आधा एकड़ से एक लाख की कमाई

खून, पसीना और थोड़ी सी जमीन: कमजोर लेकिन साहसी पुष्पा छेत्री कैसे असम की अपनी आधा एकड़ जमीन से एक लाख से ज्यादा कमाती हैं।

पुष्पा छेत्री मुझे हैरान करती हैं। वह बहुत मेहनती है, वह मुझे हर रोज बेहद प्रेरित करती है। मैं पिछले डेढ़ साल से अपने संगठन, ‘सेवन सिस्टर्स डेवलपमेंट असिस्टेंस’ (SeSTA) के माध्यम से उनके साथ काम कर रही हूँ।

असम के जुइलागा में डेढ़ बीघा जमीन की मालकिन, पुष्पा छेत्री से मिलिए

अधेड़ उम्र की पुष्पा दो बच्चों की माँ हैं, जिनमें से एक की शादी हो चुकी है। वह बोंगईगांव से लगभग 20 किलोमीटर दूर, जुइलागा में अपने बेटे और पति के साथ रहती हैं। घर के पास, उनकी डेढ़ बीघा (लगभग आधा एकड़) जमीन है।

वह कमजोर, लेकिन साहसी और बेहद शांतचित्त हैं। हाल ही में मैं उनसे मिलाने के लिए, विकास जगत के एक वरिष्ठ सदस्य को ले गई। मैं चाहती थी कि वह पुष्पा के कई अंकुरित सब्जियों से भरे दो भूखंड देखें: लहसुन, मिर्च, लाई पत्ता (Brassica juncea सरसों के परिवार का पौधा), लाल साग, लौकी, करेला, भिंडी, अदरक, फूलगोभी और दूसरी गोभियाँ और बहुत कुछ जिसे हम पहचान नहीं सके।

खेत बहुत साफ-सुथरा नहीं दिख रहा था, क्योंकि भूमि के ज्यादा से ज्यादा क्षेत्र का उपयोग करने के लिए बीज लगाए गए थे। क्योंकि न तो पुष्पा ने और न ही मैंने बहु-स्तरीय बागवानी जैसी किसी भारी-भरकम तकनीक की शेखी बघारी थी, मैं बता सकती थी कि मेरे वरिष्ठ सहयोगी को संदेह था। बाद में उन्होंने स्वीकार किया कि जब अचानक पुष्पा ने बताया कि वह अपनी जमीन से रोज 400-500 रूपए कमाती है, वह “उनके कुलीन होठों से एक मूल्यांकनात्मक टिप्पणी निकलने ही वाली थी!”

ओह, तब उनका ध्यान गया! उन्होंने जल्द ही पुष्पा से हर तरह के सवाल पूछने शुरू कर दिए कि उसने कौन सी फसल उगाई, कब और कितनी कमाई की।

आधा एकड़ जमीन से एक लाख कमाने की पुष्पा की तकनीक

उसकी तकनीक सरल है: मौसम में जो सबसे अच्छी हो सकती है वो उगाएं और जिसके रोपने के बाद के हफ्तों में अच्छे दाम पर बिक जाने की सम्भावना सबसे ज्यादा हो।

मौसम में सबसे ज्यादा होने वाली फसल उगाना, छेत्री की अपनी थोड़ी सी जमीन से ज्यादा से ज्यादा कमाई करने की तकनीक है (छायाकार – रूबी ठाकुरिया)

मैं अपने सहयोगी को मन ही मन तेजी से गणना करते हुए देख सकती थी। वह यह भी मान ले कि छेत्री हफ्ते में पांच दिन बेचने के लिए जाती है, तो भी वह हर महीने 10,000 रुपये से ज्यादा कमाती थी, जिससे साल भर की कुल कमाई एक लाख से ज्यादा हो जाती है। और सिर्फ एक छोटे से भूखंड से।

छेत्री लाई पत्ते का एक बहुत ही ताज़ा दिखने वाला और शानदार गुच्छा लेकर आई और हमें बताया – “हम मानसून में बिक्री लायक कोई भी सब्जी नहीं बना सकते, क्योंकि यहाँ इतनी ज्यादा बारिश होती है और अक्सर ज़मीन में पानी भर जाता है। लेकिन बाकी के नौ महीनों में, मेरे पास हर दिन बेचने के लिए कुछ न कुछ होता है।”

लाई पत्ता: पुष्पा की ‘रोकड़ गाय’

उन्होंने हमें बताया कि इस तरह का एक गुच्छा इस समय 10 या 12 रूपए में बिक रहा था। वह रोज इसके कुछ गुच्छे बेचती थी और यह स्पष्ट रूप से उसकी “रोकड़ गाय” (वह वस्तु, जिसे बेचकर किसी भी समय पैसा कमाया जा सकता है) थी।

यह लाई पत्ता असम, अरुणाचल और नागालैंड के आदिवासी क्षेत्रों के ज्यादातर छोटे रेस्तरां में उबाल कर मछली या किसी भी भोजन के साथ परोसा जाता है। इस सब्जी की मांग बारहमासी और ज्यादा है।

जब हमने ध्यान से देखा, तो वहां ढेर सारे पौधे थे, लेकिन मिट्टी अवांछित खरपतवारों से मुक्त थी। पौधों का घनत्व इतना ज्यादा था कि खेत को साफ करने के लिए किसी यंत्र का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था।

जब हमने उनसे पूछा कि इस बेहद समृद्ध अति-नम जैविक वातावरण में खरपतवार कौन साफ़ करता है, तो उन्होंने कहा – “और कौन करेगा? कुछ मेरे पति करते हैं और कुछ मैं।”

भले ही उसमें समय लगता है, लेकिन नियमित रूप से निराई-गुड़ाई छेत्री को स्वस्थ पौधों का घनत्व बनाए रखने में मदद करती है (छायाकार – रूबी ठाकुरिया)

पौधे स्वस्थ और जमीन साफ ​​दिख रहे थे, इसलिए वह हर पौधे की एक मां की तरह देखभाल करती होंगी और किसी भी घास को मिट्टी से बाहर आते ही निकाल देती होंगी। यह सब कुछ बैठे-बैठे चल कर करती हैं। उन्होंने लगभग 15 वर्ग फुट जमीन के एक टुकड़े की ओर इशारा करते हुए कहा कि उसे साफ़ करने में सुबह उन्हें एक घंटे का समय लगा था। वह हर शाम एक छोटे पंप और पाइप से पौधों को पानी भी देती है।

घर संभालने के साथ आधा एकड़ से एक लाख की कमाई

बेशक, वह बस इतना ही काम नहीं करती। वह घर संभालती हैं, खाना पकाने और सफाई करने के अलावा पास के बाजार में फसल बेचने जाती हैं, हालांकि ज्यादातर व्यापारी उनके पास आते हैं। उसका दैनिक “बाजार सामान” एक मध्यम आकार की बांस की टोकरी से ज्यादा नहीं होता। लेकिन सब्जियों के दाम इतने हैं कि इससे उन्हें अपने आप 500 रुपये मिल जाते हैं।

अपनी इस कड़ी मेहनत से, पुष्पा अपने परिवार के सभी खर्चों का भुगतान कर पाती हैं, जिसमें उनकी बेटी की शादी और उच्च माध्यमिक विद्यालय में उनके बेटे को पढ़ाना शामिल है। उन्हें उम्मीद है कि वह उसे कॉलेज भेज सकेंगी।

मेरे सहयोगी बेहद प्रभावित थे। उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय विकास उद्यम (IDE) के संस्थापक, स्वर्गीय पॉल पोलाक, जिन्हें दुनिया भर में “ट्रेडल (पैडल) पंप मैन” के रूप में जाना जाता है, कहा करते थे कि किसान गरीबी से बाहर आ जाएंगे, यदि वे अपनी जमीन से प्रति वर्ग मीटर 1 अमरीकी डालर से ज्यादा कमा सकें।

आधा एकड़ जमीन से एक लाख से ऊपर कमाते हुए, पुष्पा छेत्री उस आदर्श स्थिति के नजदीक हैं। वास्तव में, वह पॉल पोलक की समझदारी का व्यावहारिक प्रमाण हैं।

रूबी ठाकुरिया, ‘सेवन सिस्टर्स डेवलपमेंट असिस्टेंस’ (SeSTA), असम में डेवलपमेंट एक्जीक्यूटिव हैं।