पके हुए भोजन के वितरण ने उन कमजोर जनजातियों, विकलांग और अन्य जरूरतमंद लोगों को सहारा प्रदान किया, जिनके पास अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए संसाधन नहीं थे।
आर्थिक मंदी और रोजगार चले जाने के परिणामस्वरूप, न केवल शहरी क्षेत्रों में, बल्कि देश के भीतरी इलाकों में भी व्यापक खाद्य और पोषण संबंधी असुरक्षा पैदा हुई है। विशेषज्ञों का दावा है कि इससे आदिवासियों और दलितों जैसे हाशिए के लोगों में पोषण की स्थिति और खराब हो सकती है। महामारी के चलते आए आर्थिक संकट ने अनौपचारिक क्षेत्र के प्रवासी मजदूरों और विकलांग लोगों के लिए अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
विश्व बैंक के अनुमान से, महामारी के कारण दुनिया भर में लगभग 7.1 करोड़ लोग गहरी गरीबी में धकेल दिए जाएंगे। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘हम इस समय खाद्य आपातकाल का सामना कर रहे हैं’। विश्व खाद्य कार्यक्रम का अनुमान है कि आने वाले दिनों में, और 13 करोड़ लोग ‘खाद्य असुरक्षित’ श्रेणी में आ सकते हैं।
‘अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान’ द्वारा शुरू की गई ‘वैश्विक खाद्य नीति रिपोर्ट – 2021’ के अनुसार – “महामारी से पहले, तीन अरब लोग स्वस्थ-आहार का खर्च नहीं उठा सकते थे। इस समय महामारी के प्रभाव के कारण, 2020-2022 में लगभग 26.76 करोड़ और लोग इस सूची में शामिल होंगे।”
हालांकि भारत कोरोनावायरस संक्रमण के मामलों और मृत्यु दर की बढ़ती संख्या के दौर से गुजर रहा है, लेकिन कुछ नागरिक समाज संगठन COVID-19 के खिलाफ लड़ने के लिए, भोजन और जरूरी जानकारी प्रदान करके कमजोर समूहों की मदद करने के लिए आगे आए हैं।
वंचितों के लिए भोजन
कलिंगा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस (KISS) के सहयोग के लिए स्थापित एक गैर-लाभकारी संगठन, KISS फाउंडेशन महामारी के दौरान हाशिए पर रह रहे ओडिशा के लोगों को शिक्षित करने और उनके सशक्तिकरण के लिए, जरूरतमंदों की मदद करने में अग्रणी रहा है।
महामारी के दौरान बढ़ती खाद्य असुरक्षा से निपटने के लिए, युवाओं के नेतृत्व कौशल विकास में मदद करने वाले वैश्विक मंच, AIESEC के सहयोग से, फाउंडेशन सहायता प्रदान कर रहा है। भुवनेश्वर नगर निगम के मार्गदर्शन में काम करते हुए, यह ओडिशा के 15 जिलों में दिन में दो बार स्वच्छ पका हुआ भोजन वितरित कर रहा है।
जिन जिलों में फाउंडेशन भोजन के रूप में सहायता प्रदान करता है, उनमें अविकसित जिले रायगडा, कोरापुट, नबरंगपुर, मलकानगिरी, कालाहांडी और कंधमाल शामिल हैं। फाउंडेशन रोजाना 3,000 जरूरतमंदों को भोजन प्रदान करता है।
इस पहल ने आदिवासियों और दलितों सहित हाशिये पर रहने वाले लोगों को लाभान्वित किया है, क्योंकि फाउंडेशन विकलांग व्यक्तियों, एकल महिलाओं, महिला प्रधान परिवारों, प्रवासी श्रमिकों, आदिवासी छात्रों और बुजुर्गों को भोजन प्रदान करने पर विशेष ध्यान देता है।
कमजोरों को सहारा
मलकानगिरी कस्बे में रहने वाले, नकुल किरसानी (22), जो ‘विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों’ (PVTG) में से एक, बोंडा समुदाय से सम्बन्ध रखते हैं, कहते हैं – “मुझे दो सप्ताह से रोज दो बार भोजन मिल रहा है। भोजन में चावल, दाल, सब्जी और अंडा शामिल हैं।”
किरसानी की मां की हाल ही में मृत्यु हो गई, लेकिन लॉकडाउन के कारण वह मलकानगिरी जिले के खैरपुट प्रशासनिक ब्लॉक के अपने गृहनगर बोंडाघाटी नहीं जा पाए। जब उनकी थोड़ी सी बचत ख़त्म हो गई और मलकानगिरी में जीवित रहना एक संघर्ष बन गया, तो फाउंडेशन द्वारा वितरित भोजन ने उन्हें संभाला।
KISS की मल्कानगिरी जिले की समन्वयक, राम्या रंजन परिदा ने कहा – “हमने किरसनी जैसे कई छात्रों की पहचान की है, जो इस संकट का सामना करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस समय, हम रोज कम से कम 30 आदिवासी छात्रों, 50 बुजुर्ग लोगों और 20 विकलांग व्यक्तियों को मुफ्त पका हुआ भोजन प्रदान कर रहे हैं।”
मलकानगिरी के एक सामाजिक कार्यकर्ता, राजू आचारी उन कमजोर लोगों की पहचान करने में सक्रिय रूप से शामिल रहे हैं, जिन्हें बुनियादी जरूरतों के लिए सहयोग की जरूरत है। आचारी कहते हैं – “लोगों को स्वच्छ व्यवहार अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना काफी नहीं है। अगर वे भूखे हैं, तो हम वायरस पर कैसे जीत हासिल कर पाएंगे।”
पौष्टिक भोजन
ओडिशा के कंधमाल जिले में, KISS फाउंडेशन की जिला समन्वयक, भागीरथी सेठी, रोजाना 100 लोगों को पकाया भोजन वितरण का समन्वय कर रही हैं। सेठी का कहना था – “पौष्टिक भोजन तैयार करने में सफाई और स्वच्छता बनाए रखना और भोजन वितरित करते समय COVID-19 दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन हमारी मुख्य प्राथमिकता है।”
एक स्वयंसेवक और कंधमाल में मुफ्त भोजन के वितरण में मदद करने वाले, बिद्याधर प्रधान ने कहा – “इस बार अपने घर से बाहर निकलना जोखिम भरा है। वायरस दिखाई नहीं देता। ऐसे कमजोर लोग हैं, जिन्हें तत्काल मदद की जरूरत है। हम उन्हें छोड़ नहीं सकते। मुझे इस संकट के समय उनकी मदद करने में सक्षम होने पर गर्व का अहसास होता है।”
संकट से निपटने में ओडिशा का प्रदर्शन अच्छा रहा है। मिशन शक्ति के अंतर्गत छह लाख स्वयं सहायता समूहों की लगभग 70 लाख महिला सदस्य सामूहिक रूप से, सूखा राशन, किराने का सामान और सामुदायिक रसोई में पका हुए भोजन जैसी बुनियादी जरूरतें उपलब्ध कराके, जरूरतमंद लोगों की मदद करने के लिए काम कर रही हैं।
इस महामारी के समय रोज लगभग 45,000 लोगों को इन सामुदायिक रसोइयों के माध्यम से भोजन कराया जा रहा है। इन हालात में स्वयं सहायता समूहों, KISS फाउंडेशन और अन्य संगठनों के यह प्रयास, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में लाभार्थियों को आशा प्रदान करते हैं।
अभिजीत मोहंती दिल्ली-स्थित एक विकास पेशेवर हैं। उन्होंने भारत और कैमरून में मूल निवासी समुदायों के साथ बड़े पैमाने पर काम किया है। अपने विकास के काम के हिस्से के रूप में वह KISS के साथ जुड़े हुए हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
अपनी जड़ों की ओर लौटते हुए, तमिलनाडु के शिक्षित युवाओं ने अपनी पैतृक भूमि का आधुनिकीकरण करके और इज़राइली कृषि तकनीक का उपयोग करके कृषि उत्पादन को कई गुना बढ़ा दिया है।
पोषण सखी या पोषण मित्र के रूप में प्रशिक्षित महिलाएं ग्रामीण महिलाओं, विशेषकर गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को पौष्टिक भोजन खाने और एनीमिया और कम वजन वाले प्रसव पर काबू पाने के लिए सलाह और मदद करती हैं।
ओडिशा में, जहां बड़ी संख्या में ग्रामीण घरों में नहाने के लिए बंद जगह की कमी है, बाथरूम के निर्माण और पाइप से पानी की आपूर्ति से महिलाओं को खुले में नहाने से बचने में मदद मिलती है।