टीके के अभाव में, केरल के सूअरपालक झेल रहे हैं अफ़्रीकी स्वाइन फ़्लू का प्रकोप

वायनाड, केरल

हालाँकि केरल की राज्य सरकार स्वाइन फ्लू के प्रसार को रोकने के कड़े कदम उठा रही है, लेकिन मुआवजे के बावजूद राज्य के सूअरपालक नुकसान से जूझ रहे हैं।

अपने सूअरों की चीखें सुनने के लिए जीजी शाजी क्या देंगी? जब उन्हें तीन सप्ताह पहले त्रिशूर जिले में अफ्रीकी स्वाइन फ्लू के कारण सूअरों को मारने की जानकारी मिली, तो यह उनके उन सूअरों की एक दुखदायी याद दिला रही थी, जिन्हें उन्होंने खो दिया था।

शाजी ने 14 साल पहले वायनाड जिले के कानियारम गाँव में सूअर पालना शुरू किया था। इस साल जून के शुरू में उन्होंने अपने फार्म में सूअरों में कुछ बदलाव देखे।

इसकी शुरुआत एक सुअर द्वारा खाना छोड़ देने से हुई।

जल्द ही यह बेहोश हो गया और फिर मर गया। वह मरे हुए जानवर को पुकोडे के ‘केरल पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय में ले गई, ताकि यह पता लगाया जा सके कि उसके सूअर की मौत क्यों हुई थी।

जब तक 10 बाद परिणाम आते, उसके फार्म के बाकी 43 सूअर मर चुके थे।

जून में वायनाड के फार्मों में बहुत से सूअरों को फ्लू संक्रमण के कारण मार दिया गया (फोटो – रामबोल्ड हेनर, ‘पिक्साबे’ के सौजन्य से)

शाजी जैसे छोटे पशु पालक हों या बड़े पैमाने पर सैकड़ों की संख्या में सूअर पालने वाले पालक हों, समस्या से निपटने के राज्य सरकार के प्रयासों के बावजूद, सूअरों के पशुधन का भविष्य अनिश्चित नजर आता है।

संक्रमित सूअरों को मारना

अरुण विंसेंट एक बड़े सूअर पालक हैं और उनके वायनाड के थाविंगल गाँव के फार्म में 360 सूअर हैं। उन्होंने अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए, एक साल पहले ही इस व्यवसाय में कदम रखा था।

18 जून को पशु चिकित्सा विभाग से उन्हें सूचना मिली कि उनके सूअर अफ्रीकी स्वाइन फ्लू से संक्रमित हैं और उन्हें मारना होगा।

जब वायनाड के तीन सूअर फार्मों से फ्लू की सूचना मिली, तो 700 से ज्यादा सूअरों को मारा जा चुका था।

यह एक ऐसा शक्तिशाली वायरस है, जिसका स्पर्श मात्र ही किसी को संक्रमित करने के लिए काफी है। हर 15 दिन में, सभी संक्रमित फार्मों में कीटाणुशोधन किया जाना जरूरी है 

वही अब त्रिशूर जिले में चल रहा है। अक्टूबर में त्रिशूर जिले में 200 से ज्यादा सूअर मारे गए।

प्रसार रोकने के लिए प्रतिबंध

संक्रमित सूअरों को मारने और उन्हें दफनाने के नियम का पालन करने के अलावा, विभाग संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए विभिन्न उपाय कर रहा है।

अफ़्रीकी स्वाइन फ़्लू संक्रमण की जगह से 10 कि.मी. के दायरे में न तो सूअर और न ही सूअर का मांस बेचा जा सकता है।

हालाँकि रवींद्रन के सूअर बिकने के लिए तैयार हैं, लेकिन फ्लू के प्रसार को रोकने के लिए लगे सरकारी प्रतिबंधों के कारण वह ऐसा नहीं कर सकते (छायाकार – राजेंद्रन)

एक सूअर पालक और ‘केरल पशुधन किसान संघ’ के उपाध्यक्ष, के.एस. रवींद्रन ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “मेरे फार्मों में मौजूद 450 सूअरों में से ज्यादातर बिकने के लिए तैयार हैं। लेकिन मैं उन्हें बेच नहीं सकता, क्योंकि मेरे फार्म 10 कि.मी. के दायरे में हैं।” 

किसानों को जिले के बाहर भी सूअर बेचने की अनुमति नहीं है। 

अफ़्रीकी स्वाइन फ़्लू के नियंत्रण अभियान के प्रभारी, वायनाड के पशुपालन विभाग के जिला समन्वयक, के. जयराज कहते हैं – “जिन फार्मों में अफ्रीकी स्वाइन फ्लू संक्रमण हुआ है, वे छह महीने बाद ही सूअर पालन फिर से शुरू कर सकते हैं, जब यह सुनिश्चित हो चुका हो कि वायरस खत्म हो गया है।”

इसके अलावा इन फार्मों को सूअरों की संख्या पहले की तुलना में 10% तक सीमित करनी जरूरी है।

जयराज ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “यह एक मजबूत वायरस है, जिसका स्पर्श मात्र ही संक्रमित कर सकता है। इसलिए हमने निगरानी क्षेत्र में इंसानों की गतिविधियों को प्रतिबंधित कर दिया है। हर 15 दिन में, सभी संक्रमित फार्मों में कीटाणुशोधन किया जाना जरूरी है।”

केवल मारने के लिए मुआवजा नहीं 

एक मारे गए सूअर के लिए अधिकतम मुआवज़ा 15,000 रुपये तक सीमित किया गया है।

केरल सरकार पहले ही सूअर पालकों को मुआवजे के तौर पर 37 लाख रुपये से ज्यादा बाँट चुकी है।

लेकिन जीजू शाजी उनमें से एक नहीं हैं, भले ही उन्हें लगभग 5 लाख रुपये का नुकसान हुआ हो।

दुखी मन से शाजी कहती हैं – “नियम के अनुसार, मुआवजा केवल नियमों के अनुसार मारे गए सूअरों के लिए है। लेकिन मेरे सूअर अफ़्रीकी स्वाइन फ़्लू के कारण मरे थे।”

लेकिन राज्य पशु चिकित्सा विभाग का उत्तर सकारात्मक था।

सूअरों के अपने खाली स्टालों के पास खड़ी शाजी जैसे छोटे किसानों के फ्लू वायरस के कारण सभी सूअर मर गए (छायाकार – राजेंद्रन)

जयराज ने आश्वासन दिया – ”नियम पुस्तिका में जो भी हो, उसे पर्याप्त मुआवजा दिया जाएगा।”

आर्थिक नुकसान

शाजी और विंसेंट की तरह वायनाड जिले में लगभग 500 सूअर पालक हैं, जिनमें से ज्यादातर ने कृषि छोड़ दी है, क्योंकि विभिन्न कारणों से यह अव्यवहार्य होती जा रही है। कई लोगों ने अन्य आजीविकाओं को आज़माने के बाद सूअर पालन को चुना, क्योंकि सूअरों को खिलाने के लिए होटलों का कचरा काफी है।

हालाँकि यह मुश्किल है, लेकिन मुझे दुकानें चलानी होंगी। मैंने दुकानों का किराया चुकाने के लिए अपनी पत्नी के गहने गिरवी रख दिए हैं।”

विंसेंट कहते हैं – “फ्लू की चपेट में आने से पहले, मैं एर्नाकुलम जिले के अंगमाली बाजार में 360 सूअरों के लिए 75 लाख रुपये कमाता।” मारे गए सूअरों के मुआवजे के रूप में उन्हें 19 लाख रुपये मिले हैं।

75 लाख रुपये के बैंक ऋण के साथ सूअर पालन शुरू करने के बाद, वह परेशान हैं कि वह इसका भुगतान कैसे करेंगे।

एक सूअर फार्म के अलावा, शिजू वलाड की वायनाड के मनंथवाड़ी ब्लॉक में सूअर- मांस की तीन दुकानें हैं।

वलाड कहते हैं – “हालाँकि यह मुश्किल है, लेकिन मुझे दुकान चलानी होंगी। मैंने दुकानों का किराया चुकाने के लिए अपनी पत्नी के गहने गिरवी रख दिए हैं।”

विंसेंट की तरह ज्यादातर सूअर पालकों ने बैंक ऋण लिया था, लेकिन मासिक ब्याज का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं।

उन्होंने कहा – ”हमें कम से कम एक साल के लिए ऋण किस्तों पर राहत की जरूरत है।”

सूअर व्यापारियों पर भी असर

बार-बार होने वाली चिंता के कारण, ज्यादातर व्यापारी सूअर पालकों से सूअर खरीदने के इच्छुक नहीं हैं और उसके मांस की कीमत में भारी गिरावट आई है।

पालकों की तरह, करीब 200 सूअर मांस कारोबारी भी दुविधा में हैं। 

जिन फार्मों में सूअर संक्रमित थे, उन्हें नियमित रूप से कीटाणुरहित किया जाता है (छायाकार – राजेंद्रन)

अफ़्रीकी स्वाइन फ़्लू फैलने से पहले, उनकी प्रत्येक दुकान पर प्रतिदिन 30-50 किलोग्राम सूअर मांस बेचा जाता था। अब मुश्किल से 1-2 किलो बेचते हैं।

स्थिति को उलटने के लिए, सरकार ने बाजार में उतरने का फैसला किया है।

केरल के पशुपालन मंत्री जे. चिंचुरानी कहती हैं – “राज्य सरकार का एक संस्था, ‘मीट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया’, किसानों से उचित मूल्य पर सूअर खरीदेगी। इससे रूकावट दूर हो सकेगी और निजी व्यापारी भी सूअर खरीदने के लिए प्रेरित होंगे।”

अब तक स्वाइन फ्लू का टीका नहीं

हालाँकि राज्य सरकार कड़े कदम उठा रही है – जैसे कि सूअरों के अवैध परिवहन के लिए सीमाओं पर रोक लगाना, क्योंकि उन्हें संदेह है कि फ्लू अन्य राज्यों से आया है – किसानों का कहना था कि टीका ही इसका एकमात्र समाधान है।

केरल राज्य पशुधन किसान संघ के सचिव पप्पाचन कहते हैं – “केरल में हजारों फार्म हैं। पशु चिकित्सक तभी हस्तक्षेप करते हैं, जब कोई सूअर पालक मौत की सूचना देता है। इसलिए ऐसे मामले हो सकते हैं, जिनकी रिपोर्ट दर्ज न की गई हो। हम सरकार से जल्द से जल्द एक टीके का आविष्कार करने का अनुरोध कर रहे हैं।”

लेकिन भारत में अभी तक अफ्रीकी स्वाइन फ्लू का कोई स्वीकृत टीका नहीं है।

जयराज कहते हैं – “इसलिए फिलहाल नियमों का सख्ती से कार्यान्वयन सुनिश्चित करना ही एकमात्र समाधान है।”

अच्छी खबर यह है कि अफ़्रीकी स्वाइन फ़्लू उतना नहीं फैला है जितनी आशंका थी, हालाँकि इस संकट से निपटने में कई महीने लग सकते हैं।

मुख्य फोटो में एक फार्म में सूअर के बच्चों को दिखाया गया है, जब केरल में अफ्रीकी स्वाइन फ्लू के संक्रमण के कारण सूअरों को मारा जा रहा है (फोटो – कैमरून किंकेड, ‘अनस्प्लैश’ के सौजन्य से)

के राजेंद्रन तिरुवनंतपुरम स्थित एक पत्रकार हैं।