किशोरों ने लॉकडाउन में बच्चों की पढ़ाई सुनिश्चित की

जब भारत 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाने जा रहा है, हम उन बहुत से सामाजिक रूप से जागरूक ग्रामीण किशोरों के जज्बे से भरे काम पर प्रकाश डालते हैं, जिन्होंने महामारी के समय गाँव के बच्चों को पढ़ाने के लिए अपना समय और ऊर्जा प्रदान की।

लॉकडाउन के दौरान पढ़ाई: ग्रामीण ओडिशा में किशोर आदिवासी स्वयंसेवी शिक्षक बन गए

जमुना पोडियामी के दरवाजे पर सुबह 6 बजे से छोटे बच्चे आने लगते हैं।

पोडियामी, एक 19-वर्षीय आदिवासी लड़की, जिसने अपनी उच्चतर माध्यमिक शिक्षा पूरी कर ली है, बहुत जल्दी उठ जाती है, ताकि वह बच्चों के आने से पहले अपने घर के काम पूरा कर सके।

फिर ओडिशा के मलकानगिरी जिले के परजागुड़ा गांव की उसकी साधारण सी झोपड़ी बच्चों के एक स्कूल में बदल जाती है। पोडियामी सुबह 9 बजे तक बच्चों को पढ़ाती हैं।

युवाओं को पढ़ाने के लिए अपना समय समर्पित करने वाली वह अकेली नहीं हैं।

कोरापुट जिले के दूरदराज गांव कलियागुड़ा में, 18 वर्षीय भगबती नायक भी 18 बच्चों को रोज तीन घंटे तक पढ़ाती हैं। 

पोडियामी और नाइक जैसे स्वयंसेवक, ग्रामीण बच्चों के लिए शिक्षा का एकमात्र साधन हैं, जिनकी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों तक पहुंच नहीं है और इसलिए वे महामारी के कारण हुए लॉकडाउन में ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल नहीं हो सकते हैं।

स्थानीय सामुदायिक संगठनों के सहयोग से, वे यह सुनिश्चित करते हैं कि महामारी के बावजूद बच्चों की शिक्षा जारी रहे।

COVID-19 महामारी: भारत के गांवों में शिक्षा में व्यवधान

परजागुड़ा गांव में एक ही प्राथमिक विद्यालय है और इसे मार्च 2020 में बंद कर दिया गया था, जब पहले लॉकडाउन की घोषणा की गई थी।

पोडियामी कहती हैं – “मेरे गांव के किसी भी बच्चे के पास स्मार्टफोन नहीं है और वह स्कूल या ओडिशा सरकार के जन शिक्षा विभाग द्वारा शुरू की गई ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल नहीं हो सका।”

जमुना पोडियामी अपने गाँव के बच्चों को पढ़ाती हैं, क्योंकि उनके पास ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल होने के लिए उपकरणों की कमी है
जमुना पोडियामी अपने गाँव के बच्चों को पढ़ाती हैं, क्योंकि उनके पास ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल होने के लिए उपकरणों की कमी है (छायाकार – नब किशोर पुजारी)

असल में कई स्कूली छात्र गाय और बकरियां चराकर अपने परिवार की मदद करने लगे।

कालियागुड़ा में भी स्थिति कुछ अलग नहीं थी।

माता-पिता और ग्रामीण बेताबी से वैकल्पिक समाधान खोज रहे थे, क्योंकि वे जानते थे कि पढ़ाई का नुकसान उनके छोटे बच्चों को प्रभावित कर सकता है।

यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण भारत सहित कुछ विकासशील देशों में, महामारी के दौरान स्कूल बंद होने से गणित और पढ़ने में काफी नुकसान हुआ है।

लॉकडाउन में पढ़ाई के प्रोत्साहन के लिए पुरानी शिक्षा प्रणाली को पुनर्जीवित करना

बच्चों को उनकी शिक्षा से जोड़े रखने की जरूरत को समझते हुए, दिल्ली स्थित गैर-लाभकारी संगठन, ‘आत्मशक्ति ट्रस्ट’ ने समुदाय-समर्थित शिक्षा पहल ‘मो चताशाली’ की शुरुआत की।

ओडिशा में औपचारिक स्कूली शिक्षा व्यवस्था शुरू होने से पहले, समुदाय ने अपने गांव के बच्चों की शिक्षा की सामूहिक जिम्मेदारी ली थी। उन्होंने बच्चों को पढ़ाने के लिए एक शिक्षित व्यक्ति को नियुक्त किया जाता था, जो अक्सर उसी गांव का होता था। हालांकि यह स्वैच्छिक था, कुछ माता-पिता नकद और वस्तु के रूप में भुगतान करते थे।

‘मो चताशाली’ कार्यक्रम समुदाय के सहयोग से चलने वाले पुराने मॉडल पर आधारित है, जिसमें स्थानीय लोग ग्रामीण बच्चों को पढ़ाते थे
‘मो चताशाली’ कार्यक्रम समुदाय के सहयोग से चलने वाले पुराने मॉडल पर आधारित है, जिसमें स्थानीय लोग ग्रामीण बच्चों को पढ़ाते थे (छायाकार – नब किशोर पुजारी)

आत्मशक्ति ने इसी सिद्धांत पर आधारित, मो चताशाली – जिसका मोटे तौर पर अर्थ मेरा स्कूल है – की शुरुआत ओडिशा के 17 जिलों में की, जिसमें युवा स्वयंसेवकों को शिक्षकों के रूप में शामिल किया गया।

किशोर स्वयंसेवकों को शामिल करने वाली इस पहल ने महामारी के दौरान एक लाख से ज्यादा बच्चों को अपनी पढ़ाई जारी रखने में मदद की है।

आत्मशक्ति ट्रस्ट की कार्यकारी ट्रस्टी, रुचि कश्यप कहती हैं – “हमारा विचार स्थानीय युवाओं को शामिल करने का था, ताकि उनमें स्वामित्व और जवाबदेही की भावना पैदा हो सके।”

लॉकडाउन में युवा स्वयंसेवक बच्चों को सीखने में मदद के लिए पढ़ाते हैं

कलियागुड़ा के ग्रामवासी भगवती नाइक को अपनी आशा की एकमात्र किरण के रूप में देखते हैं। वह उन्हें कलियागुड़ा के मो चताशाली केंद्र में पढ़ाती हैं, जिसे स्थानीय संगठन ‘लोक विकास मंच’ द्वारा सामुदायिक सहयोग से चलाया जाता है।

एक बालिका के रूप में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने में संघर्ष करने के बाद, नाइक ने खुद को बच्चों में देखा और यह सुनिश्चित करने का फैसला किया कि उन्हें उनके जैसी बाधाओं से न गुजरना पड़े।

महामारी के दौरान भगबती नाइक अपने गांव के बच्चों की पढ़ाई में मदद करती हैं
महामारी के दौरान भगबती नाइक अपने गांव के बच्चों की पढ़ाई में मदद करती हैं (छायाकार – नब किशोर पुजारी)

अपने दो बच्चों को नियमित रूप से मो चताशाली केंद्र में भेजने वाली माता, सुमित्रा भूमिया कहती हैं – “जो बच्चे अपनी किताबों से लगभग अलग हो चुके थे, अब अपनी पढ़ाई में वापस आ गए हैं। जिस जुनून से भगवती अपना काम करती हैं, वह वास्तव में प्रेरणादायक है।”

डुमरबहल गांव में, नूरिया पटेल तत्परता से स्वयंसेवक के रूप में काम करने के लिए तैयार हो गईं, क्योंकि वह समाज के लिए योगदान और समय समर्पित करने के लिए हमेशा उत्सुक रहती हैं।

वह स्थानीय लोगों के समूह, ‘नागरिक विकास संगठन’ के सहयोग से अपने गांव में कक्षा एक से पांच तक के 20 बच्चों को रोज पढ़ाती हैं।

अपने काम के बारे में वह कहती हैं – “एक स्वयंसेवक के रूप में मैं बेहद खुश हूँ, क्योंकि मेरा काम किसी तरह बच्चों के डिजिटल विभाजन को पाटता है। मुझे यह भी लगता है कि समुदाय को लौटाना महत्वपूर्ण है, भले ही यह छोटे तरीकों से हो।”

हालांकि 2020 के मध्य में स्कूली शिक्षा समाप्त करते ही पोडियामी ने शादी कर ली, लेकिन उन्होंने दिसंबर 2020 तक पहली से छठी कक्षा तक के 35 बच्चों को रोज पढ़ाना जारी रखा।

कश्यप कहती हैं – “जमुना, नूर्या और भगबती जैसी स्वयंसेवक इस बात के उदाहरण हैं कि युवा महिलाएं कैसे अपने समुदाय को लौटा कर उदाहरण स्थापित कर सकती हैं। सामाजिक परिवर्तन लाने की उनकी ज्वलंत इच्छा ने हमें इस पहल को जारी रखने में मदद की।”

वह कहती हैं – “हालांकि महामारी वंचित बच्चों की शिक्षा के लिए एक बड़ा झटका थी, युवा स्वयंसेवक इन बच्चों को अपनी पढ़ाई जारी रखने में मदद कर रहे हैं।”

नब किशोर पुजारी भुवनेश्वर स्थित एक विकास प्रोफेशनल हैं, जो आत्मशक्ति ट्रस्ट से जुड़े हैं।