बहराईच में सामुदायिक सौर सिंचाई व्यवस्था से किसान कैसे फलते-फूलते हैं

बहराईच, उत्तर प्रदेश

किसानों के एक समूह के लिए एक सामूहिक पर्यावरण-अनुकूल सौर-संचालित सिंचाई व्यवस्था, उन्हें प्रदूषण फ़ैलाने वाले डीजल पंपों या बारिश पर निर्भरता से मुक्त करके, अधिक कमाई करने में मदद करती है।

वर्तमान में भारत में किसान फसल सिंचाई के लिए ग्रिड से जुड़ी बिजली और डीजल पंपों पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं। महंगे डीजल इंजन कृषि सामग्री की लागत बढ़ाते हैं और कार्बन उत्सर्जन बढ़ाते हैं। उत्तर प्रदेश के बहराईच जिले के किसानों के लिए भी यह कुछ अलग नहीं था।

बहराईच जिले का मुख्य आधार कृषि है। भूमि की औसत जोत का आकार कम है। कुछ किसान वर्षा आधारित खेती करते हैं और अपनी फसलों की सिंचाई के लिए केवल बारिश के पानी पर निर्भर रहते हैं। कई छोटे और सीमांत किसान डीजल पंप किराए पर लेते हैं, जो बहुत ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं। इससे सिंचाई की लागत भी ज्यादा होती है।

लगभग 20 किसानों के संयुक्त स्वामित्व वाली सौर ऊर्जा संचालित सिंचाई व्यवस्था उनकी सिंचाई जरूरतों को पूरा करती है और सामग्री की लागत को कम करती है (छायाकार – तविश मलिक)

सिंचाई की लागत कम करने के लिए, आगा खान फाउंडेशन सामुदायिक सौर-आधारित सिंचाई व्यवस्था के माध्यम से ‘उन्नत खेती’ कार्यक्रम लागू कर रहा है।

सामुदायिक सिंचाई व्यवस्था कैसे काम करती है?

गाँव में ‘सिंचाई विकास समिति’ नामक समिति का गठन किया गया है। मूल रूप से यह सौर सिंचाई व्यवस्था का उपयोगकर्ता समूह है, जिसमें 15-20 किसान शामिल हैं।

प्रत्येक समिति में एक अध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष और एक पंप ऑपरेटर होता है और उसका एक बैंक खाता होता है। समिति जल उपयोगकर्ता शुल्क के लिए नियम और मानदंड बनाती है और व्यवस्था के दिन-प्रतिदिन के कामकाज का प्रबंधन करती है।

सामुदायिक सौर-संचालित सिंचाई व्यवस्था स्थापित करने की प्रक्रिया, समूहों की पहचान और जलग्रहण क्षेत्र की माप और सिंचाई विकास समितियों के निर्माण के साथ शुरू होती है। विकास समितियाँ । इसके बाद प्रत्येक सिंचाई व्यवस्था के कमांड क्षेत्र की मैपिंग की जाती है और भूमि के नीचे पाइपलाइन के नक़्शे पर निर्णय लिया जाता है।

पाइपलाइन की खुदाई, बोरवेल और पंप हाउस निर्माण कार्य, उपयोगकर्ता समूह द्वारा सामुदायिक योगदान के माध्यम से किया जाता है।

उपयोग के नियमों में सदस्य की जरूरतों के अनुसार पानी का वितरण, ऑपरेटर द्वारा सिंचाई शुल्क का संग्रह और एकत्रित राशि को समिति के बैंक खाते में जमा करना शामिल है।

सौर ऊर्जा सिंचाई, खेती की श्रम-गहनता कम करती है और किसानों को अधिक कमाई करने में मदद करती है (छायाकार – तविश मलिक)

विवादों से बचने के लिए पानी के मीटर लगाने से पारदर्शिता बनी रहती हैभुगतान में लचीलापन भी है, यानी पैसे की कमी होने पर किसान सदस्य भुगतान में देरी कर सकता है। लगातार भुगतान न करने पर किसान को पिछले सिंचाई शुल्क का भुगतान होने तक पानी नहीं मिलता है।

समुदाय-आधारित सौर सिंचाई व्यवस्था के लाभ

सामुदायिक सौर सिंचाई प्रणाली पर्यावरण के अनुकूल और सस्ती हैं। क्योंकि ये सिंचाई सुनिश्चित करने का एक भरोसेमंद स्रोत हैं, किसान पूरे वर्ष ऊँचे मूल्य वाली फसलें उगा सकते हैं।

सौर ऊर्जा संचालित सिंचाई प्रणाली में श्रम गहनता कम होती है और पाइप लाइनों के भूमिगत होने के कारण पानी से होने वाले रिसाव के नुकसान को कम करती है। इससे जहां सिंचाई की लागत कम होती है, वहीं आय में वृद्धि होती है।

ये पर्यावरण के अनुकूल भी हैं, क्योंकि इनमें कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन नहीं होता है। परियोजना जलग्रहण क्षेत्र में लगभग 400 डीजल पंपों को हटा दिया गया है।

क्योंकि सौर पंप पूरे साल सिंचाई सुनिश्चित करते हैं, इसलिए किसान तीन फसली मौसमों में अन्य ऊँची मूल्य वाली सब्जियाँ उगाते हैं (छायाकार – तविश मलिक)

हालाँकि उपयोगकर्ता समूहों में समानता, एकरूपता और पारदर्शिता बनाए रखना कई बार एक चुनौती होती है, लेकिन सिंचाई विकास समिति किसानों की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देती है, जिससे व्यवस्था की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित होती है। समिति एक सामूहिक उद्देश्य के लिए पारस्परिक जिम्मेदारी सुनिश्चित करती है। आर्थिक योगदान और स्व-प्रबंधन सदस्य किसानों में स्वामित्व, आत्म-सम्मान और आत्मनिर्भरता की भावना पैदा करता है।

सौर ऊर्जा संचालित सिंचाई प्रणाली का प्रभाव

बहराइच जिले के चित्तौरा और रिसिया प्रशासनिक खण्डों के 30 गांवों में जल-मीटर वाले 50 सौर सिंचाई व्यवस्थाएँ स्थापित की गई हैं। इनसे 900 एकड़ कृषि भूमि की सिंचाई होती है और 1,000 किसानों को लाभ मिलता है।

इस कार्यक्रम से बहराईच के किसानों की आय और समृद्धि में वृद्धि हुई है।

पानी का उपयोग फसल की जरूरत के अनुसार होता है। किसान जल मीटर रीडिंग के अनुसार शुल्क का भुगतान करते हैं। उपयोगकर्ता शुल्क 1.5 रुपये प्रति यूनिट (1,000 सीएफटी पानी) है, जो डीजल पंपों से सिंचाई की लागत से बहुत कम है।

डीजल पंप से प्रति सिंचाई लागत 300-400 रुपये बीघा आती है। तो एक साल के फसल सीज़न में, प्रत्येक किसान का सिंचाई खर्च 5,000-8,000 रुपये था। सामुदायिक सौर-सिंचाई व्यवस्था स्थापित होने के बाद, किसानों का वार्षिक सिंचाई खर्च 800-1,000 रुपये है।

फसलों की सिंचाई भी समय पर हो रही है, जिससे पैदावार बढ़ी है। आज की तारीख में प्रत्येक सौर सिंचाई समिति के खाते में 25,000 रुपये से 40,000 रुपये जमा हैं।

पानी की उपलब्धता के कारण, सब सिंचाई क्षेत्रों में किसान तीनों मौसमों (रबी, खरीफ और जायद) में फसलें उगा सकते हैं।

किसानों में सिंचाई व्यवस्था के स्वामित्व की भावना होती है, क्योंकि वे उपयोगकर्ता शुल्क का भुगतान करते हैं और स्वयं ही इसका प्रबंधन करते हैं (छायाकार – तविश मलिक)

इस क्षेत्र के किसानों ने पारम्परिक रूप से उगाए जाने वाले गेहूं, धान और मक्का के अलावा मिर्च, भिंडी, बैंगन, करेला, केला, मूली, पालक, फूलगोभी और पुदीना की खेती शुरू कर दी है।

कम सिंचाई शुल्क और कम मजदूरी की जरूरत होने से, किसानों को खर्च कम होने के कारण आर्थिक रूप से भी लाभ हो रहा है।

मुख्य छवि में एक सामुदायिक सौर पंप को दिखाया गया है, जो किसानों को सिंचाई की कम लागत, पर्यावरण-अनुकूल प्रणाली प्रदान कर रहा है (छायाकार – तविश मलिक)

तविश मलिक आगा खान फाउंडेशन (भारत) में परियोजना समन्वयक के रूप में काम करते हैं और राजस्थान में विभिन्न विकास परियोजनाओं को क्रियान्वित करते हैं।