धूप में सुखाई गई सब्जियां, कश्मीरी रसोई का पसंदीदा “स्वाद” हैं

कठोर सर्दियों में ताजा फसलों की कमी को पूरा करने के लिए, प्राचीन कश्मीरी रिवाज से धूप में सुखाई गर्मियों की सब्जियाँ अपने खास स्वाद और बार-बार सर्दियाँ जल्दी शुरू होने के कारण, अभी भी मांग में हैं।

‘होख स्यून’ क्या है?

हर सर्दी के मौसम में एक अलग सुगंध कश्मीर भर की रसोइयों की हवा में भर जाती है।

गर्मियों के फल और सब्जियाँ, जिन्हें सावधानीपूर्वक धूप में सुखाया और महीनों तक रखा जाता है, उन्हें गर्म पानी में तब तक भिगोया जाता है जब तक कि वे फूल न जाएं।

फिर उन्हें तेल और मसालों में भूना जाता है, जिससे एक ऐसी सुगंध पैदा होती है, जो ज्यादातर कश्मीरियों को सर्दी में आराम की तरह महसूस होती है।

यह सूखी उपज, जिसे स्थानीय भाषा में होख स्यून कहा जाता है, एक अनूठी पाक परम्परा है, जो व्यापक होते स्वाद और आधुनिक आपूर्ति श्रृंखलाओं के बावजूद, समय की कसौटी पर खरी उतर रही है।

इस समय जारी सर्दियों के सबसे कठोर हिस्से में, जिसे चिल्ले कलां कहा जाता है और जिसमें तापमान बेहद कम और शून्य से कम हो जाता है, कश्मीर के शहरी और ग्रामीण रसोइयों में होख स्यून से बनी, ‘गोग्जे पनीर’, ‘अलहाचे चिकन’ और ‘होग्गड चटनी’ जैसे व्यंजन बन रहे हैं।

किसानों के लिए भी यह एक वरदान है।

धूप में सुखाई हुई सब्जियों से कश्मीरी किसानों को लाभ कैसे

दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले के दचनीपोरा गांव की 53-वर्षीय मिसरा बानो, स्थानीय सब्जी व्यापारी को सौंपने से पहले, अपने सूखे बैगन को सूखी लौकी के लम्बे टुकड़ों से सावधानीपूर्वक अलग करती हैं।

वह सूखी सब्जियों को हाथ के तराजू से तौलता है, जिसके बाद दोनों कीमत के लिए मोलभाव करते हैं।

बानो हर साल अपने सब्जी के बगीचे से फालतू पैदावार को धूप में सुखाती हैं। सर्दियों में वह और उसका परिवार उसमें से कुछ खा लेते हैं और बाकी बेच देते हैं।

कश्मीरी सर्दियों में इस्तेमाल के लिए फालतू सब्जियों को सुखाने का पुराना  रिवाज़ जारी रखे हैं, जब ताजा फसल उपलब्ध नहीं होती (छायाकार – नासिर यूसुफी)

लौकी की सूखी पतली पट्टियों को सुलझाते हुए वह कहती हैं – “मैं कई सालों से ‘अलहाचे’ और ‘वांगन हाचे (सूखी लौकी और बैंगन) बना रही हूँ। मुझे उन्हें बेचने से अच्छी रकम मिलती है, क्योंकि सर्दियों में इन सूखी सब्जियों की मांग हमेशा रहती; है।”

लगभग 90 किलोमीटर दूर, मध्य कश्मीर के बडगाम जिले के ओमपोरा में, दिलशादा अख्तर के घर की तरह, कई घरों की परछत्ती की खिड़की में, सूखी सब्जियों से भरे एक दर्जन पारदर्शी बैग देखे जा सकते हैं।

अख्तर भी होख स्यून बनाती हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि यह गर्मियों में ताजा पैदावार बेचने से ज्यादा लाभदायक है।

अख्तर कहती हैं – “क्योंकि गर्मियों में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने के कारण कीमत बहुत कम मिलती है, इसलिए मैं अपनी फालतू सब्जियों को धूप में सुखाना पसंद करती हूँ और उन्हें सर्दियों में अच्छे मुनाफे पर बेच देती हूँ।”

चाहे वह बैंगन का टुकड़ा हो, लौकी की फांक हो, टमाटर की चिप हो, शलजम का टुकड़ा हो या स्थानीय मछली, सर्दियों में धूप में सुखाई गई ये चीजें लगभग हर कश्मीरी घर के व्यंजनों का हिस्सा होता है।

धूप में सुखाई सब्जियाँ: कश्मीर की प्राचीन जरूरत

राज्य की भौगोलिक स्थिति और जलवायु को देखते हुए, सदियों से नहीं तो दशकों से होख स्यून का सेवन, कश्मीर की संस्कृति का हिस्सा रहा है। गहरे अकाल के डर से होख स्यून को एक जरूरत के रूप में देखा जाने लगा।

इतिहास के पूर्व प्रोफेसर, मोहम्मद अशरफ कहते हैं – “पुराने वक्तों में, कठोर सर्दियाँ लोगों की आवाजाही में गंभीर रूप से बाधा डालती थीं। वे घर में ही रहना पसंद करते थे। क्योंकि भीषण ठंड के कारण खेती की कोई गतिविधि नहीं होती थी, इसलिए लोगों को सर्दियों में गुजारे के लिए सब्जियाँ सुखानी और रखनी पड़ती थी।”

गर्मियों में शलजम के टुकड़े आपस में गूंथकर सुखाए जाते हैं (छायाकार – नासिर यूसुफी)

और हाल के दिनों में साल भर ताजा उपज उपलब्ध होने के बावजूद, यह परंपरा जारी है, क्योंकि होख स्यून के स्वाद के कारण यह कश्मीरी रसोई का एक अभिन्न अंग बन गया है।

अस्सी वर्षीय, रहमत बीबी ने कहा – “इस उम्र में मैं ज्यादा नहीं खाती, लेकिन इसकी सुगंध और स्वाद के कारण मैं अपने बच्चों से होख स्यून किस्मों के लिए पूछती हूँ।”

अतिरिक्त फसल के कारण सब्जियाँ धूप में सुखाई जाती हैं

किचन गार्डन के बढ़ते चलन और बेहतर उपज वाले संकर किस्मों के बीजों के उपलब्ध होने की बदौलत, जुलाई और अगस्त में लौकी, टमाटर, बैगन और कई दूसरी सब्जियाँ बड़ी मात्रा में उपलब्ध होती हैं। बची हुई उपज को सुखाना कई कश्मीरियों के लिए एक व्यावहारिक समझ है।

जम्मू और कश्मीर कृषि विभाग के एक कृषि अधिकारी, एजाज हुसैन कहते हैं – “परिवार और किसान आमतौर पर सर्दियों के उपयोग के लिए फालतू उपज को धूप में सुखाते हैं। केवल शलजम, लौकी, टमाटर और बैंगन को ही धूप में नहीं सुखाया जाता, बल्कि कमल के तने, मछली, काली मिर्च, पालक और कुकरौंधा (पीले फूल वाला जंगली पौधा) समेत अन्य भी हैं।”

हालांकि आजकल ज्यादातर सब्जियाँ साल भर उपलब्ध रहती हैं, फिर भी लौकी और नाशपाती जैसी कुछ ताजा उपज हैं, जो सर्दियों में घाटी में आसानी से नहीं मिलती और केवल सूखे रूप में ही बेची जाती हैं।

जल्दी आई सर्दियों से बढ़ रही होख स्यून की मांग

घाटी में क्योंकि सर्दियां जल्दी शुरु हो रही हैं, यहां तक कुछ हिस्सों में अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े में बर्फबारी हो जाती है, लगातार शून्य से नीचे तापमान ने कश्मीर के बाजारों में होख स्यून की मांग को बढ़ा दिया है।

जो लोग इन सूखे व्यंजनों को बेचते हैं, वे मांग को पूरा करने के लिए, राज्य के कस्बों और शहरों के लगभग हर बड़े बाजार में पहुँच जाते हैं।

कई सालों से सर्दियों में होख स्यून बेच रहे फ़याज़ अहमद, मांग में निरंतरता पा रहे हैं (छायाकार – नासिर यूसुफी)

श्रीनगर के प्रसिद्ध नवैयत बाजार में अपनी ठेला-गाड़ी से सूखी सब्जियों और मछलियों के बड़े बैग बेच रहे फ़याज़ अहमद कहते हैं – “मुझे सर्दियों में इन धूप में सुखाई गई सब्जियों को बेचते हुए कई साल हो गए।”

एक ग्राहक के लिए लौकी की सूखी पट्टी तौलते हुए उन्होंने कहा – “हालांकि ये मौसमी हैं, लेकिन सर्दियों में इसकी अच्छी मांग होती है।”

धूप में सुखाई सब्जियों, होख स्यून का स्वाद घाटी से परे जा चुका है

कुछ मतों के विपरीत, होख स्यून की मांग हमेशा की तरह है, बल्कि यह बढ़ी ही है।

यहां तक कि विदेशों में रहने वाले कश्मीरी भी धूप में सुखाई हुई सब्जियां अपने साथ ले जाते हैं।

शालीमार के नज़ीर अहमद मलिक कहते हैं – “क़तर में काम कर रहा मेरा बेटा मुदासिर अहमद, जब भी घर आता है, अपने साथ विभिन्न प्रकार के होख स्यून ले जाता है।”

पिछले साल फ़याज़ अहमद ने लौकी और बैगन के लगभग 20-20 किलोग्राम वजन के आठ बोरे बेचे थे। इस साल वह अभी तक ही पांच बोरे से ज्यादा बेच चुका है, जबकि सर्दियां केवल आधी गई हैं।

श्रीनगर के नूरबाग इलाके के एक होख स्यून व्यापारी, बशीर अहमद डार ने इससे सहमति व्यक्त की। उन्होंने कहा – पिछले साल महामारी के कारण बिक्री में गिरावट आई थी, लेकिन इस साल मांग जोरदार है।” पिछले साल डार ने सूखी उपज के सिर्फ 55 बोरे बेचे थे, लेकिन इस साल वह अभी तक ही 70 बोरे से ज्यादा बेच चुके हैं।

कारगिल, लेह और जम्मू जैसे दूरदराज स्थानों से भी धूप में सुखाई गई सब्जियों की मांग है।

डार कहते हैं – “औसतन हर साल, पतझड़ के अंत तक मैं इन जगहों पर सैकड़ों किलोग्राम वजन की एक खेप औसतन भेजता हूं, जिसमें धूप में सुखाई गई सब्जियां होती हैं।”

हालांकि कुछ डॉक्टर ऐसे भी हैं, जिन्होंने होख स्यून की स्वास्थ्य सम्बन्धी स्वच्छता को लेकर चिंता जताई है और संदिग्ध विक्रेताओं से खरीदारी न करने के लिए चेताया है।

जम्मू और कश्मीर के स्वास्थ्य विभाग के पूर्व चिकित्सा अधीक्षक, अब्दुल गनी अहंगर कहते हैं – “ठीक से न सुखाने पर फंगस, जो कि कार्सिनोजेनिक एफ्लाटॉक्सिन (कैंसरकारी तत्व) का एक स्रोत है, विकसित हो सकता है। लेकिन अगर ठीक से सुखाया और पकाया जाए, तो होख स्यून का सेवन काफी सुरक्षित है।”

नासिर यूसुफी श्रीनगर स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।