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बैगा आदिवासी टैटू कला को विलुप्त होने से बचाना

माथे पर बने प्रतीकों में डूबे टैटू कभी बैगा आदिवासी लड़कियों को दूसरी जनजातियों से अलग करते थे, लेकिन आज बहुत कम हैं, जो उन्हें चाहते हैं। यही वजह है कि बैगा टैटू आर्टिस्ट मंगला बाई मरावी इस परम्परा को सुरक्षित रखना चाहती हैं।

डिंडोरी, मध्य प्रदेश

बैगा जनजाति की लड़कियों के माथे पर गुदे टैटू के कारण ही, वे गोंड और भील जैसी अन्य जनजातियों की लड़कियों से अलग दिखाई देती हैं।

और मैं उन कलाकारों में से एक हूँ, जो वे टैटू उनके माथे पर गोदती हूँ। मेरे जैसे कलाकारों को बदनीं कहा जाता है

क्योंकि बैगा आदिवासी टैटू लड़कियों पर किया जाता है, इसलिए सिर्फ महिलाएं ही इस कला का इस्तेमाल करती हैं।

मेरी माँ सक्रिय रूप से गोदने (टैटू बनाना) का काम करती थी। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से वह स्वस्थ नहीं हैं और इसलिए वह यह काम नहीं कर सकी।

उनकी सबसे छोटी बेटी होने के नाते, मैंने उनकी परम्परा को जारी रखा है।

मेरी चार बड़ी बहनों में से किसी की भी गोदना के काम में दिलचस्पी नहीं है । क्योंकि इससे उनका गुजारा करना मुश्किल है। 

मैं स्कूल नहीं जा सकी। इसलिए जब मेरी माँ और चाची बैगा परिवारों में टैटू के काम के लिए जाती थी, तो मैं भी उनके साथ जाती थी।

मैंने यह काम बहुत कम उम्र से देखकर और करके सीखा।

मैंने अपना पहला गोदना एक और छोटी लड़की पर किया, जब मेरी उम्र सात साल थी। तब से मेरे कौशल में सुधार हुआ है।

लड़कियों पर टैटू गोदना हमारी आय का मुख्य जरिया हुआ करता था।

पैसे के रूप में कोई खास निवेश नहीं होता। लेकिन यह बहुत समय लेने वाली प्रक्रिया है। आधे घंटे में हम लगभग एक सेंटीमीटर तक ही टैटू बना पाते हैं।

मैं जिस स्याही का इस्तेमाल करती हूँ, वह विशुद्ध रूप से कुदरती पदार्थों से बनी है। इसे विभिन्न औषधीय जड़ी बूटियों के रस से मिला कर बनाया जाता है।

मैं बीमारियों के इलाज के लिए भी गोदना का इस्तेमाल करती हूँ।

उपचार के उद्देश्य को छोड़कर, बैगा पुरुष शायद ही कभी टैटू बनवाते हैं। ये टैटू पतली सुइयों से बनाए जाते हैं।

पहले लड़कियां नौ साल की उम्र से ही टैटू बनवाना शुरू कर देती थी। जैसे-जैसे वे बड़ी होती हैं, उनके हाथों, पैरों, जांघों, पीठ पर और बच्चा पैदा होने के बाद छाती पर टैटू बनवाए जाते हैं।

प्रत्येक चरण में बने टैटू का अपना अर्थ होता है। वे आग, फसल, अनाज, मोर, मछली, मधुमक्खी के छत्ते, फूल और बहुत कुछ का प्रतीक होते हैं।

अफसोस की बात है कि अब वे टैटू को अपने जीवन का अभिशाप मानते हैं। बैगा जनजाति के ज्यादातर लोग टैटू गुदवाने की इस प्राचीन परम्परा को छोड़ रहे हैं।

इसके अलावा वे आधुनिक टैटू डिजाइन पसंद करते हैं, न कि प्राचीन प्रतीकों को, जिनका बहुत अधिक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है।

आधुनिक टैटू रासायनिक स्याही से बनाए जाते हैं। इसलिए कलाकार रंगों और डिजाइनों में अधिक विविधता लाने में सक्षम होते हैं।

यही कारण है कि आजकल बहुत लोग आदिवासी टैटू का विकल्प नहीं चुनते।

मुझे डर है कि यह केवल कुछ समय की बात है, शायद एक और दशक की, जब यह परम्परा पूरी तरह से लुप्त हो जाएगी।

मैं कला के इस रूप को संरक्षित करने की आशा करती हूँ। इसलिए मैं अब अलग अलग डिज़ाइन चार्ट और कैनवस पर बना रहा हूँ।

कभी-कभी मुझे अलग-अलग शहरों में आमंत्रित किया जाता है। मैं उन अवसरों को बैगा आदिवासी टैटू कला को प्रदर्शित करने और इसके बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए इस्तेमाल करती हूँ।

मैं अपनी एक भतीजी को यह कला सिखा रही हूँ, ताकि यह ज्ञान आगे बढ़े।

यदि सरकार शिविर लगाती है, तो मैं अपनी बैगा गोदने की कला सिखाने को तैयार हूँ।

मुझे लगता है कि सरकार को इस संस्कृति और विरासत को संरक्षित करने के लिए, कुछ प्रोत्साहन देकर लड़कियों को प्रेरित करना चाहिए।

ऐसा होने से उनके माथे पर हमारा टैटू, उनमें कुछ गर्व पैदा करेगा।

रिपोर्टिंग और तस्वीरें बेंगलुरू स्थित स्वतंत्र छायाकार और यात्रा लेखक इंद्राणी घोष द्वारा, जो यात्रा स्थलों की कला, संस्कृति और व्यंजनों के बारे में लिखती हैं।