सामुदायिक रसोई से मिली, आदिवासी बच्चों को कुपोषण से मुक्ति

रायगड़ा, ओडिशा

ऊबड़-खाबड़ रास्ते आंगनबाड़ी केंद्रों तक पहुँच और इस कारण पौष्टिक भोजन मिलने में बाधा हैं, इसलिए कुपोषण से लड़ने के लिए, पुरुष गांव में आंगनवाड़ी राशन लाते हैं, महिलाएं एक सामूहिक स्थान पर खाना बनाकर बच्चों को खिलाती हैं

पाड़ाप्रुस्टि कार्यक्रम के परियोजना समन्वयक अनंत सामंता ने VillageSquare.in को बताया – “कारदपंगा, तुरूकुपा और कुछ अन्य दुर्गम बस्तियों के अपने अध्ययन में हमने पाया, कि उस समय भोजन की जरूरत शिक्षा की जरूरत से ज्यादा थी।”

ज्यादातर बच्चे केवल जौ (चावल का गूदा) खाते थे। इसके साथ एक चुटकी नमक के अलावा कुछ नहीं होता था। सामंता ने बताया – “बस्ती में येलो-जोन में पांच बच्चे और आठ गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में खून की कमी थी। पौष्टिक भोजन के अभाव में बच्चे दुबले और कुपोषित थे।”

दुर्गम आंगनवाड़ियों

जब टीम ने बच्चों के दैनिक भोजन के बारे में जांच के लिए, पास के आंगनवाड़ी केंद्र से संपर्क किया, तो उन्हें पता चला कि आंगनवाड़ी तक पहुँचने के लिए लोगों को, हर दिन ऊबड़-खाबड़ इलाकों और नालों को पार करना पड़ता था, क्योंकि उनकी बस्तियां पहाड़ियों के ऊपर थीं। इसी कारण से, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता माता-पिता को समझाने के लिए बस्तियों में नहीं जा पाते थे, कि वे अपने बच्चों को भोजन लाने के लिए भेजें।

दूरदराज के क्षेत्रों में, लोग पहाड़ियों पर फैली हुई बस्तियों में रहते हैं, कभी-कभी जंगलों के अंदर, जिससे माता-पिता के लिए अपने बच्चों को आंगनवाड़ी केंद्रों में भेजना मुश्किल हो जाता है। सरधापुर पंचायत में थुआपदी की, बाड़ा कंडुलपाड़ा एक ऐसी ही आदिवासी बस्ती है, जहाँ टीम को आदिवासी बच्चों को भोजन उपलब्ध कराने की जरूरत महसूस हुई।

शिक्षासंधान और APPI ने मुनिगुड़ा के एकीकृत बाल विकास योजना (ICDS) के अधिकारियों के साथ पाड़ा गांव (टोला/बस्ती) की पहचान में मदद के लिए बातचीत की, जहाँ वे जा सकें, लोगों को समझा सकें और वंचित बच्चों के भोजन के लिए पाड़ाप्रुस्टि कार्यक्रम संचालित कर सकें।

सामुदायिक रसोई

सामंता ने बताया – “हमने मुनिगुड़ा ब्लॉक के बाल विकास परियोजना अधिकारी (सीडीपीओ) से संपर्क किया, ताकि वे इन बस्तियों में एक सामूहिक रसोईघर शुरू कर सकें, जहां माता-पिता आंगनवाड़ी केंद्रों से सामग्री लाकर अपने बच्चों के लिए भोजन तैयार कर सकें। गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताएं भी उनके साथ शामिल हो सकती हैं और साथ में अपना भोजन कर सकती हैं।”

जंगलों के ऊबड़-खाबड़ इलाकों में, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए राशन पहुंचाना मुश्किल हो जाता है (छायाकार – राखी घोष)

टीम के लिए स्पॉट-फीडिंग कार्यक्रम शुरू करना आसान नहीं था, क्योंकि ग्रामीणों को समझाना आसान नहीं था। क्योंकि ज्यादातर ग्रामीण या तो दिहाड़ी मजदूर थे या वनोपज पर निर्भर थे, इसलिए आंगनबाड़ी केंद्र से राशन लाने के लिए एक दिन की मजदूरी खोने को तैयार नहीं थे।

शुरू में, टीम के सदस्यों ने राशन लाने में मदद की, क्योंकि महिलाओं के लिए स्वयं भोजन सामग्री ले जाना मुश्किल था। बाद में पुरुष सदस्य शामिल हो गए और आंगनवाड़ी केंद्र से महीने में एक बार सामग्री लाने लगे। माताओं ने बच्चों और गर्भवती महिलाओं को खिलाने के लिए, सामुदायिक रसोई में खाना बनाना शुरू कर दिया।

स्पष्ट प्रगति

एक पिता, अमूल्य कदरका ने VillageSquare.in को बताया – “आंगनवाड़ी केवल राशन प्रदान करती है। जलाऊ लकड़ी, बर्तन और स्थानीय रूप से उपलब्ध सब्जियों जैसी दूसरी वस्तुओं का योगदान हमारा होता है। हमें खुशी होती है, जब हमारे बच्चे पेटभर खाना खाते हैं और उन्हें खाने के लिए अंडा भी मिलता है।” इन दूरदराज के गाँवों में बच्चे अंडा, तेल और दालों से पूरी तरह से वंचित थे।

कारदपंगा गाँव के हस्तक्षेप से टीम को यह समझने में मदद मिली, कि अम्बिका जैसे बहुत बच्चे और युवा हैं, जिन्हें कुपोषण से मुक्ति के लिए पौष्टिक भोजन की जरूरत है। सड़क सुविधा की कमी के कारण, इन बच्चों को अनाज, दालें और अंडे वितरित नहीं किए जाते हैं, जो उनके खराब स्वास्थ्य का एक कारण है।

रायगड़ा जिले के 2016 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों से पता चलता है, कि 6 से 59 महीने के बीच की उम्र के 50% बच्चे खून की कमी से पीड़ित हैं, जबकि खून की कमी से पीड़ित गर्भवती महिलाएँ 52 प्रतिशत था।

पौष्टिक भोजन पकाने के लिए, महिलाएं आंगनवाड़ी केंद्र से प्राप्त भोजन के राशन के साथ, उपलब्ध स्थानीय सब्जियों का उपयोग करती हैं (छायाकार – राखी घोष)

सिक्षासंधान के सचिव, अनिल प्रधान ने VillageSquare.in के अनुसार – “क्योंकि रायगड़ा जिले की अधिकांश बस्तियाँ दुर्गम और जंगलों के अंदर हैं, वहां तक वंचित बच्चों को पौष्टिक भोजन मुहैया कराने के लिए सरकारी व्यवस्था पहुंचने में नाकाम रहती है। पाड़ाप्रुस्टि के एक साल में, कार्यक्रम वाली बस्तियों के बच्चों में सुधार के संकेत दिखाई देने लगे हैं।”

स्कूल के लिए तैयारी

पौष्टिक भोजन के अलावा, बच्चों के लिए स्वच्छ पेयजल भी उपलब्ध कराया जाता है। बच्चों को साफ़-सफ़ाई के बारे में भी सिखाया जाता है। पांच आदिवासी बस्तियों से शुरू हुई पाड़ाप्रुस्टि, अब मुनिगुड़ा ब्लॉक की 10 पंचायतों की लगभग 100 बस्तियों तक बढ़ा दी गई है। सामंता ने कहा – “मुनिगुड़ा ब्लॉक में 1,090 ऐसी बस्तियाँ हैं, जिनमें तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है।”

आंगनवाड़ी केंद्रों की एक प्रमुख भूमिका, तीन से छह साल की उम्र के छोटे बच्चों को, स्कूल के लिए तैयार करना भी है। पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने के अलावा, बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करने के लिए, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, ‘नुआ अरुणिमा’ पुस्तिका के माध्यम से, विभिन्न शिक्षण पद्यति प्रयोग करके, प्री-स्कूल गतिविधियों में संलग्न करता है।

प्रधान कहते हैं – “इन बस्तियों के बच्चों को अब स्कूल के लिए तैयार नहीं किया जा रहा है। स्कूल-तैयारी कार्यक्रम शुरू करने की योजना बनाई गई है। तब स्वास्थ्य और शिक्षा के दृष्टिकोण से एक बच्चे के विकास का उद्देश्य पूरा हो जाएगा।”

राखी घोष भुवनेश्वर स्थित पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।