Her life logo

एथलिट से गांव की नेता बनी आदिवासी लड़की

गांव के लोगों के द्वारा पंचायत का मुखिया बनाए जाने तक, भाग्यश्री लेकामी का ध्यान खेल के पेशे में आने पर था। श्रमिकों का विश्वास जीतने से लेकर टीके के प्रति झिझक दूर करने तक, अब वह यह सुनिश्चित करने की कोशिश करती हैं कि उनके गांव की प्रगति हो।

गढ़चिरौली, महाराष्ट्र

मैं महाराष्ट्र के नक्सल प्रभावित क्षेत्र गढ़चिरौली जिले के कोटि गांव की एक युवा आदिवासी लड़की थी।

मेरे पिता एक स्कूल शिक्षक थे, जो मेरे परिवार में अकेले कमाने वाले सदस्य थे।

बेशक वह केवल मेरे बड़े भाई की शिक्षा का खर्च उठा सकते थे।

इसलिए मैंने वंचितों के लिए बने एक आश्रम स्कूल में पढ़ाई की।

यहीं मेरा परिचय खेलों से हुआ।

जब मेरे गांव के मुखिया का फोन आया, मैं मुक्केबाजी अभ्यास में मुक्के मार रही थी।

मुझे लगा कि वह सिर्फ यह देखने के लिए फोन कर रहे हैं कि मैं कैसी हूँ। इसलिए जब उन्होंने कहा कि मैं सरपंच के रूप में ग्राम सभा की सर्वसम्मत पसंद हूँ, तो मैं पूरी तरह से चौंक गई।

एक युवा आदिवासी लड़की के लिए ये बहुत बड़ी बात थी। 

ज्यादातर लोगों के पास जरूरी योग्यता या शिक्षा नहीं थी। इसलिए मैं उनकी स्पष्ट पसंद थी।

कुछ ही महीने पहले जनवरी 2019 में, मैंने अपने माता-पिता को यह बताने की हिम्मत की थी कि मैं खेल में अपना करियर बनाना चाहती हूँ और चंद्रपुर जिले के एक शारीरिक शिक्षा कोर्स में दाखिल हुई थी।

अपनी बात साबित करने के लिए, मैंने अपने बाल भी छोटे कर लिए थे।

खेलों ने मुझे आत्मविश्वासी और सशक्त महसूस कराया।

मुझे खुद को अभिव्यक्त करने का एक तरीका मिल गया।

लेकिन जब आपका बचपन मुश्किलों से गुजरा हो, तो आप जानते हैं कि लोगों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

इसलिए मैंने सोचा कि मैं इस अवसर का उपयोग उनकी मदद करने के लिए कर सकती हूँ।

सरपंच बनने का मतलब था खेल छोड़ना और अपने गांव लौटना। चुनाव मेरे सपनों और मेरे लोगों के सपनों के बीच था। यह निर्णय लेना बिल्कुल भी आसान नहीं था। 

लेकिन आख़िरकार मैंने अपने सपनों के बजाय अपने लोगों को चुना।

जब मैं अपना नामांकन फॉर्म जमा करने गई, तो अधिकारी ने उसे मेरे मुंह पर यह कहते हुए फेंक दिया कि उम्र में विसंगति है, मेरी उम्र 21 साल से एक पखवाड़ा कम थी, जो इस पद के लिए न्यूनतम आयु है।

लेकिन शुक्र है कि तहसीलदार ने हस्तक्षेप किया और मैं मार्च 2019 में कोटी पंचायत की सरपंच बन गई।

कार्यभार संभालने के बाद, मेरे गाँव के ज्यादातर कर्मचारियों ने मुझे या मेरे काम को गंभीरता से नहीं लिया। वे मुझसे उम्र में काफी बड़े थे, कुछ तो मेरे पिता की उम्र के भी थे।

लेकिन खेल में सीखी गई टीमवर्क तकनीक को अपनाते हुए, मैं बिना किसी पदानुक्रम के कंधे से कंधा मिलाकर चली और उनका आत्मविश्वास हासिल किया।

उदाहरण के लिए, माहवारी के दौरान महिलाओं के रहने के लिए मिट्टी की एक संरचना, ‘कुर्मा घर’ (माहवारी आवास) यहां आम है। इसमें अक्सर पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव होता है, जिसका अर्थ है स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होना।

क्योंकि स्वास्थ्य और स्वच्छता मेरी प्राथमिकता हैं, इसलिए मैंने हर महीने मुफ्त में सैनिटरी पैड वितरित किए और सही निपटान के बारे में महिलाओं को शिक्षित किया। एक सरकारी योजना ने हमें स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए उचित सुविधाएं स्थापित करने में मदद की।

लेकिन एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या मेरा इंतजार कर रही थी। महामारी!

मुझे सरपंच बने एक साल ही हुआ था। शुरू में तो मुझे संघर्ष करना पड़ा। हमें भ्रमों और गलत सूचनाओं को तोड़ने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी। जब टीकों को लेकर ग्रामीण आशंकित थे, तो मैंने अपने माता-पिता से टीके लगवाने का आग्रह किया। इससे मदद मिली और बाकी लोगों ने भी ऐसा ही किया।

अब हम सड़कें बना रहे हैं और पाइप से जलापूर्ति के लिए काम शुरू कर रहे हैं।

सरपंच के रूप में लगभग दो साल बचे हुए होने के कारण, मैं अपनी बाइक पर घूमती हूँ और अपने लोगों के लिए जितना हो सके उतना करने के लिए खुद को प्रेरित करती हूँ।

मुझे टाटा समूह के लिए ट्राइबल लीडरशिप फेलो के रूप में भी चुना गया, जिससे मुझे अन्य नेताओं से सीखने का मौका मिला। मैं प्रेरित हूँ। 

लेकिन खेल या राजनीति? 

मैंने अभी तक तय नहीं किया है। मैंने शारीरिक शिक्षा में स्नातकोत्तर के लिए दाखिला लिया है। लेकिन जीवन आश्चर्यों से भरा है। एक फोन कॉल ने मेरी जिंदगी बदल दी, तो कौन जानता है कि आगे क्या होगा।

हालाँकि, एक बात निश्चित है। मैं अपनी क्षमता से लोगों के लिए काम करती रहूंगी।’

शीर्ष पर फोटो में भाग्यश्री लेकामी को बच्चों के साथ दिखाया गया है, जहां वह सरपंच हैं। तस्वीरें: भाग्यश्री लेकामी के सौजन्य से

भुवनेश्वर स्थित पत्रकार, तज़ीन क़ुरैशी की रिपोर्ट।