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ओडिशा की ‘पारम्परिक बीज संरक्षक’ महिला

ओडिशा के कंधमाल जिले की एक आदिवासी किसान कुडेलाडु जानी, जो दो दशकों से पारम्परिक बीजों का संरक्षण कर रही हैं, कहती हैं कि वे अनमोल हैं, क्योंकि उन्हें किसी रसायन की जरूरत नहीं होती है, वे पौष्टिक होते हैं और समुदाय के पारम्परिक कृषि-वातावरण के ज्ञान की रक्षा करते हैं।

कंधमाल, ओडिशा

मैं एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित गांव बुरलुबरू में रहती हूँ। ये पहाड़ियाँ कभी साल के घने वनों से समृद्ध थीं। हमने साल के विशाल वृक्षों को लकड़ी माफिया के हाथों खो दिया। और हम शायद ही उन जंगली जानवरों को देख पाते हैं, जो पहले बहुतायत में थे।

इस गांव के सभी लोग ‘कुटिया कोंध’ समुदाय से संबंध रखते हैं। हम वर्षा आधारित खेती करते हैं और अपना ज्यादातर भोजन स्वयं उगाते हैं।

जब मैं छोटी थी, मेरे माता-पिता, दो भाई और मैं पहाड़ी ढलानों पर अपने खेत तक पैदल जाते थे। हम ‘मंडिया जौ’ (रागी का दलिया) और उबली हुई सब्जियों का भोजन साथ ले जाते हैं।

रात के समय मेरे पिता, लकड़ी के एक छोटे छप्परदार शेड, ‘मंच’ में रह कर जंगली जानवरों से फसलों की रक्षा करते थे। वह जानवरों, साँपों और ज़हरीले कीड़ों को डराने के लिए, मंच के चारों ओर आग जला देते थे।

इसे ‘सकारा’ कहा जाता है। इसे मिश्रित फसल पद्धति के अंतर्गत, रागी और ‘कंगनी’ बाजरा (फॉक्सटेल) के साथ उगाया जाता है। हम सकारा को हाथ से कूटकर बारीक पाउडर बनाते हैं। 

सब्जियां और मटन करी पकाते समय, हम सकारा पाउडर मिलाते हैं। यह हमारे व्यंजनों के स्वाद और सुगंध को बढ़ाता है।

रागी हमारा मुख्य भोजन है। हम दिन में कम से कम 3-4 बार इसका सेवन करते हैं। यह हमें अपने खेत पर काम करने की ताकत देता है।

मेरे पिता मानसून से पहले बीज बो कर, 16 प्रकार की 50 से ज्यादा किस्म की फसलें उगाते थे। प्रत्येक फसल अलग-अलग समय पर पकती थी। इसलिए हम उनकी एक के बाद एक कटाई करते थे।

पहले हमारे पास बाजरा की 30 और दालों की 18 किस्में थीं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में, हमने पारम्परिक बीजों की कई किस्में खो दी हैं।

मुझे चिंता थी कि हम अपने पारम्परिक बीज खो रहे हैं, जो कीमती हैं।

हाईब्रिड बीज महंगे हैं। और उन्हें महंगे उर्वरकों और कीटनाशकों की आवश्यकता होती है। समय के साथ आपकी ज़मीन बेजान हो जाती है।

दूसरी ओर, पारम्परिक बीजों को कम पानी की जरूरत होती है। एक भरपूर पैदावार के लिए, गोबर की खाद ही काफी है। और इसकी शेल्फ लाइफ लंबी होती है।

पारम्परिक रूप से हमारे समुदाय की महिलाएं, बीजों का संरक्षण करती रही हैं। इसलिए मैंने सोचा कि इसे संरक्षित करना हमारी जिम्मेदारी है। मैंने उन्हें हमारी पारम्परिक बीज विविधता को बचाने के लिए मेरे साथ काम करने के लिए राजी किया।

लेकिन पुरुषों को संदेह था। वह पूछते थे – “इन फसलों की अच्छी कीमत कौन देगा?”

आप जानते हैं, बाजरा को अक्सर आदिवासी या गरीब आदमी का भोजन माना जाता है। बाजार में इसकी कीमत कम मिलती है।

मैंने उन्हें समझाने के लिए उन्हें अपने पारम्परिक बीजों के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंध के बारे में बताया और कि यह कैसे स्वास्थ्यप्रद है।

उन्हें अब एहसास हो रहा है कि बाजरा पौष्टिक और उच्च मूल्य वाली फसल है। वे अपनी अतिरिक्त उपज बेच सकते हैं।

बाजरा अब लाभकारी हो रहा है।

हाल ही में, हमारे क्षेत्र के किसानों ने बाजरा 3,300 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर बेचा। धान के लिए हमें केवल प्रति क्विंटल 1800 रुपये ही मिलते हैं।

हमें खुशी है कि सरकार हमारी बाजरा खेती में सहयोग कर रही है।

पिछले कुछ वर्षों में, हमारा गाँव पारम्परिक बीज की किस्मों का केंद्र बन गया है। यहां बीज के लिए अन्य जगहों से भी किसान आते हैं।

यदि किसानों को किसी खास पारम्परिक बीज की जरूरत होती है, तो हम उन्हें मुफ़्त उपलब्ध कराते हैं। लेकिन हम यह सुनिश्चित करते हैं कि वे हमारे साथ अपनी बीज किस्म का आदान-प्रदान करें। और यदि उनके पास अलग किस्म के बीज नहीं हैं या उन्होंने उन्हें खो दिए हैं, तो हम उन्हें हमारे द्वारा दिए गए बीज की दोगुनी मात्रा लौटाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

हमने अपने आदिवासी समाज की इस पारम्परिक लेनदेन प्रथा को पुनर्जीवित किया है।

लेकिन महिला होने के नाते हमारे लिए, यह प्रगति आर्थिक लाभ से ज्यादा है। हम अपनी पारम्परिक फसलों का गौरव बहाल कर रहे हैं। ये फसलें हमारी पहचान हैं। हमें गर्व है, क्योंकि लोग हमें लुप्त हो रही बीज की किस्मों का बीज संरक्षक कहते हैं।

शोधकर्ता और पत्रकार दूर-दूर के शहरों से आते हैं।

वे हमारे बीज संरक्षण कार्य की सराहना करते हैं और उसे मान्यता देते हैं। वे हमारे काम के बारे में अधिक जानने के लिए दर्जनों प्रश्न पूछते हैं।

एक आम सवाल होता है – “आपको इन विविध पारम्परिक बीजों को संरक्षित करने के लिए किसने प्रेरित किया?”

इस जवाब में हम अपने विविध रंग-बिरंगे बीजों को प्रदर्शित करते हैं। ये जलवायु और कीट प्रतिरोधी बीज हमारे लिए पैसे से भी अधिक कीमती हैं।

मेरे पिता अब नहीं रहे। लेकिन उन्होंने ही मुझे बीजों के बारे में सबसे महत्वपूर्ण सबक सिखाए।

मुझे अब भी उनका यह कहना स्पष्ट रूप से याद है – “बीज जीवित प्राणी हैं। वे हमारी प्राचीन जड़ें हैं। हमें अपने पारम्परिक बीजों का पोषण और संरक्षण करने की जरूरत है। क्योंकि वे हमारे रिवाज को जीवित रखते हैं।”

और मैं यही कर रही हूँ।

भुवनेश्वर स्थित पत्रकार अभिजीत मोहंती द्वारा रिपोर्टिंग और तस्वीरें।