा पेड़ उगाने में मदद की।”
चार साल बाद, गुरिया का जीवन बेहतर हो गया है। अब उनके लाख के कारोबार में परिवार के सदस्य सक्रिय भूमिका निभाते हैं। वह अब बेर के 25 और कुसुम के 7 पेड़ लगाती हैं और साल में दो बार कमाई करती हैं, क्योंकि कुसुमी लाख की कटाई जनवरी-फरवरी में की जाती है, जबकि बिहान लाख की कटाई जून-जुलाई में की जाती है। उन्होंने पिछले तीन वर्षों में अपने लाख कारोबार से 3,00,000 रुपये से ज्यादा की कमाई की है।
चलते-फिरते सब्जी की बिक्री
क्रिस्टीना हेरेंज (25) दियाकेल पंचायत के पतरायूर गांव के मुंडा आदिवासी परिवार से संबंध रखती हैं। उनके पति, दीपक टोपनो एक बढ़ई हैं, जो कुछ समय ऑटो भी चलाते हैं। उनका 10 सदस्यीय संयुक्त परिवार है, जिसमें उनके बच्चे भी शामिल हैं।
हेरेन्ज के पिता चावल और गेहूं की प्रोसेसिंग के लिए एक मिनी-मिल चलाते हैं। उनकी मां और परिवार के अन्य सदस्य, खेत मजदूर के रूप में काम करते हैं। लेकिन उन सभी के काम मौसमी प्रकृति के हैं और इसलिए नियमित आय की गारंटी नहीं है।
अपने स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) से एक छोटा सा ऋण लेकर, और TRDSW द्वारा प्रदान किए गए उद्यमिता विकास और सूक्ष्म-व्यवसाय कौशल प्रशिक्षण का उपयोग करते हुए, हेरेंज ने पतरायूर बाजार में एक छोटा भोजनालय शुरू किया। वह बाजार के दिनों में भोजनालय चलाती थी, जो सप्ताह में दो दिन लगता था। फिर उसने एक कमरा किराए पर लिया और किराने का सामान रख लिया।
अपने भोजनालय से वह न केवल बाजार आने वालों को, बल्कि आसपास के स्कूली बच्चों को भी भोजन उपलब्ध कराती थी। लेकिन महामारी के कारण सरकारी आदेशों के अंतर्गत स्कूल और बाजार बंद होने के कारण, इक्का-दुक्का ग्राहक ही रह गए। मजबूरन हेरेन्ज को भोजनालय बंद करना पड़ा। उनके पति की आय में भी गिरावट आ गई, क्योंकि ऑटो में जाने के लिए शायद ही कोई यात्री आ रहा था, जबकि बढ़ईगीरी के काम की मांग भी कम हो गई।
लेकिन हार मानने की बजाय, हेरेंज ने अपने स्वयं सहायता समूह से 3,000 रुपये और उधार लिए और सब्जियां बेचना शुरू कर दिया। वह आसपास के गांवों से सब्जियां खरीदती और सुबह 8 से 11 बजे के बीच स्थानीय बाजार में बेच देती थी। जब लॉकडाउन में थोड़ी ढील मिली, तो वह अपने दोपहिया वाहन से आस-पड़ोस में घूम-घूम कर सब्जी बेचने लगी।
वह बुधवार को जलथंडा बाजार में, शुक्रवार को दोरमा में और रविवार एवं गुरुवार को जमहर के बाजार में सब्जियां बेचती थी। हेरेंज अब लगभग 15,000 रुपये महीना कमाती हैं। इससे उनके परिवार के रहन सहन में काफी सुधार हुआ है, जिन्होंने अपनी रिहाईश एक केंद्रीय स्थान पर कर ली है। महामारी से मुक्त होने के बाद, वह अपने भोजनालय को भी फिर से खोलने के लिए उत्सुक है।
मांग पूरा करने के लिए मास्क बनाना
खूंटी जिले के रानिया ब्लॉक के अंबाटोली गांव की 45 वर्षीय जुबलिना कंदुलना के लिए, अपने पति विमल कंदुलना और परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ, परिवार की थोड़ी सी जमीन से मुश्किल से ही गुजारे लायक मिल पाता था।
अपनी स्थिति में सुधार करने को उत्सुक, कंदुलना ने TRDSW उद्यमिता विकास कार्यक्रम में दाखिला लिया और अपनी आय बढ़ाने के लिए सिलाई सीखी। सिलाई के उनके सूक्ष्म कारोबार से उन्हें प्रतिदिन 300-400 रुपये की आय हुई। महामारी के कारण उन्हें मजबूरन दुकान बंद करनी पड़ी।
ऐसे समय में TRDSW के उनके मार्गदर्शक आगे आए। सरकार ने जरूरी रूप से मास्क पहनने के निर्देश जारी किए थे। लेकिन अंबाटोली गांव और आसपास के इलाकों में मास्क उपलब्ध नहीं थे। मौके का फायदा उठाते हुए, उनके मार्गदर्शकों ने उन्हें मास्क बनाना शुरू करने की सलाह दी।
कंदुलना के लिए बचे हुए कपड़ों से सिले हुए मास्क की शुरुआती खेप को बेचना मुश्किल था, क्योंकि समुदाय के लिए COVID-19 अभी तक खतरा नहीं बना था। लेकिन जागरूकता अभियान के चलते, उसके मास्क जल्द ही 20 रुपये प्रति मास्क के हिसाब से बिक गए, जिससे उन्हें 400 रुपये की कमाई हुई। जैसे जैसे मांग बढ़ी, उन्होंने गांवों और आस-पड़ोस में बेचने के लिए प्रति दिन 50 से 100 मास्क की सिलाई की। जल्द ही, उसके परिवार के सभी छह सदस्यों को मास्क की सिलाई के काम में लगना पड़ा।
महामारी के समय में कंदुलना और उनके पति ने, रानिया ब्लॉक के 30 गांवों में अब तक, रानिया की पहचान जंगल के इलाकों से होते हुए, पैदल और साइकिल से लगभग 12,000 दोबारा इस्तेमाल हो सकने वाले कपड़े के मास्क बेचे हैं। वह 20,000 रुपये महीना कमाने में सक्षम हो गई है। मास्क की मांग का पूरा फायदा उठाते हुए, उसने भी गुरिया और हेरेंज की तरह अवसर का लाभ उठाया है।
रीना मुखर्जी पुणे स्थित पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
अपनी जड़ों की ओर लौटते हुए, तमिलनाडु के शिक्षित युवाओं ने अपनी पैतृक भूमि का आधुनिकीकरण करके और इज़राइली कृषि तकनीक का उपयोग करके कृषि उत्पादन को कई गुना बढ़ा दिया है।
पोषण सखी या पोषण मित्र के रूप में प्रशिक्षित महिलाएं ग्रामीण महिलाओं, विशेषकर गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को पौष्टिक भोजन खाने और एनीमिया और कम वजन वाले प्रसव पर काबू पाने के लिए सलाह और मदद करती हैं।
ओडिशा में, जहां बड़ी संख्या में ग्रामीण घरों में नहाने के लिए बंद जगह की कमी है, बाथरूम के निर्माण और पाइप से पानी की आपूर्ति से महिलाओं को खुले में नहाने से बचने में मदद मिलती है।