‘कोरोना‘ ग्रामीण भारत और उसकी अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करेगा

लॉकडाउन के प्रभाव से शहरों में कोई आर्थिक गतिविधियां न होने के कारण, जो प्रवासी अपने मूल गांवों में वापिस आए हैं और गाँवों में रहने वाले मजदूरों के लिए आगामी महीने तकलीफदेह होंगे

इस समय देश मानव-जीवन के लिए कोरोना वायरस (COVID-19) के खतरे से संघर्ष की पीड़ा से गुजर रहा है। इक्कीस दिन का लॉकडाउन लागू कर दिया गया है। इससे निपटने और करोड़ों भारतीयों के स्वास्थ्य और जीवन के लिए खतरे को कम करने के लिए किए गए आपातकालीन उपायों के कारण, अर्थव्यवस्था को एक बड़ा और पूरी तरह अप्रत्याशित झटका लगा है।

औद्योगिक गतिविधियों और शहरी व्यवसाय की गतिविधियों के रुक जाने के कारण, सम्पूर्ण आर्थिक-विकास को बड़े पैमाने पर झटका लगा है। तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था और ग्रामीण जीवन को COVID -19 किस हद तक प्रभावित करेगा?

शहरों में COVID-19

ग्रामीण जीवन पर इसके प्रभाव के बारे में सोचना बहुत आसान है। अभी (अप्रैल, 2020) तक, COVID-19से ग्रस्त देशों से आने वाले लोगों या उनके निकट संपर्क में आने वाले लोगों के बीच बीमारी का पता चला है।

हालांकि उपलब्ध सार्वजानिक सूचनाओं से इस बात की कोई जानकारी नहीं मिलती, कि ऐसे कितने लोग भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में गए| ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि यह बीमारी काफी हद तक मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, पुणे, आदि जैसे शहरों तक सीमित रही है।

कुछ शर्तें

यहां यह कहना जरूरी है कि इसकी कुछ शर्त हैं। पहली शर्त जिसको ध्यान में रखने की जरूरत है, वह यह कि भारत में केवल उन लोगों का परीक्षण हुआ है जिनमें बीमारी के लक्षण थे और उन्होंने हाल में विदेश यात्रा की थी| इसलिए समुदाय में इसके फैल जाने के बारे में (यदि ऐसा हुआ है तो) कोई जानकारी नहीं है।

दूसरी शर्त यह है कि बहुत से लोग, जानबूझकर, शरीर का तापमान कम करने के तरीके अपनाकर, प्रवेश-द्वार पर परीक्षण कराने और अलग-थलग (क्वारंटीन) होने से बच निकले। और तीसरी, जिसका बहुत प्रचार भी हुआ है, “लापता” यात्रियों से सम्बंधित है।

एक पक्ष जो मजबूती से रखा जा सकता है कि वे लोग, जो उनके यात्रा दस्तावेजों की तारीख-अनुसार ब्यौरे के आधार पर, जानकारी के अभाव में “लापता” हो गए थे, ग्रामीण क्षेत्रों में, मान लीजिये पंजाब या कहीं और चले गए हैं।

हालाँकि यह कोरी अटकलबाज़ी हो सकती है। उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है, प्रभावित लोगों का बड़ा हिस्सा प्रायः शहरी है| इसमें केरल का कासरगोड संभवतः एक अपवाद हो सकता है, जहाँ वैसे भी शहर और गावों के बीच निरंतरता है।

लौटते मजदूर

महाराष्ट्र में मीडिया रिपोर्टों और आसपास की जानकारी से पता चलता है कि लॉकडाउन से पहले, कुलियों, घरेलू कामगरों, आदि सहित, अनियमित या दिहाड़ीदार मजदूर के रूप में काम करने वाले, बड़ी संख्या में लोग महाराष्ट्र के अपने गांवों में लौट आए हैं।

यहां तक ​​कि लॉकडाउन से ठीक पहले, मीडिया उन लोगों की भारी भीड़ की तस्वीरों से भरा हुआ था, जो पूर्व में और आगे जाने वाली ट्रेन या बसें पकड़ने की कोशिश कर रहे थे। मुद्दा यह है कि इन लौटने वालों में कुछ इस वायरस को अपने साथ ले आए हो सकते हैं।

यदि इन वापिस आने वाले “लापता” एनआरआई या शहरी मजदूरों के बीच, वायरस को साथ ले जाने वाले लोग हुए, तो यह रोग ग्रामीण भारत में भी फैल सकता है। क्योंकि ग्रामीण भारत में चिकित्सा सामान और स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं का अभाव है, इसलिए यह एक बड़ी समस्या बन सकती है, हालांकि ‘सामाजिक-दूरी’ (सोशल डिस्टैन्सिंग) की समस्या वहां उतनी नहीं होगी जितनी यह शहरी झुग्गी-झोंपड़ियों में है।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था

ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव शायद थोड़े समय बाद होगा। ग्रामीण लोगों पर शायद इसका तुरंत प्रभाव उतना न हो, जितना शहरी क्षेत्रों के अनियमित और दिहाड़ीदार मजदूरों पर होगा।

इसका कारण यह है, कि ग्रामीण लोगों की आय, किसी एक दिन के काम से ज्यादा उनकी फसल के हालात पर निर्भर करती है। क्योंकि उनमें बहुत से लोग आवश्यक वस्तुओं का भंडार रखते हैं, और छोटी वस्तुएं आमतौर पर स्थानीय बाजारों (‘हाट’) से खरीद लेते हैं।

कानून लागू करने वाली प्रवर्तन एजेंसियों पर काम के भारी बोझ और अभी तक किसी भी संक्रमण की जानकारी न होने के कारण, यह एक अटकल का विषय है कि हाट सहित, गांवों की नियमित गतिविधियां जारी रहेंगी या नहीं।

सरकार यह घोषणा करती रही है कि लॉकडाउन के बावजूद, बागवानी-उत्पाद और दूध की आपूर्ति को बनाए रखा जाएगा। यदि वास्तव में ऐसा हुआ, तो गांवों और शहरों के बीच थोड़े-बहुत नुकसान, जिसकी भरपाई संभव होगी, के साथ आर्थिक आदान-प्रदान चलता रहना चाहिए।

कोरोना के प्रकोप के नकारात्मक परिणाम ग्रामीण क्षेत्रों में दूसरे क्रम के प्रभाव छोड़ेंगे। जैसे-जैसे शहरी व्यावसायिक गतिविधियां ख़त्म होंगी, वैसे-वैसे आमदनी और खरीद-शक्ति कमजोर होगी। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है, कि प्रवासी मजदूरों के रूप में शहरों में काम करने वाले परिवारों की आय पर आने वाले कम से कम दो महीनों के लिए चोट पहुंची है या पहुंचेगी।

प्रवासी लोग प्रभावित

उत्तराखंड, असम, दक्षिण राजस्थान, उत्तर बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बुंदेलखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिमी ओडिशा, तेलंगाना, रायलसीमा, खंडेश और मराठवाड़ा प्रमुख क्षेत्र हैं, जहाँ से प्रवासी मजदूर आते हैं।

इन में से कई क्षेत्रों में, ग्रामीण परिवारों का पारिवारिक अस्तित्व और अर्थव्यवस्था, काफी हद तक प्रवासी प्रवासी मजदूर की आय पर निर्भर करते हैं। COVID-19 प्रकोप उस आय की जड़ पर चोट कर रहा है। यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि होली का त्योहार वह समय है, जब प्रवासी मजदूर पश्चिमी, मध्य और उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में अपने घर लौटते हैं।

शहरों से होने वाली उनकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा त्योहारों पर खर्च होता है। उनके होली मनाकर काम पर लौटने के एक पखवाड़े के भीतर ही यह लॉकडाउन लागू हो गया। इस प्रकार, इन परिवारों की सहने की सीमित क्षमता समाप्त होते ही वहां ग्रामीण संकट दिखाई पड़ेगा।

आर्थिक मंदी

अर्थशास्त्री COVID-19 के कारण आर्थिक मंदी की भविष्यवाणी कर रहे हैं। यदि यह प्रलय-वाणी सच हो गई, तो शहरी क्षेत्रों में श्रम को खपाने के अपने मौजूदा स्तर तक पहुंचने में समय लेगा।

क्या इस मंदी का प्रभाव पड़ेगा और पड़ेगा तो किस हद तक? यह एक ओर वैश्विक आर्थिक रुझानों परऔर दूसरी ओर भारत सरकार द्वारा अपनाए जाने वाले आर्थिक प्रोत्साहन सम्बन्धी सुधारों के आकार पर निर्भर करेगा।

संक्षेप में, ग्रामीण भारत में जीवन और स्वास्थ्य पर पड़ने वाला प्रभाव, महत्वपूर्ण रूप से कोरोना वायरस से ग्रस्त लोगों की संख्या पर निर्भर करेगा, जो बिना पकड़ में आए ग्रामीण क्षेत्रों में पहुँच गए हैं| लेकिन यदि ऐसा हुआ है, तो उसके प्रभाव का पता लगाना धीमा और नियंत्रण करना बेहद मुश्किल होगा।

COVID-19 प्रकोप के आर्थिक प्रभाव नकारात्मक दिखाई देंगे, जिससे ग्रामीण परिवारों को मुख्य रूप से प्रवास में मजदूरी से होने वाली आय के नुकसान से चोट पहुंचेगी। ग्रामीण क्षेत्रों में महात्मा गाँधी नरेगा के बड़े पैमाने पर विस्तार के द्वारा कम से कम आंशिक रूप से दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है। हम आशा करते हैं कि सरकारें इस दिशा में कदम उठाएंगी।

संजीव फंसालकर “ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन” के साथ निकटता से जुड़े हैं। वह पहले ग्रामीण प्रबंधन संस्थान आणंद (IRMA) में प्रोफेसर थे। फनसालकर भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) अहमदाबाद से एक फेलो हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।