Her life logo

वह लेह के ठंडे पहाड़ों में लाई उपयोगी खेती

पंजाब के हरे-भरे खेतों से प्रेरित शोध वैज्ञानिक जिग्मेट यांगचिन, अपनी जन्मभूमि लेह के ठंडे पहाड़ी क्षेत्रों में महिलाओं को प्रेरित कर रही हैं। उन्होंने अपने लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए आसान वर्मीकंपोस्टिंग और सिंध नदी की सफाई शुरू की है।

चांगथांग, लद्दाख

चंडीगढ़, जहां मैं पढ़ रही थी, के हरे-भरे माहौल और अपने खेतों में काम करने वाले किसान मुझे हमेशा घर के बारे में सोचने पर मजबूर करते थे।

यदि पंजाब में विशाल समतल मैदान थे, तो हमारे पास ठंडे पहाड़ थे। मेरा गाँव उन पहाड़ों में बसा हुआ था।

एक सवाल मुझे हमेशा परेशान करता था – हम देश के अन्य हिस्सों की तरह सब्जियों और फलों का उत्पादन क्यों नहीं कर सकते?

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, मैं भारत के ऊँचाई वाले अनुसंधान संस्थान, कश्मीर के शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में काम करने के लिए लेह लौट आई।

न्योमा गांव के लोग ज्यादातर चरवाहे हैं, जो पहाड़ों में फैले विशाल भूरे मैदानों में पशु पालते हैं।

दूध और ऊन प्रचुर मात्रा में थे। लेकिन इस क्षेत्र में हरी सब्जियों की कमी थी। क्योंकि वहां खेती के सही आधुनिक तरीकों और तकनीकों का अभाव था। 

जहाँ पुरुष पास के पहाड़ों और बीहड़ों में अपने पशुओं की देखभाल करते थे, वहीं महिलाएँ आमतौर पर अपना दिन घर के कामों में बिताती थीं।

कुछ दिन खेत में बिताने के बाद, मैंने कुछ गांवों की कुछ महिलाओं से बात की और उन्हें किचन गार्डन विकसित करने के लिए प्रेरित किया।

मैंने उन्हें बताया कि वे अपने घर के पिछवाड़े का उपयोग अपने और दूसरों के लिए सब्जियाँ पैदा करने के लिए कर सकते हैं।

एक कार्यक्रम समन्वयक के रूप में, मेरी टीम और मैंने उन्हें बागवानी की कई तकनीकें सिखाईं। हमने बागवानी की बिल बनाने, ग्रीन हाउस और खाई बनाने की तकनीकें शुरू की।

कभी हम पत्तेदार सब्जियों के लिए तरसते थे, पालक से लेकर फूलगोभी, बैंगन से लेकर टमाटर तक। अब हम उनका उत्पादन करते हैं और हजारों खीरे और लौकी भी उगाते हैं।

कुछ महिला किसान ऐसी भी हैं, जो अब लाखों रुपए कमाती हैं।

परियोजना के दौरान, मैंने लेह शहर के पीने के पानी का परीक्षण किया और मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि वह बेहद प्रदूषित था।

मैंने चंडीगढ़ और श्रीनगर की अलग-अलग प्रयागशालाओं से पानी की जाँच कराई। नतीजे चिंताजनक थे। क्यों? क्योंकि शहर के पानी की आपूर्ति करने वाले जलाशयों को कूड़े के ढेर में बदल दिया गया था। 

मैंने यह मुद्दा लद्दाख विकास परिषद के सामने उठाया। मैंने पुज्य दलाई लामा से मुलाकात की और उनसे अनुरोध किया कि वे लोगों को जलाशय में गंदगी न डालने का संदेश दें।

शीघ्र ही हमारी दलील लद्दाख में जल निकायों के प्रदूषण के खिलाफ एक आंदोलन में बदल गईं। राहत की बात है कि पानी पिछले स्तरों की तुलना में ज्यादा सुरक्षित है।

वर्ष 2015 में मुझे राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के साथ एक वर्मीकम्पोस्ट परियोजना पर काम करने का मौका मिला ।

लद्दाख के ठंडे और मरुभूमि वाले हालात में, वर्मीकंपोस्टिंग कभी भी उतनी आसान नहीं होती, जितनी आम तौर पर अन्य जगहों पर होती है।

शोध और प्रयोगों के माध्यम से मैंने एक जुगाड़ प्रस्तुत किया।

आसानी से उपलब्ध किफायती स्थानीय संसाधनों से तैयार, वर्मीकम्पोस्टिंग तकनीक में घास, पशुओं के गोबर, कृमि-बैग और कीड़ों का उपयोग किया जाता है और यहां यह सफल रहा।

मुझे यह देख कर खुशी होती है कि लद्दाख के दूरदराज के इलाकों के बहुत से किसानों को इस तकनीक का उपयोग कर रहे हैं।

मुख्य फोटो में डॉ. जिग्मेट के साथ स्वयंसेवकों का समूह दिखाया गया है, जो अग्रणी लोगों के नेतृत्व में जलाशयों की सफाई का अभियान चला रहे हैं (छायाकार – नासिर यूसुफी)

नासिर यूसुफी श्रीनगर स्थित एक पत्रकार हैं।