भारत के ‘पृथ्वी दिवस’ नायक

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बंजर भूमि को हरे-भरे जंगलों में बदलने वाले किसानों से लेकर उन तक, जो कम बीज के साथ नई टिकाऊ किस्म के फल पैदा करते हैं - भारत के गाँव पर्यावरण-योद्धाओं से भरे हुए हैं, जो हमारे ग्रह में निवेश कर रहे हैं। ‘पृथ्वी दिवस 2022’ पर उन्हें सलाम करने के लिए हमसे जुड़ें।

गाड़ी में बैठ कर भारत के ग्रामीण इलाकों से हो कर गुजरना और उसके प्रगति की कमी को “पिछड़ा” कहकर खारिज करना आसान है।

लेकिन हम में से बहुत से लोग इस तथ्य को समझ रहे हैं कि टिकाऊपन ग्रामीण भारत के पुराने जमाने की, यहां तक ​​​​कि प्राचीन काल की, कृषि पद्धतियों के केंद्र में है।

जैसे-जैसे दुनिया यह महसूस करने लगती है कि जीवन के लिए, कुछ प्राचीन ज्ञान और समग्र दृष्टिकोण, पालन करने लायक हैं, विलेज स्क्वेयर में हम अपने पसंदीदा चैम्पियनों पर प्रकाश डालना चाहते हैं, जो हमारे ग्रह में निवेश कर रहे हैं।

स्वदेशी बीजों को सावधानीपूर्वक इकठ्ठा करने और उनका प्रसार करने वाले बीज-रक्षकों से लेकर, उन किसानों तक, जो फलों की नई, टिकाऊ किस्मों (जैसे कम बीज वाले कस्टर्ड सेब!) का प्रजनन करते हैं।

बंजर भूमि को हरे-भरे जंगलों और बागों में बदलने वाले पुरुषों से लेकर, उस युवा महिला तक, जो जल संरक्षण सिखाती है, या जो बांस के लिए गुनगुनाती है।

और क्या हमने उस युवा ‘टविचर’ का जिक्र किया, जो थार के रेगिस्तान में पक्षियों को बचाने में मदद कर रहा है या श्रीनगर झील को स्वयंसेवक नंगे हाथों से साफ कर रहे हैं? ओह, और सुंदरबन में भी, जीपीएस टैग से लैस, कछुओं का जंगल में छोड़ा जाना हम न भूलें। या एक झंझटपूर्ण पानी की खरपतवार को कीमती और पौष्टिक पशु आहार में बदलने का कार्यक्रम।

कैद में प्रजनित उत्तरी नदी के छोटे कछुए, निगरानी के लिए लगे जीपीएस ट्रांसमीटरों के साथ, खुले में छोड़े जाते हैं|
कैद में प्रजनित उत्तरी नदी के छोटे कछुए, निगरानी के लिए लगे जीपीएस ट्रांसमीटरों के साथ, खुले में छोड़े जाते हैं (फोटो – टीएसए इंडिया के सौजन्य से)

भारत के गांवों में पर्यावरण-योद्धाओं की भरमार है, जो हमारे ग्रह में निवेश कर रहे हैं। विलेज स्क्वेयर अक्सर उन पर प्रकाश डालता है।

वे विभिन्न क्षेत्रों से आते हैं, विभिन्न भाषाएं बोलते हैं और विभिन्न देवताओं को पूजते हैं – लेकिन वे हमारे ग्रह के भविष्य में निवेश करने के अपने शांत दृढ़ संकल्प द्वारा एकजुट हैं – वह कुछ, जो ‘विश्व पृथ्वी दिवस’ के मूल में है।

नीचे उनकी कहानियां पढ़ें। और इन्हें शेयर करना भी ना भूलें! आइए, उनके काम का जश्न मनाएं।

‘पृथ्वी दिवस’ का इतिहास क्या है?

जैसा ज्यादातर आंदोलनों के साथ होता है, एक त्रासदी पहले पृथ्वी दिवस की उत्प्रेरक थी, जो 1970 में संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई थी। उससे एक साल पहले, सांता बारबरा, कैलिफोर्निया के तट पर एक भयानक तेल रिसाव हुआ था।

तट से छह मील दूर, एक तेल ले जाने वाले जहाज में हुए एक विस्फोट के कारण, तीस लाख गैलन तेल समुद्र में 35 मील फैल गया। 3,500 से ज्यादा पक्षी और डॉल्फ़िन, सील और सी लायन मारे गए।

इस पर्यावरणीय आपदा ने, विस्कॉन्सिन राज्य के सीनेटर, गेलॉर्ड नेल्सन को देश भर में “कक्षाओं (teach-ins)” की एक श्रृंखला आयोजित करने के लिए प्रेरित किया। वह 150 वर्षों के औद्योगिक विकास से ग्रह पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाना चाहते थे।

उनके विचार ने जोर पकड़ा। दो करोड़ अमेरिकी, जो उस समय आबादी का 10% थे, पहले पृथ्वी दिवस के लिए सड़कों, पार्कों और सभागारों में आ गए, जो आज एक वैश्विक कार्यक्रम है।

इस वर्ष का विषय “अपने ग्रह में निवेश करें” है और आप निश्चित रूप से विलेज स्क्वेयर के ‘पर्यावरण’ खंड में, सहयोग और निवेश करने के लिए, पृथ्वी-चैंपियन के विचार पढ़ सकते हैं।

भारत का “जीवित धान जीन-बैंक”

उस आदमी की तरह, जिसे “भारत का जीवित धान जीन-बैंक” कहा जाता है। कुरिचिया आदिवासी किसान, चेरुवायल रमन को डर है कि उनकी मृत्यु के बाद, स्वदेशी चावल की किस्मों को सावधानीपूर्वक संरक्षित करने का जीवन भर का उनका काम ख़त्म हो जाएगा।

चेरुवायल रमन कई दशकों से अब तक भी, वायनाड की किस्मों के पारम्परिक चावल को संरक्षित और प्रचारित कर रहे हैं|
चेरुवायल रमन कई दशकों से अब तक भी, वायनाड की किस्मों के पारम्परिक चावल को संरक्षित और प्रचारित कर रहे हैं (छायाकार – सिबी पुलपल्ली)

वह एकमात्र बीज-रक्षक नहीं हैं।

देशी बीजों के प्रसार से मुनाफा

ओडिशा के हाशिए पर जीवन जीने वाले किसान, सुदाम साहू ने जब सुना कि बीज का अकाल पड़ने वाला है, तो उन्होंने भी देशी बीजों का संरक्षण करना शुरू कर दिया। अब वह अपने क्षेत्र के उन किसानों के लिए जाने-माने व्यक्ति हैं, जो यह सीखना चाहते हैं कि बीज का प्रचार कैसे किया जाए।

और फिर वो लोग हैं, जिन्होंने बंजर भूमि को फलते-फूलते जंगलों और बागों में बदल दिया है।

बंजर भूमि को अमरूद के बागों में बदलना

‘अमरूद गुरु” के रूप में प्रसिद्ध, सत्येंद्र मांझी ने खेती का पहले कोई अनुभव न होने के बावजूद, दक्षिणी बिहार में एक बंजर भूमि को हरे-भरे अमरूद के बागों में बदल दिया।

खेती के अनुभव की कमी की बात करें तो…

वकील बने जैविक किसान

एल आर वेंकटेशन चेन्नई शहर में एक वकील थे। लेकिन मस्तिष्क पक्षाघात (स्पास्टिक सेरेब्रल पाल्सी) से पीड़ित कुछ कुपोषित बच्चों से मिलने के बाद, उन्होंने जैविक खेती करने का फैसला किया। सात वर्षों में, एक बंजर भूमि एक हरा-भरा लघु-वन बन गई है।

सरल किसान फलों की नई किस्में पैदा करते हैं

ऐसे सरल किसानों की संख्या बढ़ रही है, जिन्होंने, बिना किसी औपचारिक शिक्षा के, फलों की नई किस्में विकसित की हैं, जो न सिर्फ अधिक उपज देती हैं और कीट-प्रतिरोधी हैं, बल्कि विभिन्न प्रकार के वातावरण में उगाई जा सकती हैं।

नवाचारी किसान, नवनाथ कस्पाटे द्वारा विकसित कस्टर्ड सेब में, गूदा ज्यादा और बीज कम होता है|
नवाचारी किसान, नवनाथ कस्पाटे द्वारा विकसित कस्टर्ड सेब में, गूदा ज्यादा और बीज कम होता है (छायाकार – हिरेन कुमार बोस)

केवल पुरुष ही जलवायु परिवर्तन और घटते संसाधनों के खिलाफ लड़ाई में आगे नहीं हैं।

उत्तर प्रदेश की युवा जल-प्रचारक

लोगों का पानी बर्बाद करते देखना रमनदीप कौर को इतना आहत करता है कि वह चुप नहीं रह पाती हैं। तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि यूपी की इस युवती को अपने काम के लिए “जल प्रचारक” (Water Evangalist) के रूप में अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली – यूपी के 22 गांवों को स्वच्छ, सुरक्षित पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करना और पानी का संरक्षण करना और प्रदूषण से लड़ना सीखना।

विश्व की समस्याओं (सभी) के समाधान के रूप में बाँस

नैना फ़ेबिन एक और युवा महिला हैं, जिनमें पर्यावरण के प्रति जुनून है। यहां जवाब केरल का बाँस है। वह इसे ज्यादा घातक होती बाढ़ के खिलाफ, एक संभावित रुकावट के रूप में देखती हैं। उन्होंने न केवल 2,000 से ज्यादा बांस के पौधे लगाए हैं, बल्कि एक गायिका के रूप में, वह बांस के फायदों के बारे में भी बताती हैं।

 नैना फेबिन बाँस को कई पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान के रूप में देखती हैं|
नैना फेबिन बाँस को कई पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान के रूप में देखती हैं (छायाकार – सुबिन कोप्पम)

युवा टविचर बने रेगिस्तान के स्टार ‘पक्षी (बर्डिंग) गाइड’

मूसा खान का शौक पक्षी हैं। वह न केवल राजस्थान के एक सक्रिय टविचर (ट्वीट से जानकारी साझा करने वाले) हैं, बल्कि वह थार रेगिस्तान के सबसे अच्छे पक्षी गाइडों में से एक हैं। उन्हें उम्मीद है कि उनका काम अन्य टविचरों को बिजली की लाइनों की बढ़ती संख्या के कारण, पक्षियों की करंट से होने वाली मौतों के बारे में जागरूक होने के लिए प्रेरित करेगा।

लुप्तप्राय उत्तरी नदी के छोटे कछुओं की निगरानी करना

सुंदरबन में देश भर से लुप्तप्राय, उत्तरी नदी के छोटे कछुओं का, हाल ही में अपने मूल आवास में छोड़ने से पहले, वर्षों तक कैद में प्रजनन किया गया था। भारत के पहले जीपीएस टैगिंग और ट्रैकिंग कार्यक्रम की बदौलत, इन कछुओं को जंगल में घूमते हुए भी ट्रैक किया जा सकेगा।

श्रीनगर की खुशाल सर झील पुनर्जीवित हुई

अंत में, हम श्रीनगर की एक प्रदूषित झील को अपने नंगे हाथों से साफ करने वालों का जश्न मनाना चाहते हैं। उनके काम की बदौलत, खुशाल सर झील का दशकों का कचरा साफ़ किया जा सका, जिससे श्रीनगर की प्रसिद्ध झीलों की ज्यादा बहाली और झील-आधारित आजीविका के पुनरुद्धार को बढ़ावा मिला।

राहुल रमन विलेज स्क्वेयर में ‘कंटेंट मैनेजर’ हैं।

लिंडी प्रिकिट विलेज स्क्वेयर की निदेशक हैं।