अयोध्या की महिलाओं के लिए, सूक्ष्म-उद्यमी होना सिर्फ पैसे के बारे में नहीं

अयोध्या, उत्तर प्रदेश

समूहों में शामिल होना और सूक्ष्म उद्यम चलाना ग्रामीण महिलाओं को न केवल अधिक कमाई और अपने परिवारों के लिए योगदान में मदद करता है, बल्कि इससे वे अधिक आत्मविश्वासी निर्णय लेने वाली भी बनती हैं।

एक अकेली सशक्त महिला अपनी किस्मत बदल सकती है, लेकिन महिलाओं का एक समूह एक समुदाय को बदल सकता है। जैसा कि मैंने देखा है, उन्हें बस एक सहायता की ज़रूरत होती है।

देश के कई अन्य हिस्सों की तरह, ग्रामीण उत्तर प्रदेश की महिलाओं की सामाजिक निर्णय प्रक्रिया में कोई सुनवाई नहीं है। भारत के अग्रणी बैंकों में से एक की कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) परियोजना इसे बदल रही है।

एचडीएफसी बैंक के पीपुल्स एक्शन फॉर नेशनल इंटीग्रेशन (PANI-‘पानी’) कार्यक्रम ने ग्रामीण समुदायों, विशेषकर महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए, समग्र ग्रामीण विकास कार्यक्रम (HRDP) शुरू किया है।

महिलाओं के समूह बनाने और व्यक्तियों और महिलाओं के समूहों के सूक्ष्म उद्यम स्थापित करने वाले इस कार्यक्रम ने अयोध्या जिले के अमानीगंज ब्लॉक के 15 गांवों की 3,395 सबसे गरीब परिवारों की मदद की है।

सफल व्यवसाय चलाने से इन महिलाओं को अपने परिवारों और समुदायों में निर्णय लेने का हिस्सा बनने का आत्मविश्वास मिलता है।

सामूहिक यात्रा की ओर 

एचआरडीपी ने 15 गांवों में 2,941 महिलाओं की सक्रिय भागीदारी के साथ, 149 महिला स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) गठित की।

किसी समूह का सदस्य होने से महिलाओं को अपने सूक्ष्म उद्यमों और अपने समुदाय के विकास पर चर्चा करने में मदद मिलती है (छायाकार – जैती सिंह)

कार्यक्रम के शुरुआती दिनों में, टीम को बाहरी समझकर ग्रामीणों ने उनका सहयोग स्वीकार नहीं किया। लेकिन समय के साथ, महिलाओं ने अपनी झिझक पर काबू पा लिया।

‘पानी’ क्लस्टर समन्वयक और ग्राम संसाधन व्यक्ति इन एसएचजी को नियमित मासिक बैठकें आयोजित करने में मदद करते हैं। बैठकें सदस्य महिलाओं के लिए अपने और अपने गाँव के विकास के बारे में पहचान करने और चर्चा करने का एक मंच बन जाती हैं।

इन महिलाओं के लिए सूक्ष्म-उद्यमी बनना सिर्फ पैसे के लिए नहीं था।

चर्चा के बाद, महिलाओं के नेतृत्व वाले सूक्ष्म उद्यमों की पहचान की गई। ध्यान उन हस्तक्षेपों पर था, जो महिला सशक्तिकरण, सामुदायिक विकास और आर्थिक समावेश को बढ़ावा दें। 

एचआरडीपी टीम ने प्रशिक्षण, आर्थिक संपर्क और उद्यम इनपुट के माध्यम से सहायता प्रदान की।

विविध महिला सूक्ष्म उद्यम

एसएचजी बैठकों में चर्चा के आधार पर, विभिन्न सूक्ष्म उद्यमों की शुरुआत की गई। उद्यमियों को व्यवसाय स्थापित करने और चलाने के लिए, आर्थिक और भौतिक सहायता प्रदान की गई।

छोटे भूमिधारक और भूमिहीन महिलाओं के लिए 3-स्तरीय ढांचा अपनाया गया, ताकि उपलब्ध स्थान का ज्यादा से ज्यादा उपयोग किया जा सके। प्रत्येक स्तर का उपयोग विभिन्न प्रकार की आय सृजन के लिए किया जाता है, जिसमें मछली पालन से लेकर मुर्गी पालन और बकरी पालन तक शामिल हैं।

ऐसे पांच ढांचों में बकरी, मुर्गी और मछली पालन करके 15 महिलाएँ पैसा कमाती हैं।

मौजूदा उद्यमों में कमियों को दूर करने से महिलाओं को अधिक कमाई करने में मदद मिली है (छायाकार – जैती सिंह)

महिला समूहों द्वारा अपनाई गई एक अन्य लोकप्रिय आय सृजन गतिविधि घर के पिछवाड़े में मुर्गीपालन थी। प्राप्त हुए पिंजरों, चूजों और मुर्गी आहार से 45 महिलाएँ सूक्ष्म उद्यमी, अपनी पोल्ट्री इकाइयों को एक अच्छे व्यवसाय के रूप में विकसित कर रही हैं।

तीन महिलाएँ मिलकर एक सामूहिक मुर्गीपालन इकाई चला सकती हैं। इस समय 90 महिलाएँ सूक्ष्म उद्यमी सामूहिक पोल्ट्री इकाइयाँ चलाती हैं, जिससे उन्हें अपने परिवार की आय में योगदान करने में मदद मिलती है।

मौजूदा उद्यमों में सुधार

हालाँकि कुछ महिलाओं के पहले से ही रेहड़ी पर सामान बेचने के व्यवसाय थे, लेकिन उन्हें आवागमन, विशेष रूप से स्थानीय बाजारों से संपर्क को लेकर समस्याओं का सामना करना पड़ता था। पचहत्तर महिला सूक्ष्म उद्यमियों को व्यवसाय स्थापित करने और बाजार तक पहुंचने के लिए सहयोग मिला, जिससे उन्हें अपने मौजूदा उद्यमों को बेहतर बनाने में मदद मिली है।

हालाँकि सब्जी की खेती भी एक आम आय सृजन गतिविधि है, लेकिन घटिया बीज और बाजार संपर्क के अभाव के कारण, उपज और आय कम रहती है। उत्पादकता में सुधार के लिए, पचहत्तर महिला किसानों को उच्च उपज वाली सब्जियों के बीज प्रदान किए गए।

सूक्ष्म-उद्यमी का एक उदाहरण, ठेले पर सब्जियाँ बेचती महिला (छायाकार – जैती सिंह)

महिलाएँ आमतौर पर उचित तौल के बिना ही अपनी उपज बिचौलिए को बेच देती थी। इन किसानों को उनकी उपज पर उचित लाभ सुनिश्चित करने के लिए, वजन करने वाली मशीनें और टोकरियां भी उपलब्ध कराई गई।

धन से परे लाभ

हमने पाया कि इन महिलाओं के लिए सूक्ष्म-उद्यमी बनना सिर्फ पैसे के बारे में नहीं था।

इससे उन्हें परिवार की आय में योगदान में मदद मिलती है। इसके फलस्वरूप उन्हें अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा प्रदान करने, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच पाने और आम तौर पर उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद मिलती है।

एक समूह का हिस्सा होने और सूक्ष्म उद्यमी होने से, महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ता है और वे परिवार एवं अपने समुदायों में निर्णय लेने में सक्रिय रूप से भाग लेती हैं।

वे अपने व्यवसाय और आय को बढ़ाने के और अधिक तरीके सीखना चाहती हैं।

उनका कहना है कि वे पहले से ज्यादा खुश और स्वस्थ हैं। 

मुख्य फोटो में एक महिला को बकरियों की देखभाल करते दिखाया गया है, जो एचआरडीपी परियोजना, ‘पानी’ द्वारा सहायता-प्राप्त सूक्ष्म उद्यमों में से एक है (छायाकार – जैती सिंह)

जैती सिंह ने एचआर और मार्केटिंग में एमबीए किया है। वह HRDP के हस्तक्षेप, ‘पानी’ की MIS समन्वयक हैं।