विशेष लेख
ग्रामीण भारत में हैंडलूम क्या केवल गरीबी बुनने में सक्षम हैं?
हमें इस बात पर विचार करने की जरूरत है, कि जो कभी ख़ुशियाँ, संस्कृति और आय बुनता था, वो हैंडलूम (हथकरघा) क्यों आज केवल गरीबी बुनता है? यदि कुछेक बाहरी तत्वों को छोड़ दें, तो यह क्यों हमारे ग्रामीण लोगों की आजीविका को बनाए रखने में असमर्थ है?
आधार की अनिवार्यता बनी कल्याण योजनाओं की पहुंच में बाधक
सरकारी योजनाओं के फर्जी लाभार्थियों को बाहर करने के उद्देश्य से, ‘आधार’ को राशन कार्ड और बैंक खातों के साथ जोड़ने से, लॉकडाउन के दौरान बहुत से लोगों को बेहद जरूरी प्रावधानों से वंचित कर दिया है
लॉकडाउन से, खानाबदोश (घुमन्तु) चरवाहों के रास्तों में आई, नई कठिनाइयाँ
ग्रीष्मकालीन चरागाहों की ओर प्रवास और संयोगवश पहले लॉकडाउन के उसी समय होने और आवाजाही पर भारी प्रतिबंधों के कारण, चरवाहों को भेदभाव के अलावा, चरागाहों, पानी और चारे का अभाव झेलना पड़ा
थार रेगिस्तान की महिला कारीगरों ने, कशीदाकारी के माध्यम से मुसीबतों से पाया छुटकारा
1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तान से विस्थापन की परवाह किए बिना और अब निर्दयी थार रेगिस्तान के बीकानेर जिले में रहने वाली महिलाओं ने, गरिमापूर्ण जीवन यापन के लिए पारम्परिक कशीदाकारी के अपने कौशल का उपयोग किया