छोटे जल-श्रोत (नमभूमि) उपेक्षित हैं

जहां बड़े जल-श्रोतों को संरक्षित और बहाल किया जा रहा है, वहीं ग्रामीणों के लिए उपयोगी छोटे जलाशयों की अनदेखी और यहां तक उनका अतिक्रमण किया जा रहा है।

स्थानीय और प्रवासी पक्षियों से भरे झील और तालाब प्रकृति प्रेमियों के लिए अद्भुत स्थान हैं। उनकी समृद्ध जैव विविधता, आसपास के क्षेत्रों में कई सकारात्मक पर्यावरणीय लाभ भी लाती है।

पर्यावरण तंत्र सेवाओं के लिए उनके मूल्य को देखते हुए, यह कोई हैरानी की बात नहीं है कि यूनेस्को “कन्वेंशन ऑफ़ वेटलैंड्स”, जिसे ‘रामसर सम्मेलन’ भी कहा जाता है, यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि दुनिया भर में जलाशय संरक्षित हों।

उत्तर प्रदेश अपने ‘आठ रामसर स्थलों’ के संरक्षण को बढ़ावा दे रहा है, जिसमें गंगा नदी और उसकी सहायक, ‘सोलानी’ द्वारा पोषित, एक जलाशय को भी रामसर स्थल का नाम दिया गया है।

लेकिन हालांकि हैदरपुर जलाशय महत्वपूर्ण है, लेकिन कई छोटे जलाशयों की उपेक्षा हो रही है और संघर्षरत गांवों में समृद्ध जैव विविधता वापिस लाने के लिए इनकी बहाली की सख्त जरूरत है।

जल-श्रोतों की पहचान

भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने माना है कि जल श्रोतों की पहचान हो जाने के बाद, उनकी विशेषताओं, प्रभाव-क्षेत्रों और खतरों का दस्तावेजीकरण करने की जरूरत होती है।

राष्ट्रीय नमभूमि एटलस (नेशनल वेटलैंड एटलस) के अनुसार, उत्तर प्रदेश इन जल-श्रोतों में समृद्ध है, जो राज्य के 12.4 लाख हेक्टेयर में फैले हैं। कोई हैरानी की बात नहीं कि सरकार ने 1.23 लाख जल-श्रोतों की पहचान की है, जिन्हें संरक्षण की जरूरत है।

उत्तर प्रदेश राज्य नमभूमि प्राधिकरण में समन्वयक के रूप में कार्यरत, एक सेवानिवृत्त अधिकारी विनय कुमार उपाध्याय का कहना है कि यह औपचारिक पहचान प्रक्रिया महत्वपूर्ण है।

सरकार ने हैदरपुर जलाशय के अलावा, पूरे उत्तर प्रदेश में कई जलाशयों की पहचान की है (छायाकार – मोहम्मद शाहनवाज खान)

उपाध्याय कहते हैं – जल श्रोतों की पहचान और संरक्षण के लिए नियुक्त राज्य प्राधिकरण, उनका दस्तावेजीकरण करता है और उन दस्तावेजों को तकनीकी समिति को भेजता है। हमने जिन 180 जलाशयों को चुना, उनमें से 139 को तकनीकी समिति के सामने रखे गए और इस समय हम 50 जलाशयों पर काम कर रहे हैं।”

एक उपेक्षित जलाशय 

फिर भी, बहुत से जल श्रोतों पर इस तरह का ध्यान नहीं जाता है।

उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के नगला माया गांव जलाशय। यह सिर्फ 1.6 हेक्टेयर में है, फिर भी यह सर्दियों में बहुत से प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करता है। ग्रामीणों को अकुशल मजदूरी के रूप में साल में 100 दिन की आजीविका सुरक्षा प्रदान करने वाली योजना, ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा)’ के अंतर्गत, एक दशक पहले, इसका विस्तार किया गया था।

हालांकि ग्रामीणों ने जलाशय को संरक्षित करने की कोशिश की है, लेकिन उन्हें इसे पूरी तरह से तैयार करने के लिए, फालतू वनस्पतियों को साफ करने के लिए और मदद की जरूरत है।

इटावा के संभागीय वनाधिकारी, अतुल कांत शुक्ला का कहना था कि नगला माया जलाशय को गहरा करने और उसके चारों ओर दीवार बनाने का काम जल्द शुरू होगा। 

वह कहते हैं – “अगर हम जलाशयों का संरक्षण नहीं करेंगे, तो लोग उन पर अतिक्रमण करेंगे। मनरेगा का धन उपलब्ध है, जिसका उपयोग इस काम के लिए किया जा सकता है।”

जहां बड़े जल-श्रोतों पर ध्यान दिया जाता है, वहीं नगला माया जैसे छोटे जलाशयों को भी बहाल करने की जरूरत है (छायाकार – अजीत यादव)

सारस-क्रेन संरक्षण पर काम करने वाले, इटावा के राजीव चौहान का मानना ​​है कि स्थानीय लोग शिकारियों को भगा देते हैं और पक्षियों की निगरानी करते हैं। लेकिन यह काफी नहीं है।

स्थानीय निवासी सतराम सिंह कहते हैं – “हम किसी को पक्षियों को मारने या मछली पकड़ने की अनुमति नहीं देते हैं। क्योंकि जलाशय को बहाल नहीं किया गया है, इसलिए पक्षियों की आबादी में गिरावट आई है। पिछले साल कुछ ही पक्षी आए थे। लोगों ने जलाशय की भूमि पर घर बना लिए हैं।”

अतिक्रमण सबसे बड़ी समस्या है। कभी-कभी यह भवन बनाने के लिए होता है, लेकिन यह खेती के लिए भी हो सकता है। जब जलाशय सूख जाते हैं, तो सूखे जलाशय की भूमि पर बहुत से किसान खेती करते हैं, जिससे उसका पर्यावरण-संतुलन नष्ट होता है और यह पनपता नहीं है।

एक ग्रामीण, जो नाम नहीं बताना चाहता था, ने कहा कि प्रभावशाली लोग स्थानीय जलाशय की बहाली को रोक रहे हैं और ग्रामीणों द्वारा मदद की गुहार के बावजूद, अधिकारियों ने कुछ नहीं किया।

बहाल जल-श्रोत

विडंबना यह है कि जब नगला माया जलाशय खराब हालत में है, तो पड़ोसी मैनपुरी जिले में इससे भी छोटे, सिर्फ एक हेक्टेयर में फैले, नगला झाडू जलाशय को मनरेगा के अंतर्गत 2,645 ग्रामीणों को रोजगार देकर बहाल किया गया है।

जलाशय को गहरा करने के अलावा, पक्षियों को आकर्षित करने के लिए, उसके इलाके के अंदर, टीले भी बनाए गए थे।

मनरेगा के उपायुक्त, प्रेम चंद्र राम कहते हैं – “काम पिछले दिसंबर में शुरू हुआ और इस साल फरवरी में पूरा हुआ। किसानों ने गेहूं की खेती के लिए जलाशय पर अतिक्रमण कर लिया था। लेकिन अब इसे और गहरा कर दिया गया है।”

नगला झाडू के अलावा, 10 और जलाशयों को भी बहाल किया गया है।

समुदाय के नेतृत्व वाले प्रयास, जैसे कि नगला झाडू जलाशय में किए गए प्रयास, जल-श्रोतों के संरक्षण में मदद करेंगे (छायाकार – पी. सी. राम)

बड़े जलाशयों पर, लोगों को पक्षियों को देखने में मदद के लिए बुर्ज (वॉचटावर) बनाए गए हैं। ‘सारस सर्किट प्रोजेक्ट’ संरक्षण-पर्यटन को बढ़ावा देने वाला एक समूह है, जो सुंदर सारस-क्रेन के बारे में जागरूकता पैदा करता है, जो उनके जल-निवास कम होने के कारण खतरे में हैं।

पुनरुद्धार में समुदायों की भागीदारी

2019 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने भारत में 1,000 जलाशयों के लिए एकीकृत प्रबंधन योजना बनाने के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया।

संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए, जिला नमभूमि समितियां 2.25 हेक्टेयर से ज्यादा  फैलाव वाले जलाशयों के लिए प्रबंधन-योजनाएँ बना रही हैं, हालांकि छोटे जल-श्रोतों को बहाल करने की भी जरूरत है। MoEFCC के नमभूमि विभाग का उद्देश्य, समुदायों को शामिल करके जलाशयों का संरक्षण करना है।

वर्ल्ड वाइड फण्ड (WWF)-इंडिया के ‘नदी बेसिन और जल नीति’ निदेशक, सुरेश बाबू ने बताया कि समुदाय के नेतृत्व वाले संरक्षण के अंतर्गत, स्थानीय लोग जल-श्रोतों की पहचान करने और उन्हें बहाल करने में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। बाबू ने यह भी कहा – “’वेटलैंड मित्र’ कहलाने वाले ये लोग जल-श्रोत संरक्षण के लिए स्वैच्छिक सेवा प्रदान करते हैं।”

बाबू का कहना था कि भारत के 670,000 गांवों में फैले जल-श्रोतों के संरक्षण के लिए, एक विकेन्द्रीकृत मॉडल की आवश्यकता है।

स्वस्थ जल-श्रोत वनस्पतियों और जीवों के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए, ‘ऊपरी गंगा रामसर’ स्थल, गंगा नदी की डॉल्फ़िन, घड़ियाल, ऊदबिलाव, कछुए और मछलियों की 140 प्रजातियों का घर है।

उपाध्याय कहते हैं – “कृषि, मत्स्य पालन और सिंचाई के लिए, जल-श्रोतों का टिकाऊ रूप से उपयोग किया जाना चाहिए।” लेकिन राज्य प्राधिकरण में कर्मचारियों की कमी से यह काम मुश्किल हो जाता है।

इटावा स्थित सेवानिवृत्त वन रेंजर, रमेश चंद्र को लगता है कि सरकार को आगे आने और छोटे जल-श्रोतों की रक्षा की कोशिश में लगे लोगों को और मदद देने की जरूरत है।

उनका कहना है – “हालांकि नगला माया के निवासी जलाशय की रक्षा करते हैं, लेकिन उन्हें सरकारी मदद की जरूरत होती है।”

दीपन्विता गीता नियोगी दिल्ली-स्थित एक पत्रकार हैं।