असम की महिलाएं फली-फूली, मूल्य-वर्द्धित उद्यान-उत्पादों से

नागांव, असम

अपने आंगन में उगाए ताजे फल और सब्जियों से बने, मूल्य-वर्द्धित उत्पादों की आपूर्ति करके, असम के नागांव जिले के गांवों की महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हुई

उत्पोला बोरा अपने बच्चे के भविष्य को लेकर हमेशा चिंतित रहती थी, विशेषकर नागांव पेपर मिल बंद होने के बाद, जिसमें उनके पति बाँस सप्लाई करते थे। माज जाजोरी असम के नागांव जिले का एक छोटा सा गाँव है, जहाँ पैसा कमाने की बहुत गुंजाइश नहीं है।

लेकिन पिछले कुछ महीनों में, जब से उन्होंने स्थानीय स्तर पर उगाए फलों और सब्जियों से बने मूल्य-वर्द्धित उत्पाद बनाना शुरू किया है, उनकी स्थिति में सुधार हुआ है| बोरा, जो अपने 40 के दशक में है, अब हर महीने लगभग 30,000 रुपये कमाती हैं। उनकी प्रगति से प्रेरित होकर, उनके पति ने भी उनके काम में हाथ बंटाना शुरू कर दिया है|

स्थानीय स्तर पर लोकप्रिय खाद्य पदार्थ घर पर ही बनाने से, असम के दो जिलों की महिलाओं की कमाई की संभावना बेहतर हुई है।

महिलाओं को सूचीबद्ध करना

गौहाटी विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में मास्टर्स डिग्री पाने के बाद, नई दिल्ली में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करने वाले, देवांग पल्लव सैकिया ने अपने मूल स्थान पर वापस जाने का फैसला किया।

देवांगा ने VillageSquare.in को बताया – “गुवाहाटी के बेलटोला बाजार का दौरा करते वक्त मैंने महसूस किया, कि कई स्थानों पर वह सब्जियां महँगी हैं, जो यहां आसानी से मिली जाती हैं।”

जब उन्हें गुवाहाटी में असम की एक लोकप्रिय खाद्य वस्तु ‘खार’ नहीं मिल सकी, तो उन्होंने अपना ही प्रतिष्ठान शुरू करने और स्थानीय खाद्य पदार्थों को बेचने का संकल्प कर लिया। इस बीच, उन्होंने ग्रामीण महिलाओं की एक सहकारी संस्था, श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़’ पर एक डॉक्यूमेंट्री देखी। सहकारिता से प्रेरित होकर, उन्होंने स्थानीय महिलाओं को अपने प्रतिष्ठान के साथ जोड़ने का फैसला  कर लिया।

द्विपक्षीय लाभ 

देवांगा सैकिया और उनके दोस्त अनुपम चौधरी ने 10,000 रुपये का निवेश करके, खार, अचार, जैम और जेली जैसे अन्य घरेलू खाद्य उत्पाद तैयार किए और सोशल मीडिया के माध्यम से उनका प्रचार किया।

देवांगा सैकिया ने VillageSquare.in को बताया – “केवल तीन दिनों में हमें 200 से अधिक ऑर्डर मिले। हमने अपने उद्यम का नाम खखारखुवा फूड्स रखा है, क्योंकि इस शब्द का इस्तेमाल असमिया लोगों की पहचान के तौर पर किया जाता है।”

जोशना बोरा अपने बगीचे के नीम्बुओं से और खाद्य उत्पादन इकाई में काम करके पैसा कमाती हैं (छायाकार – अब्दुल गनी)

जब वे कच्चे माल के तलाश में गाँवों की यात्रा कर रहे थे, तो उन्हें स्टार फल, जैतून, नींबू, अनानास, जंगली आलूबुखारा और मिर्च जैसे उत्पाद बहुतायत में देखने को मिले। देवांगा सैकिया कहते हैं – “यह स्थानीय महिलाओं को जोड़ने के मेरे विचार के साथ मेल खाता था।”

ग्रामीण महिलाएँ, जिनके पास पैसा कमाने का कोई रास्ता नहीं है, अपने आंगन में उगाए फलों और सब्जियों को बेचती हैं। अपनी पैदावार से वे खारखुवा के लिए भी उत्पाद बनाती हैं। इससे महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने में मदद मिली है।

संस्थापक साझेदारों के परिवारों की महिलाएँ भी खारखुवा के कामों में शामिल होती हैं।

घर से कमाई

उत्पोला बोरा ने VillageSquare.in को बताया – “हालांकि, अचार और अन्य वस्तुएं बनाने के लिए मैं औपचारिक रूप से प्रशिक्षित नहीं थी, लेकिन अपने खाने के लिए उन्हें घर पर तैयार करती थी। जब देवांगा ने मुझे अपना विचार बताया, तो मैंने कोशिश करने का फैसला किया।”

नवंबर 2017 से, उत्पोला बोरा घर के बने खाद्य पदार्थ सप्लाई कर रही हैं। वह अलग-अलग फलों से घर में बने 10 तक सामान तैयार करती हैं। अब उनके पति बिनंदा सैकिया उनके काम में उनकी मदद करते हैं। यह दंपति एक महीने में दो क्विंटल तक विभिन्न उत्पाद सप्लाई करने में सफल रहा है।

हाल ही में उत्पोला बोरा ने एक स्थानीय केंद्र में, राज्य के कृषि विभाग द्वारा आयोजित एक सप्ताह के प्रशिक्षण में भाग लिया। उत्पल बोरा कहती हैं – ”हम जितना ज्यादा तैयार करते हैं, उतना ही ज्यादा पैसा मिलता है। जुलाई में हमने लगभग 35,000 रुपये कमाए।” दंपति ने आर्थिक संकट के समय दोस्तों से उधार लिए 60,000 रुपये का ऋण भी चुका दिया।

महिला विक्रेता

उत्पोला बोरा की पड़ोसी जोशना बोरा अपने बगीचे के नीम्बू के 16 पेड़ों से नींबू सप्लाई करती हैं। सैकिया के पड़ोसी होने के नाते, वह और पड़ोस की पांच अन्य महिलाएं, उनके घर में खारखुवा की उत्पादन इकाई में काम करती हैं।

उत्पादन इकाई में काम करने वाली महिलाएं, अपनी नई हासिल की आर्थिक स्वतंत्रता पर गर्व करती हैं (छायाकार – अब्दुल गनी)

जोशना बोरा ने VillageSquare.in को बताया – ‘ मैंने पिछले महीने 10,000 रुपये से अधिक कमाए और अब मुझे लगता है कि मैं अपनी कमाई और भी बढ़ा सकती हूं। मैं अपने प्रांगण में पैदा होने वाले फलों से अचार और जैम बनाना सीखने के लिए उत्सुक हूं।”

उनकी सफलता की कहानियों को देखकर, गांव की दूसरी महिलाओं ने भी इसी तरह के काम में हिस्सा लेने के लिए रुचि दिखाई है।

विस्तार की गुंजाईश

सैकिया 30 वस्तुएं ऑनलाइन बेचते है, हालांकि हाल ही में, ऑफ़लाइन खरीदारों में भी वृद्धि हुई है। सैकिया ने बताया – “जहां महिलाओं को घर से ही कमाने को मिल जाता है, वहीं मुझे ताजे जैविक उत्पाद थोक में मिल जाते हैं।”

उत्पोला बोरा ने कहा – “अब हम अपने बच्चों और स्वयं के लिए एक बेहतर जीवन का सपना देख सकते हैं।” नागांव जिले के बिश्वनाथ चारिआली और कामपुर और नलबाड़ी जिले के गांवों जैसे ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं मिर्च और किंग मिर्च जैसे उत्पाद बनाती हैं, जिनकी असम और दूसरे राज्यों में भी, सभी मौसम में भारी मांग रहती है।

सैकिया के अनुसार, महिलाएं अब  इस बात पर ध्यान देती हैं, कि वे अपने बागानों में क्या लगाएं। वे कहते हैं – “वे घर में उगाए फल और सब्जियों से आर्थिक लाभ का अंदाज़ा लगा सकती हैं। अगर महिलाएं इसी तरह काम करती रही, तो मुझे गाँव में एक और उत्पादन केंद्र स्थापित करने में खुशी होगी।”

अब्दुल गनी गुवाहाटी में स्थित पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।