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“मैंने अपने परिवार को पालने के लिए टैक्सी और लॉरी चलाई”

जब पीजी दीपामोल के पति बीमार हो गए, तो उन्हें अपने परिवार को चलाने के लिए, टैक्सी और लॉरी चलानी पड़ी। अब वह केरल की पहली महिला एंबुलेंस पायलट हैं और मरीजों की मदद करना ड्राइविंग के कामों में सबसे फायदेमंद मानती हैं। पढ़िए, उनकी कहानी उन्हीं के शब्दों में।

कोट्टायम, केरल

वर्ष 2010 मेरे जीवन का सबसे मुश्किल वर्ष था। मेरे पति स्वास्थ्य कारणों से काम नहीं कर सकते थे। हालात ने मुझे अपने परिवार का कमाऊ सदस्य बनने पर मजबूर कर दिया।

जब मैं नौकरी की सख्त तलाश कर रही थी, तो एक करीबी पारिवारिक मित्र, बाबू ने व्यावसायिक दौरे के लिए उनकी कार चलाने का सुझाव दिया।

मैं थोड़ी आशंकित थी।

लेकिन पीछे मुड़कर देखती हूँ, कि यह रन्नी से पठानमथिट्टा जिले के परुमाला चर्च तक तीर्थयात्रियों को ले जाने वाली एक केवल 35 कि.मि. की छोटी यात्रा थी।

जब तीर्थयात्रियों ने बड़ी प्रशंसा के साथ मेरा पहला पारिश्रमिक दिया और कहा कि मैं नौसिखिए की तरह नहीं, बल्कि एक अनुभवी की तरह ड्राइव करती हूँ, तो मैं वास्तव में रोमांचित हो गई।

इस तरह मैं एक कमर्शियल ड्राइवर बन गई।

मुझे बचपन से ही ड्राइविंग का शौक रहा है।

ड्राइविंग बस क्लच, स्टीयरिंग व्हील, ब्रेक, वगैरह के इस्तेमाल की कोई यांत्रिक गतिविधि नहीं है, बल्कि यह एक कला है।

मैंने 4×4 ऑफ-रोड (कच्चे रास्तों की) जीप रेस में भाग लिया है।

कोट्टायम से लद्दाख तक की मेरी मोटरसाइकिल यात्रा चुनौतियों से भरी थी। लेकिन यह एक रोमांचकारी अनुभव भी था।

इसलिए, स्वाभाविक रूप से, अपने जुनून को देखते हुए,मैंने  तीर्थयात्रियों की अपनी पहली यात्रा के बाद व्यावसायिक ड्राइविंग के कई काम किए।

मैंने टैक्सी और लॉरी चलाई। मैंने एक ड्राइविंग स्कूल में पढ़ाया। अपने बीमार पति और बेटे को खिलाने के लिए कुछ भी किया।

COVID-19 एक खलनायक साबित हुआ। मैं आर्थिक रूप से बहुत प्रभावित हुई। अनेक यात्रा प्रतिबंधों के चलते, मैंने यात्राओं के लिए व्यर्थ इंतजार किया।

भले ही मैं आर्थिक तंगी में थी, फिर भी मैंने राहत कार्यों का हिस्सा बनने का संकल्प लिया। मैं आर्थिक रूप से मदद नहीं कर सकती थी, लेकिन मैं शारीरिक रूप से मदद कर सकती थी। इसलिए महामारी के दौरान मैंने स्वैच्छिक काम किए।

इस सब के बीच, मुझे एंबुलेंस चालकों की भर्तियों के लिए केरल स्वास्थ्य विभाग का एक विज्ञापन मिला।

तो, मैंने आवेदन कर दिया।

लेकिन मैं निराशावादी थी। मैं सोच रही थी कि क्या सरकार एक महिला को एम्बुलेंस चालक के रूप में नियुक्त करेगी।

जैसे-जैसे महामारी का असर कम हुआ, हालात में सुधार होने लगा। लेकिन मैं अभी भी गुजारे के लिए संघर्ष कर रही थी।

फिर एक दिन मुझे तिरुवनंतपुरम से फोन आया। दूसरी तरफ एक महिला बोल रही थी।

“दीपा, मैं स्वास्थ्य मंत्री, वीना जॉर्ज हूँ।”

मैं दंग रह गई। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था। जवाब देते हुए मेरी आवाज कांप रही थी।

मंत्री ने विनम्र स्वर में कहा कि मुझे एम्बुलेंस चालक के रूप में नियुक्त किया जा रहा है। और उत्साहजनक शब्दों के साथ, उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया।

8 मार्च, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर, उन्होंने मुझे एम्बुलेंस की चाबी सौंपी और मैंने केरल की पहली महिला एम्बुलेंस चालक के रूप में अपनी नई नौकरी की शुरुआत की।

मेरे पास हर रोज अनजान शुभचिंतकों के ढेरों फोन आते हैं। कुछ लोग मेरे काम की तारीफ करते हैं। कुछ लोग महिला ड्राइवर बनने को लेकर मेरी सलाह लेते हैं।

मैं उन्हें प्रोत्साहित करने और मार्गदर्शन करने की कोशिश करती हूँ।

तिरुवनंतपुरम स्थित पत्रकार के. राजेंद्रन की रिपोर्ट। चित्र: पीजी दीपामोल के सौजन्य से|