सौर पम्प से आय में हुई वृद्धि

सिंचाई के लिए लगातार बिजली के बिना, किसान उस भोजन का उत्पादन कैसे कर सकते हैं, जो हम खाते हैं? सौर ऊर्जा से चलने वाले पम्प अपनाकर किसान, आत्मनिर्भर और उपयोगी बनते हैं।

किसानों को प्रतिदिन कौन सी प्रमुख समस्या का सामना करना पड़ता है? बिजली का। या इसकी अनियमित सप्लाई का, जिससे किसान को अपनी फसलों की सिंचाई के लिए बहुत ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ता है।

अर्जुनन थिल्लई स्पष्ट तौर पर राहत महसूस कर रहे थे, जब नए लगाए सौर से चलने वाले पानी के पम्प की बदौलत, उन्होंने अपने खेत में सहजन (मोरिंगा) के पेड़ों से पानी को उस स्थान पर मोड़ा, जहां स्पेनिश चमेली उगती है। सौर ऊर्जा से सिंचाई का सतत संघर्ष आसान हो गया था।

बिजली की उपलब्धता के बिना अनगिनत किसानों में से एक के रूप में, वह अपने खेतों की सिंचाई के लिए डीजल पर काफी पैसा खर्च करते थे।

थिल्लई कहते  “मैं तीन घंटे पम्प चलाने के लिए, रोज कम से कम 500 रुपये डीजल पर खर्च करता था। सौर पैनल लगाने के बाद, डीजल का कोई खर्च नहीं होता और इसलिए मेरा लाभ ज्यादा है।”

मुफ्त बिजली की कीमत चुकाते हैं किसान

तमिलनाडु बहुत से किसानों को मुफ्त बिजली देता है। लेकिन इसके लिए उन्हें कई तरह से “कीमत” अदा करनी पड़ती है।

मदुरै के नजदीक एक किसान, शेखर पेरियासामी व्यंग्यपूर्वक लहजे में कहते हैं – “बिजली कटौती और वोल्टेज कम होना आम बात है। ओह, लेकिन हमें रात में सही बिजली मिलती है!”

शुरू करते वक्त, इस तरह के बड़े वोल्टेज बदलाव से पानी के पम्पों की मोटर को नुकसान पहुंच सकता है और इसकी मरम्मत एक अतिरिक्त खर्च बन जाती है।

लेकिन अपने खेतों से दूर रहने वाले कई किसानों के लिए, बिजली सप्लाई बंद होने से सुरक्षा संबंधी जोखिम भी है।

सौर ऊर्जा का विकल्प चुनने वाले तमिल किसानों की संख्या बढ़ रही है, क्योंकि बिजली की आपूर्ति बहुत अनियमित है (फोटो – एन. वेणुगोपाल के सौजन्य से)

पेरियासामी कहते हैं – “हमारे खेतों की रात में सिंचाई करना आसान नहीं है। क्योंकि यह मुफ़्त है, इसलिए सरकार को लगता है कि हम दिन के समय निर्बाध सप्लाई के हकदार नहीं हैं।”

दशकों तक किसान रात में अपने खेतों में पैदल या साइकिल से जाते थे, इस चिंता के साथ कि पता नहीं कौन सा जानवर अंधेरे में घात लगाए हो। सांप का काटना आम बात थी।

थिल्लई याद करते हुए कहते हैं – “लगभग 20 साल पहले, हमारे क्षेत्र में जब किसान रात में खेत में जाते थे, तो सांप के काटने से काफी मौतें होती थीं।”

पेरियासामी के अनुसार, ज्यादा संपन्न किसान अब अपने मोबाइल फोन का इस्तेमाल दूर से ही मोटर को चलाने  और ऐसे जोखिमों से बचने के लिए करते हैं। लेकिन उनके जैसे गुजारा भर करने वाले और पट्टेदार किसानों के पास ऐसे टूल्स इस्तेमाल करने के लिए स्मार्ट फोन नहीं है।

आत्मनिर्भरता के लिए सौर ऊर्जा अपनाना

आम धारणा के विपरीत, तमिलनाडु में मुश्किल से एक तिहाई किसानों को मुफ्त बिजली मिलती है। राज्य की 79 लाख जोतों में से, सिर्फ 22 लाख को ही मुफ्त बिजली मिलती है। बहुत से लोगों को मुफ्त बिजली की मंजूरी मिलने के लिए सालों तक इंतजार करना पड़ता है। जो जलाशयों के पास खेती करते हैं, वे मुफ्त बिजली के पात्र नहीं हैं। और जहां मंदिर की जमीन पर खेती करने वाले कुछ लोगों को मुफ्त बिजली मिलती है, दूसरों को नहीं।

इंजीनियर से किसान बने के. सोमू के लिए बिजली कनेक्शन लेने का मतलब था 1 लाख रुपये, बिजली के खम्भे लगाने का खर्च। और उन्हें फौरन कनेक्शन का आश्वासन नहीं दिया गया था।

सौर-पैनल लगाने से किसान अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए ज्यादा आत्मनिर्भर बनते हैं (फोटो – एन. वेणुगोपाल के सौजन्य से)

सोमू कहते हैं – “और यह एक मुफ्त कनेक्शन नहीं था। बिजली की दर 3.50 रुपये प्रति यूनिट थी। इसलिए मैंने आत्मनिर्भर होने के लिए सौर को चुना।”

और इसका फल मिला। जब उनके पड़ोसी खेतों में तीन दिनों तक बिजली नहीं मिली, तो सोमू बिना किसी खर्च के अपनी फसलों की सिंचाई कर सके।

जैविक नारियल, हल्दी और केला उगाने वाले किसान एस. तिरुमूर्ति इससे सहमत हैं। उन्हें जमीन के एक हिस्से में पम्प चलाने के लिए मुफ्त बिजली मिलती है, लेकिन दूसरे हिस्से के लिए सौर पैनल हैं।

वह कहते हैं – “हमें नहीं पता कि क्या सरकार हमेशा मुफ्त बिजली देगी। जब मैं अपनी खुद की बिजली का उत्पादन करता हूं, तो मुझे किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है।”

डीजल से छोड़ कर सौर ऊर्जा से चलने वाले पानी के पम्पों को अपनाने वाले किसानों का कहना था कि उनकी आमदनी बढ़ी है, क्योंकि इलाके, फसल की किस्म और रकबे के आधार पर, उनके खर्च में 40% तक कमी हुई है।

सौर ऊर्जा से पानी से ज्यादा कुछ मिलता है

मूल्यवर्धन में विश्वास रखने वाले, तिरुमूर्ति अपनी फसलों से नारियल तेल और हल्दी पाउडर का उत्पादन करते हैं। इससे उन्हें ज्यादा कमाई में मदद मिलती है। खेतों की सिंचाई करने के बाद, वह सौर ऊर्जा से मिल चलाते हैं।

किसान तिरुमूर्ति का परिवार न सिर्फ सिंचाई के लिए, बल्कि नारियल तेल और हल्दी पाउडर के लिए मिल चलाने के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग करता है (फोटो – एन. वेणुगोपाल के सौजन्य से)

सोमू ने अपने सौर पैनल से बैटरियां और एक इन्वर्टर जोड़ लिया है, जिससे उन्हें अपना कंप्यूटर, एक लाइट और एक कमरे में पंखे का इस्तेमाल करने में मदद मिलती है, जिसका उपयोग वे काम से छुट्टी के दौरान करते हैं। बात यहीं ख़त्म नहीं होती।

अपने चेहरे पर खुशी के भाव लिए वह कहते हैं – “मैं सौर ऊर्जा के इस्तेमाल से अपनी ई-बाइक भी चार्ज करता हूं।”

सौर पैनल न सिर्फ किसानों की आय बढ़ाते हैं और दूसरों के लिए नए व्यवसाय और नौकरी के अवसर प्रदान करते हैं, बल्कि सरकार के आर्थिक बोझ को भी कम करते हैं।

तमिलनाडु ने खेत और घरेलू बिजली मुफ्त सप्लाई की सब्सिडी के रूप में 19,873 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। लेकिन ज्यादातर किसान सरकार की मुफ्त बिजली या सोलर सब्सिडी का इंतजार करने की बजाए सोलर पम्प लगवाते हैं। इसलिए जितने ज्यादा किसान सौर ऊर्जा की ओर रुख करेंगे, सरकार बिजली सब्सिडी पर उतनी ही ज्यादा बचत करेगी।

लेकिन खनिज-ईंधन के पम्प छोड़ कर सौर ऊर्जा से चलने वाले पम्प अपनाने का सबसे महत्वपूर्ण होगा पर्यावरणीय लाभ। एक लाख डीजल पम्पों को सोलर पम्पों से बदलने से, कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में 25 लाख टन की कमी आएगी, वहीं एक लाख बिजली के पम्पों को बदलने का मतलब 2.5 लाख टन की कमी होगा।

एक सौर ऊर्जा सलाहकार, ‘सनबेस्ट’ के सी. पलानीअप्पन कहते हैं – “सरकार को यह समझना चाहिए कि सौर ऊर्जा जलवायु परिवर्तन की चिंताओं को दूर करता है। जब दुनिया सौर ऊर्जा की ओर बढ़ रही है, तो हमें यह महसूस करना चाहिए कि इसका लाभ मानव कल्याण के लिए है।”

इसकी एक स्पष्ट याद के रूप में खड़ा है, थिल्लई का पुराना धूल से ढका डीजल पंप, जिसे वह छोड़ने को तैयार नहीं हैं। बल्कि उन्होंने इसे अपने चमचमाते सौर पैनलों के ठीक बगल में रखा है, एक निरंतर तुलना जो उन्हें सौर ऊर्जा से मिलने वाले फायदों की याद दिलाती है।

जेंसी सैमुअल एक सिविल इंजीनियर और चेन्नई में स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।