अपने गांव को बदलना चाहते हैं? – महिलाओं को बुलाओ!

महिलाओं को संसाधनों और ज्ञान से लैस करने से, न सिर्फ महिलाओं और उनके परिवारों, बल्कि पूरे समुदाय को लाभ होता है। इसका एक उदाहरण हंडानाकेरे की ‘चैंपियन महिला किसानों’ने प्रस्तुत किया है।

प्रशिक्षण और प्रस्तुतियों के बाद, इन महिला किसानों ने खेती में वैज्ञानिक और एकीकृत जैविक पद्धतियों को अपनाया है और एकल-फसल पर निर्भरता कम की है। ‘प्रेरणा पहल’ की छत्रछाया में एकजुट, इसने महिलाओं के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में योगदान दिया है। उनकी कड़ी मेहनत, विलक्षण कौशल और दृढ़-संकल्प, गांव का नक्शा बदलने के लिए मौलिक रहे हैं।

हंडानाकेरे गाँव

हंडानाकेरे एक कृषि प्रधान गाँव है, जो कर्नाटक के तुमकुरु जिला मुख्यालय से लगभग 85 किलोमीटर दूर है। नारियल के पेड़ों के हरे-भरे आवरण से घिरा यह गाँव सड़कों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। परम्परागत रूप से, बाजरा और सब्जियाँ इस क्षेत्र की मुख्य फसलें रही हैं।

फिर भी, कृषि आय अपर्याप्त होने के कारण, हाल के दिनों में, रेशम उत्पादन और खीरे की खेती ने पैठ बनाई है। देश के अन्य हिस्सों की तरह, हंडानाकेरे की महिलाओं को भी किसानों के रूप में पहचान न मिलने की समस्या का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा, संसाधनों और निर्णय लेने पर उनका अधिकार सीमित है।

“प्रेरणा” पहल

प्रेरणा पहल को पहली बार 2019 में महिला किसानों की क्षमता निर्माण और उनके परिवर्तन-कर्ता के रूप में सशक्तिकरण के उद्देश्य से शुरू किया गया था। महिंद्रा एंड महिंद्रा के सहयोग से BAIF लाइवलीहुड्स द्वारा कार्यान्वित, यह परियोजना पूरे भारत में नौ स्थानों पर तीन हजार से ज्यादा ‘चैंपियन’ महिला किसानों के साथ सीधे काम करती है।

जयलक्ष्मम्मा का दावा है कि उनका रागी फसल उत्पादन दस क्विंटल से बढ़कर बीस क्विंटल हो गया है
जयलक्ष्मम्मा का दावा है कि उनका रागी फसल उत्पादन दस क्विंटल से बढ़कर बीस क्विंटल हो गया है

पहल के हिस्से के रूप में, प्रत्येक जिले में सौ चैंपियन महिला किसानों की पहचान की गई और उन्हें प्रशिक्षण और ऊँची गुणवत्ता वाली सामग्री प्रदान की गई। इन चैंपियन महिला किसानों ने आगे दस अन्य महिलाओं के साथ जानकारी साझा की, जिससे जानकारी का प्रसार हुआ। हंडानाकेरे गाँव में की गई गतिविधियों का विवरण नीचे दिया गया है –

 प्रशिक्षण

फसल रोटेशन, इंटरक्रॉपिंग, भूमि की तैयारी, बीज उपचार, बुवाई तकनीक, और पानी लगाने सहित, खेती की कई वैज्ञानिक विधियों पर प्रशिक्षण और प्रदर्शन आयोजित किए गए। उन्हें वर्मीकम्पोस्ट, जीवामृत, खाद और रासायनिक उर्वरकों के संतुलित उपयोग जैसी जैविक सामग्रियों की भी जानकारी दी गई। इसके अलावा, चैंपियन महिला किसानों को बाजरे और सब्जियों की उन्नत किस्मों के बीज उपलब्ध कराए गए।

एक्सपोजर और जागरूकता

तिप्तूर के कृषि विज्ञान केंद्र, लक्कीहल्ली में BAIF और बेंगलूरू-स्थित ‘भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान’ (IIHR) के दौरों का आयोजन किया गया, जहां उन्हें पोषण रसोई उद्यान, बागवानी एवं ग्राफ्टिंग तकनीक, डेयरी विकास एवं प्रबंधन आदि के बारे में जानकारी प्रदान की गई।  स्वास्थ्य और पोषण पर सत्रों के अलावा, वित्तीय और डिजिटल साक्षरता प्रशिक्षण प्रदान किया गया।

महिला किसानों के लिए मशीनीकृत खेती

महिलाओं की मेहनत को कम करने के लिए, ‘कस्टम हायरिंग सेंटर’ स्थापित किए गए हैं। इनका प्रबंधन इन चैंपियन महिला किसानों द्वारा किया जाता है, जो उनकी अतिरिक्त आय के श्रोत के रूप में काम करती हैं। परिवार के पुरुष सदस्यों पर निर्भरता कम करने के उद्देश्य से, इन चैंपियन महिला किसानों को ट्रैक्टर चलाने का प्रशिक्षण भी दिया गया है।

हालांकि तुमकुरु में ट्रैक्टर चलाने के प्रति ज्यादा रुझान दिखाई नहीं दिया, लेकिन कुछ महिला किसानों ने इस कौशल को अपनाया है और इसका अच्छा इस्तेमाल किया है। वे ट्रैक्टर को बाजरे की थ्रेशिंग जैसी कृषि गतिविधियों के लिए बहुत उपयोगी पाती हैं। इसके अलावा यह बेहतर कौशल, खेती के बुनियादी कार्यों में उनकी दूसरों पर निर्भरता को भी कम करता है।

परिणाम

रागी की एक उन्नत किस्म, ‘एमएल 365’ अपनाने से,उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई।

उपज में इसी तरह की वृद्धि उन लोगों द्वारा भी दर्ज की गई, जिन्होंने BAIF द्वारा दी गई लाल चने की उन्नत किस्म को अपनाया था। वे इसका श्रेय बेहतर बीजों के संयोजन, इंटरक्रॉपिंग और गड्ढे में बुवाई को देते हैं। पानी के उचित इस्तेमाल के लिए महत्वपूर्ण सिंचाई जैसे वैज्ञानिक तरीकों के साथ साथ, जीवामृत , वर्मीकम्पोस्ट और नीम के तेल जैसी जैविक सामग्री को व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है।

दुर्गम्मा ने अरहर के उत्पादन  50 किग्रा से 150 किग्रा  तक की वृद्धि दर्ज की
दुर्गम्मा ने अरहर के उत्पादन  50 किग्रा से 150 किग्रा  तक की वृद्धि दर्ज की

कृषि उत्पादन में वृद्धि और साथ ही कुछ सामग्रियों पर खर्च में कमी के कारण, इन चैंपियन महिला किसानों के पास अब ज्यादा पैसा होता है, जिसे वे जरूरत के अनुसार खर्च कर सकती हैं। कृषि से होने वाली इस आय को अन्य उत्पादक संपत्तियों में निवेश किया जाता है या बैंक खातों में जमा किया जाता है, जिससे एक अच्छा चक्र बनता है। क्योंकि चैंपियन महिला किसान अन्य महिलाओं के साथ अपनी जानकारी साझा करती हैं, इससे जानकारी का विस्तार होता है।

प्रभाव

– चैंपियन महिला किसानों का खुद की क्षमताओं पर भरोसा बढ़ा है, क्योंकि उन्होंने अपने घरों और खेतों की दहलीज से बाहर निकलने का साहस किया।

– उनकी भरपूर फसलों ने उनके आसपास की अन्य महिला किसानों का ध्यान आकर्षित किया और वे उनके पास सलाह के लिए आई।

– ये चैंपियन महिला किसान न सिर्फ ज्ञान साझा करती हैं, बल्कि इन महिलाओं के साथ उन्नत बीज और जैविक सामग्रियों जैसी दूसरी जरूरतें भी साझा करती हैं, जिससे एक अच्छा चक्र बनता है।

चैंपियन महिला किसानों की अब बड़ी आकांक्षाएं हैं और वे जलवायु परिवर्तन की बढ़ती अनिश्चितता के खिलाफ भविष्य के लिए बेहतर योजना बनाना चाहती हैं। वे अन्य कौशल आधारित आजीविकाओं में भी विविधता लाना चाहते हैं और अपने बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने के साधन के रूप में रेशम उत्पादन का विस्तार करना चाहते हैं।

चैंपियन महिला किसानों की अब बड़ी आकांक्षाएं हैं और वे जलवायु परिवर्तन की बढ़ती अनिश्चितता के खिलाफ भविष्य के लिए बेहतर योजना बनाना चाहती हैं। वे अन्य कौशल आधारित आजीविकाओं में भी विविधता लाना चाहती हैं और अपने बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने के साधन के रूप में, रेशम उत्पादन का विस्तार करना चाहते हैं।

लेख के शीर्ष पर फोटो में एक चैंपियन किसान, करियम्मा को ट्रैक्टर चलाते दिखाया गया है।