सुविधाओं के अभाव ने गांवों में COVID-19 के निदान और उपचार को बाधित किया

कालाहांडी, ओडिशा

एक अपर्याप्त ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था, कोरोनावायरस के प्रसार के बारे में जागरूकता की कमी और उस पर घर पर अलगाव में कठिनाई के कारण ओडिशा में संक्रमणों की संख्या में वृद्धि हुई।

कालाहांडी जिले के मदनपुर रामपुर प्रशासनिक ब्लॉक के अलतारा गांव के बाल्मीकि मांझी (39) को जब COVID के खास लक्षण, खांसी, बुखार और शरीर में दर्द विकसित हुए, तो वह आरटी-पीसीआर परीक्षण के लिए पास के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) गए। .

एक गैर सरकारी संगठन में एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में, ग्रामीणों में COVID-19 के बारे में जागरूकता पैदा करते हुए, वह लक्षणों के बारे में जानते थे और इसलिए उन्होंने तुरंत खुद को अलग कर लिया। ‘स्वैब-टेस्ट’ के सात दिन बाद, उन्हें परीक्षण रिपोर्ट मिली, जिसमें उन्हें पॉजिटिव बताया गया था।

जब उनकी ‘ऑक्सीजन-सेचुरेशन’ गिरी और उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगी, तो परिवार उन्हें भवानीपटना जिला अस्पताल ले गए, जहां से डॉक्टरों ने उन्हें कोविड देखभाल केंद्र भेज दिया। सामुदायिक कार्यकर्ता और एनजीओ में मांझी के सहयोगी, शरत चंद्र भोई ने कहा – “इससे पहले कि उन्हें उचित इलाज मिल पाता, उन्होंने दम तोड़ दिया।”

भोई भी ग्रामीणों को COVID-19 के बारे में जागरूक करते हैं और मई के पहले हफ्ते तक, अक्सर मदनपुर रामपुर ब्लॉक के गांवों का दौरा करते हैं। उनका कहना था – “बाल्मीकि की मृत्यु के बाद, मैं डर गया और गांवों का दौरा करना बंद कर दिया, क्योंकि दूसरी लहर में COVID ​​​​-19 के मामले ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा घातक थे और बढ़ रहे हैं,” साथ ही उन्होंने जोड़ा, कि इन दिनों वे ऑनलाइन बैठकें करते हैं, जहां ग्रामीण शारीरिक दूरी बनाए हुए उनकी बातें सुनते हैं।

बढ़ता संक्रमण

इसी ब्लॉक के एक सुदूर आदिवासी गांव मोहनगिरी में, मई के पहले हफ्ते में कोविड-19 से 14 लोगों की मौत हो गई। ज्यादातर आदिवासी और वापिस आए प्रवासियों की 20 दिनों के अंदर मृत्यु हो गई। संक्रमण से पीड़ित बहुत से लोग घर पर अलग रह रहे हैं।

भोई ने VillageSquare.in को बताया – “जो लोग जागरूक हैं, वे परीक्षण करा रहे हैं, जबकि दूसरे इसे आम बुखार और खांसी समझ कर इसे अनदेखा करते हैं। लेकिन सबसे दयनीय बात यह है कि लक्षणों वाले कुछ लोग इसे ग्रामवासियों द्वारा बहिष्कार के डर से छिपाते हैं।”

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर जाने वालों को एक अलग ही स्थिति का सामना करना पड़ता है। डांगाबहल गांव के रत्नाकर मांझी (38), मदनपुर रामपुर ब्लॉक के CHC गए, जहां करीब 80 लोगों की भीड़ आरटी-पीसीआर जांच का इंतजार कर रही थी। रत्नाकर मांझी कहते हैं -“20 लोगों का परीक्षण करने के बाद, उन्होंने हमें अगले दिन आने के लिए कहा। जब हमने विरोध किया तो उन्होंने सभी के स्वैब ले लिए; उनमें से 50 व्यक्ति संक्रमित पाए गए।”

कुछ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में, अपर्याप्त परीक्षण किट का हवाला देकर लोगों को वापिस भेज दिया गया (फोटो – शरत चंद्र भोई के सौजन्य से)

47% जाँच संक्रमण दर (TPR) के साथ कालाहांडी जिला, राज्य के उच्च TPR वाले जिलों में से एक था। लेकिन रत्नाकर मांझी ने आरोप लगाया – “ज्यादातर CHC में, चिकित्सा अधिकारी परीक्षण किट की कमी का हवाला देते हुए ग्रामीणों का परीक्षण नहीं करते। यदि वे ज्यादा परीक्षण करते हैं, तो संख्या बढ़ जाएगी।”

रोगियों का अलगाव

ग्रामीण क्षेत्रों में, एक और समस्या COVID-19 रोगियों को घर में अलगाव की सलाह देने की है। गांवों में लगभग 70% लोग एक कमरे के घरों में रहते हैं, जिन्हें राज्य या केंद्र सरकार की योजनाओं, जैसे इंदिरा आवास योजना या बीजू पक्का घर योजना से वित्तीय सहायता से बनाया गया है।

दूसरे लोग छप्पर वाले छोटे घरों में रहते हैं। ओडिशा के समुदायों में समता का प्रसार करने वाली, एक मेडिकल प्रैक्टिशनर और सिटीजन कलेक्टिव फॉर पब्लिक हेल्थ नेटवर्क (CCPHN) की सदस्य, बिजयलक्ष्मी बिस्वाल का कहना था – “इन छोटे घरों में जहां 4 या 5 लोग एक ही छत के नीचे रहते हैं, घर में अलगाव के दिशानिर्देशों का पालन कैसे किया जाएगा?”

बिस्वाल ने VillageSquare.in को बताया – “इसके अलावा, जिन संक्रमित लोगों को घर पर अलग रहने की सलाह दी जाती है, वे जानते हैं कि उन्हें घर से बाहर कदम नहीं रखने के लिए कहा गया था। लेकिन इस बात की कोई जागरूकता नहीं है, कि यदि वे घर में मास्क नहीं पहनेंगे, तो वे परिवार के अन्य सदस्यों को संक्रमित कर देंगे।”

अलगाव-केंद्र

बिस्वाल ने कहा – “ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं अलगाव के दिशानिर्देशों का पालन करने में असमर्थ हैं, क्योंकि उन्हें घर के सभी काम करने होते हैं।” इस समस्या को हल करने और वायरस के प्रसार को रोकने के लिए, गांवों में अस्थायी चिकित्सा केंद्रों (TMC) को फिर से खोलने की तत्काल जरूरत है, ताकि उनका उपयोग अलगाव (क्वारंटाइन) केंद्रों के रूप में किया जा सके।

पिछले साल राज्य ने राज्य भर में सभी 6,798 पंचायतों को 5-5 लाख रुपये दिए थे, ताकि अन्य राज्यों से ओडिशा आने वाले लोगों के अलगाव के लिए,TMC स्थापित किया जा सकें और कोरोनोवायरस संक्रमण के लक्षण वाले लोगों की व्यवस्था की जा सके।

ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित 16,815 TMC अब बंद हो चुके हैं। भोई ने कहा, “यदि खोले जाते हैं, तो ये TMC घर पर अलगाव के मुद्दे को हल कर देंगे,” साथ उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में संक्रमित व्यक्तियों के परिवार के दूसरे सदस्य गांव में घूमते रहते हैं, बिना यह समझे कि वे दूसरों को संक्रमित कर सकते हैं।

रिपोर्ट में विलम्ब 

बिस्वाल ने कहा कि आरटी-पीसीआर जांच के नतीजे आने में विलम्ब से ग्रामीण इलाकों में भी परेशानी होती है।  उन्होंने अपने एक मरीज का उदाहरण दिया, जिसे वे टेली-परामर्श प्रदान कर रही थी। थुआमुल रामपुर ब्लॉक के प्रदीप कुमार साहू (45) ने आरटी-पीसीआर जाँच के 12 दिन बाद मिली रिपोर्ट में संक्रमित पाए जाने पर उन्हें फोन किया।

तब तक वह पहले ही परिवार के आठ सदस्यों को संक्रमित कर चुका था; उसके बड़े भाई (60) और छोटे भाई अनिल (32) की हालत गंभीर बनी हुई है। जब उन्होंने बिस्वाल से परामर्श किया, तो बिना कोई दवा लिए 12 दिन बीत चुके थे।

सुविधाओं के अभाव में जाँच और इलाज में देरी से, संक्रमण मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है (फोटो – शरत चंद्र भोई के सौजन्य से)

बिस्वाल VillageSquare.in को बताती हैं – “ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को लगता है कि यदि आप संक्रमित पाए जाते हैं, तो आपको दवाओं की जरूरत है और भोगौलिक स्थिति के चलते, आरटी-पीसीआर की रिपोर्ट परीक्षण के 6-10 दिनों के बाद उन तक पहुंचती है। इससे इलाज में देरी होती है और स्थिति गंभीर होने पर अस्पतालों में भर्ती कराने में बाधा आती है।”

जमीनी स्तर का मजबूतीकरण

ग्रामीण स्तर पर काम करने और ग्रामीण क्षेत्रों में मरीजों को टेली-परामर्श प्रदान करने वाले संगठन, CCPHN ने ग्रामीण क्षेत्रों में कोविड-19 की स्थिति से निपटने के लिए राज्य सरकार को कुछ सुझाव दिए हैं। टीम ने पाया कि ज्यादातर गांवों में एक पल्स ऑक्सीमीटर था और लगभग 100 थर्मामीटर 700 से 1,000 लोगों द्वारा साझा किए जा रहे थे।

बिस्वाल कहती हैं – “हमने सुझाव दिया कि अग्रणी पंक्ति के कार्यकर्ताओं को पल्स ऑक्सीमीटर और थर्मामीटर खरीदने के लिए धन उपलब्ध कराया जाना चाहिए। लोगों को घर में मास्क पहनने, पल्स ऑक्सीमीटर का उपयोग करने और ऑक्सीजन का स्तर गिरने पर जिला हेल्पलाइन पर कॉल करने का निर्देश जमीनी स्तर के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को करना चाहिए। आशा और एएनएम को थर्मल स्क्रीनिंग से लक्षणों का पता चलने पर, दवाएं उपलब्ध कराने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।”

ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ते मामलों पर, नागरिक समाज संगठनों के एक नेटवर्क, जन स्वास्थ्य अभियान के राष्ट्रीय संयुक्त संयोजक, गौरंग महापात्र ने कहा – “लॉकडाउन में लोग घर के अंदर रहते हैं, ताकि अग्रणी कार्यकर्ताओं के लिए घर-घर जा कर व्यक्तिगत स्क्रीनिंग करना आसान हो सके। यह नियम ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद नहीं है।”

महापात्र ने VillageSquare.in को बताया – “जिन ग्रामीणों में लक्षण होते हैं, उनकी कोई जांच नहीं होती, घर से प्रशिक्षण के लिए कोई स्वैब नहीं लिया जाता और जो संक्रमित हैं, उन्हें क्वारंटाइन केंद्रों में नहीं भेजा जाता। इसके अलावा COVID-19 के बारे में कोई नियमित जागरूकता कार्यक्रम नहीं है। इस वजह से हमें ग्रामीण क्षेत्रों से, COVID-19 रोगियों का वास्तविक डेटा नहीं मिल रहा है।”

स्वास्थ्य के लिए बुनियादी सुविधाएं

ओडिशा में, जहां कटक और खोरधा जिलों में कुल 1,700 गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) बिस्तर उपलब्ध हैं, वहीं दूसरे जिलों में यह संख्या बहुत कम है। नबरंगपुर और देवगढ़ जिलों में जिला अस्पतालों में कोई आईसीयू बेड नहीं है, जबकि सुबरनापुर और भद्रक जिलों में आईसीयू बेड की संख्या क्रमश: छह और चार है। 

महामारी की आपात स्थिति में मांग को पूरा करने के लिए, राज्य सरकार ने जिलों में समर्पित COVID देखभाल केंद्र खोले हैं। नाम न छापने के अनुरोध के साथ, राज्य के स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी बताते हैं – “सोनपुर (सुबरनापुर) जैसे जिले में, जहां सरकार ने 20 आईसीयू बेड और वेंटिलेटर के साथ एक COVID देखभाल केंद्र खोला है, इन वेंटिलेटर को चलाने के लिए कोई ऑपरेटर नहीं है।” दूसरे जिलों में भी हालात कुछ-कुछ ऐसे ही है।

ज्यादातर पश्चिमी जिलों में, जहां TPR (टेस्ट संक्रमण दर) अधिक है, दूरदराज के गांवों से मरीजों को कोविड अस्पतालों में लाने के लिए ऑक्सीजन एम्बुलेंस का अभाव है। महापात्र कहते हैं – “ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था की लंबे समय तक अनदेखी से, गांवों में मरीजों की संख्या बढ़ने पर समस्या पैदा हो जाएगी। यदि स्वास्थ्य व्यवस्था सुविधाएं प्रदान करने के लिए तैयार होती, तो हम इस महामारी के समय बेहतर स्वास्थ्य सेवा प्रदान कर सकते थे।”

कालाहांडी में सरकारी अस्पतालों में आईसीयू बेड नहीं मिल पाने पर, ग्रामीणों के निजी अस्पतालों में जाने के उदाहरण हैं। भोई ने कहा – “मदनपुर रामपुर ब्लॉक में, कुछ लोगों ने निजी अस्पतालों में अपने परिवार के सदस्यों के इलाज के लिए सोना और जमीन गिरवी रखकर साहूकारों से कर्ज लिया है।”

ग्रामीण क्षेत्रों में, एक और मुद्दा यह है कि शहरी क्षेत्रों की तरह ज्यादातर लोगों की नियमित स्वास्थ्य जांच नहीं होती है। दूर-दराज के गांवों के लोगों को पता नहीं है कि वे मधुमेह, अस्थमा, रक्तचाप आदि जैसी किसी सह-रुग्णता (अतिरिक्त बिमारी) से पीड़ित हैं या नहीं।

महापात्र कहते हैं – “किसी भी मरीज का कोविड-19 के लिए इलाज करने से पहले, डॉक्टरों को दूसरी पहले से मौजूद बिमारियों का परीक्षण करना पड़ता है, अन्यथा रोगी और परिवारों के लिए समस्या पैदा करने वाला गलत इलाज हो जाएगा।” इस बीच, प्रदीप साहू के छोटे भाई अनिल ने भी ऑक्सीजन का स्तर कम होने के कारण दम तोड़ दिया। राज्य की COVID-19 मृत्यु सूची में एक संख्या को जोड़ते हुए, इलाज से पहले ही उन्होंने दम तोड़ दिया।

अनुरोध पर कुछ नाम बदल दिए गए हैं।

राखी घोष भुवनेश्वर स्थित पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं। ईमेल: rakhighosh@rediffmail.com