वन में रहने वाले गुज्जर, हर साल की तरह उत्तराखंड के आंशिक रूप से सूख चुके बांध की ओर प्रवास करते हैं, जहां उनके पशुओं को चरने के लिए अच्छी मात्रा में चारा और पानी मिलते हैं, और वे आसपास के कस्बों में दूध बेच आते हैं।
उत्तराखंड के हिमालय की तलहटी में तराई क्षेत्र के नानकमत्ता में, बांध के आसपास शाम को रौनक रहती है।
बोतलें और बर्तन लिए लोग, डेयरी किसानों के एक समुदाय के लिए कतार में लग जाते हैं, जो हर साल गर्मियों में बांध को अपना अस्थायी निवास बना लेते हैं।
वे गुज्जर हैं, एक ऐसा समुदाय, जो जंगलों को अपना घर मानते हैं, लेकिन हर गर्मियों में बांध के पास के खेतों में चले जाते हैं।
जैसे ही शहर के निवासियों को पता चलता है कि गुज्जर शहर में हैं, तो बहुत से लोगों के लिए उनसे दूध खरीदना एक तरह का रिवाज है।
यहां तक कि दूध विक्रेता भी अपना माल बेचने के लिए शहर जाने से पहले, इनके आसपास इकट्ठा हो जाते हैं।
नानकमत्ता बाजार के एक दुकानदार अनिल गुप्ता को बाजार में बिकने वाले पानी वाले दूध के विपरीत, गुज्जरों से खरीदा हुआ दूध साफ और गाढ़ा लगता है।
गुप्ता की तरह, नानकमत्ता के लोग भी गुज्जरों द्वारा बेचे जाने वाले दूध के स्वाद और शुद्धता का दावा करते हैं।
गुज्जरों की गायें अधिक स्वादिष्ट दूध देती हैं
सुखदेव सिंह जैसे नियमित ग्राहक, जो डेयरी उद्योग में भी काम कर चुके हैं, गुज्जरों द्वारा केवल प्राकृतिक चारा और घास खिलाने को स्वाद का श्रेय देते हैं।
सिंह ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “वे जानवरों को बनाया हुआ चारा नहीं खिलाते। इसीलिए दूध पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है।”
स्वाद के अलावा, गुज्जर उधम सिंह नगर जिले के नानकमत्ता में सिर्फ कुछ महीने रहते हैं।
स्वाभाविक है कि छोटी अवधि के लिए उपलब्ध होने के कारण दूध की मांग बढ़ जाती है।
उनकी पहचान – खानाबदोश डेयरी किसान
अपनी दुधारू गायों के साथ प्रवास करना, न केवल उनकी आजीविका है, बल्कि उनकी पहचान भी है।
इस समुदाय के बुजुर्ग सदस्यों में से एक, मोहम्मद जामिन कहते हैं – “हम सदियों से यह व्यवसाय कर रहे हैं। हमारे पास कोई दूसरा धंधा नहीं है। यह व्यवसाय ही है, जो हमारे समुदाय को एक पहचान देता है।”
गुज्जर अपने परिवार के साथ आते हैं और तीन से चार महीने यहां रहते हैं, ज्यादातर मार्च से जून तक।
वे जब आते हैं, तो सरयू नदी पर बने नानक सागर बांध में अपना अस्थायी निवास बनाते हैं।
ज्यादातर गुज्जर खानाबदोश डेयरी किसान के रूप में इस जीवन के अलावा और कोई अस्तित्व नहीं देख सकते।
गुज्जर ग़ुलाम अहमद कहते हैं – “यह हमारा स्थायी व्यवसाय है। हम ये काम कभी नहीं छोड़ेंगे। यह करना ही पड़ेगा।”
गुज्जर गर्मियों में नानकमत्ता बांध क्यों आते हैं?
गर्मियों में गुज्जरों को जंगलों में, जहां वे आम तौर पर रहते हैं, पानी और चारा मिलना मुश्किल हो जाता है। जंगलों में आग लगने का भी ख़तरा होता है।
इसलिए जब नानकमत्ता बांध का पानी थोड़ा पीछे हट जाता है, तो गायों के चरने के लिए एक अच्छा क्षेत्र खाली हो जाता है और पांच से सात गुज्जर परिवार नानकमत्ता कस्बे से लगभग 3 किमी दूर, बांध के सूखे हिस्सों में रहने के लिए आ जाते हैं।
इसका मतलब है कि उन्हें न केवल पानी बल्कि अधिक चारा भी मिलता है।
शहर के नजदीक होने के कारण, उनके लिए सब्जियां, राशन और दवाओं जैसा सामान प्राप्त करना भी आसान हो जाता है।
उनके लिए पशु चिकित्सक भी उपलब्ध होते हैं, हालांकि वे हमेशा जानवरों के लिए दवाएं साथ रखते हैं और जरूरी इंजेक्शन लगा लेते हैं और दवाएं पशु चारे के साथ मिलाते हैं।
जामिन कहते हैं – “सर्दियों में दूध का उत्पादन बेहतर होता है। गर्मियों में यह कम होता है। यदि हम जंगलों से यहां नहीं आते, तो यह और भी कम होता, क्योंकि गर्मी और मच्छर एक बड़ी समस्या हैं। इसके अलावा, हमें अपने जानवरों के लिए दवा भी नहीं मिल पाती है।”
बांध स्थल को घर बनाना
हालाँकि यह उनका अस्थायी निवास है, लेकिन घर जैसा अहसास पाने के लिए गुज्जर अपना घर बनाने की जरूरी सामग्री एक ट्रॉली में साथ लाते हैं।
जामिन के लिए इसका मतलब उनके परिवार और उनकी दस भैंसों के अलावा, वह अपने कुत्ते, ‘टाइगर’, को भी साथ लाना है।
उन्होंने कहा – ”टाइगर हमारे साथ चलता रहता है।”
वे राशन कार्ड जैसे जरूरी दस्तावेज भी हमेशा साथ रखते हैं।
क्योंकि रात में रोशनी के लिए बल्ब जलाने के लिए बिजली का कोई और साधन नहीं है, इसलिए सभी परिवार अपने साथ सौर पैनल भी लाते हैं।
बांध या जंगल – समस्याएं तो हैं ही
हालाँकि सौर पैनल आम तौर पर सहायक होते हैं, लेकिन बादल वाले दिनों में उनकी समस्या होती है। कभी-कभी उन्हें आँधी-तूफ़ान और तेज़ गर्मी का भी सामना करना पड़ता है।
लेकिन यह उनकी एकमात्र चिंता नहीं है।
जब वे बांध स्थल पर रहते हैं तो यह डर रहता है कि सरकारी अधिकारी उनके तम्बुओं को उजाड़ सकते हैं।
जब जुलाई में मानसून का मौसम शुरू होता है और बांध में पानी बढ़ने लगता है, तो गुज्जरों के जाने का समय हो जाता है।
गुज्जर वनवासी कैसे बने?
गुज्जर समुदाय हिमाचल प्रदेश के अलावा उत्तराखंड के जंगलों में भी फैला हुआ है।
उधम सिंह नगर जिले में जंगलों के किनारे पर स्थित टुकड़ी गांव जामिन और अन्य लोगों के स्थायी घर हैं।
जामिन अपने पिता से सुनी कहानी सुनाते हैं कि कैसे उसका समुदाय जंगलों में रहने लगा।
जामिन को याद है – “हम पहले जम्मू से हिमाचल आए, वह भी दहेज के रूप में!”
कहानी यह है कि जम्मू के राजा ने अपनी पुत्री का विवाह हिमाचल के राजा से किया था। जब वह अपने माता-पिता से मिलने गई तो उसने कहा कि हिमाचल में सब कुछ ठीक है, बस दूध नहीं मिलता।
इसलिए जम्मू के राजा ने गुज्जरों को हिमाचल जाने का आदेश दिया, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनकी बेटी को दूध मिल सके।
जामिन कहते हैं – “लगभग 30 परिवार हिमाचल में जाकर बस गए। वैसे ही हम दहेज के रूप में यहां आये हुए गुज्जर हैं। हमें जंगलों में रहना पसंद है।”
जब जामिन और उसका समुदाय जंगलों में वापस जाने की तैयारी कर रहे हैं, तो वह जानते हैं कि नदियों में पानी होगा और चारे के लिए घास उग गई होगी।
जामिन का विदाई सन्देश था – “जिस तरह एक शहरी बच्चा जंगल जाने से डरता है, उसी तरह एक गुज्जर बच्चा शहर जाने से डरता है।”
जैसे शहर का बच्चा जंगल में जाने से डरता है, वैसे ही गुज्जर का बच्चा शहर जाने से डरता है
मोहम्मद जामिन
मुख्य छवि में गायों का झुंड दिखाया गया है (फोटो – ‘डावी नोल्टे फोटोग्राफी, कैनवा’ के सौजन्य से)
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