पारम्परिक पशुपालकों ने किया स्वदेशी नस्ल के ‘डांगी’ गोधन का संरक्षण

and

अपने पारम्परिक ज्ञान और वैज्ञानिकों के तकनीकी सहयोग को मिलाकर, महाराष्ट्र के पशुपालकों ने स्वदेशी नस्ल के ‘डांगी’ गाय का संरक्षण किया, जो अपनी मजबूत एवं सहनशील प्रकृति के लिए मशहूर है

डांगी नस्ल के देशी पशु नासिक, ठाणे और अहमदनगर जिलों के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं। ज्यादातर किसान डांगी गोधन को खेती के काम और दुग्ध पदार्थों के लिए पालते हैं। आमतौर पर एक किसान का पूरा परिवार पशुपालन में लगा रहता है।

2014 में, BAIF डेवलपमेंट रिसर्च फाउंडेशन (BAIF) ने डांगी सहित स्वदेशी नस्लों के संरक्षण और पुनरुद्धार की शुरुआत की। इसके लिए BAIF ने जिलों में पशुधन पर प्रारंभिक सर्वेक्षण सहित विभिन्न गतिविधियाँ कीं।

इन सर्वेक्षणों के माध्यम से, BAIF ने पशुओं की संख्या, प्रबंधन, स्वास्थ्य सेवाओं, पशु पालन में आने वाली बाधाओं और किसानों के परिवार के विवरण पर आंकड़े इकठ्ठा किए। पशुपालन के सर्वोत्तम विकास और आर्थिक लाभ के लिए चारा, टीकाकरण और आश्रय प्रबंधन पर विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए गए।

BAIF ने महाराष्ट्र जीन बैंक प्रोजेक्ट (MGBP) के माध्यम से संरक्षण का काम किया। इसका उद्देश्य पारम्परिक और वैज्ञानिक ज्ञान को मिलाकर और समुदाय को शामिल करके, महत्वपूर्ण स्वदेशी पशुधन नस्लों का संरक्षण करना था। BAIF पशुपालकों को आवश्यक वैज्ञानिक सहायता प्रदान करता है।

प्रजनन के लिए सांड पालना 

अहमदनगर जिले के अकोले प्रशासनिक ब्लॉक के कोकनवाड़ी गांव के अशोक सखाराम बेंदकुली के लिए डांगी पालना एक पारम्परिक पारिवारिक व्यवसाय है। इस समय, उनके परिवार के रेवड़ में गाय, बछड़े और बैल मिलाकर लगभग 150 जानवर हैं। बेंदकुली MGBP के अंतर्गत डांगी नस्ल के संरक्षकों में से एक थे।

बेंदकुली डांगी रेवड़ के प्रबंधन के अर्द्ध-गहन तरीके अपनाते हैं, और वे उन्हें खुले चरने देते हैं। वे बेहतर चरागाहों तक पहुँचने के लिए गर्मियों के महीनों में कोंकण क्षेत्र में भी प्रवास करते हैं। जानवरों की विशेष देखभाल उम्र और शरीर की जरूरत के अनुसार बदलती रहती है।

बेंदकुली ने प्रजनन के सांडों के लिए काले चने, सोयाबीन, चावल और गुड़ से एक विशेष आहार तैयार किया है। मक्का, बाजरा, लुसर्न, घास और धान-भूसे को खिलाकर सूखे और हरे चारे का अनुपात बनाए रखा जाता है। बछड़ों, खाद, दूध और खोये एवं घी जैसे दूध-उत्पादों की बिक्री से, उन्हें हर साल औसतन 4.5 लाख रूपए की कुल आय होती है।

बेंदकुली महाराष्ट्र जीन बैंक कार्यक्रम के अंतर्गत डांगी नस्ल के संरक्षकों में से एक थे। उन्होंने स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में तकनीकी मार्गदर्शन प्राप्त करने के अलावा, गुणवत्तापूर्ण प्रजनन और हरा चारा उत्पादन के बारे में सीखकर लाभ उठाया। बेहतर देखभाल से अच्छे और उत्पादक जानवरों का रेवड़ तैयार हुआ है, जो संरक्षण को आगे बढ़ाने में मदद करेगा।

पारम्परिक ज्ञान और वैज्ञानिक सहयोग से, अशोक सखाराम बेंदकुली डांगी पशुओं का एक उत्पादक रेवड़ तैयार करने में सक्षम हुए हैं (फोटो – BAIF के सौजन्य से)

बेंदकुली के परिवार को सांड पालने और सांड-चैंपियन प्रतियोगिताओं में भाग लेने का शौक है। बेंदकुली राजूर, घोटी, और खिरवीरे के डांगी उत्सव और कलास, राहुरी, नासिक, आदि की विभिन्न प्रदर्शनियों में भाग लेते हैं। आज तक, उनके सांडों को नौ बार ‘डांगी प्रजनन-सांड’ के रूप में चैंपियन पुरस्कार के लिए चुना गया है। नंद्या उनके चैंपियन प्रजनन सांडों में से एक हैं।

संतुलित आहार

अहमदनगर जिले की सह्याद्री पर्वतमाला में स्थित, कोंभालाणे गांव के भगवान संतू सतगीर, इलाके के डांगी प्रजनन करने वाले प्रमुख लोगों में से एक हैं। हालाँकि कृषि उनका मुख्य व्यवसाय है, लेकिन वे पशुपालन भी करते हैं। उसके पास 100 से ज्यादा डांगी पशु हैं, जिनसे परिवार की आय का एक बड़ा हिस्सा आता है।

सदगीर के पास डांगी पशुओं की बहला, पारा, मनारा और शेवारा नस्लें हैं। उन्हें बेहतरीन डांगी पशुओं की पहचान के बारे में गहरी जानकारी है। वह राजूर और खिरवीरे पशु प्रदर्शनियों में भाग लेते हैं और अपने डांगी पशुओं के लिए पहचान और प्रशंसा पाते हैं।

सदगीर नस्ल संरक्षण कार्यक्रम के सक्रिय किसान बन गए। उन्होंने MGBP विशेषज्ञों की सिफारिशों के अनुसार, अपने पशुगृह और प्रबंधन के तरीकों में सुधार किया। परियोजना का हिस्सा बनने से पहले, वह खुले में चराई से जानवर पालते थे, जिसके कारण उनका विकास और उत्पादन बहुत अच्छा नहीं होता था।

अब सदगीर अपने पशुओं के लिए संतुलित आहार का महत्व समझ गए हैं। उन्होंने चारे की उन्नत किस्मों की खेती शुरू कर दी है। उन्नत चारे की फसल उसे हरा और सूखा चारे का संतुलन प्रदान करने में मदद करती है, जिससे उसके पशुओं का सर्वोत्तम विकास होता है।

पशु स्वास्थ्य

दत्तू करभरी धोन्नार अहमदनगर जिले के अकोले ब्लॉक के समशेरपुर गांव में एक डांगी ब्रीडर हैं। वह एक पारम्परिक डांगी पशुपालक है और उनके पास 25 से ज्यादा बढ़िया नस्ल के डांगी जानवरों का रेवड़ है। वह हर साल राजूर और खिरवीरे के डांगी-उत्सव में भाग लेते हैं, और उनके जानवरों को पिछले 10 वर्षों से डांगी प्रजनन सांडों के लिए चैंपियन पुरस्कार मिल रहा है।

उन्हें कुछ मानदंडों के आधार पर जानवरों के चयन का गहरा ज्ञान है और इसलिए उनके सांड चैंपियनशिप जीतते हैं। उन्होंने समझाया कि डांगी जानवर मजबूत होते हैं और स्थानीय वातावरण के अनुकूल होते हैं, जबकि दूसरे जानवर ये सहन नहीं कर पाएंगे। पशुओं के चयन के लिए प्रमुख मानदंड हैं रूप, आकार, रंग, स्वभाव, मां और अन्य मादाओं के दूध की मात्रा।

अपने रेवड़ में आंतरिक प्रजनन (इनब्रीडिंग) से बचने के लिए, धोन्नार भी सांड अदला-बदली या बदले का पारम्परिक तरीका अपनाते हैं। डांगी रेवड़ के प्रबंधन का उनका तरीका अर्द्ध-गहन है, क्योंकि उनके पशु पूरा दिन खुली जमीन पर चरते हैं। घर पर वे उन्हें सूखे और हरे चारे के अलावा, कुछ अनाज भी खिलाते हैं।

कम खर्चों के कारण, वह सिर्फ एक गाय से घर की खपत के लिए दूध के अलावा, नियमित खाद, एक बछड़ा प्राप्त करते हैं। MGBP के अंतर्गत वह पिछले तीन वर्षों से कृत्रिम गर्भाधान सेवाएं प्राप्त कर रहे हैं। प्रजनन सेवाओं के अलावा, BAIF विशेषज्ञ पशु स्वास्थ्य और चारा उत्पादन में तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

उनकी सफलता की कहानी, ‘कृषि दर्शन’ टीवी कार्यक्रम में, समुदाय के नेतृत्व वाले डांगी पशु संरक्षण के बारे में प्रसारित की गई थी। गायों, नवजात बछड़ों और युवा बछड़ियों की उचित देखभाल के परिणामस्वरूप, अच्छे और उत्पादक पशुओं का एक रेवड़ बन गया है, जो भविष्य के नस्ल संरक्षण का भंडार हैं।

विट्ठल कौथले और संजय पाटिल BAIF से जुड़े हुए हैं। विचार व्यक्तिगत हैं। ईमेल: vitthal.kauthale@baif.org.in / sanjay.patil@baif.org.in