Her life logo

कालबेलिया परम्परा को संभाल कर रखना

दो बार बाल-वधू बनी, सुशीला नाथ, जो अब तीन बच्चों की एकल माँ हैं, पशु पालने और खेतिहर मज़दूर के रूप में काम करके अपना जीवन यापन करती हैं। लेकिन उनका जुनून अपने कबीले के कालबेलिया आभूषणों और नृत्य को संरक्षित करना और इसे व्यावसायिक रूप से टिकाऊ बनाना है।

अजमेर, राजस्थान

मैं पुष्कर शहर के बाहरी इलाके के गणेहेरा गांव में पली-बढ़ी हूँ। जितना मुझे याद है, मुझे नृत्य करने का बहुत शौक था। जब भी मैं कोई गाना सुनती, तो मैं नाच उठती।

मैंने हमेशा एक मशहूर डांसर बनने का सपना देखा था। मैं अपने समुदाय की कुछ लड़कियों, अपनी माँ और चाची को नाचते देखा करती थी।

जब मेरा बाल-विवाह हुआ, तो शायद मैं पहली कक्षा में पढ़ती थी। मेरे पति की उम्र मुझसे काफी ज्यादा थी। इसलिए उसने किसी और से शादी कर ली। मेरी दोबारा शादी की गई। बेशक, यह भी बाल विवाह ही था!

जब मैं 12 साल का थी, तब हम कुछ महीनों के लिए जैसलमेर शहर के बाहर रेत के टीलों पर रहे, जहां हम पर्यटकों के लिए प्रदर्शन करते थे। मैं अपनी मां और चाचियों के साथ शाम 7 से 10 बजे तक अपने पारम्परिक कालबेलिया या सपेरा-नृत्य का प्रदर्शन करती थी। संगत के लिए मेरे पिता एक लकड़ी की डंडी से पीतल की थाली बजा कर लय बनाते थे। एक ढोलक भी बजाई जाती थी।

हमारे नृत्य की पोशाक का एक जरूरी हिस्सा, छोटे-छोटे मणकों से बने कालबेलिया आभूषण हैं।

मैं छोटी उम्र में ही कालबेलिया के मणकों के काम की ओर आकर्षित हो गई थी, क्योंकि मैं इसे अपने नृत्य से जोड़ कर दखती थी।

मैं अपनी माँ के साथ बैठ कर उन्हें मणकों की वस्तुएं बनाते देखती। वह मुझे बताती कि मणकों को कैसे पिरोया जाता है।

मैं आठ साल की रही हूँगी, जब मेरी माँ  ने मुझे एक अधूरा कमरबंद दिया। मैंने अपना ही पैटर्न तैयार कर दिया। मेरी माँ मेरे काम से बहुत खुश हुई।

क्योंकि नृत्य हम कुछ ही घंटों के लिए करते थे, इसलिए हम बाकी समय में कालबेलिया आभूषण और गुदड़ी बनातेथे।

कुछ गुजराती पर्यटकों ने हमें आभूषण बनाते हुए देखा और हमसे कुछ आभूषण खरीदे। यह पहली बार था, जब हमने अपने मणकों की ज्वैलरी को व्यावसायिक रूप से बेचा।

जब मैं 18 साल की हुई, तो मुझे मेरे पति के घर भेज दिया गया। मेरी शादीशुदा जिंदगी के शुरुआती कुछ महीने ठीक रहे। फिर मेरे पति मेरे साथ बुरा बर्ताव करने लगे।

हम अजमेर के बाहरी इलाके में एक होटल में रह रहे थे, जहां उस वक्त हम कार्यक्रम करते थे।

मेरे पति काम करने के इच्छुक नहीं थे। लेकिन हम बिना काम किए कैसे रह सकते थे? बात इतनी बढ़ गई कि 2008 में मैंने जहर खा लिया। मेरे पति ने तब भी कोई परवाह नहीं की।

होटल के एक कर्मचारी ने मेरे परिवार को इसकी जानकारी दे दी, जो मुझे अस्पताल ले गए, मेरा इलाज कराया और मुझे घर ले गए।

कुछ महीनों के बाद जब मेरे पति आए और मेरे माता-पिता से अपने तरीके सुधारने का वादा किया, तो मैं उनके साथ वापिस आ गई। लेकिन मेरी बेटी गंगा और बेटे जग्गू के पैदा होने के बाद भी मेरी परेशानी ख़त्म नहीं हुई।

जब मैं अपने तीसरे बच्चे अंशु को लेकर गर्भवती थी , तो मेरे पति मुझे मेरे माता-पिता के घर छोड़ गए। तब से वह वापिस नहीं आए हैं।

यह पांच साल पहले की बात है।

मैंने नृत्य प्रदर्शन के लिए विभिन्न राज्यों के कई शहरों की यात्रा की है। लेकिन अब मैं नृत्य प्रदर्शन नहीं करती। सिर्फ खास पारिवारिक मौकों पर ही करती हूँ।

आमतौर पर मेरे दिन की शुरुआत सुबह 5 बजे होती है। मैं बकरियों का दूध निकालती हूँ, कोई काम हो तो खेत में जाती हूँ और पशुओं की देखभाल करती हूँ। फिर मैं कालबेलिया आभूषण और गुदड़ियाँ बनाती हूँ।

मैं चाहती हूँ कि मेरे बच्चे पढ़ाई करें। मैं चाहती हूँ कि वे अपने जीवन में अच्छा करें, इसलिए मैं उन्हें अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने देती हूँ। मेरा मानना है कि यदि वे पढ़-लिख जाते हैं, तो वे जो चाहें कर पाएंगे और सम्मान का जीवन जी सकेंगे।

साथ ही मैं चाहती हूँ कि वे कालबेलिया आभूषण बनाने की कला भी सीखें। मैं चाहती हूँ कि मेरे बेटे भी सीखें।

आपको पता है, मैंने तीसरी कक्षा भी पूरी नहीं की थी। लेकिन 30 साल की उम्र में, मेरा अब एक और सपना है।

मैं अंग्रेजी सीख रही हूँ। मैं अब तीन अक्षर वाले शब्द पढ़ सकती हूँ। एक बार मैं भाषा सीख लूँ, तो मैं अपने कालबेलिया आभूषणों का बेहतर प्रचार कर पाऊंगी।

मणकों के कालबेलिया आभूषणों को संरक्षित करने की आदिवासी महिलाओं की आशा के बारे में पढ़ें ।

अजमेर, राजस्थान की एक स्वतंत्र पत्रकार और लेखक, शेफाली मार्टिन्स का लेख। चरखा फीचर्स के सौजन्य से।

लेख के मुख्य फोटो में सुशीला नाथ को मणकों को पिरोते दिखाया गया है। फोटो – शेफाली मार्टिंस, ब्रेट कोल और सुशीला नाथ के सौजन्य से।