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“मेरी बेटी ठंडी और निश्चल थी”

महामारी के दौरान, वाराणसी के बाहरी इलाके में रहने वाली शिंटू जब गर्भवती हुई, तो उसका वजन कम था और वह एनीमिक (खून की कमी) थी। क्योंकि उसके पति की नौकरी चली गई, इसलिए उसने ठीक से भोजन नहीं खाया और समय से पहले एक बच्चे को जन्म दिया, जिसकी पांच महीने बाद मृत्यु हो गई। पढ़िए, शिंटू की कहानी उन्हीं के शब्दों में।

हर रात करीब 12 बजे, मेरा बच्चा रोता हुआ जाग जाता था। जब मैं उसे स्तनपान कराती, तो वह कुछ देर खेलती और वापस सो जाती। लेकिन उस रात वह नहीं उठी। जब मुझे इस बात का अहसास हुआ, तो सुबह करीब 1 बजे मैंने उसे दूध पिलाया।

एक घंटे बाद मुझे पता चला कि वह ठंडी थी और सांस नहीं ले रही थी। मैंने उसे खो दिया था।

शायद मुझे कुछ अहसास हो गया था और इसलिए मैं उसे आखिरी बार दूध पिलाने के लिए उठ गई थी?

यह इस साल मई की बात है। मुझे इस नुकसान से उबरने में थोड़ा समय लगा है। हालात धीरे-धीरे सामान्य हो रहे हैं।

मैंने इस साल जनवरी में अपनी बच्ची को जन्म दिया था। वह समय से पहले और कम वजन की पैदा हुई थी।

मेरी गर्भावस्था के दौरान मुझसे मिलने आई दीदी (सहायक नर्स दाई-ANM) ने मुझे बताया कि मेरा वजन कम था।

उसने कहा कि मुझे एनीमिया है, क्योंकि मेरा हीमोग्लोबिन का स्तर सिर्फ 7 था, जो बहुत गंभीर बात थी और इसका मेरे बच्चे पर प्रभाव पड़ सकता था। अब हीमोग्लोबिन 8 है, लेकिन मेरा वजन अब भी कम है। मुझे नहीं पता कि यह बढ़ता क्यों नहीं है।

मुझे लगता है, यदि महामारी का हमला नहीं होता, तो हालात अलग होते। मेरे पति के पास अपना काम होता और मुझे बेहतर पोषण मिल पाता। 

शायद हमारी बेटी भी जीवित होती। 

पहले कभी-कभी हम दूध और मांस खाते थे। लेकिन अब दिन में दो बार का भोजन भी एक वरदान सा लगने लगा है। मेरे पति अब इतना ही खर्च कर सकते हैं।

हम दिन में दो बार भात (चावल) खाते हैं। कभी सब्जियों के साथ। भात मेरा पसंदीदा भोजन है। इसके बिना मेरा गुजारा नहीं है। मैं दोपहर और रात के भोजन में यही खाती हूँ।

आमतौर पर भोजन मेरी सास पकाती हैं। मैं दूसरे कामों में उनकी मदद करती हूँ। बाकी समय मैं अपने बेटे आशीष के साथ बिताती हूँ। मैं अगले साल आंगनबाडी (ग्रामीण बाल केंद्र) में उसका दाखिला कराऊँगी। वहाँ उसे दिन में कम से कम एक अच्छा भोजन मिलेगा।

अब मेरा बेटा ही मेरी एकमात्र खुशी है। मुझे लगता है कि वह जल्द ही तीन साल का हो जाएगा। मुझे उसकी जन्मतिथि पता नहीं है। मेरी सास को पता होगा। यदि मैं स्कूल गई होती, तो शायद मैं आपको हमारे सभी जन्मदिन और उम्र के बारे में बता पाती। हम गरीब, अशिक्षित लोग हैं, हम तारीखों का हिसाब कैसे रख सकते हैं?

मैं वास्तव में भविष्य में एक बेटी की कामना करती हूँ। अगली बार मैं उसे अपने पास से नहीं जाने दूंगी। मैं उसे पढ़ाऊंगी, ताकि उसे एक बेहतर जीवन मिले।

जिज्ञासा मिश्रा की रिपोर्ट, जो ग्रामीण मुद्दों पर लिखती हैं, मुख्य रूप से उत्तर भारत में महिलाओं के मुद्दों और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर।