महाराष्ट्र में सोलापुर के सीमांत (बहुत छोटे) किसानों को बार-बार पड़ने वाले सूखे के चलते दिहाड़ी मजदूरों के रूप में काम करने के लिए मजबूर होना पड़ा, जब तक कि अपने आर्थिक कायापलट के लिए उन्होंने नकदी फसलों की बजाय बागवानी और बाजरा उत्पादन करना शुरू नहीं किया
मानसून विफल होने पर, सीमान्त किसान 31 वर्षीय सुचिता
वासुदेव खापले और उनके पति ने खेतों में क्रमशः 120 और 170
रूपए की दिहाड़ी पर मजदूर के रूप में काम किया। उन्होंने सोलापुर
जिले के मोहोल प्रशासनिक ब्लॉक के वालुज गाँव में अपनी पाँच एकड़ ज़मीन में गन्ना,
गेहूँ और जवार उगाए।
महाराष्ट्र का सोलापुर जिला सूखा संभावित
क्षेत्र है। सोलापुर के अधिकतर किसान सीमांत हैं, जिनके पास पाँच एकड़ से कम जमीन है। जब बारिश होती है, तो साल में एक बार वे गन्ने, गेहूं और जवार उगाते
हैं। गर्मियों के मौसम में और तब जब बारिश नहीं होती, तो वे
दूसरे स्थानों पर मजदूरों के रूप में काम करते हैं।
यदि बारिश हो भी जाए, तो भी कीड़ों के प्रकोप और अस्थिर कीमतों के कारण बहुत
अनिश्चितता बनी रहती थी। स्वाभाविक रूप से वे अपने खेत की आय के बारे में आश्वस्त
नहीं होते थे। उनमें से ज्यादातर दलित हैं, जो जाति-क्रम में
नीचे माने जाते हैं। इस तरह, खापले जैसे बहुत से किसान कई
मोर्चों पर असुरक्षित जीवन जीते थे।
फसल
विविधीकरण
खापले ने तब पुणे स्थित एक स्वयंसेवी संगठन, स्वयं शिक्षण प्रयोग (एसएसपी) की समन्वयक उमा मोटे के माध्यम से विभिन्न कृषि पद्यतियों के बारे में जाना, जो गरीबी उन्मूलन के लिए सरकार द्वारा संचालित महाराष्ट्र राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (MSRLM) के सहयोग से काम करते हैं। परियोजना के अंतर्गत एसएसपी ने, कृषि आय बढ़ाने के उद्देश्य से एक खेती का मॉडल विकसित किया।
यह मॉडल मुख्य रूप से फसल विविधीकरण पर
आधारित है, जिसे अपनाकर, किसान साल में तीन बार पारम्परिक फसलें, जैसे कि सब्जियां,
दालें, बाजरा, अनाज और
फल उगाते हैं। इस तरह उनका पूरे वर्ष उत्पादन सुनिश्चित हुआ।
खापले ने अपने पति को फसलों के विविधीकरण
की कोशिश करने के लिए राजी किया, क्योंकि वैसे भी वे नुकसान
ही झेल रहे थे। उन्होंने अपनी जमीन के 2.5 एकड़ में विविध
फसलें उगाने और बाकि 2.5 एकड़ में हमेशा की तरह गन्ने और
गेहूं की खेती करने का फैसला किया। उन्होंने भिंडी, धनिया,
पालक, प्याज, मेथी,
टमाटर और कई देसी सब्जियों सहित 20 किस्म की
फसलें उगाई।
एक 60 वर्षीय किसान, पद्मिनी काडे ने भी अपनी दो एकड़ जमीन में गन्ने, गेहूं और जवार की खेती छोड़ दी। काडे ने VillageSquare.in को बताया – “पिछले साल हमने सब्जियां, मटर, फलियां, मूंगफली, सोयाबीन और अनार उगाना शुरू किया।
स्थिति के
अनुकूल खेती
सरकारी योजनाओं और सम्बंधित ऋण सुविधा के
बारे में जानने के बाद, किसानों ने ड्रिप सिंचाई
की ओर रुख किया है, ताकि वे उपलब्ध पानी का उपयोग बारहों
महीने कर सकें।
खापले जवार और गेहूं अपने परिवार की खपत के
लिए उगाते हैं। वह गेहूं और जवार के पौधों के बीच सब्जियों की बुआई करती हैं|
महिला किसान फलदार फसलों की खेती भी करती
हैं। खापले अमरूद और पपीते उगाती हैं। काडे अनार उगाती हैं। हालांकि उसके
पड़ोसियों ने अनार लगाने पर उसका मजाक उड़ाया था, क्योंकि इस क्षेत्र में यह अभी तक उगाया नहीं जाता था, फिर भी अपने बेटे के द्वारा इंटरनेट से सम्बंधित मिली जानकारी पर आधारित
सलाह से काडे ने अनार लगाए।
आर्थिक
प्रभाव
सब्जियां लगाने के तीन महीने में, खापले एक दिन छोड़कर एक दिन में 100 से 150 किलोग्राम भिंडी तोड़ती हैं। इस प्रकार उस एक
दिन में उन्हें 3,000 से 4,500 रुपये
कमाई होती है, चाहे उसकी कीमत सिर्फ 30 रुपये प्रति किलो ही मिले।
खापले साल भर हर दिन चार या पांच किस्म की सब्जियां तोड़ती हैं। बहु-फसलीय पद्यति के लाभ के बारे में उन्होंने VillageSquare.in को बताया – “यदि मुझे दो सब्जियां कम कीमत पर भी बेचनी पड़ें, तो भी मुझे बाकि दो के लिए ऊँची कीमत मिल जाती है।” अब वह दूसरों के खेतों में मजदूरी नहीं करती, बल्कि अपने खेत में हाथ बंटाने के लिए मजदूर लगाती हैं। क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है, इसलिए उनके पति ने सभी पांच एकड़ में बीस-फसल पद्धति अपनाने का फैसला किया है।
ग्रामीण अपनी उपज को पुणे के बाजार में भेजते हैं। काडे ने VillageSquare.in को बताया – “केवल दो एकड़ जमीन होने के बावजूद, मेरे परिवार, जिसमें दो बेटे, उनकी पत्नियां और बच्चे शामिल हैं, का गुजारा उसकी आमदनी से हो जाता है।”
वालुज गांव की 50 से अधिक महिला किसानों ने इस मॉडल को अपनाया है,
जिससे हर दिन लगभग 1,000 रुपये की सब्जियां
बेचकर उन्होंने अपना जीवन बदल दिया है। इसके अलावा, परिवार
अब सब्जियों सहित पौष्टिक भोजन ग्रहण करने में सक्षम है।
मॉडल का
विस्तार
एसएसपी के समन्वयक समीर शेख के अनुसार, उन्होंने सोलापुर सहित, पांच सूखा प्रभावित जिलों, जिनमें मराठवाड़ा के उस्मानाबाद, बीड, वाशिम और हिंगोली जिले शामिल हैं, के 500 से अधिक गांवों में खेती के इस मॉडल को लागू किया है। शेख ने VillageSquare.in को बताया – “इनमें से प्रत्येक गाँव के कम से कम 25 किसानों ने अपनी पारंपरिक नकदी वाली फसलों की खेती छोड़कर इस मॉडल को अपनाया है।”
हालांकि उस्मानाबाद के किसान उच्च जातियों के हैं, लेकिन हालात बदलने के साथ, वे आर्थिक रूप से कमजोर की श्रेणी में आते हैं। तुलजापुर के मसाला खुर्द गांव की 42 वर्षीय शोभा जनार्दन वीर ने VillageSquare.in को बताया – “फसल विविधीकरण के अंतर्गत, मैं तूअर दाल, चने और हरी मटर सहित 10 फसलों की खेती करती हूं।” क्षेत्र में लगातार तीन वर्षों से सूखा पड़ने के बावजूद, वह अच्छी कमाई करने में सक्षम है।
समीर शेख के अनुसार, बहुत से गांवों के किसान विविध-फसल और बहु-फसल के लाभ
के बारे में जागरूक हो गए हैं और इस मॉडल को लागू करना चाहते हैं। उन्होंने अगले
दो वर्षों में, उनकी 400 और गांवों में
किसानों तक पहुंचने की योजना है।
अपने आर्थिक लाभ के बारे में , 42 वर्षीय कमल वाघमारे ने VillageSquare.in को बताया – “विविधीकरण के कारण, भूमि फिर से अधिक उपजाऊ हो गई है। यह मॉडल कीटों के हमलों के खिलाफ भी प्रभावी है, जिससे फसल का नुकसान भी कम हुआ है।”
वर्षा
तोर्गलकर पुणे स्थित एक पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं|
अपनी जड़ों की ओर लौटते हुए, तमिलनाडु के शिक्षित युवाओं ने अपनी पैतृक भूमि का आधुनिकीकरण करके और इज़राइली कृषि तकनीक का उपयोग करके कृषि उत्पादन को कई गुना बढ़ा दिया है।
पोषण सखी या पोषण मित्र के रूप में प्रशिक्षित महिलाएं ग्रामीण महिलाओं, विशेषकर गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को पौष्टिक भोजन खाने और एनीमिया और कम वजन वाले प्रसव पर काबू पाने के लिए सलाह और मदद करती हैं।
ओडिशा में, जहां बड़ी संख्या में ग्रामीण घरों में नहाने के लिए बंद जगह की कमी है, बाथरूम के निर्माण और पाइप से पानी की आपूर्ति से महिलाओं को खुले में नहाने से बचने में मदद मिलती है।