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सॉफ्ट टॉयज बना कर पाया पुरस्कार

चंद्रकला वर्मा को अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने का अवसर नहीं मिला। 18 साल की उम्र में विवाह और कुछ करने की ललक के साथ, उन्होंने सॉफ्ट टॉयज (नर्म खिलौने) बनाने के प्रशिक्षण के लिए दाखिला लिया। उनके कौशल ने उन्हें न सिर्फ एक उद्यमी और एक रोजगार प्रदान करने वाली बनाया, बल्कि उन्हें एक राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिलवाया।

सवाई माधोपुर, राजस्थान

मैं कभी स्कूल नहीं गई, क्योंकि हमारे गाँव में घर से बाहर निकलने वाली महिलाओं और लड़कियों को हेय दृष्टि से देखा जाता था। मैं बहुत कम उम्र से ही कुएं से पानी भरकर लाती थी।

मेरे माता-पिता खेतिहर मजदूर के रूप में काम करते थे। मैं छह बच्चों में सबसे बड़ी थी।

जब मेरे पिता का काम अच्छा नहीं चल पा रहा था, तो उन्होंने मुझे मेरे नाना के यहाँ भेज दिया। मैं बड़ी हसरत से अपने मौसेरे भाइयों को स्कूल जाते देखा करती थी। फिर एक दिन मेरे मामा ने उसी स्कूल में मेरा दाखिला करा दिया। मैं तब 8 या 9 साल की थी।

स्कूल में मुझे पढ़ना और लिखना अच्छा लगता था। मेरे शिक्षक मेरे लिए बहुत अच्छे थे और उन्होंने मेरी क्षमताओं को पहचाना।

असल में, जब मेरे पिता मुझे लेने आए तो स्कूल ने तब तक मेरा ट्रांसफर सर्टिफिकेट नहीं दिया, जब तक उन्होंने मेरे गांव के स्कूल में मेरा दाखिला कराने का वादा नहीं कर लिया। मेरे चाचाओं ने भी जोर दिया कि मुझे अपनी पढ़ाई जारी रखनी चाहिए।

जब मैं अपने गाँव के स्कूल में पढ़ती थी, तो मैं अपने गाँव की अन्य लड़कियों को इकट्ठा कर के अपने साथ ले जाती थी। उनमें से कुछ ने कुछ कक्षाओं में भी जाना शुरू कर दिया।

लेकिन हमारे गाँव का स्कूल आठवीं कक्षा तक ही था। जब मैंने इसकी पढ़ाई पूरी की, तब मैं 17 साल की थी। पढ़ाई जारी रखने के लिए, मुझे उस शहर में जाना पड़ता, जो काफी दूर था।

इसलिए मेरे माता-पिता मेरी शादी गांव में करना चाहते थे। मेरे दादाजी ने हस्तक्षेप किया। जब मैं 18 साल की हुई, तब उन्होंने मेरी शादी एक बेहतर परिवार में करा दी। मेरे पति के पिता सरकारी नौकरी में थे और आर्थिक रूप से भी बेहतर थे।

मेरे पति और उनके परिवार ने मुझे दो साल तक मेरे पैतृक घर में रहने देने का फैसला किया, क्योंकि मेरे पति बी.ए. कर रहे थे। अपनी ससुराल जाने के बाद मैंने दो बच्चों की परवरिश की।

गांव में रोजगार के ज्यादा विकल्प नहीं थे। साथ ही, मेरे बच्चे बहुत छोटे थे। इसलिए मैं घर पर ही रही, लेकिन कुछ करने की वह ललक अब भी थी।

जब 2013 में, ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (RSETI) ने लोगों को विभिन्न कौशलों में प्रशिक्षण देना शुरू किया, तो मैंने इसमें भाग लेने का फैसला किया। मैं घर का अपना काम खत्म करती और प्रशिक्षण के लिए चली जाती। मैंने सॉफ्ट टॉय (नर्म खिलौने) बनाना सीखा।

प्रशिक्षण के बाद मैंने नर्म खिलौने बनाना शुरू किया और फिर अपनी खुद की दुकान खोल ली। अब मेरी दुकान में कुछ महिलाएं काम करती हैं। मुझे खुशी है कि मैं उन्हें रोजगार दे रही हूँ।

मैं हमेशा महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रोत्साहित करती हूँ।

सवाई माधोपुर RSETI ने मेरे काम के लिए, 2018 में एक राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए मेरा नाम नामांकित किया।

मुझे यह कहते हुए गर्व हो रहा है कि मुझे चुन लिया गया और मुझे एक प्रमाण पत्र और पांच लाख रुपये का अनुदान मिला।

मेरा हमेशा यह विश्वास रहा है कि मेहनत का फल मिलता है। यह कभी बेकार नहीं जाता। जरूरत है कि आप अपने प्रयासों में ईमानदार और मेहनती हों और बाकी सब ठीक हो जाएगा।

वर्मा के उद्यमशीलता उपक्रम के बारे में कहानी यहाँ पढ़ें

छायाकार – जयकिशन पटेल – अनस्प्लैश, शोमा अभ्यंकर, जयेश जलोदरा – अनस्प्लैश।

रिपोर्ट शोमा अभ्यंकर द्वारा, जो संस्कृति, विरासत, भोजन और पर्यावरण पर लिखती हैं।