परिवार द्वारा अलग किए समलैंगिक जोड़े को अदालत ने मिलाया

एर्नाकुलम, केरल

अपने परिवारों द्वारा जबरन अलग किया गया और अदालत के हस्तक्षेप की बदौलत फिर से एक हुआ एक युवा समलैंगिक जोड़ा, आशा से भरा है, हालाँकि स्वयं को कठिन भविष्य के लिए तैयार भी कर रहा है।

अदालत के फैसले का इंतजार करने के लम्हे, अदीला नसरीन और फातिमा नूरा के लिए तनाव और चिंता से भरा था। 

क्या अदालत उनके समान-लिंग संबंध को मंजूरी देगी और दोनों युवतियों को एक-दूसरे के साथ रहने देगी?

दोनों महिलाओं को, एक-दूसरे के अलावा, केवल उस संस्था का सहयोग था, जिसने उन्हें आश्रय दिया था। उन्हें अपने परिवारों का कोई सहयोग नहीं था। असल में, नूरा के परिवार और उन्हें अलग करने के उनकी मंशा के कारण ही, नसरीन ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

जब केरल उच्च न्यायालय की जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस सी जयचंद्रन की कोच्चि खंडपीठ ने, 31 मई को नसरीन की बंदी प्रत्यक्षीकरण (habeas corpus) याचिका की अनुमति देते हुए घोषणा की, “हमारा विचार है कि दोनों को उनकी सोची-समझी पसंद के अनुसार अपना जीवन जीने के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए। हम उन्हें रोके रखने का कोई कारण नहीं पाते हैं,” तो यह नसरीन और नूरा के लिए एक बहुत बड़ी राहत थी।

अदीला नसरीन कोर्ट क्यों गई?

बाईस वर्षीय अदीला नसरीन जानती थी कि उसकी 23-वर्षीय पार्टनर फातिमा नूरा को उसकी मर्जी के खिलाफ घर में रोका जा रहा था।

नसरीन एर्नाकुलम जिले अलुवा की रहने वाली हैं और नूरा कोझिकोड जिले के थमारसेरी से हैं। लेकिन दोनों सऊदी अरब में पली-बढ़ी और स्कूल के दिनों से ही दोस्त थी।

उनके परिवार भी आपस में मित्र थे। असल में, परिवार इतने करीब थे कि वे एक साथ यात्राएं करते थे, एक साथ खरीदारी करते थे और मिलकर खुशियां मनाते थे।

जैसे-जैसे परिवार करीब आते गए, नसरीन और नूरा की दोस्ती रोमांस में बदल गई।

जब परिवारों को इस बात का पता चला, तो उन्होंने लड़कियों को जबरन भारत के उनके अपने-अपने गांवों में वापस भेज दिया। लड़कियों के अनुसार, उन पर नजर रखने के लिए उनके परिवार के ज्यादातर लोग भी लौट आए।

क्या समलैंगिकता को ठीक किया जा सकता है?

अपनी लैंगिक स्थिति के कारण, नसरीन और नूरा को घर पर मौखिक और शारीरिक शोषण से गुजरना पड़ा।

वर्ष 2018 के एक ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने सभी प्रकार के वयस्कों में सहमति से सभी प्रकार के यौन व्यवहार को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया। लेकिन बहुत से लोग अब भी सोचते हैं कि समलैंगिक संबंध एक मानसिक बीमारी है, जिसके इलाज की जरूरत है, न कि कानूनी हस्तक्षेप की।

‘लिंग परिवर्तन चिकित्सा’ से समलैंगिक लोगों पर विभिन्न प्रकार के उपचार की मीडिया ख़बरें आई हैं।

इसी तरह, इन युवतियों के परिवारों ने भी उन्हें लगातार सलाह और परामर्श सत्रों से गुजारा था।

सरकारी मेडिकल कॉलेज, तिरुवनंतपुरम के मनोचिकित्सा सलाहकार, अरुण बी नायर कहते हैं – “समलैंगिक या महिला समलैंगिक होना विभिन्न जैविक और मनोवैज्ञानिक कारकों का परिणाम है, जिसमें हार्मोन का बनना, जननांग बदलाव और बचपन में यौन अनुभव शामिल हैं। सेक्स को एक ही तरीके से संरचित नहीं किया जा सकता है।”

“अदीला और फातिमा जैसे लोगों के प्रति वैज्ञानिक और मानवीय दृष्टिकोण रखना चाहिए।”

एक-दूसरे की तीन साल तक तलाश

साढ़े तीन साल तक युवतियां आपस में नहीं मिल पाईं।

फिर 19 मई को सुबह 4 बजे, फातिमा कुछ जरूरी सामान का एक छोटा सा बैग लेकर फातिमा नूरा ने नसरीन को खोजने की एक थकाऊ यात्रा शुरू की। आखिरकार उसने नसरीन को कोझिकोड स्थित वंचितों के लिए काम करने वाली एक एनजीओ, ‘वनजा कलेक्टिव’ में पाया।

याद करते हुए नूरा ने कहा – “साढ़े तीन साल के दर्द भरे अर्से के बाद अदीला से मिलने पर मुझे जो खुशी हुई, उसे मैं बयां नहीं कर सकती।”

युवतियों को अपने परिवार के सदस्यों से शारीरिक और मौखिक दुर्व्यवहार झेलना पड़ा। 

‘वनजा कलेक्टिव’ की गार्गी हरितकम ने दोनों परिवारों को एक साथ बुलाया और एक सौहार्दपूर्ण सहमति तक पहुंचने में उनकी मदद करने की कोशिश की।

उन्हें अलग रखने का बेतहाशा तमाशा

पुलिस के हस्तक्षेप के बावजूद, दोनों परिवार टस से मस नहीं हुए। थाने में हंगामे के बाद, महिलाओं को फिर जबरदस्ती अलग कर, अलग-अलग कस्बों में ले जाया गया।

फिर से उन्हें शारीरिक और भावनात्मक हमले झेलने पड़े।

गार्गी हरितकम कहती हैं – “कानून समलैंगिक जोड़े के साथ होने के बावजूद, उन्हें एक करने के लिए हमें संघर्ष करना पड़ा। हमारे पास अदालत का दरवाजा खटखटाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।”

कोच्चि की एक सामाजिक कार्यकर्ता, दान्या रवींद्रन ने कानूनी औपचारिकताओं का समन्वय किया। तब नसरीन की ओर से एक वकील, केआर अनीश ने बंदी प्रत्यक्षीकरण (habeas corpus) याचिका दायर की, जिसमें नूरा को अदालत में पेश करने का अनुरोध किया गया, क्योंकि उसका परिवार उसे जबरन हिरासत में रख रहा था।

कोर्ट का आदेश मिलने के बाद, पुलिस ने 31 मई को नूरा को कोर्ट में पेश किया। और उसने स्पष्ट रूप से नसरीन के साथ एकजुट होने का अनुरोध किया।

जोड़े के बचाव में आई अदालत

सभी सहयोगकर्ताओं का धन्यवाद करते हुए, नसरीन ने कहा – “हम भावनात्मक रूप से थक चुके थे। अदालत के आदेश से अब हम आजाद हैं और राहत महसूस कर रहे हैं।”

“हम भावनात्मक रूप से थक चुके थे। अदालत के आदेश से अब हम आजाद हैं और राहत महसूस कर रहे हैं।”

उच्च न्यायालय के फैसले के बाद, तथाकथित नैतिक, आचरण संबंधी और धार्मिक लोकाचार को नकारते हुए, दोनों के नक्शेकदम पर चलने के लिए और अधिक युवा प्रोत्साहित हो सकेंगे।

आजकल वनजा कलेक्टिव एनजीओ को ‘हमें भी मदद चाहिए’ का अनुरोध लगातार  मिल रहा है।

अब जबकि अदालत ने इस जोड़े को एक कर दिया है, तो नूरा विलेज स्क्वेयर को बताती हैं – “मैं प्यार की गहराई को बयां नहीं कर सकती। हमने आखिरी सांस तक साथ रहने का संकल्प लिया है।”

जंग को जीत लेने के बाद भी, नसरीन और नूरा के परिवारों ने सुलह नहीं की है।

समलैंगिक संबंधों के खिलाफ लांछन

दुनिया के ज्यादातर हिस्सों की तरह, भारत में भी महिला समलैंगिकों, पुरुष समलैंगिकों, उभयलिंगी, ट्रांसजेंडर और क्वीर (LGBTQ) समुदाय के लोगों के लिए जीवन आसान नहीं रहा है। फिर भारतीय दंड संहिता की धारा 377, जिसके अंतर्गत, समलैंगिकता एक दंडनीय अपराध था, को 2018 में निरस्त कर दिया गया। इसने कई समलैंगिक समुदाय को बाहर आने में मदद की।

लेकिन समलैंगिक संबंधों वाले लोगों को अभी भी लांछन झेलना पड़ता है। नसरीन और नूरा के लिए , उनकी रूढ़िवादी पृष्ठभूमि ने स्वीकृति को और भी मुश्किल बना दिया।

गार्गी हरितकम कहती हैं – “अदीला और फातिमा के मामले के बाद, हमें कई धमकियां मिल रही हैं।” 

अदालत के हस्तक्षेप के कारण, समलैंगिक जोड़ा एकजुट हुआ (फोटो – वनजा कलेक्टिव से साभार)

ट्रांसजेंडरों के संरक्षण और कल्याण के लिए कानून हैं।

लेकिन समलैंगिक जोड़ों के लिए विशेष रूप से कुछ भी नहीं है, हालांकि उन्हें हाशिए के समूह के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

के आर अनीश ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “किसी विशेष कानून की कोई जरूरत नहीं है। मौजूदा कानून ही काफी हैं। लेकिन उन्हें सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। केरल उच्च न्यायालय का फैसला एक आंख खोलने वाला है कि समलैंगिक जोड़ों के बीच कुछ भी नहीं आ सकता है।”

कठिन भविष्य

लेकिन मुश्किलें आना तय है।

गार्गी हरिताकम ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “अदालत ने उनके समलैंगिक संबंधों को सही ठहराया है। लेकिन उन्हें भविष्य में कई बाधाओं का सामना करना पड़ेगा।”

नसरीन और नूरा अंग्रेजी में स्नातक हैं। वे अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए, वे जो भी संभव हों, ऑनलाइन काम ले लेती हैं, हालांकि नौकरी की कोई गारंटी नहीं है।

नसरीन कहती हैं – “मेरे माता-पिता को मेरी पढ़ाई या करियर की कोई परवाह नहीं थी। बल्कि वे मेरी जल्द से जल्द शादी करना चाहते थे।”

लेकिन नसरीन को भरोसा है कि वे पैर जमाने में सफल होंगी, अच्छी नौकरियां ढूंढ़ेंगी और कमाएंगी। और यह कि उनका प्यार ही उनके लिए प्रेरित करने वाली भावना होगा।

के राजेंद्रन तिरुवनंतपुरम स्थित एक पत्रकार हैं।