क्या इस्पात कारखाने ढिंकिया की पान की लताओं को लुप्त कर देंगे?

अपने मुनाफे वाले पान के खेतों को छोड़ने के अनिच्छुक, ढिंकिया के निवासी एक औद्योगिक कारखाने के लिए अपनी भूमि के अधिग्रहण का विरोध कर रहे हैं।

जहां पारादीप का बंदरगाह शहर अपनी बंदरगाह, तेलशोधक और उर्वरक कारखाने के एक-पीस वर्दी पहने श्रमिकों से गुलजार है, वहीं आसपास के ग्रामीण इलाकों में हवा भयानक है।

ढिंकिया गाँव की ओर जाने वाली संकरी सड़क पर पुलिस की कई गाड़ियां पंक्तिबद्ध हैं। कोई दिखाई नहीं दे रहा, सिवाय एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति के, जिसकी साइकिल पर पान के पत्ते की बोरी है।

पड़ोसी त्रिलोचनपुर गाँव के, अजीत बर्धन कहते हैं – “ये मेरे भतीजे के खेत से हैं, जो कुछ दिन पहले नष्ट हो गया था। अपने घर के पिछवाड़े में पौधे लगाने के लिए, मैं कुछ ताज़ी पत्तियाँ लाने में कामयाब रहा।”

एक ऐसे स्वर में, जो चुनौतीपूर्ण और असहाय, दोनों था, उन्होंने कहा – “मेरी छह एकड़ जमीन 1999 में IOCL रिफाइनरी के लिए छीन ली गई थी। हमें एक बेहतर भविष्य के लिए बहुत आशा दी गई थी, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है। अब ढिंकिया की बारी है।”

लेकिन उड़ीसा के जगतसिंहपुर जिले का ढिंकिया गांव वैसे ही हालात का सामना नहीं करना चाहता।

14 जनवरी को, पुलिस ने एक कारखाने के लिए रास्ता बनाने के लिए, अपनी पान के खेत जबरन नष्ट करने का विरोध कर रहे ग्रामवासियों पर लाठीचार्ज किया।

ग्रामीण अपनी जमीन देने से इंकार कर रहे हैं, क्योंकि उनकी आजीविका का यही एकमात्र सहारा है। 

ओडिशा की पान-भूमि का संकट

ढिंकिया में परेशानी तब शुरू हुई, जब ग्रामीणों को पता चला कि उनकी पान की बेलें उखाड़ी जा रही हैं।

सुधांशु दलेई, जिनके सिर पर पट्टी बंधी थी, कहते हैं – “हमने बात करने और मामले को सुलझाने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने सुनवाई नहीं की। उन्होंने हमें बेरहमी से पीटा। किसी को नहीं बख्शा। बच्चों को बचाने की कोशिश में, मेरे सिर और पीठ पर चोट लगी।”

प्रदर्शन के दौरान बच्चों को बचाने की कोशिश में, सुधांशु दलेई की पुलिस ने पिटाई की (छायाकार - तज़ीन कुरैशी)
प्रदर्शन के दौरान बच्चों को बचाने की कोशिश में, सुधांशु दलेई की पुलिस ने पिटाई की (छायाकार – तज़ीन कुरैशी)

नाम गुप्त रखने की शर्त पर एक महिला ने बताया – “हमने कभी नहीं सोचा था कि पुलिस बच्चों को पीटेगी।”

पुलिस का कहना है कि पहले प्रदर्शनकारियों ने उन पर हमला किया। लेकिन ग्रामीण इससे इनकार करते हैं।

जमीन देने से इंकार

यह पहली बार नहीं है जब ढिंकिया किसी औद्योगिक दिग्गज के खिलाफ कड़ा प्रतिरोध पेश का रहे हैं।

वर्ष 2011 में, जब अधिकारी दक्षिण कोरियाई कंपनी ‘पोस्को’ के प्रस्तावित स्टील प्लांट के लिए जमीन का अधिग्रहण कर रहे थे, ढिंकिया ने महिलाओं और बच्चों के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन किया।

आखिर में सरकार ने ढिंकिया को भूमि अधिग्रहण से बाहर कर दिया। 2017 में कई अड़चनों के बाद POSCO ने ओडिशा छोड़ दिया।

मौजूदा विरोध पिछले महीने शुरू हुए, जब राज्य सरकार द्वारा संचालित ‘औद्योगिक बुनियादी ढांचा विकास निगम’ ने ढिंकिया पंचायत के अंतर्गत आने वाली 748 एकड़ जमीन का अधिग्रहण शुरू किया।

‘JSW उत्कल स्टील लिमिटेड’ के लिए स्टील, सीमेंट और थर्मल पावर प्लांट के निर्माण के लिए, ढिंकिया और दो अन्य पंचायतों की लगभग 3,000 एकड़ जमीन की जरूरत है।

पान लाता है धन

ढिंकिया के ग्रामवासी मछली और धान उगाते हैं, लेकिन ज्यादातर पान की खेती पर निर्भर हैं।

विरोध का समर्थन करने के लिए पड़ोसी गांव से आए, प्रकाश जेना कहते हैं – “यह जमीन पान उगाने के लिए उपयुक्त है।” 2013 में, जेना के भाई की कथित तौर पर पोस्को परियोजना का विरोध करने के लिए एक देसी बम विस्फोट में मौत हो गई थी।

ढिंकिया की उपजाऊ भूमि पान की खेती के लिए आदर्श है (छायाकार - तज़ीन कुरैशी)
ढिंकिया की उपजाऊ भूमि पान की खेती के लिए आदर्श है (छायाकार – तज़ीन कुरैशी)

एक पान का पत्ता ओडिशा, महाराष्ट्र और दिल्ली के बाजारों में औसतन एक रुपये का बिकता है। इसलिए, एक एकड़ जमीन वाला परिवार, हर महीने एक लाख से ज्यादा कमा सकता है और 30-40 मजदूरों को रोजगार दे सकता है।

ग्रामीणों को इस आजीविका को खोने का डर है।

जेना कहते हैं – “पहले जब उद्योग आए, तो वादे किए गए, लेकिन हमारे साथ धोखा हुआ। मेरे गांव गोविंदपुर की हमारी जमीन भी ले ली गई। लेकिन प्रस्तावित कंपनी कभी शुरू नहीं हुई और हमारी आजीविका चली गई।”

जेना ने कहा – “क्योंकि तब ढिंकिया के लोग नहीं झुके थे, उनके पान के खेत बच गए थे और मेरे गांव के लोग अब ढिंकिया में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करते हैं।”

ढिंकिया में पर्यावरण संबंधी चिंता

आजीविका के नुकसान के अलावा, पर्यावरण संबंधी चिंताएं भी हैं।

पारादीप बहुत प्रदूषित है और जनवरी 2020 में, अधिकारियों ने प्रदूषण मानदंडों का उल्लंघन करने के लिए छह उद्योगों पर एक-एक करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया।

‘सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर’ के एक अध्ययन से लगता है कि नया संयंत्र और भी खराब होगा।

अध्ययन में कहा गया है: “प्रस्तावित संयंत्र से प्रदूषण कण (पार्टिकुलेट मैटर) पारादीप के पूरे क्लस्टर से दो गुना और सल्फर डाइऑक्साइड दो-तिहाई होगा, जिसका अर्थ है कि हवा की गुणवत्ता और भी ज्यादा खराब होगी, जिसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।”

गाँव और सुपारी के खेतों का सीमांकन करती एक चारदीवारी, जहाँ संयंत्र प्रस्तावित है (छायाकार - तज़ीन कुरैशी)
गाँव और सुपारी के खेतों का सीमांकन करती एक चारदीवारी, जहाँ संयंत्र प्रस्तावित है (छायाकार – तज़ीन कुरैशी)

अभी तक, प्रस्तावित उद्योग को पर्यावरण मंजूरी नहीं मिली है। हालांकि, उन्होंने पहले ही सुपारी के खेतों से गांव का सीमांकन करने के लिए एक अस्थायी चारदीवारी बना ली है।

ढिंकिया के ग्रामीणों के लिए मायूसी और उम्मीद

जहां ढिंकिया के लोग पोस्को परियोजना को विफल करने में कामयाब रहे, वहीं इस बार डर का माहौल है।

ग्रामीणों का आरोप है कि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को झूठे मामलों में फंसाने की धमकी दी और कुछ को सार्वजनिक रूप से परियोजना का समर्थन करने के लिए मजबूर किया।

हालांकि उनकी कुछ पान की बेलें हाल ही में नष्ट हो गई थीं, लेकिन संयंत्र के समर्थन का दावा करने वाले एक ग्रामीण ने – “अधिकारी बेतरतीब ढंग से लोगों को ले जाते हैं। जब तक हम पुलिस स्टेशन पहुंचते हैं, तब तक वे हमारी पान की बेल नष्ट कर देते हैं।”

14 जनवरी के लाठीचार्ज के बाद, ज्यादातर ग्रामवासी घरों में ही रहे। एक सप्ताह बाद जब वे इकठ्ठा हुए, तो महिलाएं और बच्चे अगवाई कर रहे थे, जो ढिंकिया की एक अनोखी रणनीति मानी जाती है।

12 साल की एक बच्ची ने सवाल किया – ‘सरकार कहती है कि हम देश का भविष्य हैं। क्या यह वह भयानक भविष्य है, जिसका वे जिक्र कर रहे हैं? हमारी जमीन छीन ली जाती है, हमारे माता-पिता को पीटा जाता है, तो हम सब कुछ अनदेखा करके पढ़ाई कैसे कर सकते हैं?”

राज्य के दूसरे हिस्सों के कार्यकर्ता ढिंकिया का समर्थन कर रहे हैं, जहां लोगों के हार मानने के लिए तैयार न होने के कारण, तनाव अभी भी बना हुआ है।

एक बुजुर्ग महिला, रेबा दास ने फूट-फूट कर रोते हुए कहा – “यह लड़ाई 15 साल से चल रही है। और यह जारी रहेगी। यदि उन्होंने हमारी जमीन पर जबरन कब्जा कर लिया, तो हम जहर खाकर मर जाएंगे।”

तज़ीन कुरैशी भुवनेश्वर में स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।