खेत के अनुसार योजना, पोलीहॉउस, ड्रिप सिंचाई, मल्चिंग विधि और सब्जी-फल मिश्रण के द्वारा 5 से 7 वर्षों में खेती से दस लाख रूपए प्रति हेक्टेयर आय संभव है। झारखण्ड में किए गए प्रयासों की सफलता दिखाती है, कि खेती से विमुख हो रहे युवाओं को वापिस लाना संभव है।
भारत में 12 करोड़ किसान परिवार हैं, जिनकी 2018-19 में औसत जमीन 1.08 हेक्टेयर (1 हेक्टेयर = 2.5 एकड़) और वार्षिक आय लगभग 1.23 लाख रूपए प्रति परिवार है। झारखण्ड के 40 लाख परिवारों के पास औसत जमीन 0.8 हेक्टेयर और वार्षिक आय 56.6 हजार रूपए है।
परम्परागत विधि द्वारा खेती से कड़ी मेहनत के बावजूद अच्छी आय न होने के कारण, युवा खेती करना नहीं चाहते और दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं। नई पद्यति से खेती द्वारा उन्हें खेती में वापिस लाने और किसानों की आय बढ़ाना संभव है। ट्रांसफॉर्मिंग रूरल इंडिया फाउंडेशन (TRIF) द्वारा शुरू किए गए कार्यक्रम ‘मिलियन फार्मर्स डेवलपमेंट प्रोग्राम’ का मूल उद्देश्य यही है।
मिलियन फार्मर्स डेवलपमेंट प्रोग्राम
इस कार्यक्रम के लिए शुरू में 3 प्रखंडों में काम शुरू किया गया। यह प्रखंड हैं – रामगढ़ जिले में गोला, गुमला में राइडीह और खूंटी में तोरपा। इसके अच्छे परिणामों को देखते हुए, पश्चिम सिंहभूम के नोवामुंडी, सिमडेगा के कुरदेग, पलामू के चैनपुर, रांची के अंगारा और बेडो प्रखंडों में भी यह कार्यक्रम शुरू किया गया।
किसानों के चयन के मानदंड
न्यूनतम 1 हेक्टेयर (2.5 एकड़) कृषि योग्य ज़मीन
सुनिश्चित सिंचाई की सुविधा
सुरक्षित घेरा
50000 की शुरुआती कार्यशील पूंजी
खेती के लिए परिवार के 3 वयस्क सदस्यों की उपलब्धता
2.5 एकड़ में फसल योजना
0.75 से 1 एकड़ में फलदार पौधा रोपण (5 मीटर x 2.5 मीटर दुरी) – आम ,अमरुद,नीबू, मौसंबी, थाई बेर, सरीफा, आदि। समय-समय पर खाद, दवा के इस्तेमाल के लिए तालिका।
किसान के अनुभव के अनुसार साल भर की अंतः फसली खेती के लिए फसल चयन। जमीन के स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए फसल चक्र।
25 डेसीमल (100 डेसीमल=1 एकड़) जमीन में पपीते की रोपाई। यह किस्म 9 महीने में कच्चा पपीता देना शुरू कर देती है, जिसके कुछ सप्ताह के अंदर पक्का पपीता मिल जाता है।
25 डेसीमल में मचान विधि से साल भर सब्जी| सालाना बेल वाली 3 फसल।
125 डेसीमल में स्थानीय बाजार के अनुसार 5 प्रकार की सब्जियाँ| मिर्च ,बैगन,टमाटर,फूल गोभी,पत्ता गोभी,हरा मटर,फ्रंच बीन,तरबुज,खरबूज,खीरा,बिदेशी सब्जी की खेती सालभर मौसम के अनुसार।
सुनिश्चित सिंचाई की सुविधा
मौसम पर निर्भरता कम करने और पानी की कमी से होने वाली बिमारियों से फसलों को बचाने के लिए, किसान के पास सालभर खेती के लिए कुंआ, नाला या तालाब होना जरुरी है।
सुरक्षित घेरा
खुले पशुओं से फसल को बचाने के लिए, तेप्रशिया या पुटुष जैसे पौधों या तार की जाली द्वारा मेढ़बंदी करना जरूरी हैं।
50 हजार की शुरुआती कार्यशील पूंजी
बीज ,खाद ,कीटनाशक आदि खरीदने तथा मजदूरी खर्च के लिए, नगद धन जरूरी है| मौसम की मार से फसल नष्ट होने की स्थिति में यह धन तुरंत दवा के छिडकाव, मजदुर का खर्च या बीज की खरीद से नई खेती शुरू की जा सकती है।
परिवार के 3 वयस्क सदस्यों की उपलब्धता
फसलों की रोपाई, तुड़ाई, आदि महत्वपूर्ण और समयबद्ध कार्यों के लिए मजदूरों पर निर्भरता कम करने के लिए परिवार के सदस्यों की उपलब्धता महत्वपूर्ण है।
सहयोगी संस्थाओं द्वारा सहायता
किसानों के साथ बैठक करके, उनके अनुभव के अनुसार कुछ मानदंड तैयार किए बनाए गए| नये तरीके से खेती के लिए सामग्री, जैसे फलदार पौधे, नए बीज और खाद उपलब्ध कराए गए। खेत के भ्रमण, मिटटी की जाँच, कृषि विशेषज्ञ द्वारा विजिट और सुझाव के अनुसार खेत को सुधारा गया।
खेत-अनुसार साल भर की योजना
किसान बाजार में मांग के अनुसार फसल की सुची, बीज, खाद, दवा, आदि पहले से खरीद कर रख लेते हैं। खेती का शुरुआती खर्च सीमित रखने के लिए, सरकारी सहायता से बीज एवं दवा उपलब्ध कराई जाती है।
एक्सपोज़र विजिट
परस्पर अनुभवों को बांटने और सफलता एवं असफलता के कारणों को बेहतर समझने और आत्मविश्वास बढ़ाने के उद्देश्य से किसानों की एक्सपोज़र विजिट आयोजित की जाती हैं।
कार्यक्रम के परिणाम
इस पहल के परिणामस्वरूप, खेती से एक वर्ष में ढाई गुणा तक आमदनी बढ़ जाती है, जिसमें फलदार पौधों से भविष्य में होने वाली आय शामिल नहीं हैं। रामगढ़ जिले के नवाडीह गांव के निवासी, कलेस्वर बेदिया (45) कहते हैं – “मेरी 2 एकड़ जमीन से लगभग 1.5 लाख रूपए की आय होती थी, जो नई विधि से एक साल में लगभग 3.16 लाख, दो साल में 5.65 लाख रूपए हो गई। यहां तक कि कोरोना के प्रभाव के बावजूद, तीसरे साल में मुझे 5 लाख रूपए आय हुई।”
अपने परिवार पर इसके प्रभाव के बारे में उनका कहना है, कि इस अतिरिक्त आमदनी की बदौलत उनका बड़ा बेटा ऑटोमोबाइल कोर्स करके नौकरी कर रहा है। दूसरा बेटा कॉलेज में और बेटी 10वीं कक्षा में पढ़ पा रही है।
अनुभव से महत्वपूर्ण सीख
किसानों में डर एवं भ्रांति थी कि फलदार पौधे लगाने से जमीन खराब हो जाती है। इस भ्रान्ति को दूर करना जरूरी है। सिंचाई की सुविधा वाली जमीन एक साथ नहीं होने के कारण, किसानों का इस कार्यक्रम से जुड़ना मुश्किल होता है। इसके लिए जमीन का चुनाव और सिंचाई व्यवस्था पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है। छोटे किसानों के पास कार्यशील पूंजी की कमी होती है, जिसके कारण पूरी जमीन में एक साथ खेती नहीं कर पाते हैं। इसके लिए खेती के समय को निर्धारित करना जरूरी है।
वर्तमान मिटटी में आवश्यक जीवाणु की संख्या कम होती जा रही है। इस के कारण जमीन की उपजाऊ शक्ति घट रही है और उपज कम हो रही है। इसके लिए फलदार पौधों के साथ-साथ अंतर-फसल की खेती करना उपयोगी है। मिट्टी में नमी और गोबर खाद साल भर रहने से आवश्यक जीवाणुओं की संख्या बढ़ जाती है। परिमाणस्वरुप आमदनी बढ़ती है।
ऐसे समय में जब छोटे किसान अपनी न्यूनतम जरूरतों की पूर्ती के लिए संघर्ष कर रहे हैं, मिलियन हेक्टेयर प्रोग्राम उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार का महत्वपूर्ण उपकरण साबित हो सकता है।
अपनी जड़ों की ओर लौटते हुए, तमिलनाडु के शिक्षित युवाओं ने अपनी पैतृक भूमि का आधुनिकीकरण करके और इज़राइली कृषि तकनीक का उपयोग करके कृषि उत्पादन को कई गुना बढ़ा दिया है।
पोषण सखी या पोषण मित्र के रूप में प्रशिक्षित महिलाएं ग्रामीण महिलाओं, विशेषकर गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को पौष्टिक भोजन खाने और एनीमिया और कम वजन वाले प्रसव पर काबू पाने के लिए सलाह और मदद करती हैं।
ओडिशा में, जहां बड़ी संख्या में ग्रामीण घरों में नहाने के लिए बंद जगह की कमी है, बाथरूम के निर्माण और पाइप से पानी की आपूर्ति से महिलाओं को खुले में नहाने से बचने में मदद मिलती है।