तमिलनाडु की सित्तिलिंगी घाटी दूरदराज़ होने के बावजूद, यहां की एक बड़ी आबादी रोजगार के लिए पलायन करती है। इस तथ्य ने अपने को सुरक्षित रखने के लिए, सक्रिय पंचायत नेतृत्व को समुदाय को एकजुट करने के लिए प्रेरित किया
धर्मपुरी जिले का हिस्सा होने के बावजूद, कलवारायण और सिट्टेरी पहाड़ियों के बीच स्थित एक घाटी होने के कारण, सित्तिलिंगी इसके बाकी हिस्सों से काफी कटा हुआ है। सीमित संपर्क के चलते, घाटी कोरोनोवायरस तेज प्रसार से बची हुई प्रतीत होगी।
लेकिन
मानसून के फेल होने के कारण किसान आदिवासियों को आजीविका की तलाश में मजबूरन
तमिलनाडु और पड़ोसी राज्य केरल के शहरों और कस्बों में पलायन करना पड़ता है। कुछ
बेंगलुरु और मुंबई जाते हैं। वापिस लौटते प्रवासियों के साथ वायरस के आने के
संभावित जोखिम को देखते हुए, सित्तिलिंगी पंचायत ने कई एहतियाती उपाय किए हैं।
जहां
शहरों में इस महामारी से बचने के एहतियाती उपाय अधिकतर आत्म-प्रेरित हैं, सित्तिलिंगी
घाटी में, यहां के सक्रिय पंचायत नेतृत्व ने एक व्यवस्थित
योजना के माध्यम से, सुरक्षा के लिए समुदाय को एकजुट (लामबंद)
कर दिया है।
योजना
बनाने के लिए बैठक
सितालिंगि
पंचायत के प्रशासनिक क्षेत्र में 24 गाँव हैं। यहां की लगभग 15,000 की आबादी में मलयवासी जनजाति का बहुमत है। राजस्थान और गुजरात के खानाबदोश
लम्बाड़ी आदिवासी भी बहुत पहले यहाँ के ‘थांडा’ कहे जाने वाले गांवों में आकर बस गए थे।
एहतियात
की दिशा में पहले कदम के रूप में, मधेश्वरी, जिन्होंने जनवरी में
पंचायत अध्यक्ष के रूप में शपथ ली थी, ने एक बैठक बुलाई।
इस बैठक में पंचायत सदस्यों और ग्राम प्रशासनिक अधिकारियों के साथ-साथ, सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की एक टीम जो दो साल पहले बनी थी और 1992 से घाटी और उसके आसपास के क्षेत्र की चिकित्सा जरूरतों को पूरा करती आई आदिवासी स्वास्थ्य पहल के अंतर्गत बने आदिवासी अस्पताल की एक टीम ने भाग लिया।
पंचायत की अध्यक्ष मधेश्वरी ने villagesquare.in को बताया – “हमने ग्रामीणों तक संदेश पहुँचाने, सरकार के निर्देशों का पालन करने, ग्रामीणों और लौटते प्रवासियों के द्वारा एहतियाती उपाय करने के बारे में लोगों को सूचित करने, आदि की योजना तैयार की।”
जागरूकता
अभियान
जब सरकार
ने 22
मार्च को जनता कर्फ्यू की घोषणा की, तो पंचायत
सदस्यों ने ग्रामीणों तक घोषणा की जानकारी पहुँचाने के उद्देश्य से शहर से मुनादी
(ढिंढोरा) करने वालों की टीम बुलाई। मुनादी करने वालों ने ढोल बजाते हुए लोगों को
घर पर ही रहने की अपील की।
एके थांडा गांव के बलीमशा ने VillageSquare.in को बताया – “जब लॉकडाउन की घोषणा की गई, युवा स्वयंसेवक मिनी वैन में आए और लाउडस्पीकर पर हमें लॉकडाउन का कारण बताया। उन्होंने विस्तार से बताया कि वायरस कैसे फैलता है और हमें क्या सावधानियां बरतनी चाहिए।”
बलीमशा ने
कहा –
“आदिवासी अस्पताल की नर्सें हमारे गाँवों में मरीजों के बारे में
जानकारी लेने क लिए आमतौर पर आती हैं; और कोरोनोवायरस के
बारे में विस्तृत जानकारी देने के लिए भी समय लगाती हैं।
अध्यक्ष
बनने से पहले मधेश्वरी का आदिवासी अस्पताल में नर्स के रूप में 20 से
अधिक वर्षों का अनुभव था, इस तथ्य का संक्रमण के बारे में
ग्रामवासियों की भ्रांतियों को दूर करने और आवश्यकता होने पर उन्हें परामर्श देने
में लाभ प्राप्त हुआ।
एहतियाती
उपाय
स्वास्थ्य-निरीक्षक
की देखरेख में, पंचायत सदस्यों ने उन गलियों और राशन की दुकान और
पानी के पाइपों जैसे सार्वजनिक स्थानों को संक्रमण-मुक्त करने के लिए छिड़काव किया,
जहां गांववासी आमतौर पर इकट्ठा होते हैं। एक व्यक्ति से दूसरे की
दूरी सुनिश्चित करने के लिए इन स्थानों पर लाइनें खींची गईं।
धर्मपुरी जिले के उप-कलेक्टर, प्रताप एम., जिन्होंने 21 दिन की तालाबंदी खत्म होने से कुछ दिन पहले घाटी का दौरा किया था, ने बताया कि सित्तिलिंगी पंचायत में नौ वार्ड हैं। उन्होंने VillageSquare.in को बताया – “प्रत्येक वार्ड को हर तीसरे दिन संक्रमण-रहित किया जाता है।”
प्रत्येक
गाँव का एक लोकप्रिय मोबाइल ऐप पर समूह बनाया गया। हर दिन, आवाज
या लिखित संदेश के माध्यम से ग्राम-प्रमुख, ग्रामवासियों को
एहतियाती उपायों का पालन करने हिदायत देते हुए, स्थिति और
रोकथाम के लिए किये जा रहे उपायों के बारे में सूचित करते हैं। इस समूह से
ग्रामवासियों को प्रवासियों से जुड़े मुद्दों या उनके बारे में प्रमुख तक तुरंत
सूचना पहुँचाने में सहायता मिली है।
राशन की
दुकान पर भीड़ से बचने के लिए, सामान वितरण से पहले दिन, सार्वजनिक
वितरण प्रणाली (पीडीएस) सेक्रेट्री टोकन जारी करता है, जिसपर
समूह के लिए निर्धारित समय लिखा रहता है। मधेश्वरी ने बताया – “हमने 10 चौकोर खाने बनाए हैं, ताकि
केवल 10 ग्रामवासी ही दुकान पर आ सकें। उसी के अनुसार हमने
समय के स्लॉट निर्धारित कर दिए। इन सभी कामों में ग्रामवासियों ने हमें पूरा सहयोग
किया।”
जब उन्हें
एक बार वायरस के बारे में पता चल गया, तो ग्रामवासियों ने गांव के प्रवेश-स्थल पर ही पानी
और साबुन की व्यवस्था कर दी, ताकि जो कोई भी अंदर आए,
वह पहले अपने हाथ धो सके। ऐसा इसलिए कि प्रवास के स्थानों से वहां
काम करने वाले ग्रामवासियों ने घर लौटना शुरू कर दिया था।
घर पर एकांतवास
(क्वारंटाइन)
पंचायत सदस्यों ने
ग्रामवासियों को घर पर ही रहने (क्वारंटाइन) के महत्व को समझाया, और
उन्हें स्पष्ट निर्देश दिए कि प्रवासियों के वापस आने पर उन्हें सूचित किया जाए।
लौटने वाले प्रवासियों का विवरण दर्ज किया गया। जागरूकता अभियान के द्वारा
ग्रामवासियों के मन से घर वापस आने वालों के बारे में आशंकाएं दूर करने में मदद
मिली। यदि किसी में भी COVID -19 के लक्षण दिखाई पड़े,
तो उन्हें धर्मपुरी मेडिकल कॉलेज अस्पताल ले जाया गया।
ग्रेसन आर., जो
चेन्नई के निकट एक उत्पादन ईकाई में सुपरवाइजर हैं, तमिलनाडु
में 24 तारीख की शाम से अंतर-जिला कर्फ़्यू को ध्यान में रखते
हुए, 24 तारीख की सुबह ही सित्तिलिंगी के लिए रवाना हुए।
उप-कलेक्टर के निर्देश के अनुसार, पंचायत सदस्यों ने लौटने
वाले प्रवासियों के घरों पर स्टिकर चिपका दिए।
ग्रेसन के अनुसार, उन्होंने
अपने घर पर लगे ‘घर के एकांतवास’ (होम
क्वारंटाइन) सम्बन्धी स्टीकर के महत्व को समझा और बुरा नहीं माना।
वेलनूर गांव में एक कंप्यूटर सेंटर चलाने वाले गोविंदन, जो सक्रिय तौर पर एक स्वयंसेवक के रूप में काम करते रहे हैं, ने VillageSquare.in को बताया – “जिन लोगों ने परिवारों के साथ पलायन किया था, वे काफी पहले लौट आए| केवल वो लोग, जो लॉरी ड्राइवर वगैरह के रूप में काम करते हैं देर से आए।” उनमें से अधिकतर ने अपनी एकांत की अवधि पूरी कर ली है।
खेत में अलगवास
एके थांडा गांव के
निवासी और पंचायत के उप-प्रधान, वेलायुतम पी. कहते हैं – “मेरे
गाँव की आबादी लगभग 1,000 है। करीब 450 प्रवासी, पुरुष और महिला दोनों, गांव में लौट आए।” एके थांडा गाँव के ही रवि,
जो बेंगलुरु में सब्जियां बेचते हैं, जैसे कुछ
लोग अपने बच्चों को साथ ले जाते हैं। आम तौर पर, एक परिवार
के एक या दो सदस्य ही काम के लिए पलायन करते हैं। बाकि लोग खेत संभालते हैं।
वेलायुतम ने VillageSquare.in को बताया – “हर खेत में एक शैड या एक झोपड़ी रहती है। इसलिए लौटने वाले प्रवासियों ने क्वारंटाइन की अवधि खेत के इन झोपड़ों में गुजारी। केवल कुछ को ही घर पर रहना पड़ा। हमने उन्हें खुद को एक कमरे या एक स्थान तक सीमित रखने और दूरी बनाए रखने का निर्देश दिया।”
एक दूरदराज स्थान
होने के कारण, ग्रामीणों को एकांतपूर्ण शांति की आदत है| गोविंदन कहते हैं – “जो बच्चे अपने माता-पिता के साथ
वापिस आए, वे भी खेत के झोपड़े में ही रहते थे| क्योंकि वे माता-पिता के साथ थे, इसलिए बच्चों के
लिए कोई दिक्कत नहीं थी।
मास्क उपलब्ध
कराना
पंचायत सदस्यों ने
अब मास्क को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है। घर से बाहर जाने वाले सभी लोगों को
मास्क पहनने के लिए कहा गया है। ग्रामवासियों से जो बन पड़ा, उन्होंने
आर्थिक योगदान दिया। इस योगदान राशि से पंचायत ने सफेद सूती कपड़ा खरीदा।
सित्तिलिंगी
आर्गेनिक फार्मर्स’ एसोसिएशन के संयोजक और पंचायत अध्यक्ष मधेश्वरी के
पति, मंजुनाथन के अनुसार – “मास्क
बनाना भी एक स्वैच्छिक प्रयास बन गया है। कुछ लोगों ने मास्क के लिए कपड़े की कटाई
करने की पेशकश की। कुछ ग्रामवासियों ने उनकी सिलाई शुरू कर दी।”
चौकसी बरतना
जैसा कि
उप-कलेक्टर प्रताप ने बताया है, धर्मपुरी जिले में कोई संक्रमण का मामला नहीं हैं।
फिर भी, जिला और पंचायत प्रशासन इसमें किसी प्रकार की ढील
नहीं देना चाहते हैं। मधेश्वरी ने कहा – “मैं अपने काम
के बारे में अपडेट करने और एहतियाती कदमों को जारी रखने की जरूरत के बारे में
वॉइस-मैसेज भेजती रहती हूँ।”
प्रताप ने
बताया कि वे सुनिश्चित करते हैं कि ग्रामवासियों की बुनियादी जरूरतों, जैसे
किराने का सामान आदि, की आपूर्ति हो। यह सुनिश्चित करने के
लिए, कि एहतियाती उपायों का पालन हो, उन्होंने
ऊर कौंदर कहे जाने वाले ग्राम-प्रधानों के साथ एक बैठक की, क्योंकि
इन गैर-निर्वाचित नेताओं की सामाजिक प्रतिष्ठा होती है और गांव के लोग लोग उनकी बात सुनते हैं।
कुछ प्रवासी, जो देर से वापस आए, वे अभी भी घर पर अलगवास (क्वारंटाइन) में हैं। आदिवासी हॉस्पिटल के रेजी जॉर्ज ने VillageSquare.in को बताया – “कुछ लोग खरीदारी के लिए आस-पास के गैर-आदिवासी गांवों में जाते हैं। इसलिए, हमें महीने के अंत तक सतर्कता रखनी होगी।” अन्य जगहों पर मामलों की संख्या बढ़ने के साथ, पंचायत और स्वयंसेवक दल लगातार चौकन्ने बने रहते हैं।
जेन्सी सैमुएल एक सिविल इंजीनियर और पत्रकार हैं और
चेन्नई में रहते हैं| विचार व्यक्तिगत हैं।
अपनी जड़ों की ओर लौटते हुए, तमिलनाडु के शिक्षित युवाओं ने अपनी पैतृक भूमि का आधुनिकीकरण करके और इज़राइली कृषि तकनीक का उपयोग करके कृषि उत्पादन को कई गुना बढ़ा दिया है।
पोषण सखी या पोषण मित्र के रूप में प्रशिक्षित महिलाएं ग्रामीण महिलाओं, विशेषकर गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को पौष्टिक भोजन खाने और एनीमिया और कम वजन वाले प्रसव पर काबू पाने के लिए सलाह और मदद करती हैं।
ओडिशा में, जहां बड़ी संख्या में ग्रामीण घरों में नहाने के लिए बंद जगह की कमी है, बाथरूम के निर्माण और पाइप से पानी की आपूर्ति से महिलाओं को खुले में नहाने से बचने में मदद मिलती है।