शिक्षकों ने ग्रामीण घरों के आंगन को कक्षाओं में बदला

दुमका, झारखंड

झारखंड के एक गाँव के एक सरकारी स्कूल के शिक्षकों ने, मिट्टी के घरों की बाहरी दीवारों को ब्लैकबोर्ड में और चौकियों को ऊपर तक बनाकर सीटों में बदल दिया, ताकि छात्रों की पढ़ाई सुनिश्चित हो सके

निशा सोरेन झारखंड के दुमका जिले के जरमुंडी प्रशासनिक ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले गांव चन्दनपुरा में रहती है। आठ साल की निशा कोरोनॉयरस को फैलने से रोकने के लिए लगे लॉकडाउन के कारण, पिछले आठ महीनों से स्कूल नहीं गई है।

तीसरी कक्षा की छात्रा, निशा सोरेन उस वायरस के झंझट को समझने के लिए बहुत छोटी है, जिसके कारण स्कूल के दरवाजे उसके और बस्ती के दूसरे बच्चों के लिए बंद हो गए। देश के दूसरे हिस्सों से अलग, निशा सोरेन और उसके सहपाठी, कक्षाओं के लंबे समय तक निलंबन से बेफ़िक्र हैं।

पिछले चार महीनों से उनके शिक्षकों की कोशिशों से उनकी पढ़ाई जारी है, जिन्होंने अपने छात्रों को पढ़ाने के लिए एक अभिनव तरीका खोज निकाला है। शिक्षकों ने घरों के सामने का हिस्सा कक्षाओं के रूप में इस्तेमाल के लिए ब्लैकबोर्ड और सीटों में बदल दिया है।

बाधित शिक्षा 

जरमुंडी ब्लॉक के डूमरथर गाँव के सरकारी शिक्षण संस्थान, अपग्रेड मिडिल स्कूल में कक्षा एक से आठ तक के 295 छात्र हैं। स्कूल के हेडमास्टर, सपन कुमार ने बताया कि जब लॉकडाउन के कारण कक्षाओं का निलंबन हुआ, तो वे रातों में सो नहीं पाते थे।

सपन कुमार ने VillageSquare.in को बताया – “अचानक हुए बंद के कारण बच्चों की पढ़ाई बाधित हुई, लेकिन COVID-19 के बढ़ते मामलों को देखते हुए, सरकार के पास कोई विकल्प नहीं था। इसने मुझे परेशान कर दिया, क्योंकि बच्चे पढ़ाई में पिछड़ने लगे थे।”

वह कहते हैं – “इसके अलावा, वे घर पर भी पढ़ाई नहीं कर रहे थे। इससे अभिभावकों के साथ-साथ शिक्षकों में भी आशंका बढ़ गई, कि बच्चों का शिक्षा से संपर्क पूरी तरह ख़त्म हो जाएगा। स्थिति गंभीर थी, क्योंकि पढ़ाई के दोबारा शुरू होने के बारे में अनिश्चितता थी।”

स्कूल के तीन अन्य शिक्षकों के साथ, प्रधानाध्यापक ने गाँव में पेड़ों के नीचे कक्षाएं लगाने का फैसला किया। लेकिन उन्हें जल्दी ही एहसास हुआ, कि यह तरीका सही नहीं था, क्योंकि वे शारीरिक दूरी सुनिश्चित नहीं कर सकते थे।

दरवाजे पर स्कूल 

शिक्षक अड़चनों के कारण पढ़ाई को पूरी तरह छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे, क्योंकि उन्हें अच्छी तरह पता था कि छात्रों की पढ़ाई रुकने की स्थिति में क्या नुकसान होगा। जल्द ही शिक्षकों को घरों की बाहरी दीवारों को पेंट करके ब्लैकबोर्ड बनाने का विचार सूझा।

ग्रामवासियों ने अपने घरों की मिटटी की दीवारों को ब्लैकबोर्ड में बदल दिया है, और चौकियों को सीटों की तरह प्रयोग के लिए ऊंचा उठा दिया है (छायाकार – गुरुविंदर सिंह)

हेडमास्टर कहते हैं – “जिले में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो पश्चिम बंगाल और बिहार के पड़ोसी राज्यों में प्रवासी मजदूर के रूप में काम करते हैं। साक्षरता के प्रति जागरूकता के अभाव के साथ-साथ बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयाँ यहां आम हैं। हमें डर था कि शिक्षा में रूकावट से उनके दिमाग में सामाजिक बुराइयाँ अपना सिर उठाएंगी।”

सामाजिक दूरी और स्वच्छता बनाए हुए, उठे हुए मिट्टी के मंच पर बैठे छात्र और ब्लैकबोर्ड बनी दीवारों पर की गई लिखाई, डूमरथर और एक दूसरे से एक किलोमीटर की दूरी पर बसी, खरगडीहा, चंदनपुरा, चरकापत्थर और सिमरिया की बस्तियों में एक आम दृश्य है।

ग्रामवासियों का सहयोग

अपग्रेड मिडिल स्कूल (UMS) के शिक्षकों ने जब बच्चों के घर तक पढ़ाई ले जाने के लिए अपनी अभिनव पद्धति पर फैसला लिया, तो वे ग्रामवासियों की प्रतिक्रिया को लेकर आशंकित थे, जो ज्यादातर आदिवासी समुदायों से हैं।

एक शिक्षक, अनुज कुमार मंडल ने बताया – “हमने इस विचार पर ग्रामवासियों के साथ चर्चा करने का फैसला किया। हम उनकी प्रतिक्रिया के बारे में आशंकित थे, क्योंकि उनमें से ज्यादातर शिक्षित नहीं हैं। लेकिन हमें हैरानी हुई, कि उन्होंने हमारा पूरा समर्थन किया और हमें हर संभव सहयोग की पेशकश की।”

अनुज कुमार मंडल ने VillageSquare.in को बताया – “उन्होंने कमाल का उत्साह दिखाया और यहाँ तक कि अपने घरों की बाहरी दीवारों को ब्लैकबोर्ड के रूप में रंग दिया और बच्चों के बैठने एवं पढ़ाई करने के लिए अपने घरों के बाहर बने मिट्टी की चौकियों (प्लेटफॉर्म) को पॉलिश किया।”

मध्य जून से डूमरथर और एक किलोमीटर के दायरे में पड़ोसी गांवों में चार जगह कक्षाएं शुरू हो गई। छात्रों को एक दूसरे से दूरी बना कर बैठाया गया। उनकी सुरक्षा सावधानियों के लिए मास्क और सैनिटाइज़र प्रदान किए गए।

Digi-SATH कक्षाएँ

इसके अलावा,  झारखंड सरकार द्वारा लॉकडाउन के दौरान कक्षा एक से बारहवीं तक के छात्रों के लिए शुरू किए गए ऑनलाइन कार्यक्रम Digi-SATH से शिक्षकों को मदद मिली। कार्यक्रम के अंतर्गत, सरकार रोज स्मार्ट फोन पर ऑनलाइन पाठ्यक्रम भेजती है।

तीसरी कक्षा की छात्रा, निशा सोरेन अपने पाठ पढ़ते हुए, जबकि उसकी दादी देख रही है (छायाकार – गुरविंदर सिंह)

डूमरथर के शिक्षकों में से एक, अजय कुमार मंडल ने बताया – “हम स्पीकर से जोड़कर, मोबाइल फोन पर दैनिक अध्ययन सामग्री डालते हैं। हम बच्चों को पुस्तक में वह पाठ खोलने के लिए कहते हैं, जिसके बारे में सरकार की ओर से अध्ययन सामग्री आती है।”

अजय कुमार मंडल ने VillageSquare.in को बताया – “छात्र ध्यान से पाठ सुनते हैं। उसके बाद शिक्षकों द्वारा छात्रों के सवालों को विशेष रूप से बनाए गए एक साँझा ब्लैकबोर्ड पर हल किया जाता है। कभी-कभी उनके व्यक्तिगत सवालों को सामाजिक दूरी बनाए रखते हुए, उनके व्यक्तिगत ब्लैकबोर्ड पर हल किया जाता है।”

अजय कुमार मंडल ने बताया – “सरकार ने Digi-SATH तैयार किया, क्योंकि राज्य के दूरदराज के इलाकों में रहने वाले ज्यादातर बच्चे गरीब हैं और उनके लिए महंगे स्मार्ट फोन खरीदना और अच्छी इंटरनेट कनेक्टिविटी अभी भी दूर का सपना है।”

सबकुछ शिक्षा के लिए

ग्रामवासियों ने कहा कि उन्होंने शिक्षकों के फैसले का स्वागत किया, क्योंकि वे चाहते थे कि हमारे बच्चे किसी भी कीमत पर पढ़ाई करें। डूमरथर के ग्राम प्रधान रामविलास मुर्मू (45), जिनकी बेटी भी उसी स्कूल में पढ़ती है, कहते हैं – “हमने अपना जीवन छोटी-मोटी नौकरियाँ करके बिताया है और हमें पढ़ने का अवसर नहीं मिला। लेकिन हम नहीं चाहते हैं कि हमारे बच्चे हमारी तरह अपना जीवन बर्बाद करें।”

रामविलास मुर्मू ने VillageSquare.in को बताया – “हम उन्हें एक बेहतर शिक्षा देना चाहते हैं, ताकि वे समाज में अपना सिर ऊंचा करके चल सकें। हमने तुरंत शिक्षकों के फैसले को मानने और जैसे भी संभव हो उनकी मदद करने का फैसला किया।”

रामविलास मुर्मू कहते हैं – “हमने सुनिश्चित किया कि बच्चे शारीरिक दूरी बनाए रखें, मास्क पहने और हाथ साफ करने के लिए सैनिटाइज़र का इस्तेमाल करें। बच्चे भी खुश थे, क्योंकि उनमें से ज्यादातर को पैदल स्कूल नहीं जाना था, बल्कि अपने घरों के बाहर ही कक्षाएं लगा सकते थे।”

यह सिर्फ शिक्षकों, छात्रों और अभिभावकों की बात नहीं है। इस पहल में स्थानीय युवा भी शामिल हैं, जिन्होंने इन कक्षाओं को चलाने के लिए स्वयंसेवक बन गए हैं। युवा शिक्षकों की महामारी-सम्बन्धी नियमों और एहतियाती उपायों को लागू करने में सहायता करते हैं।

एक ग्रामवासी अपने घर की मिट्टी की बाहरी दीवार को काला करते हुए, ताकि वह एक ब्लैकबोर्ड के रूप में काम आ सके (छायाकार – गुरविंदर सिंह)

डूमरथर के एक किसान, बिष्णु मुर्मू (29) ने बताया – “हम चाहते हैं कि बच्चे पढ़ाई करें और अपने गाँव का नाम रोशन करें। हम छात्रों के बीच सामाजिक दूरी बनाए रखने और अपनी सुरक्षा के लिए सेनिटाइज़र और फेस मास्क का इस्तेमाल सुनिश्चित करने के लिए शिक्षकों की मदद करते हैं।”

फलदायी प्रयास

छात्र मानते हैं कि कक्षाओं ने उन्हें भटकने से रोका है। तीसरी कक्षा के छात्र, मुन्नीलाल मुर्मू ने कहा – “लॉकडाउन के दौरान, हम ज्यादातर समय खेल में या घर पर बिता रहे थे। हालांकि लॉकडाउन के कारण हमें स्कूल से दूर रहना पड़ा, लेकिन हमारे शिक्षकों की वजह से, हमारी पढ़ाई में रुचि ख़त्म नहीं हुई है।”

शिक्षकों के अनुसार पढ़ाने की अभिनव पद्धति ने, छात्रों को उनकी पढ़ाई में पिछड़ने से बचने में मदद की है। इस तरीके से यह भी सुनिश्चित हुआ है कि पढ़ाई छोड़ने वाले छात्रों की संख्या लगभग शून्य है। जहाँ अभिभावक और छात्र इस व्यवस्था से खुश हैं, वहीं यह भी कोई हैरानी की बात नहीं है कि इस पहल ने मुख्यमंत्री कार्यालय सहित, वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों की सराहना अर्जित की है।

जरमुंडी ब्लॉक के खंड विकास अधिकारी (BDO) फूलेश्वर मुर्मू ने बताया – “आदिवासी छात्रों को पढ़ाने के लिए, शिक्षकों द्वारा यह पहल बहुत अच्छी है। लॉकडाउन के कारण देश भर के हजारों बच्चों की शिक्षा प्रभावित हुई है। शहरों में रहने वाले ऑनलाइन शिक्षा की व्यवस्था कर रहे हैं। लेकिन गरीबों के पास ऐसी कोई साधन नहीं है।”

फूलेश्वर मुर्मू ने VillageSquare.in को बताया – “इन शिक्षकों के प्रयास इस बात के जीते जागते उदाहरण हैं कि यदि ईमानदारी से सही दिशा में कदम उठाए जाएं, तो शिक्षा के अमृत को छात्रों तक पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता।”

गुरविंदर सिंह कोलकाता स्थित पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।