असम में पारम्परिक कृषि ज्ञान आज भी प्रासंगिक है

सोनितपुर, असम

अब वैज्ञानिक छंदबद्ध मुहावरों, ‘डाकोर बोसोन’ के पीछे के ज्ञान की पुष्टि कर रहे हैं, जो सदियों से असम और इसके पड़ोसी क्षेत्रों में किसानों का मार्गदर्शन करता रहा है।

कभी-कभी, जब आप बाहरी दुनिया में मदद तलाश रहे होते हैं, तो आपको बस अपने अंदर की तरफ देखने की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए, असम में, किसानों की पीढ़ियों ने ‘डाकोर बोसोन’ की सीख का पालन किया है, जो कृषि के तरीकों पर पारम्परिक कहावतों का एक समूह है।

वैज्ञानिक अब इन सदियों पुराने तुकबंदी वाले छंदों में ज्ञान की खोज कर रहे हैं, जो आज भी लागू होते हैं, शायद पहले से कहीं ज्यादा। ये छंद प्रयोगों द्वारा सिद्ध साक्ष्यों पर आधारित नहीं थे, बल्कि प्रकृति के ध्यान से अध्ययन और अनुभव से प्रेरित थे।

डाकोर बोसोन का एक छंद असमिया में कहता है: घोनै, घोनै, दिबा अली; पोरबोत ओटू रूबा साली (यदि आप थोड़ी थोड़ी दूरी पर बंध बनाते हैं, तो आप पहाड़ी चोटियों पर भी ‘साली’ चावल सफलतापूर्वक उगा सकते हैं)। दूसरे शब्दों में, सदियों पुरानी यह कहावत बांध बनाकर जल प्रबंधन को बढ़ावा देती है।

सर्दियों में उगाया जाने वाला ‘साली’ चावल वर्षा आधारित है, और तटबंध पानी को रोकने में मदद करते हैं, जो धान की खेती के लिए जरूरी है। इस तरह की तकनीक से किसानों को पहाड़ियों पर चावल की खेती में भी मदद मिली है। ऐसी कई लोकोक्तियाँ हैं। एक अन्य छंद में तटबंधों के ऊपर तटबंध बनाने की सलाह दी गई है, ताकि खेतों में पानी की गहराई बनाए रखने के लिए पर्याप्त ऊंचाई हासिल की जा सके।

असम के बिस्वनाथ कृषि महाविद्यालय में शुष्क कृषि के लिए अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (AICRPDA) के मुख्य वैज्ञानिक, पल्लब कुमार सरमा कहते हैं – “सदियों से, असम में किसान मौसम की भविष्यवाणी करने के लिए डाकोर बोसोन का पालन करते रहे हैं, जो फसलों की बुआई और फसलों के बीच अंतर रखने में, जैविक खाद का उपयोग, मिट्टी की जुताई, जल प्रबंधन और इसी तरह के खेती के तरीकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। ये छंद वर्षों के अनुभव पर आधारित हैं, और अब जब हम विश्लेषण करते हैं, तो उनमें से ज्यादातर हमारी मान्यताओं के साथ भी मेल खाते हैं।”

आधुनिक पुष्टि

उन्होंने कहा, ऐसा ही एक छंद विभिन्न फसलों के लिए मिट्टी की जुताई से संबंधित है। इसका अंग्रेजी में अनुवाद इस प्रकार है – “मूली के लिए भूमि की 16 बार जुताई, कपास के लिए इसकी आधी (आठ बार), चावल के लिए उसकी आधी (चार बार), और पान के लिए एक भी नहीं।” सरमा कहते हैं – “असम कृषि विश्वविद्यालय और राज्य कृषि विभाग द्वारा विकसित कृषि विज्ञान पैकेज के अनुसार, चावल के लिए खेत की 4-5 जुताई की जरूरत होती है। तो डाकोर बोसोन एकदम सटीक है।”

यदि कोई इन कहावतों की उत्पत्ति पर गौर करे (डाकोर बोसोन का शाब्दिक अर्थ ‘डाक की कहावतें’ होता है), तो मान्यताएँ मिलीजुली हैं। कुछ शोधकर्ताओं का कहना है कि डाक एक असाधारण बुद्धिमान और दूरदर्शी व्यक्ति थे, जिनका जन्म लगभग 800 और 1200 ईस्वी के बीच असम के बारपेटा में हुआ था।

असम में केले का एक बाग। डाकोर बोसोन समृद्ध जीवन जीने के लिए केले का बाग लगाने की सलाह देते हैं (छायाकार – अज़ेरा परवीन रहमान)

उनके शब्द, जिन्होंने न केवल कृषि में, बल्कि जीवन के सभी पहलुओं में लोगों का मार्गदर्शन किया, जो बाद में पूरे असम और पड़ोसी राज्य (तब अविभाजित) बंगाल, नेपाल और कुछ अन्य निकटवर्ती क्षेत्रों तक फैल गए। एक अन्य विचारधारा का मानना है कि डाक केवल एक व्यक्ति नहीं था, और कहावतें कीमती सबक का एक संयोजन हैं, जिनका विशेष रूप से ग्रामीण समुदाय के लोग पालन करते हैं।

ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी तट पर रहने वाले एक किसान, राजीब निओग का कहना है कि जब से उन्हें याद है, तब से वह डाकोर बोसोन की कहावतों को जानते हैं। उन्होंने कहा – “कुछ कहावतें मेरी जुबान पर हैं। ‘उत्तरे गजाइल जानिबा खोर’; ‘दोखिन गजाइल मारिबा लोर’; ‘पुरबे गजाइल जानिबा पान’; ‘पश्चिम गजाइल जानिबा बाण’ (यदि उत्तरी दिशा में बिजली चमकती है, तो यह सूखे का संकेत देता है; यदि यह दक्षिणी दिशा में है, तो छिपने के लिए दौड़ें; यदि यह पूर्वी दिशा में है, तो पान का अच्छा उत्पादन होगा; और यदि यह पश्चिमी दिशा में है, तो बाढ़ आ जाएगी)। मौसम की भविष्यवाणी हम किसानों के लिए महत्वपूर्ण है और मैंने इसे अपने पिता से एक छोटे लड़के के रूप में सुना था, जिन्होंने अपने पिता से सुना होगा, इत्यादि।”

वे सदियों पुराने हो सकते हैं, लेकिन वर्तमान संदर्भ में ऐसे पारम्परिक ज्ञान की प्रासंगिकता इस तथ्य से साबित होती है कि कृषि वैज्ञानिक अब इन शब्दों के पीछे के विज्ञान और तर्क को समझने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि वे घटते प्राकृतिक संसाधनों और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से फसलों के अस्थिर उत्पादन जैसी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।

बढ़ती वैज्ञानिक रुचि

क्योंकि ये कहावतें वर्षों तक प्रकृति को ध्यान से देखने पर आधारित हैं, इसलिए आधुनिक टेक्नोलॉजी के साथ पारम्परिक ज्ञान को मिलाने के लिए और किसान समुदाय को ज्यादा आसानी से अपनाई जा सकने वाली जानकारी देने के लिए इनका अध्ययन करने में रुचि बढ़ रही है।

बिस्वनाथ कृषि महाविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा स्थानीय तकनीकी ज्ञान (ITK) का संकलन एक ऐसा ही प्रयास है। यह पुस्तक, जो कुछ सबसे लोकप्रिय छंदों को संकलित करती है और उनकी वैज्ञानिक वैधता का परीक्षण करती है। इसके पहले तीन अध्याय डाकोर बोसोन को समर्पित हैं, जिनमें से एक स्वयं एक किसान द्वारा है, और इसे स्वीकार करती है।

उदाहरण के लिए, एक कहावत जुलाई के आसपास मानसून के मौसम में केले के पौधे लगाने की सलाह देती है। इसमें कहा गया है कि इससे इतनी भरपूर फसल होगी कि रावण भी अपने 10 सिर से इसे खत्म नहीं कर पाएगा। रावण भारतीय महाकाव्य रामायण में एक खलनायक है। पुस्तक शोध के द्वारा इस दावे का अनुमोदन करती है – मानसून में केला लगाने से पर्याप्त पानी और सही तापमान सुनिश्चित होता है।

एक अन्य कहावत में कहा गया है कि प्रचुर मात्रा में सुपारी की फसल के लिए, पौधों के बीच छह-कोहनी की दूरी होनी चाहिए। पुस्तक पुष्टि करती है – “आधुनिक शोध के माध्यम से, यह स्पष्ट है कि असम में सुपारी के लिए 2.75 मीटर आदर्श दूरी है और छह-कोहनी की लंबाई इसके काफी करीब है।”

विभिन्न प्रकार की फसलों के लिए विभिन्न प्रकार की खाद के उपयोग पर पर्याप्त सलाह दी गई है। डकोर बोसोन कंद-फसलों के स्वस्थ विकास के लिए राख की सिफारिश करता है। वैज्ञानिक आरआर भगवती और एम. नियोग, जिन्होंने ‘असम के पारम्परिक ज्ञान में बागवानी’ नामक अध्याय संकलित किया था, सहमत हैं और कहते हैं कि लकड़ी की राख में पोटाश होता है, जो कंदों के विकास में सहायता करता है।

केले की खेती पर भी कई कहावतें प्रचलित हैं। असम में केले की एक विस्तृत विविधता है और पेड़ के हर हिस्से का उपयोग अलग-अलग उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। डाकोर बोसोन लोगों को पौधे के किसी भी हिस्से को बर्बाद न करने की सलाह देता है। यह हर किस्म के लिए अलग-अलग खाद की भी सिफारिश करता है – “पुराकोल किस्म को पानी के साथ रसोई के कचरे की जरूरत होती है, अथिया को गोबर की खाद की जरूरत होती है, मालभोग को लकड़ी की राख और मनोहर को सब्जी के कचरे से बनी खाद की जरूरत होती है।” दूसरे शब्दों में, यह जैविक खादों का विश्वकोश है।

सरमा कहते हैं – “कुछ ज्ञान-आधारित कहावतों का वर्तमान संदर्भ में परिशोधन करने की जरूरत है, लेकिन ज्यादातर किसान इन कहावतों का पालन करते हैं, क्योंकि उन्हीं के बीच इन कहावतों का जन्म हुआ। मेरा पसंदीदा वह है जो एक किसान को 360 केले के पेड़ उगाने की सलाह देता है। मूल रूप से, यह एक ऐसा बाग उगाने की सलाह देता है, जो उनके लिए बढ़िया व्यवसाय और परिवार में समृद्धि लाएगा। यह सच है, है ना?”

अज़ेरा परवीन रहमान असम स्थित एक पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं। 

यह लेख पहली बार ‘इंडिया क्लाइमेट डायलॉग’ में प्रकाशित हुआ था।