“बीज ग्राम” योजना से खेती बनी आर्थिक रूप से लाभकारी

मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश सरकार से रियायती दरों पर प्राप्त, उच्च गुणवत्ता के ‘आधार बीजों’ से तैयार बीज वितरित करके किसानों ने लाभ कमाया।

भारत में लगभग 70% लोग खेती से अपनी आजीविका चलाते हैं। फिर भी, किसान को अपनी जरूरतें पूरा करने के लिए, निरंतर रूप से संघर्ष करना पड़ता है। कई कारणों से खेती अक्सर घाटे का व्यवसाय बन जाती है।

“बीज ग्राम” योजना का उद्देश्य ऐसे उन्नत बीज किसानों को उपलब्ध कराना है, जो गांव की मिट्टी और सूक्ष्म जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल हों। इसके प्रभावी कार्यान्वयन और बेहतर पहुँच ने किसानों के लिए खेती को लाभकारी बनाने में मदद की है। किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में यह एक बड़ा कदम है।

‘बीज ग्राम’ योजना

यह योजना ‘किसान कल्याण और कृषि विकास विभाग’, मध्य प्रदेश द्वारा डिजाइन और कार्यान्वित की जा रही है । बीज ग्राम से मतलब वह गांव है, जिसमें योजना लागू की जा रही है।

इस योजना के अंतर्गत, किसानों में उत्तम बीज उत्पादन के बारे में जागरूकता पैदा की जाती है। इसके लिए एक एकड़ जमीन के लिए जरूरी बीज के मूल्य पर 50 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है।

बीज ग्राम योजना किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले बीज प्राप्त करने में मदद करती है (छायाकार – जीत परमार)

बीज ग्राम योजना मप्र के सभी जिलों में लागू की जा रही है। प्रत्येक जिले को इसके कार्यान्वयन का लक्ष्य दिया गया है। इस कारण, गांवों की संख्या और योजना में भाग लेने वाले किसानों की संख्या जिलों में अलग-अलग हो सकती है।

योजना का उद्देश्य

अच्छे उत्पादन और खेती से अच्छी आय के मुख्य निर्धारकों में से एक सही और उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का उपयोग है। अच्छी तरह से चुने गए और उन्नत बीजों से, किसान की भूमि में अच्छा उत्पादन होता है। यह योजना सुनिश्चित करती है कि भाग लेने वाले किसानों को बुवाई के समय से पहले ऐसे अच्छी तरह से चुने हुए उन्नत बीज प्राप्त हों।

इस योजना का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि किसान उपलब्ध कराए गए बीजों से, अपने लिए और अपने पड़ोसियों के लिए बीज पैदा करते हैं। इस प्रकार पैदा किए गए बीजों का तीन वर्षों तक इस्तेमाल किया जा सकता है।

इससे सुनिश्चित होता है कि ज्यादा किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले बीज प्राप्त हों और बीज के लिए उनकी बाजार पर निर्भरता कम हो। इस तरह बीज से बीज पैदा करने वाले किसान अच्छी कमाई करते हैं, क्योंकि वे इन उच्च गुणवत्ता वाले बीजों को गांव में ही लाभकारी मूल्यों पर बेच पाते हैं।

योजना के लिए किसानों की चयन प्रक्रिया

बीज ग्राम योजना उन गांवों को प्राथमिकता देती है, जहां अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के किसान अधिक संख्या में होते हैं।

योजना में भाग लेने के लिए किसानों को ग्रामसेवक और जिला कृषि अधिकारी को आवेदन करना होता है। किसानों को आवेदन के साथ, अपने आधार कार्ड, बैंक खाते के विवरण और जमीन की मिल्कियत के दस्तावेज की प्रतियां देनी पड़ती हैं।

बीज ग्राम योजना के लिए चुने गए किसानों ने बीज उत्पादन पर प्रशिक्षण प्राप्त किया (छायाकार – जीत परमार)

चुने गए किसानों को उत्पादन के तीन चरणों, बुवाई, फूल आने पर काम और कटाई में विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है।

योजना के प्रावधान

योजना के अंतर्गत, प्रत्येक चयनित गाँव के 50 भाग लेने वाले किसानों को, उनकी एक एकड़ भूमि में इस्तेमाल के लिए 40 किलोग्राम प्रमाणित उच्च गुणवत्ता वाला आधार-बीज दिया जाता है।

भाग लेने वाले किसानों को, नए विकसित, प्रमाणित और उच्च गुणवत्ता वाले बीज दिए जाते हैं। प्रमुख फसलों, दलहन और तिलहन के लिए यह बीज दिए जाते हैं।

किसानों को उत्पादित बीजों के लिए आर्थिक सहायता मिलती है। इसके अलावा, किसानों को 0.5 एकड़ भूमि में बीज पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। उनसे उम्मीद की जाती है कि वे इस जमीन में पैदा बीजों को, अपने पड़ोसियों और आसपास के गांवों के किसानों को बेचेंगे।

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के किसानों को 10 क्विंटल बीज के लिए 1,500 रुपये और 20 क्विंटल बीज के लिए 3,000 रुपये मिलते हैं। अन्य किसानों को क्रमशः 1,000 रुपये और 2,000 रुपये मिलते हैं।

बीज शुद्धता सुनिश्चित करना

किसानों से उम्मीद की जाती है कि वे पहले की तरह अपने सामान्य खेती के काम जारी रखेंगे। इसकी मंशा बेहतर बीज के प्रभाव को प्रदर्शित करना है, और इसलिए खेती के तरीकों को नहीं बदला गया है।

फिर भी बीज से बीज पैदा करने में विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है। किसानों को यह सुनिश्चित करना होता है कि जिस जमीन में बीज पैदा करने के लिए ‘फाउंडेशन बीज’ लगाए गए हैं, उसी फसल के दूसरे बीज उनमें न मिल जाएं। इस तरह के मिश्रण से शुद्धता कम हो जाएगी और उपज बीज के रूप में उपयोगी नहीं होगी।

एक किसान का अनुभव

मध्य प्रदेश के सिहोर जिले में इस योजना के अंतर्गत चुने गए गांवों में एक गांव बिजलोन था। बीज ग्राम योजना के अंतर्गत इस गांव के 27 किसानों को चुना गया था।  

किसानों को बुवाई से ठीक पहले बीज मिल जाते हैं (छायाकार – जीत परमार)

बिजलोन के सभी 27 किसानों को गेंहू के HI-8759 और HI1544 बीज दिए गए थे।  

प्रत्येक किसान को 40 किलो बीज 50% सब्सिडी पर प्राप्त हुए। इसलिए किसानों ने अपने 50% हिस्से के तौर पर 800 रुपए का भुगतान किया। 

एक चयनित किसान, आशीष त्यागी कहते हैं – “मैंने इन बीजों को एक एकड़ जमीन में बोया था। मैंने पिछले साल के तरीके से ही 18 क्विंटल का उत्पादन किया, जो पिछले साल की तुलना में तीन क्विंटल ज्यादा है।इससे मुझे 6,000 रुपये अतिरिक्त कमाने और खेती की लागत में 1,000 रुपये बचाने में मदद मिली। इस तरह एक एकड़ में पिछले साल की तुलना में मुझे 7,000 रुपये का लाभ हुआ।”

योजना को लागू करने में चुनौतियाँ

तीन प्रमुख मुद्दों ने योजना को प्रभावित किया –

  • बीज ग्राम योजना के अंतर्गत, किसानों को बुवाई के समय ही बीज मिल जाता है। आमतौर पर किसान बुआई के समय से काफी पहले बीज की व्यवस्था कर लेते हैं।
  • क्योंकि ने तो पंचायत और न ही ग्राम सभा किसानों के चयन में शामिल है, इसलिए ज्यादा जरूरतमंद किसान योजना से बाहर रह सकते हैं।
  • कभी-कभी, किसानों को नहीं लगता कि उन्हें दिए गए बीज उच्च गुणवत्ता वाले हैं। इसलिए वे बाजार से बीज खरीदकर बोना पसंद करते हैं।

सुझाव

  • बुवाई के समय से कम से कम एक महीने पहले बीज उपलब्ध कराया जा सकता है। 
  • किसानों का चुनाव ग्राम सभा के परामर्श से चुना जा सकता है। 
  • बीज किसानों की महसूस की गई जरूरतों के अनुसार दिए जाने चाहिए।
  • भाग लेने वाले किसानों की उपस्थिति में बीजों का अंकुरण परीक्षण भी किया जाना चाहिए।

इस लेख के शीर्ष पर मुख्य चित्र में जीत परमार को बीज ग्राम योजना के किसानों को सम्बोधित करते हुए दिखाया गया है (फोटो – जीत परमार के सौजन्य से)

जीत परमार एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो वर्तमान में भोपाल स्थित संगठन, ‘समर्थन’ में काम करते हैं।

लेख विकासअन्वेश फाउंडेशन द्वारा आयोजित  लेखन-कार्यशाला का परिणाम है।