दुधारू पशुओं में लिंग-चयनित गर्भाधान से मिला डेयरी को बढ़ावा

आंध्र प्रदेश

लिंग-चयनित वीर्य (सेक्स सॉर्टेड इनसेमिनेशन - एसएसएस) द्वारा गर्भाधान के नए तकनीकी हस्तक्षेप से डेयरी में बेहतर आनुवंशिकी प्राप्त की गई।

पारम्परिक गर्भाधान पद्धति में 50% नर बछड़ों का जन्म, डेयरी किसानों के लिए डेयरी की व्यवहार्यता को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों में से एक है। मशीन और उपकरणों के बढ़ते उपयोग के कारण, बैलों की उपयोगिता और महत्व समय के साथ कम हो रहा है। इसलिए, नर बछड़े का जन्म, न सिर्फ कम उत्पादक नर को पालने का एक बोझ है, बल्कि एक प्रसव का व्यर्थ होना भी है।

लिंग-चयनित गर्भाधान तकनीक

BAIF इंस्टीट्यूट ऑफ सस्टेनेबल लाइवलीहुड एंड डेवलपमेंट (BISLD)-AP और NABARD ने मादा बछड़ों के अनुपात को बढ़ाने के लिए, आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में एक महत्वाकांक्षी पायलट परियोजना शुरू की है। सेक्स सॉर्टेड सीमेन (SSS) गर्भाधान तकनीक से लगभग 90% मादा बछड़े प्राप्त किए गए हैं। यह दुग्ध उत्पादन बढ़ाने और गैर-लाभकारी नर बछड़ों के बोझ को कम करने में मदद करेगा, जिससे किसानों के लिए डेयरी लाभदायक बनेगी और दूध की मात्रा बढ़ेगी।

यह परियोजना फरवरी-2020 से दिसंबर-2021 तक 30 गांवों में लागू की गई। कृषि की दृष्टि से जीवंत होने के कारण, गुंटूर आंध्र प्रदेश का एक महत्वपूर्ण जिला है। इसका कुल भौगोलिक क्षेत्र 11.39 लाख हेक्टेयर, सकल फसल क्षेत्र 8.18 लाख हेक्टेयर, शुद्ध बुआई वाला क्षेत्र 6.39 लाख हेक्टेयर और शुद्ध सिंचित क्षेत्र 4.34 लाख हेक्टेयर है।

पशुपालन किसानों द्वारा की जाने वाली प्रमुख महत्वपूर्ण गतिविधियों में से एक है। इसमें लगभग 13.3 लाख पशु हैं, जिनमें से 1.32 लाख गाय हैं। क्षेत्र में भैंसों की संख्या अधिक है। अतिरिक्त दूध उत्पादन को इस्तेमाल करने के लिए, निजी डेयरियों के रूप में विशाल बुनियादी ढांचा मौजूद है।

पायलट परियोजना

  1. नाबार्ड के किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के साथ सम्बन्ध: क्षेत्र में नाबार्ड के एफपीओ संगठनों का एक मजबूत नेटवर्क है। इनके सहयोग से परियोजना को मदद मिलेगी और साथ ही किसानों को अतिरिक्त आय प्राप्त करने में भी मदद मिलेगी।
  • किसान जागरूकता प्रशिक्षण कार्यक्रम: नई तकनीक के बारे में जागरूकता सभाएं और जानकारी सत्र आयोजित किए गए। किसानों को विभिन्न विषयों पर प्रशिक्षित किया गया, जैसे –
  • लिंग-चयनित वीर्य से गर्भाधान का महत्व, जिसमें मादा बछड़े के जन्म की संभावना 90% होती है।
  • गर्भवती पशुओं की देखभाल – गर्भवती पशुओं की देखभाल डेयरी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है।
  • बछड़ों की मृत्यु दर को न्यूनतम करने के लिए, लिंग-चयनित गर्भाधान से पैदा हुए नवजात बछड़ों की देखभाल।
  • स्वच्छ और सुरक्षित दुग्ध उत्पादन, रोग निवारण, जोखिम कम करने, चारा प्रबंधन, आदि के रूप में पशु स्वास्थ्य प्रबंधन।
  • उन्नत चारा किस्मों जैसे फलीदार, गैर-फलीदार और घास जैसी उन्नत चारा किस्मों की खेती।
  • पशु जांच शिविर: SSS कृत्रिम गर्भाधान तकनीक उन पशुओं के लिए उपयुक्त है, जिनकी प्रजनन प्रणाली स्वस्थ है। इसलिए परियोजना के सभी गांवों में, स्वस्थ जानवरों की पहचान करने के लिए शिविर आयोजित किए गए, जिनमें प्रजनन के लिए प्रजनन संबंधी कोई समस्या नहीं थी।
  • लिंग-चयनित वीर्य गर्भाधानः परियोजना के अंतर्गत 20 अगस्त से 21 अक्टूबर तक, 600 गर्भाधान का लक्ष्य प्राप्त किया है, जिसमें 248 पशुओं को गाभिन घोषित किया गया और अब तक 170 मादा और 11 नर बछड़े पैदा हुए हैं।
  • चारा प्रदर्शन इकाई की स्थापना: BISLDऔर नाबार्ड के चारा प्रोत्साहन कार्यक्रम के अंतर्गत, उन किसानों को चारा-प्लॉट विकसित करने में मदद की गई, जिनके पास पानी की उपलब्धता और इरादे पर्याप्त थे।

महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ

  • सेवाओं के प्रसार और 90 दिनों में 600 SSS गर्भाधान का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए, किसान उत्पादक संगठनों की 40 बैठकें आयोजित की गईं।
  • SSS यानि उन्नत प्रजनन तकनीक के संबंध में 47 जागरूकता प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से 626 किसानों के ज्ञान और कौशल स्तर को बढ़ाया गया। इससे और किसानों को सेवाओं का लाभ उठाने के लिए आगे लाने में मदद मिली।
  • प्रजनन संबंधी विकार से मुक्त 600 स्वस्थ पशुओं की पहचान के लिए, 40 पशु जांच शिविर आयोजित किए गए। SSS कृत्रिम गर्भाधान तकनीक, स्वस्थ प्रजनन प्रणाली वाले पशुओं के लिए अधिक उपयुक्त है।
  • दुग्ध उत्पादन बेहतर क्षमता वाले सर्वश्रेष्ठ वंश के मादा बछड़े – 248 चयनित वीर्य गर्भाधान से भैंस के 170 मादा बछड़े पैदा हुए (54 पशुओं का प्रसव अभी नहीं हुआ है)। उनकी दूध उत्पादन क्षमता 4000 से 4500 लीटर प्रति पशु प्रति प्रसव है। परियोजना में भाग लेने वाले किसानों के लिए परियोजना में सब्सिडी का प्रावधान है। परियोजना के परिणाम क्षेत्र के अन्य किसानों के लिए एक प्रदर्शन का काम करेंगे, जिससे वे बिना किसी सब्सिडी के इस तकनीक की सेवा प्राप्त कर सकेंगे।
SSS गर्भाधान तकनीक से मादा बछड़ों का जन्म

ज्यादा उत्पादन वाली बाजरा नेपियर चारा किस्म को परियोजना क्षेत्र के 8 एकड़ में लगाया गया, जो इलाके में किसानों के लिए प्रदर्शन प्लॉट के रूप में काम कर रहा था। इसने आसपास के गांवों के अन्य किसानों को भी इसे अपनाने के लिए प्रेरित किया है। इससे परियोजना स्थलों से लगभग 15 किलोमीटर के दायरे में इस चारे का फैलाव हुआ। इस समय आसपास के गांवों में लगभग 30 एकड़ में यह चारा प्लॉट स्थापित हो चुके हैं। अपने पशुओं के लिए पर्याप्त चारा उपलब्ध होने के अलावा, उनके पास अन्य इच्छुक किसानों को बेचने के लिए अतिरिक्त चारा होगा।

नेपियर घास का खेत

प्रभाव

  • मादा बछड़ी के पक्के उत्पादन से, गांव में इस तकनीक को तेजी से अपनाया जा रहा है। इससे आने वाले दिनों में डेयरी को बढ़ावा देने के लिए, दुधारू पशुओं को पालने के प्रति किसान के आत्मविश्वास के स्तर को बढ़ा है।
  • गैर-लाभकारी डेयरी के दिन अतीत की बात होने जा रहे हैं, क्योंकि इससे किसानों की आय में वृद्धि होगी।
  • इससे क्षेत्र में सांडों की आबादी काफी कम होगी, जिससे मादा पशुओं में जननांग और प्रजनन रोगों/विकारों की दर, प्रसार और घटनाएं कम होंगी।
  • नर पशु आबादी कम होने से आखिर मीथेन उत्पादन कम होगा, जो लंबे समय में पर्यावरण संरक्षण में योगदान देगा।

भविष्य में संभावनाएं

नई तकनीक की सफलता, किसानों के लिए डेयरी उद्योग को और अधिक लाभदायक बना देगी और व्यापक प्रसार में डेयरी के लिए उनकी रुचि को बढ़ावा देगी। यह स्पष्ट है कि तकनीक में बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में योगदान करते हुए, सूक्ष्म स्तर पर किसानों की अर्थव्यवस्था में सुधार करने की क्षमता है। यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि कृषि और पशुपालन भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।

लेख के शीर्ष पर फोटो में SSS गर्भाधान तकनीक से पैदा हुई बछड़ियों को दिखाया गया है। 

डॉ. मनिकंदन BAIF इंस्टिट्यूट ऑफ़ सस्टेनेबल लिवेलीहुड्स एंड डेवलपमेंट में कार्यरत हैं।