घूंघट से उसकी दृष्टि धूमिल नहीं होगी

मुरैना, मध्य प्रदेश

विकास प्रबंधन की एक छात्र, एक मजबूत और साहसी पूर्व महिला पंचायत नेता से प्रेरित है, जिन्होंने एक मॉडल गांव विकसित करने के लिए, एक बेहद पितृसत्तात्मक समाज की सभी बाधाओं को पार कर लिया।

एक गांव में व्यवहारिक रूप से लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण देखना ज्ञानवर्धक है, हालाँकि इससे सम्बंधित महिला ने इन शब्दों के बारे में सुना भी नहीं होगा।

एक मजबूत महिला शशि प्रभा तोमर से मिलिए, जिन्होंने लगभग एक दशक पहले मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के अंबाह प्रशासनिक ब्लॉक में स्थानीय चुनाव लड़ा था।

उन्हें पितृसत्तात्मक समुदाय में चुनाव लड़ने के लिए भी विरोध का सामना करना पड़ा। आप सोच सकते हैं कि जब वह जीती होंगी, तो कैसा रहा होगा।

लेकिन तोमर की दृढ़ इच्छाशक्ति ने उन्हें अपने समुदाय की सेवा करने और अपने गाँव की महिलाओं की स्थिति को सुधारने में सक्षम बनाया। उसके दृढ़ संकल्प की बदौलत उन्होंने सभी बाधाओं को पार कर दिया और वह एक विजेता के रूप में उभर कर सामने आई।

एकल-महिला सेना

तोमर ने 2004 से 2009 तक पंचायत अध्यक्ष के रूप में काम किया। पंद्रह साल पहले, सामाजिक दबाव ने तोमर को बांध दिया, लेकिन उनकी सोच को नहीं। एक महिला पंचायत नेता के रूप में अपने गांव के विकास के लिए काम करने में वह एकल महिला सेना थी।

गोठ गांव की पूर्व सरपंच, शशि प्रभा तोमर के साथ सुचंदना रॉय|
गोठ गांव की पूर्व सरपंच, शशि प्रभा तोमर के साथ सुचंदना रॉय (फोटो  सुचंदना रॉय के सौजन्य से)

जब उन्होंने अपनी जीवन कथा सुनाई, तो उनमें निडरता और आत्मविश्वास झलक रहा था। तोमर के अनुसार घूंघट हर विवाहित महिला के लिए जरूरी है, क्योंकि यह सामाजिक रीति-रिवाज से निर्धारित होते हैं।

हालाँकि वह घूँघट निकालती थी, लेकिन वह उसके पीछे छिपती नहीं थी। उन्होंने इसे समाज में बदलाव लाने की अपनी जबरदस्त महत्वाकांक्षाओं में बाधक बनने की अनुमति नहीं दी। उनका मानना था कि परिवर्तन तभी हो सकता है, जब एक महिला अपने परिवार के साथ बातचीत से शुरुआत करे। भले ही विकास प्रबंधन के छात्रों के रूप में हमने लैंगिक समानता के बारे में सीखा था, लेकिन तोमर को व्यवहार में इसे करते देखना पूरी तरह से अलग था।

मैंने यह समझने की कोशिश की कि अपमान का सामना करते हुए भी, व्यवस्था को नियंत्रित करना उनके लिए कितना मुश्किल रहा होगा। क्योंकि आज भी जिले में ‘सरपंच-पति’ की अवधारणा कायम है। मैंने जिन ग्राम सभा बैठकों में भाग लिया, उनमें से एक में महिला सरपंच मौजूद नहीं थी। उनके पति ग्राम सभा की कार्यवाही में उनका प्रतिनिधित्व कर रहे थे।

10 साल से भी ज्यादा समय पहले, तोमर ने अपनी दृढ़ता की बदौलत उसी पूर्वाग्रह पर विजय प्राप्त की थी।

और उसका फल मिला। जल्द ही लोगों ने उनके ईमानदार प्रयासों को पहचाना और उनका सम्मान किया। (यह भी पढ़ें: गांव बदलने की राह पर महिला पंचायत प्रमुख)

आदर्श ग्राम का विकास करना

अपनी बातचीत के दौरान, तोमर ने बताया कि उन्होंने कैसे जल संसाधन के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाई, ताकि किसी भी महिला को अपने परिवार के लिए पानी लाने के लिए कई किलोमीटर दूर न जाना पड़े।

उन्हें बच्चों की पढ़ाई को लेकर चिंता थी। इसलिए बिना सूचना के अनुपस्थित होने पर वह अध्यापकों के घर भी जाती थी और पूछती थी कि वे स्कूल के समय में स्कूल में क्यों नहीं थे। उन्होंने बताया कि हालाँकि उन्हें दसवीं कक्षा से आगे पढ़ने का मौका नहीं मिला, लेकिन वह यह सुनिश्चित करना चाहती हैं कि बुनियादी ढांचे की कमी के कारण अन्य बच्चों के साथ ऐसा न हो।

गोठ ग्राम पंचायत की ग्राम सभा बैठक में भाग लेते हुए ISDM के छात्र|
गोठ ग्राम पंचायत की ग्राम सभा बैठक में भाग लेते हुए ISDM के छात्र (फोटो – सुचंदना रॉय से साभार)

अपने कार्यकाल के दौरान, तोमर अपने स्कूल के आसपास अच्छे बुनियादी ढांचे, पुस्तकालय और खेल के मैदान बनाने के लिए, ग्राम सभा से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय तक लगातार आवाज उठाती थी। वह यह सुनिश्चित करना चाहती थी कि कोई बच्चा पीछे न छूटे। वह हर बच्चे का सर्वांगीण विकास चाहती थी।

एक गाँव को विकसित करने के अपने विचार और खुद पर विश्वास के प्रति दृढ़ निश्चय और ईमानदारी के साथ, उन्होंने अपना सारा प्रयास एक आत्मनिर्भर गाँव बनाने में लगा दिया।

एक प्रेरणा-श्रोत के रूप में पहचान

तोमर के आदर्श गांव ने ऐसी ही चुनौतियों का सामना कर रहे आसपास के गांवों को प्रेरित करना शुरू किया। पितृसत्तात्मक प्रथाओं के बावजूद, उन्होंने न सिर्फ स्थानीय चुनाव लड़ा, बल्कि अपनी पंचायत की पहली महिला प्रमुख भी बनीं। उनकी उपलब्धियों में एक और आयाम जोड़ते हुए, उनके कार्यकाल में उनकी पंचायत ने ‘आदर्श ग्राम पंचायत’ का पुरस्कार जीता। उन्हें उनके कार्यकाल में ऐसे कई पुरस्कार मिले।

राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने उनके प्रयासों को मान्यता देते हुए, उन्हें राष्ट्रपति भवन में आमंत्रित किया। रानी लक्ष्मी बाई की कहानियों से प्रेरित होकर, अपने लोगों के लिए काम करते समय वह साहसी बनी रहीं। वह कहती हैं – “किसी में दम है, तो रोक कर दिखाये, मैं शेरनी हूँ, कभी हार नई मानूंगी।”

एक और अवसर के लिए बेताब

खराब स्वास्थ्य के कारण, तोमर ने आगे कोई चुनाव नहीं लड़ा। हालाँकि अब अपने स्वास्थ्य में सुधार होने के साथ, उनकी आकांक्षाएँ वापस आ गई हैं और उनका लक्ष्य विधायक बनना है। उन्हें लगता है कि जब तक वह व्यवस्था में प्रवेश नहीं करेंगी, तब तक वह अपनी परिकल्पना का बदलाव नहीं देख पाएगी।

तोमर न सिर्फ मेरे लिए, बल्कि अपने गांव की कई महिलाओं के लिए एक आदर्श हैं। और आप देख सकते हैं कि ऐसा क्यों है। उनके सिद्धांत कई युवाओं को मजबूत धारणा देते हैं कि कैसे एक महिला, लैंगिक रूढ़िबद्ध भूमिकाओं को हटाकर और लोगों के दिमाग में लैंगिक समानता लाकर, समाज में योगदान दे सकती है।

इस लेख के शीर्ष पर दी गई फोटो में, लेखक सुचंदना रॉय और उनके दोस्तों को एक रूरल-इमर्शन कार्यक्रम में भाग लेते दिखाया गया है (फोटो – सुचंदना रॉय से साभार)

सुचंदना रॉय इंडियन स्कूल ऑफ डेवलपमेंट मैनेजमेंट में स्नातकोत्तर कार्यक्रम की छात्र हैं।