ओडिया जनजातियों ने बाजरे के चमत्कारों को पहचाना

राज्य सरकार के ‘ओडिशा मिलेट मिशन’ की बदौलत, अति पौष्टिक होने के बावजूद जलवायु के प्रति सहनशील और कम पानी में उगने वाला बाजरा, ओडिया आदिवासियों की पसंदीदा फसल बन रहा है।

कुछ साल पहले, ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले के एक 50 वर्षीय आदिवासी किसान, पबित्रा भुइन ने महसूस किया कि उसे अपनी दो एकड़ जमीन से अपने छह सदस्यीय परिवार को चलाना बहुत मुश्किल है।

भुइन कहते हैं – “मैं धान के साथ-साथ सब्जियां और मकई उगाता था। यहाँ आदिवासी क्षेत्रों में सिंचाई की कोई सुविधा नहीं है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से बेमौसम बारिश के कारण धान अक्सर नष्ट हो जाता है। मैं कोई फायदेमंद सब्जियां या मकई नहीं उगा सकता था।”

आदिवासी ओडिशा में बाजरे की खेती

लेकिन 2019 में अपनी एक एकड़ जमीन में बाजरे की खेती शुरू करने के बाद, उनकी स्थिति बदल गई। जिला प्रशासन ने उन्हें छोटे बीज वाले अनाज को उगाने में मदद करने के लिए बीज, तकनीकी सहायता और कृषि उपकरण प्रदान किए।

उन्होंने कहा – “आज मैं दूसरी फसलों की तुलना में बाजरे की खेती करना पसंद करता हूँ। बाजरे को कम मजदूरी और पानी की जरूरत होती है, लेकिन पैदावार ज्यादा होती है।”

बाजरे की खेती ने सुंदरगढ़ जिले के पबित्रा भुइन जैसे सैकड़ों आदिवासी किसानों के जीवन में सुधार किया है।

सरकार ने शुरू किया ‘ओडिशा बाजरा मिशन’

ओडिशा के ‘कृषि और किसान सशक्तिकरण विभाग’ ने 2017 में अपने प्रमुख कार्यक्रम, ‘ओडिशा मिलेट्स मिशन’ (OMM) की शुरुआत करते हुए, पहाड़ी और आदिवासी क्षेत्रों में किसानों की आजीविका को बढ़ावा देने के लिए राज्य में बाजरा की खेती पर जोर दिया है।

बाजरे की खेती पबित्रा भुइन जैसे किसानों को कृषि से जीविका चलाने में मदद कर रही है (फोटो – जिला मीडिया एजेंसी, सुंदरगढ़ के सौजन्य से)

राज्य को हाल ही में “सर्वश्रेष्ठ बाजरा प्रोत्साहन राज्य” के रूप में मान्यता मिली और केंद्र सरकार से “पोषक अनाज पुरस्कार” प्राप्त हुआ।

17 प्रशासनिक ब्लॉकों में से, 11 में बाजरे की खेती करते हुए, सुंदरगढ़ राज्य का शीर्ष बाजरा उत्पादक जिला है। रागी या मडुआ (फिंगर मिलेट) और कुटकी (लिटल मिलेट), दोनों को OMM के अंतर्गत बढ़ावा दिया जा रहा है, जबकि सुंदरगढ़ के किसान रागी उगाना पसंद करते हैं।

कार्यक्रम में बाजरे से सम्बंधित वातावरण के सभी पहलु शामिल हैं, जिसमें उत्पादन, खपत, प्रोसेसिंग, मार्केटिंग के अलावा राज्य के पोषण कार्यक्रम में बाजरे का समावेश भी शामिल हैं।

इस समय 16,000 से ज्यादा किसान 5,230 हेक्टेयर भूमि में बाजरे की खेती करते हैं। वित्तीय वर्ष 2020-21 में 5,093 किसानों ने 2,336 हेक्टेयर में बाजरा उगाया था।

बाजरे के पोषण संबंधी लाभ क्या हैं?

स्थानीय स्तर पर उपलब्ध और पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण, बाजरा खाना बच्चों के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।

यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि जिला प्रशासन ने राज्य की ‘महिला एवं बाल विकास विभाग’ की ‘एकीकृत बाल विकास सेवाएं’ (आईसीडीएस) योजना के अंतर्गत बच्चों के लिए विशेष पोषण कार्यक्रम में बाजरा भी शामिल किया है।

विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के माध्यम से लाखों महिलाओं को सशक्त बनाने के एक कार्यक्रम, ‘मिशन शक्ति’ के अंतर्गत महिला स्वयं सहायता समूह (एसएचजी), सरकार द्वारा संचालित आंगनवाड़ी (शिशु देखभाल) केंद्रों के लिए पिसे हुए बाजरे, चीनी और मूंगफली से रागी लड्डू का मिश्रण तैयार करते हैं।

बाजरे से खाद्य पदार्थ बनाने के लिए, महिलाओं को प्रशिक्षण देने से उन्हें मिशन शक्ति बूथ लगाने और अपनी आय में वृद्धि करने में मदद मिली है (फोटो – जिला मीडिया एजेंसी, सुंदरगढ़ के सौजन्य से)

महामारी के दौरान जब केंद्र बंद थे, तो आंगनवाड़ी कार्यकर्ता घर-घर जाकर रागी मिश्रण बाँटने के लिए जाती थी।

पोषण कार्यक्रम के एक वर्ष पूरा होने पर, सुंदरगढ़ के 3 से 6 वर्ष की आयु के 60,000 से ज्यादा बच्चे इस पहल से लाभान्वित हो रहे हैं।

राशन कार्ड और खाद्य सुरक्षा कार्ड धारकों को भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से बाजरा प्रदान किया जा रहा है।

इसके लिए सरकार ने सुंदरगढ़ में उगाई गई 709 टन रागी को रु. 329.5 प्रति टन के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदा।

बाजरा ओडिया आदिवासी महिलाओं को कैसे सशक्त बना रहा है

मिशन शक्ति के अंतर्गत, राज्य सरकार स्वयं सहायता समूहों की सदस्यों को बाजरे का नाश्ता और खाद्य पदार्थ तैयार करने और इन्हें बेचने के लिए बूथ और कॉफी हाउस चलाने का प्रशिक्षण दे रही है।

बाजरे से बने खाद्य पदार्थों को लोकप्रिय बनाने और इन स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को आजीविका के अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से, जिला प्रशासन की विभिन्न स्थानों पर 81 “बाजरा शक्ति” बूथ स्थापित करने की योजना है। पहला बूथ हाल ही में राजगांगपुर ब्लॉक में खोला गया, जिसका व्यापक स्वागत हुआ।

सुंदरगढ़ में ‘जिला खनिज फाउंडेशन’, 11 ब्लॉकों में से सात में बाजरे की खेती के लिए तकनीकी सहायता और सामग्री उपलब्ध कराने के साथ साथ, किसानों को आर्थिक सहायता भी प्रदान कर रहा है।

कृषि विभाग की जिला स्तरीय एजेंसी, ‘कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी’ के मुख्य जिला कृषि अधिकारी और परियोजना निदेशक, राम चंद्र नायक कहते हैं – “यह सुनिश्चित करने के लिए हम सभी उपाय कर रहे हैं कि बाजरा किसानों को उनकी उपज का सही दाम मिले।”

उन्होंने कहा – “बाजरे से बने खाद्य पदार्थों की खपत को लोकप्रिय बनाने के लिए, विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।”

बाजरे की खेती के अन्य महत्वपूर्ण लाभ क्या हैं?

जिला कलेक्टर-सह-मजिस्ट्रेट, निखिल पवन कल्याण कहते हैं – “पहाड़ी जमीन वाला सुंदरगढ़, बाजरे की फसल उगाने के लिए अनुकूल है। महिला किसान इस विकास कहानी का एक बड़ा हिस्सा हैं।”

जलवायु के प्रति सहनशील रागी की खेती, जिसे कम पानी की जरूरत होती है, करने का मतलब है मैरी मंजुला हेम्ब्रम जैसी किसानों के लिए अधिक लाभ (फोटो – जिला मीडिया एजेंसी, सुंदरगढ़ के सौजन्य से)

उन्होंने कहा – “बाजरा की खेती से तीन उद्देश्य पूरे होते हैं – यह किसानों की आजीविका, एसएचजी महिलाओं की आय में वृद्धि करती है और बच्चों का पोषण सुनिश्चित करती है।”

भारत की सिफारिश के बाद, वर्ष 2018 में ‘खाद्य और कृषि संगठन’ (FAO) ने घोषणा की, कि 2023 “बाजरा अंतर्राष्ट्रीय वर्ष” होगा, जिसे अप्रैल 2021 में संयुक्त राष्ट्र ने भी समर्थन प्रदान किया।

इसका उद्देश्य पोषक अनाजों को वापिस लाना है, जिससे किसानों के लिए जलवायु के प्रति सहनशीलता में मदद के साथ साथ, खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

एक महिला किसान मैरी मंजुला हेम्ब्रम कहती हैं – “पिछले साल मैंने चार एकड़ में बाजरे की खेती की और ठीक ठाक पैसा कमाया।”

जलवायु के प्रति सहनशीलता और कम पानी इस्तेमाल होने के कारण, रागी की खेती हेम्ब्रम जैसे किसानों को बेहतर आय देती है, और सुंदरगढ़ के आदिवासियों में पोषण स्तर को बढ़ाती है।

शारदा लहाँगीर भुवनेश्वर स्थित पत्रकार हैं। वह विकास, टकराव, जेंडर, स्वास्थ्य और शिक्षा के मुद्दों पर लिखती हैं।